03-02-2015, 09:53 PM | #11 |
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Re: Muhobbat
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
03-02-2015, 09:55 PM | #12 |
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Re: Muhobbat
किसी भी रिश्ते को निभाने का भाव स्त्रियों की अपेक्षा पुरुषों में कमजोर होता है। अधिकांश आत्मकथा और हिंदी कथा साहित्य में ऐसे अनेको उदाहरण हैं जो इस तथ्य की प्रामाणिकता सिद्ध करते हैं। चूँकि स्त्रियाँ ज्यादातर संवेदनशील होती हैं इसलिए इस तरह के संबंध की प्रतिक्रिया से ज्यादा आहत भी होती हैं। प्रभा खेतान के इस प्रेम-संबंध में कहीं भी चालाकी नहीं है, वह समझदारी या यूँ कहे कि वह दुनियादारी भरी समझ नहीं है जिसकी वजह से उनपर ऊँगलियाँ उठती रहीं। एक नज़र के आकर्षण से उत्पन्न प्रेम को आत्मसात कर जिंदगी भर का जोखि़म उठाने वाली स्त्री चालाक तो नहीं हो सकती। हाँ ! निश्छलता और मासूमियत की प्रतिमूर्ति जरूर थी। उन्होंने लिखा ‘‘जिस राह पर मैं चल पड़ी हूँ वह गलत-सही जो भी हो पर वहाँ से वापस मुड़ना संभव नहीं। इसे ही प्रेम कहते है।’’ अतः निर्णय पर कायम रहना और संबंध को निभाने का जज्बा होना चाहिए तभी प्रेम किया जा सकता है।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) Last edited by rajnish manga; 03-02-2015 at 09:58 PM. |
03-02-2015, 10:00 PM | #13 |
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Re: Muhobbat
डॉ. सर्राफ ने प्रभा खेतान से कभी प्रेम किया ही नहीं, उनके लिए यह क्षणों का आकर्षण था, जिसे उन्होंने स्वयं स्वीकारा भी. लेकिन प्रभा खेतान के लिए उनका प्रेम उनका पूरा बजूद था, उनका अस्तित्व था जिसे वे पीड़ा सहकर भी अंत तक कायम रखती हैं। उनका कथन इस बात का प्रमाण है-
‘‘वेदना की कड़ी धूप में खड़ी हो जाती हूँ क्यों बार-बार ? प्यार का सावन लहलहा जाता है मुझे किसने सिखाया मुझे यह खेल जलो ! जलते रहो ! लेकिन प्रेम करो और जीवित रहो’’
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03-02-2015, 10:03 PM | #14 |
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Re: Muhobbat
यातना की भट्टी में जलकर, सारी उपेक्षा सहकर, प्रेम करने और अन्त तक अपने निर्णय पर कायम रहने का साहस प्रभा खेतान ने ही दिखाया। इनके प्रेम में कहीं भी सयानापन नहीं, कपट नहीं, निश्छल मन से सबकुछ देने का भाव दिखता है और अपनी आत्मकथा में सबकुछ स्वीकार कर लेने का साहस भी। चूँकि बात प्रेम की हो रही है तो एक प्रेमिका की आकांक्षा को जानना जरूरी है, जो खलील जिब्रान की महबूबा ने अपने महबूत कवि के लिए की थी ‘‘मैं चाहती हूँ कि तुम मुझे उस तरह प्यार करो जैसे एक कवि अपने ग़मग़ीन ख्यालात को करता है। मैं चाहती हूँ, तुम मुझे उस मुसाफिर की याद की तरह याद रखो जिसकी सोंच में पानी से भरा तालाब है, जिसका पानी पीते हुए उसने अपनी छवि उस पानी में देखी हो। मेरी इच्छा है, तुम उस माँ की तरह मुझे याद रखो, जिसका बच्चा दिन की रौशनी देखने से पहले मौत के अंधेरे में डूब गया हो। मेरी आरजू है कि तुम मुझे उसे रहमदिल बादशाह की तरह याद करो जिसकी क्षमा घोषणा से पहले कै़दी मर गया हो।’’
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03-02-2015, 10:06 PM | #15 |
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Re: Muhobbat
प्रभा खेतान ने कभी ऐसे ही प्रेम की कल्पना की थी। लेकिन अफसोस, डॉ. सर्राफ से ऐसा प्यार उन्हें नहीं मिला। समय के साथ उन्हें ये आभास होने लगा था कि “मैंने और डॉ. साहब ने जिस चाँद को साथ-साथ देखा था वह नकली चाँद था”। प्यार को निभाने का जो उत्साह प्रभा खेतान में था वह डॉ. सर्राफ में दिखा ही नहीं। निष्कपटता, निश्छलता प्रेम की कसौटी है। इसमें लेने का नहीं, देने का भाव होना चाहिए। लेखिका ने तो अपना हर कर्तव्य निभाया लेकिन डॉ. सर्राफ ने इस रिश्ते के प्रति अपनी कोई जिम्मेदारी नहीं निभाई। घनानंद के शब्दों में कहें तो-
‘‘तुम कौन धौं पाटी पढ़े हो लला मन लेहु पै देहु छटाँक नहीं।’’ पूरी आत्मकथा में एक निष्ठा व आस्था व्यक्त हुई है जिसके कारण उन्हें पारिवारिक और सामाजिक स्तर पर बहुत कुछ झेलना पड़ा। उनका अन्तर्मन उनसे पूछता है ‘‘आखिर मैं क्यों नहीं अपने लिए जीती ? मैं क्यों एक परजीवी की तरह जी रही हूँ। किसलिए?
