15-05-2014, 07:17 AM | #1 |
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शहीदो को नमन ......
शहीद होने से एक दिन पूर्व रामप्रसाद बिस्मिल ने अपने एक मित्र को निम्न पत्र लिखा - "19 तारीख को जो कुछ होगा मैं उसके लिए सहर्ष तैयार हूँ। आत्मा अमर है जो मनुष्य की तरह वस्त्र धारण किया करती है।" यदि देश के हित मरना पड़े, मुझको सहस्रो बार भी। तो भी न मैं इस कष्ट को, निज ध्यान में लाऊं कभी।। हे ईश! भारतवर्ष में, शतवार मेरा जन्म हो। कारण सदा ही मृत्यु का, देशीय कारक कर्म हो।। मरते हैं बिस्मिल, रोशन, लाहिड़ी, अशफाक अत्याचार से। होंगे पैदा सैंकड़ों, उनके रूधिर की धार से।। उनके प्रबल उद्योग से, उद्धार होगा देश का। तब नाश होगा सर्वदा, दुख शोक के लव लेश का।। सब से मेरा नमस्कार कहिए, तुम्हारा बिस्मिल"
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मैं क़तरा होकर भी तूफां से जंग लेता हूं ! मेरा बचना समंदर की जिम्मेदारी है !! दुआ करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मत ! यह एक चिराग कई आंधियों पर भारी है !! |
15-05-2014, 07:19 AM | #2 |
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Re: शहीदो को नमन ......
खूनी पर्चा
अमर भूमि से प्रकट हुआ हूं, मर-मर अमर कहाऊंगा, जब तक तुझको मिटा न लूंगा, चैन न किंचित पाऊंगा। तुम हो जालिम दगाबाज, मक्कार, सितमगर, अय्यारे, डाकू, चोर, गिरहकट, रहजन, जाहिल, कौमी गद्दारे, खूंगर तोते चश्म, हरामी, नाबकार और बदकारे, दोजख के कुत्ते खुदगर्जी, नीच जालिमों हत्यारे, अब तेरी फरेबबाजी से रंच न दहशत खाऊंगा, जब तक तुझको...। तुम्हीं हिंद में बन सौदागर आए थे टुकड़े खाने, मेरी दौलत देख देख के, लगे दिलों में ललचाने, लगा फूट का पेड़ हिंद में अग्नी ईर्ष्या बरसाने, राजाओं के मंत्री फोड़े, लगे फौज को भड़काने, तेरी काली करतूतों का भंडा फोड़ कराऊंगा, जब तक तुझको...। हमें फरेबो जाल सिखा कर, भाई भाई लड़वाया, सकल वस्तु पर कब्जा करके हमको ठेंगा दिखलाया, चर्सा भर ले भूमि, भूमि भारत का चर्सा खिंचवाया, बिन अपराध हमारे भाई को शूली पर चढ़वाया, एक एक बलिवेदी पर अब लाखों शीश चढ़ाऊंगा, जब तक तुझको....। बंग-भंग कर, नन्द कुमार को किसने फांसी चढ़वाई, किसने मारा खुदी राम और झांसी की लक्ष्मीबाई, नाना जी की बेटी मैना किसने जिंदा जलवाई, किसने मारा टिकेन्द्र जीत सिंह, पद्मनी, दुर्गाबाई, अरे अधर्मी इन पापों का बदला अभी चखाऊंगा, जब तक तुझको....। किसने श्री रणजीत सिंह के बच्चों को कटवाया था, शाह जफर के बेटों के सर काट उन्हें दिखलाया था, अजनाले के कुएं में किसने भोले भाई तुपाया था, अच्छन खां और शम्भु शुक्ल के सर रेती रेतवाया था, इन करतूतों के बदले लंदन पर बम बरसाऊंगा, जब तक तुझको....। पेड़ इलाहाबाद चौक में अभी गवाही देते हैं, खूनी दरवाजे दिल्ली के घूंट लहू पी लेते हैं, नवाबों के ढहे दुर्ग, जो मन मसोस रो देते हैं, गांव जलाये ये जितने लख आफताब रो लेते हैं, उबल पड़ा है खून आज एक दम शासन पलटाऊंगा, जब तक तुझको...। अवध नवाबों के घर किसने रात में डाका डाला था, वाजिद अली शाह के घर का किसने तोड़ा ताला था, लोने सिंह रुहिया नरेश को किसने देश निकाला था, कुंवर सिंह बरबेनी माधव राना का घर घाला था, गाजी मौलाना के बदले तुझ पर गाज गिराऊंगा, जब तक तुझको...। किसने बाजी राव पेशवा