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Old 09-12-2010, 06:43 PM   #11
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Default Re: तेनाली राम की कहानियॉ

ऊँट का कूबड

एक बार राजा कॄष्णदेव राय तेनाली राम के किसी तर्क से बहुत प्रसन्न हुए और बोले, “तेनाली, तुमने आज मुझे प्रसन्न कर दिया, एसके बदले, मैं एक पूरा नगर तुम्हें उपहार स्वरुप देता हूँ।”

तेनाली ने झुककर उनको धन्यवाद कहा। इसके बाद कई दिन बीत गए, परन्तु राजा कॄष्णदेव राय ने अपना वचन पूरा नहीं किया। वे तेनाली को एक नगर उपहार में देने का अपना वचन भूल गए थे। राजा के इस प्रकार वचन भूल जाने से तेनाली बडा परेशान था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे। परन्तु फिर भी राजा को उनका वचन याद दिलवाना तेनाली को अच्छा नहीं लग रहा था। इसलिए वह एक उचित मौके की तलाश में था।

एक दिन एक अरबी व्यक्ति विजयनगर आया, उसके पास एक ऊँट था। लोगों की भारी भीड ऊँट को देखने के लिए इकट्ठी हो गई, क्योंकि उनके लिए वह एक अजूबा था । उन्होंने ऊँट के बारे में सुना था, पर कभी ऊँट देखा नहीं था। राजा एवं तेनाली भी ऊँट नामक इस अजीबो-गरीब जानवर को देखने आए।

दोनों एक साथ खडे हुए ऊँट को देख रहे थे। राजा बोले, तेनाली, निःसन्देह ऊँट एक विचित्र जानवर है। इसकी लम्बी गर्दन तथा कमर पर दो कूबड हैं। मैं हैरान हूँ कि भगवान ने ऐसा विचित्र तथा बदसूरत प्राणी पॄथ्वी पर क्यों भेजा?”

राजा कॄष्णदेव राय की इस बात पर तेनाली को जवाब देने का अवसर मिला और वह सदैव की तरह आज भी अपने उत्तर के साथ तैयार था । वह बोला, “महाराज, शायद …. शायद क्या बल्कि अवश्य ही यह ऊँट अपने पूर्वजन्म में कोई राजा रहा होगा और शायद इसने भी कभी किसी को उपहार स्वरुप नगर देने का वचन दिया होगा और फिर बाद में भूल गया होगा। अतः दण्ड के रूप में ईश्वर ने इसे इस प्रकार का रुप दिया होगा।”

पहले तो राजा को यह तेनाली की एक बुद्धिपूर्ण काल्पनिक कहानी लगी, परन्तु कुछ समय पश्चात ही उन्हे तेनाली को दिया हुआ अपना वचन याद आ गया।

अपने शाही महल में वापस आते ही राजा ने तुरन्त कोषाध्यक्ष को बुलाया और उसे निर्देश दिया कि वह लिखित रुप में प्रबन्ध करे जिसके अनुसार राजा ने तेनाली राम को पूरा एक नगर उपहार स्वरुप प्रदान किया है। पूरा एक नगर उपहार स्वरुप ग्रहण करने के पश्चात तेनाली ने राजा को धन्यवाद दिया। और इस प्रकार एक बार फिर तेनाली ने अपनी बुद्धिमानी से काम लेकर राजा को उसका भूला हुआ वचन याद दिलाया।

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Old 09-12-2010, 06:45 PM   #12
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Default Re: तेनाली राम की कहानियॉ

कितने कौवे

महाराज कॄष्णदेव राय तेनालीराम का मखौल उडाने के लिए उल्टे-पुल्टे सवाल करते थे। तेनालीराम हर बार ऐसा उत्तर देते कि राजा की बोलती बन्द हो जाती। एक दिन राजा ने तेनालीराम से पूछा “तेनालीराम! क्या तुम बता सकते हो कि हमारी राजधानी में कुल कितने कौवे निवास करते है?” हां बता सकता हूं महाराज! तेनालीराम तपाक से बोले। महाराज बोले बिल्कुल सही गिनती बताना।

