03-02-2013, 07:37 PM | #1 |
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इस्लाम और मजदूर
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर । परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।। विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम । पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।। कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/ यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754 |
03-02-2013, 07:38 PM | #2 |
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Re: इस्लाम और मजदूर
इस्लाम जो कि दुनिया की सबसे बड़ी व्यवस्था है, मज़दूर को खास अहमियत देता है।
जिस वक्त नबी व रसूल मोहम्मद(स-अ-) ने इस्लाम का पैगाम दिया उस वक्त अरब में मेहनत मज़दूरी का काम गुलामों से करवाया जाता था। गुलामी की प्रथा जोरों पर थी। दूर दराज के इलाकों से लोग पकड़ कर लाये जाते थे उन्हें खरीद कर जिंदगी भर के लिए गुलाम बना लिया जाता था। और फिर उन्हें हमेशा के लिये बस रोटी और कपड़े पर बेगार करनी पड़ती थी। गुलामो की हालत बहुत ही दयनीय होती थी उनपर तरंह तरंह के जुल्म होते थे और निहायत सख्त काम के बदले उन्हें भरपेट खाना भी नसीब नहीं होता था। इस्लाम ने इन गुलामों की आजादी के लिये निहायत खूबसूरत तरीके से काम किया मुसलमानों को गुलाम को आजाद करने पर जन्नत की बशारत दी गयी। हज़रत बिलाल जो कि एक हब्शी गुलाम थे उन्हें खरीदकर आजाद किया गया और बाद में वे ईमान के ऊंचे दर्जे पर फायज़ हुए।
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03-02-2013, 07:38 PM | #3 |
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Re: इस्लाम और मजदूर
कुरआन गुलामों से अच्छा सुलूक करने व उन्हें आजाद करने के लिये कई आयतों में हुक्म दे रहा है मिसाल के तौर पर
(कुरआन : 24-32) और अपनी बेशौहर औरतों और अपने नेकबख्त गुलामों व कनीजों का निकाह कर दिया करो। अगर ये लोग मोहताज होंगे तो अल्लाह अपने फजल व करम से उन्हें मालदार बना देगा और अल्लाह तो बड़ा गुंजाइश वाला व वाकिफकार है। (कुरआन : 24-33) और तुम्हारे कनीजों व गुलामों में से जो मकातबत (किसी एग्रीमेन्ट के जरिये आजाद होना) होने की ख्वाहिश करें तो तुम उनमें कुछ सलाहियत देखो तो उनको मकातिब कर दो और अल्लाह के माल में से जो उसने तुम्हें अता किया है उनका भी दो। और तुम्हारी कनीजें जो पाकदामन ही रहना चाहती हैं उन्हें दुनियावी फायदे हासिल करने की गरज से हरामकारी पर मजबूर न करो। और जो शख्स उनको मजबूर करेगा तो इसमें शक नहीं कि अल्लाह उनकी मजबूरी के बाद बड़ा बख्शने वाला व मेहरबान है।
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03-02-2013, 07:39 PM | #4 |
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Re: इस्लाम और मजदूर
इन आयतों से यह साफ हो जाता है कि अल्लाह हर शख्स को आजाद देखना चाहता है। और चाहता है कि सबको अपनी जिंदगी गुजारने का हक मिले।
इस्लाम में मेहनत मजदूरी करके अपने व अपने परिवार का जायज़ तरीके से पेट पालने को निहायत अहमियत दी गयी है। अपनी रोजी को खुद हासिल करने पर जोर दिया गया है। (कुरआन : 53-39) और यह कि इंसान को वही मिलता है जिसकी वह कोशिश करता है। नबी (स-अ-) ने फरमाया ‘अल्लाह उन्हें पसंद करता है जो काम करते हैं और अपने परिवार का पेट पालने के लिये कड़ी मेहनत करते हैं।’ नबी (स-अ-) ने फरमाया ‘सबसे अच्छा खाना वह होता है जो इंसान अपनी मेहनत मह्स्क्कत से कमाकर खाता है।’ (तिरमिजी) हज़रत अली (अ-स-) ने अपने बेटे इमाम हसन (अ-स-) से फरमाया, ‘रोजी कमाने में दौड़ धूप करो और दूसरों के खजांची न बनो।’ (नहजुल बलागाह) मज़दूरों से कैसा सुलूक करना चाहिए इसके लिये हज़रत अली (अ-स-) का मशहूर जुमला है, ‘मज़दूरों का पसीना सूखने से पहले उनकी मज़दूरी दे दो।’