गायब कहां कराया था, बिन अपराध किसानों पर कस के गोले बरसाया था, किला ढहाया चहलारी का राज पाल कटवाया था, धुंध पंत तातिया हरी सिंह नलवा गर्द कराया था, इन नर सिंहों के बदले पर नर सिंह रूप प्रगटाऊंगा, जब तक तुझको...। डाक्टरों से चिरंजन को जहर दिलाने वाला कौन ? पंजाब केसरी के सर ऊपर लट्ठ चलाने वाला कौन ? पितु के सम्मुख पुत्र रत्न की खाल खिंचाने वाला कौन ? थूक थूक कर जमीं के ऊपर हमें चटाने वाला कौन ? एक बूंद के बदले तेरा घट पर खून बहाऊंगा ? जब तक तुझको...। किसने हर दयाल, सावरकर अमरीका में घेरवाया है, वैज्ञानिक जगदीश चन्द्र से प्रिय भारत छोड़वाया है, रास बिहारी, मानवेन्द्र और महेन्द्र सिंह को बंधवाया है, अंडमान टापू में बंदी देशभक्त सब भेजवाया है, अरे क्रूर ढोंगी के बच्चे तेरा वंश मिटाऊंगा, जब तक तुझको....। अमृतसर जलियान बाग का घाव भभकता सीने पर, देशभक्त बलिदानों का अनुराग धधकता सीने पर, गली नालियों का वह जिंदा रक्त उबलता सीने पर, आंखों देखा जुल्म नक्श है क्रोध उछलता सीने पर, दस हजार के बदले तेरे तीन करोड़ बहाऊंगा, जब तक तुझको....। -वंशीधर शुक्ल (1904-1980)
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15-05-2014, 07:21 AM | #3 |
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Re: शहीदो को नमन ......
ऐसे थे चन्द्रशेखर
एक बार भगतसिंह ने बातचीत करते हुए चन्द्रशेखर आजाद से कहा, ‘पंडित जी, हम क्रान्तिकारियों के जीवन-मरण का कोई ठिकाना नहीं, अत: आप अपने घर का पता दे दें ताकि यदि आपको कुछ हो जाए तो आपके परिवार की कुछ सहायता की जा सके।' चन्द्रशेखर सकते में आ गए और कहने लगेल, ‘पार्टी का कार्यकर्ता मैं हूँ, मेरा परिवार नहीं। उनसे तुम्हें क्या मतलब? दूसरी बात, ‘उन्हें तुम्हारी मदद की जरूरत नहीं है और न ही मुझे जीवनी लिखवानी है। हम लोग नि:स्वार्थभाव से देश की सेवा में जुटे हैं, इसके एवज में न धन चाहिए और न ही ख्याति।
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15-05-2014, 07:22 AM | #4 |
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Re: शहीदो को नमन ......
आज़ाद
तुम्हारा नाम? 'आज़ाद' बाप का नाम? 'स्वाधीनता' घर? 'जेलखाना!’ जज गुस्से से दांत पिसने लगा। अदालत में पेश किया गया, यह निडर नौजवान था - अमर शहीद 'चन्द्रशेखर आज़ाद।'
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15-05-2014, 07:29 AM | #5 |
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Re: शहीदो को नमन ......
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15-05-2014, 07:31 AM | #6 |
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Re: शहीदो को नमन ......
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15-05-2014, 07:32 AM | #7 |
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15-05-2014, 07:33 AM | #8 |
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Re: शहीदो को नमन ......
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15-05-2014, 07:35 AM | #9 |
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15-05-2014, 07:35 AM | #10 |
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Re: शहीदो को नमन ......
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