जी हां महाराज, बिल्कुल सही बताऊंगा। तेनालीराम ने जवाब दिया। दरबारियों ने अंदाज लगा लिया कि आज तेनालीराम जरुर फंसेगा। भला परिंदो की गिनती संभव हैं? “तुम्हें दो दिन का समय देते हैं। तीसरे दिन तुम्हें बताना हैं कि हमारी राजधानी में कितने कौवे हैं।” महाराज ने आदेश की भाषा में कहा।

तीसरे दिन फिर दरबार जुडा। तेनालीराम अपने स्थान से उठकर बोला “महाराज, महाराज हमारी राजधानी में कुल एक लाख पचास हजार नौ सौ निन्यानवे कौवे हैं। महाराज कोई शक हो तो गिनती करा लो।

राजा ने कहा गिनती होने पर संख्या ज्यादा-कम निकली तो? महाराज ऐसा, नहीम् होगा, बडे विश्वास से तेनालीराम ने कहा अगर गिनती गलत निकली तो इसका भी कारण होगा। राजा ने पूछा “क्या कारण हो सकता हैं?”

तेनालीराम ने जवाब दिया “यदि! राजधानी में कौवों की संख्या बढती हैं तो इसका मतलब हैं कि हमारी राजधानी में कौवों के कुछ रिश्तेदार और इष्ट मित्र उनसे मिलने आए हुए हैं। संख्या घट गई हैं तो इसका मतलब हैं कि हमारे कुछ कौवे राजधानी से बाहर अपने रिश्तेदारों से मिलने गए हैं। वरना कौवों की संख्या एक लाख पचास हजार नौ सौ निन्यानवे ही होगी तेनालीराम से जलने वाले दरबारी अंदर ही अंदर कुढ कर रह गए कि हमेशा की तरह यह चालबाज फिर अपनी चालाकी से पतली गली से बच निकला।

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Old 09-12-2010, 06:46 PM   #13
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Default Re: तेनाली राम की कहानियॉ

कीमती उपहार

लड़ाई जीतकर राजा कृष्णदेव राय ने विजय उत्सव मनाया। उत्सव की समाप्ति पर राजा ने कहा- ‘लड़ाई की जीत अकेले मेरी जीत नहीं है-मेरे सभी साथियों और सहयोगियों की जीत है। मैं चाहता हूँ कि मेरे मंत्रिमंडल के सभी सदस्य इस अवसर पर पुरस्कार प्राप्त करें। आप सभी लोग अपनी-अपनी पसंद का पुरस्कार लें। परंतु एक शर्त है कि सभी को अलग-अलग पुरस्कार लेने होंगे। एक ही चीज दो आदमी नहीं ले सकेंगे।’ यह घोषणा करने के बाद राजा ने उस मंडप का पर्दा खिंचवा दिया, जिस मंडप में सारे पुरस्कार सजाकर रखे गए थे। फिर क्या था! सभी लोग अच्छे-से-अच्छा पुरस्कार पाने के लिए पहल करने लगे। पुरस्कार सभी लोगों की गिनती के हिसाब से रखे गए थे।

अतः थोड़ी देर की धक्का-मुक्की और छीना-झपटी के बाद सबको एक-एक पुरस्कार मिल गया। सभी पुरस्कार कीमती थे। अपना-अपना पुरस्कार पाकर सभी संतुष्ट हो गए।अंत में बचा सबसे कम मूल्य का पुरस्कार-एक चाँदी की थाली थी।

यह पुरस्कार उस आदमी को मिलना था, जो दरबार में सबके बाद पहुँचे यानी देर से पहुँचने का दंड। सब लोगों ने जब हिसाब लगाया तो पता चला कि श्रीमान तेनालीराम अभी तक नहीं पहुँचे हैं। यह जानकर सभी खुश थे।