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03-02-2015, 10:07 PM | #16 |
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Re: Muhobbat
हिसाब लगाऊँ तो एक महीने में चैबीस घंटे से अधिकसमय मैं औरडॉ. साहब साथ नहीं रहते फिर भी उनके प्रति यह कैसा दुर्निवार आकर्षणहैजो खत्म नहीं हो रहा ? डॉ. साहब को मेरी पीड़ा का अहसास क्यों नहीं होता ?’’ साधारणतः किसी भी संबंध में जब इतने तनाव हो तो उन्हें खत्म करना हीउचित है लेकिन ये संबंध ऐसा था जो न पूरी तरह से जुड़ा और न टूट ही पाया।क्योंकि लेखिका अपने निर्णय को खारिज नहीं करना चाहती थीं। उन्हें भले हीप्यार नहीं मिला लेकिन जितनी शिद्दतसे उन्होंने निभाया वह अद्भुत है। तूनहीं और सही, और नहीं और सही वाला भाव यदि इनमें होता तो शायद सफलउद्योगपति के साथ आदर्शमहिला भी होती क्योंकि मरे हुए संबंध को विवाह केनाम पर निभाना हमारे समाज को स्वीकार है, लेकिन आजीवन किसी से निश्छल प्रेमकरना, महापाप। ये निर्णय तो पाठकों का है कि वे इस प्रेम-संबंध को किस तरहदेखना चाहते हैं।
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03-02-2015, 10:08 PM | #17 |
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Re: Muhobbat
प्रेम एक ऐसा अहसास है, जिसे करने वाला ही जानता है। हिन्दी की प्रतिष्ठित लेखिका कुसुम अंसल ने लिखा है - ‘‘प्रेम एक इच्छा है, एक इच्छा जो विशेष इच्छा के रुप में प्रत्येक हृदय में बहती तरंगित होती है। यह इच्छा मात्र स्त्री-पुरुष ही नहीं वृक्ष की जड़ और फूलों में भी होती है, श्वास और वायु में भी होती है। प्रेम स्त्री-पुरष के मध्य घटित होता है जिसे शायद शरीर के पाँच तत्व भी चाहें तो ढूँढ नहीं पाते। प्रेम को हवा की तरह ओढ़ा जा सकता है, समुद्र सा लपेटा जा सकता है और पर्वतों की तरह बाहों के बंधन में आलिंगित किया जा सकता है। प्रेम हमारा वायदा है अपने आपसे से किया हुआ जिसे हमें निभाना होता है। मुझे लगता था प्रेम कोई प्रक्रिया या प्रोसेस नहीं है ,जिसमें शरीरों का जुड़ना या बिछुड़ना शामिल होता है, प्रेम तो बीज की तरह अंकुरित होता है, और फूल सा खिलता है। यह मनुष्य के भीतर सूक्ष्म सी मानवीय चेतना है जो ऊपर उठकर अजन्मा शाश्वत में बदल जाती है।’’ अतः प्रभा खेतान का प्रेम एक ऐसा ही सूक्ष्म अहसास है जो वाद-विवाद, नैतिकता-अनैतिकता की परवाह किये बिना सिर्फ मन की आवाज सुनता है।
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04-02-2015, 12:18 AM | #18 |
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Re: Muhobbat
वास्तव में प्रेम वही होता है जहाँ वो चाहे हमारे पास ना हो पर हमेशा हमारे साथ होता है , वास्तविक प्रेम वो है जो हमें रूपान्तरित करे , हमें और बेहतर बना सके। साथ वक्त गुजारना , घूमना या पूरा दिन बातें करते रहना ये तो एक तरह से प्रेम का सबसे निम्नतम रूप है , प्रेम तो वो है जहाँ साथ रहना जरूरी नहीं होता बल्कि दूर रहकर भी मानसिक तौर से पास रहना जरूरी होता है ।
रजनीश जी आपके दिये उदाहरणों से मुझे भी एक प्रेम कहानी याद आई - इमरोज और अमृता प्रीतम की प्रेम कहानी , जिसमें इमरोज ने निस्स्वार्थ भाव से अमृता को अपनाया और उनके दर्द को बाँटा ही नहीं बल्कि उसे अपना बना लिया ।
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04-02-2015, 10:55 PM | #19 |
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Re: Muhobbat
Sahi kaha pavitra Aapne...or rajnishji ne bhi bahot acchhe se samjaya....ki suchha pyar kya hota hai...
Such hai....Jo door hokar bhi humesha paas rahe...door hote Huye bhi har pal unka hi khayal rahe vahi suchha pyar hota hai
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08-02-2015, 09:01 AM | #20 | |
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Re: Muhobbat
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उपरोक्त सूत्र में प्रेम के विभिन्न रूपों के बीच सच्चा प्रेम क्या है इस विषय पर बहुत सुंदर विचार व प्रतिक्रियाएं पढ़ने को मिलीं. कथाकार प्रभा खेतान के जीवन प्रसंग को पढ़ने व उसे पसंद करने के लिए पवित्रा जी, शिखा जी व रजत जी का बहुत बहुत धन्यवाद.
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