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03-02-2013, 07:40 PM | #5 |
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Re: इस्लाम और मजदूर
इस्लामी खलीफा हज़रत अली (अ-स-) ने जब हज़रत मालिके अश्तर को मिस्र का गवर्नर बनाया तो उन्हें इस तरंह के आदेश दिये ‘लगान (टैक्स) के मामले में लगान अदा करने वालों का फायदा नजर में रखना क्योंकि बाज और बाजगुजारों (टैक्स और टैक्सपेयर्स) की बदौलत ही दूसरो के हालात दुरुस्त किये जा सकते हैं। सब इसी खिराज और खिराज देने वालों (टैक्स और टैक्सपेयर्स) के सहारे पर जीते हैं। और खिराज को जमा करने से ज्यादा जमीन की आबादी का ख्याल रखना क्योंकि खिराज भी जमीन की आबादी ही से हासिल हो सकता है और जो आबाद किये बिना खिराज (रिवार्ड) चाहता है वह मुल्क की बरबादी और बंदगाने खुदा की तबाही का सामान करता है। और उस की हुकूमत थोड़े दिनों से ज्यादा नहीं रह सकती। (नहजुल बलागाह, खत नं - 53)
मुसीबत में लगान की कमी या माफी, व्यापारियों और उद्योगपतियों का ख्याल व उनके साथ अच्छा बर्ताव, लेकिन जमाखोरों और मुनाफाखोरों के साथ सख्त कारवाई की बात इस खत में मौजूद है। यह लम्बा खत इस्लामी संविधान का पूरा नमूना पेश करता है। यू-एन- सेक्रेटरी कोफी अन्नान के सुझाव पर इस खत को यू-एन- के विश्व संविधान में सन्दर्भ के तौर पर शामिल किया गया है।
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03-02-2013, 07:40 PM | #6 |
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Re: इस्लाम और मजदूर
इस्लाम में शारीरिक और मानसिक दोनों ही तरंह के कामों को अहमियत दी गयी है। कुरआन में शारीरिक श्रम के रूप में हज़रत नूह का कश्ती बनाना, हज़रत दाऊद का लोहार के रूप में काम करना, हजरत जुल्करनैन का लोहे की दीवार का निर्माण वगैरा शामिल हैं। इसी तरंह दिमागी काम करने में हज़रत लुक़मान की हिकमत, हज़रत यूसुफ का मिस्र के बादशाह के खज़ांची रूप में काम करना वगैरा शामिल हैं।
अल्लाह किसी काम को मेहनत व खूबसूरती के साथ पूरा करने को पसंद करता है,जिसका कुरआन की आयत इस तरह इशारा कर रही है। (कुरआन : 34-11) (पैगम्बर हजरत दाऊद से मुखातिब करके) कि फराख और कुशादा जिरह बनाओ और कड़ियों को जोड़ने में अन्दाजे का ख्याल रखो और तुम सब के सब अच्छे काम करो। जो कुछ तुम करते हो मैं देख रहा हूं। इस्लाम में जुआ व सूद जैसे गलत तरीकों से पैसा कमाने को सख्ती से मना किया गया है। नबी (स-अ-) ने फरमाया कि छोटे से छोटा काम भी अगर जायज हो तो उसे करने से हिचकिचाना नहीं चाहिए। नबी (स-अ-) खुद बकरिया चराते थे। अपने कपड़ों में खुद पेबंद लगाते थे और मजदूरी करते थे। (तिरमिज़ी)
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Re: इस्लाम और मजदूर
हजरत अली (अ-स-) यहूदी के बाग में मजदूरी करके अपने बच्चों का पेट पालते थे। यहाँ तक कि जब उन्होंने इस्लामी खलीफा का ओहदा संभाला तो बागों व खेतों में मजदूरी करने का उनका अमल जारी रहा। उन्होंने अपने दम पर अनेक रेगिस्तानी इलाकों को नख्लिस्तान में बदल दिया था।
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