सभी ने सोचा कि इस बेतुके, बेढंगे व सस्ते पुरस्कार को पाते हुए हम सब तेनालीराम को खूब चिढ़ाएँगे। बड़ा मजा आएगा। तभी श्रीमान तेनालीराम आ गए। सारे लोग एक स्वर में चिल्ला पड़े, ‘आइए, तेनालीराम जी! एक अनोखा पुरस्कार आपका इंतजार कर रहा है।’ तेनालीराम ने सभी दरबारियों पर दृष्टि डाली।
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Old 09-12-2010, 06:47 PM   #14
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Default Re: तेनाली राम की कहानियॉ

सभी के हाथों में अपने-अपने पुरस्कार थे। किसी के गले में सोने की माला थी, तो किसी के हाथ में सोने का भाला। किसी के सिर पर सुनहरे काम की रेशम की पगड़ी थी, तो किसी के हाथ में हीरे की अँगूठी। तेनालीराम उन सब चीजों को देखकर सारी बात समझ गया। उसने चुपचाप चाँदी की थाली उठा ली। उसने चाँदी की उस थाली को मस्तक से लगाया और उस पर दुपट्टा ढंक दिया, ऐसे कि जैसे थाली में कुछ रखा हुआ हो।

राजा कृष्णदेव राय ने थाली को दुपट्टे से ढंकते हुए तेनालीराम को देख लिया। वे बोले, ‘तेनालीराम, थाली को दुपट्टे से इस तरह क्यों ढंक रहे हो?’

‘क्या करुँ महाराज, अब तक तो मुझे आपके दरबार से हमेशा अशर्फियों से भरे थाल मिलते रहे हैं। यह पहला मौका है कि मुझे चाँदी की थाली मिली है। मैं इस थाल को इसलिए दुपट्टे से ढंक रहा हूँ ताकि आपकी बात कायम रहे। सब यही समझे कि तेनालीराम को इस बार भी महाराज ने थाली भरकर अशर्फियाँ पुरस्कार में दी हैं।’

महाराज तेनालीराम की चतुराई-भरी बातों से प्रसन्न हो गए। उन्होंने गले से अपना बहुमूल्य हार उतारा और कहा, ‘तेनालीराम, तुम्हारी आज भी खाली नहीं रहेगी। आज उसमें सबसे बहुमूल्य पुरस्कार होगा। थाली आगे बढ़ाओ तेनालीराम!’

तेनालीराम ने थाली राजा कृष्णदेव राय के आगे कर दी। राजा ने उसमें अपना बहुमूल्य हार डाल दिया। सभी लोग तेनालीराम की बुद्धि का लोहा मान गए। थोड़ी देर पहले जो दरबारी उसका मजाक उड़ा रहे थे, वे सब भीगी बिल्ली बने एक-दूसरे का मुँह देख रहे थे, क्योंकि सबसे कीमती पुरस्कार इस बार भी तेनालीराम को ही मिला था।

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Old 09-12-2010, 06:48 PM   #15
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कुएं का विवाह

एक बार राजा कॄष्णदेव राय और तेनालीराम के बीच किसी बात को लेकर विवाद हो गया। तेनालीराम रुठकर चले गए। आठ-दस दिन बीते, तो राजा का मन उदास हो गया। राजा ने तुरन्त सेवको को तेनालीराम को खोजने भेजा। आसपास का पूरा क्षेत्र छान लिया पर तेनालीराम का कहीं अता-पता नहीं चला। अचानक राजा को एक तरकीब सूझी। उसने सभी गांवों में मुनादी कराई राजा अपने राजकीय कुएं का विवाह रचा रहे हैं, इसलिए गांव के सभी मुखिया अपने-अपने गांव के कुओं को लेकर राजधानी पहुंचे। जो आदमी इस आज्ञा का पालन नहीं करेगा, उसे जुर्माने में एक हजार स्वर्ण मुद्राएं देनी होंगी। मुनादी सुनकर सभी परेशान हो गए। भला कुएं भी कहीं लाए-ले जाए जा सकते हैं।

जिस गांव में तेनालीराम भेष बदलकर रहता था, वहां भी यह मुनादी सुनाई दी। गांव का मुखिया परेशान था। तेनालीराम समझ गए कि उसे खोजने के लिए ही महाराज ने यह चाल चली हैं। तेनालीराम ने मुखिया को बुलाकर कहा “मुखियाजी, आप चिंता न करें, आपने मुझे गांव में आश्रय दिया हैं, इसलिए आपके उपकार का बदला में चुकाऊंगा। मैं एक तरकीब बताता हूं आप आसपास के मुखियाओं को इकट्ठा करके राजधानी की ओर प्रस्थान करें”। सलाह के अनुसार सभी राजधानीकी ओर चल दिए। तेनालीराम भी उनके साथ थे।

राजधानी के बाहर पहुंचकर वे एक जगह पर रुक गए। एक आदमी को मुखिया का संदेश देकर राजदरबार में भेजा। वह आदमी दरबार में पहुंचा और तेनालीराम की राय के अनुसार बोला “महाराज! हमारे गांव के कुएं विवाह में शामिल होने के लिए राजधानी के बाहर डेरा डाले हैं। आप मेहरबानी करके राजकीय कुएं को उनकी अगवानी के लिए भेजें, ताकि हमारे गांव के कुएं ससम्मान दरबार के सामने हाजिर हो सकें।

राजा को उनकी बात समझते देर नहीं लगी कि ये तेनालीराम की तरकीब हैं। राजा ने पूछा सच-सच बताओ कि तुम्हें यहाक्ल किसने दी हैं? राजन! थोडे दिन पहले हमारे गांव में एक परदेशी आकर रुका था। उसी ने हमें यह तरकीब बताई हैं आगंतुक ने जवाब दिया। सारी बात सुनकर राजा स्वयं रथ पर बैठकर राजधानी से बाहर आए और ससम्मान तेनालीराम को दरबार में वापस लाए। गांव वालो को भी पुरस्कार देकर विदा किया।

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Old 09-12-2010, 06:50 PM   #16
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कुत्ते की दुम सीधी

एक दिन राजा कृष्णदेव राय के दरबार में इस बात पर गरमागरम बहस हो रही थी कि मनुष्य का स्वभाव बदला जा सकता है या नहीं। कुछ का कहना था कि मनुष्य का स्वभाव बदला जा सकता है। कुछ का विचार था कि ऐसा नहीं हो सकता, जैसे कुत्ते की दुम कभी सीधी नहीं हो सकती।

राजा को एक विनोद सूझा। उन्होंने कहा, ‘बात यहाँ पहुँची कि अगर कुत्ते की दुम सीधी की जा सकती है, तो मनुष्य का स्वभाव भी बदला जा सकता है, नहीं तो नहीं बदला जा सकता।’ राजा ने फिर विनोद को आगे बढ़ाने की सोची, बोले, ‘ठीक है, आप लोग यह प्रयत्न करके देखिए।’

राजा ने दस चुने हुए व्यक्तियों को कुत्ते का एक-एक पिल्ला दिलवाया और छह मास के लिए हर मास दस स्वर्णमुद्राएँ देना निश्चित किया। इन सभी लोगों को कुत्तों की दुम सीधी करने का प्रयत्न करना था। इन व्यक्तियों में एक तेनालीराम भी था। शेष नौ लोगों ने इन छह महीनों में पिल्लों की दुम सीधी करने की बड़ी कोशिश कीं।

एक ने पिल्ले की पूँछ के छोर को भारी वजन से दबा दिया ताकि इससे दुम सीधी हो जाए। दूसरे ने पिल्ले की दुम को पीतल की एक सीधी नली में डाले रखा। तीसरे ने अपने पिल्ले की पूँछ सीधी करने के लिए हर रोज पूँछ की मालिश करवाई। छठे सज्जन कहीं से किसी तांत्रिक को पकड़ लाए, जो कई तरह से उटपटाँग वाक्य बोलकर और मंत्र पढ़कर इस काम को करने के प्रयत्न में जुटा रहा। सातवें सज्जन ने अपने पिल्ले की शल्य चिकित्सा यानी ऑपरेशन करवाया। आठवाँ व्यक्ति पिल्ले को सामने बिठाकर छह मास तक प्रतिदिन उसे भाषण देता रहा कि पूँछ सीधी रखो भाई, सीधी रखो।

नवाँ व्यक्ति पिल्ले को मिठाइयाँ खिलाता रहा कि शायद इससे यह मान जाए और अपनी पूँछ सीधी कर ले। पर तेनालीराम पिल्ले को इतना ही खिलाता, जितने से वह जीवित रहे। उसकी पूँछ भी बेजान सी लटक गई, जो देखने में सीधी ही जान पड़ती थी।

छह मास बीत जाने पर राजा ने दसों पिल्लों को दरबार में उपस्थित करने का आदेश दिया। नौ व्यक्तियों ने हट्टे-कट्टे और स्वस्थ पिल्ले पेश किए। जब पहले पिल्ले की पूँछ से वजन हटाया गया तो वह एकदम टेढ़ी होकर ऊपर उठ गई। दूसरी की दुम जब नली में से निकाली गई वह भी उसी समय टेढ़ी हो गई। शेष सातों पिल्लों की पूँछे भी टेढ़ी ही थीं।

तेनालीराम ने अपने अधमरा-सा पिल्ला राजा के सामने कर दिया। उसके सारे अंग ढलक रहे थे। तेनालीराम बोला, ‘महाराज, मैंने कुत्ते की दुम सीधी कर दी है।’ ‘दुष्ट कहीं के!’ राजा ने कहा, ‘बेचारे निरीह पशु पर तुम्हें दया भी नहीं आई? तुमने तो इसे भूखा ही मार डाला। इसमें तो पूँछ हिलाने जितनी शक्ति भी नहीं है।’

‘महाराज, अगर आपने कहा होता कि इसे अच्छी तरह खिलाया-पिलाया जाए तो मैं कोई कसर नहीं छोड़ता। पर आपका आदेश तो इसकी पूँछ को स्वभाव के विरुद्ध सीधा करने का था, जो इसे भूखा रखने से ही पूरा हो सकता था। बिल्कुल ऐसे ही मनुष्य का स्वभाव भी असल में बदलता नहीं है। हाँ, आप उसे काल कोठरी में बंद करके, उसे भूखा रखकर उसका स्वभाव मुर्दा बना सकते हैं।’
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कुबड़ा धोबी

तेनालीराम ने कहीं सुना था कि एक दृष्ट आदमी साधु का भेष बनाकर लोगों को अपने जाल में फँसा लेता है। उन्हें प्रसाद में धतूरा खिला देता है। यह काम वह उनके शत्रुओं के कहने पर धन के लालच में करता था। धतूरा खाककर कोई तो मर जाता और कोई पागल हो जाता।

उन दिनों भी उसके धतूरे के प्रभाव से एक व्यक्ति पागल होकर नगर की सड़कों पर घूमा करता था। लेकिन धतूरा खिलाने वाले व्यक्ति के खिलाफ कोई प्रमाण नहीं था। इसलिए वह खुलेआम सीना तानकर चला करता। तेनालीराम ने सोचा कि ऐसे व्यक्ति को अवश्य दंड मिलना चाहिए।

एक दिन जब वह दृष्ट व्यक्ति शहर की सड़कों पर आवारागर्दी कर रहा था, तो तेनालीराम उसके पास गया और उसे बातों में उलझाए रखकर उस पागल के पास ले गया, जिसे धतूरा खिलाया गया था। वहाँ जाकर चुपके से तेनालीराम ने उसका हाथ पागल के सिर पर दे मारा। उस पागल ने आव देखा न ताव, उस आदमी के बाल पकड़कर उसका सिर पत्थर पर टकराना शुरू कर दिया। पागल तो था ही, उसने उसे इतना मारा कि वह पाखंडी साधु मर गया। मामला राजा तक पहुँचा। राजा ने पागल को तो छोड़ दिया, लेकिन क्रोध में तेनालीराम को यह सजा दी कि इसे हाथी के पाँवों से कुचलवाया जाए, क्योंकि इसी ने इस पागल का सहारा लेकर साधु के प्राण ले लिए।

दो सिपाही तेनालीराम को शाम के समय एक सुनसान एकांत स्थान पर ले गए और उसे गरदन तक जमीन में गाड़ दिया। इसके बाद वे हाथी लेने चले गए। उन्होंने सोचा कि अब यह बच भी कैसे सकता है!

कुछ देर बाद वहाँ से एक कुबड़ा धोबी निकला। उसने तेनालीराम से पूछा, ‘क्यों भाई यह क्या तमाशा है? तुम इस तरह जमीन में क्यों गड़े हो?’
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तेनालीराम ने कहा-‘कभी मैं भी तुम्हारी तरह कुबड़ा था, पूरे दस साल मैं इस कष्ट से दुखी रहा। जो देखता वही मुझ पर हँसता। यहाँ तक कि मेरी पत्नी भी। आखिर एक दिन अचानक मुझे एक महात्मा मिल गए। वह मुझसे बोले, ‘इस पवित्र स्थान पर पूरा एक दिन आँख बंद किए और बिना एक शब्द भी बोले गरदन तक खड़े रहोगे तो तुम्हारा कष्ट दूर हो जाएगा। मिट्टी खोदकर मुझे बाहर निकालकर तो जरा देखो कि मेरा कूबड़ दूर हो गया है कि नहीं?’

धोबी ने उसके चारों ओर की मिट्टी खोदी। जब तेनालीराम बाहर निकला तो धोबी बहुत हैरान हुआ। सचमुच कूबड़ का कहीं नाम निशान तक नहीं था।

वह तेनालीराम से बोला, ‘सालों हो गए इस कूबड़ के बोझ को पीठ पर लादे हुए। मैं क्या जानता था कि इसका इलाज इतना आसान है। मुझ पर इतनी कृपा करो, मुझे यहीं गाड़ दो। मेरे ये कपड़े धोबी मुहल्ले में जाकर मेरी पत्नी को दे देना और उससे कहना कि वह सवेरे मेरा नाश्ता ले आए। मैं तुम्हारा यह अहसान जीवन-भर नहीं भूलूँगा. और, हाँ मेरी पत्नी को यह मत बताना कि कल तक मेरा कूबड़ ठीक हो जाएगा। मैं कल उसे हैरान करना चाहता हूँ।’

‘बहुत अच्छा।’ तेनालीराम ने धोबी से कहा और उसे गरदन तक गाड़ दिया। फिर उसके कपड़े बगल में दबाकर बोला,‘अच्छा, तो मैं चलता हूँ। अपनी आँखें बंद रखना और मुँह भी, चाहे कुछ भी क्यों न हो जाए, नहीं तो सारी मेहनत बेकार हो जाएगी और यह कूबड़ बढ़कर दो गुना हो जाएगा।’

‘चिंता मत करो, मैंने कूबड़ के कारण बड़े दुख उठाए हैं। इसे दूर करने के लिए मैं कुछ भी करने को तैयार हूँ।’ धोबी ने कहा। तेनालीराम वहाँ से चलता बना।

कुछ देर बाद राजा के सिपाही एक हाथी लेकर पहुँचे और धोबी का सिर उसके पाँवों तले कुचलवा दिया। सिपाहियों को पता नहीं चला कि यह कोई और व्यक्ति है। सिपाही तेनालीराम की मृत्यु का समाचार लेकर राजा के पास पहुँचे। तब तक उनका क्रोध शांत हो गया था और वे दुखी थे, क्योंकि उन्होंने तेनालीराम को मृत्युदंड दिया. तब तक उस पाखंडी साधु के बारे में भी उन्हें काफी कुछ पता चल चुका था।

वह सोच रहे थे, ‘बेचारे तेनालीराम को बेकार ही अपनी जान गँवानी पड़ी। उसने तो एक ऐसे अपराधी को दंड दिया था, जिसे मेरे पुलिस अफसर भी नहीं पकड़ सके थे।’ अभी राजा सोच में ही डूबे थे कि तेनालीराम दरबार में आ पहुँचा और बोला,‘महाराज की जय हो!’ राजा सहित सभी आश्चर्य से उसके चेहरे की ओर देख रहे थे। तेनालीराम ने राजा कृष्णदेव राय को सारी कहानी कह सुनाई। राजा ने उसे क्षमा कर दिया।

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कौन बडा

एक बार राजा कॄष्णदेव राय महल में अपनी रानी के पास विराजमान थे। तेनालीराम की बात चली, तो बोले सचमुच हमारे दरबार में उस जैसा चतुर कोई और नहीं हैं इसलिए अभी तक तो कोई उसे हरा नहीं पाया हैं।

सुनकर रानी बोली आप कल तेनालीराम को भोजन के लिए महल में आमंत्रित करें। मैं उसे जरुर हरा दूंगी। राजा ने मुस्कुराकर हामी भर ली । अगले दिन रानी ने अपने अपने हाथों से स्वादिष्ट पकवान बनाए। राजा के साथ बैठा तेनालीराम उन पकवानों की जी भर के प्रशंसा करता हुआ, खाता जा रहा था। खाने के बाद रानी ने उसे बढिया पान का बीडा भी खाने को दिया।

तेनालीराम मुस्कराकर बोला “सचमुच, आज जैसा खाने का आनंद तो मुझे कभी नहीं आया!” तभी रानी ने अचानक पूछ लिया, “अच्छा तेनालीराम एक बात बताओ। राजा बडे हैं या मैं? अब तो तेनालीराम चकराया। राजा-रानी दोनों ही उत्सुकता से देख रहे थे कि भला तेनालीराम क्या जवाब देता हैं। अचानक तेनालीराम को जाने क्या सूझा, उसने दोनों हाथ जोडकर पहले धरती को प्रणाम किया, फिर एकाएक जमीन पर गिर पडा। रानी घबराकर बोली “अरे-अरे, यह क्या तेनालीराम?”

तेनालीराम उठकर खडा हुआ, और बोला “महारानी जी, मेरे लिए तो आप धरती हैं और राजा आसमान! दोनों में से किसे छोटा, किसे बडा कहूं कुछ समझ में नहीं आ रहा हैं! वैसे आज महारानी के हाथों का बना भोजन इतना स्वादिष्ट था कि उहीं को बडा कहना होगा इसलिए मैं धरती को ही दंडवत प्रणाम कर रहा था।”

सुनकर राजा और रानी दोनों की हंसी छूट गई। रानी बोली “सचमुच तुम चतुर हो तेनालीराम। मुझे जिता दिया, पर हारकर भी खुद जीत गए।” इस पर महारानी और राजा कॄष्णदेव राय के साथ तेनालीराम भी खिल-खिलाकर हंस दिए।

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ABHAY
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Post Re: तेनाली राम की कहानियॉ

क्या कहानी है भाई इसी तरह की और कहानी पोस्ट करो भाई शानदार !
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