08-06-2011, 02:34 PM | #151 | |
Special Member
Join Date: Jan 2011
Posts: 3,405
Rep Power: 33 |
Re: दुनिया की अद्भुत रहस्य,रोमांचक घटनाएँ
Quote:
__________________
|
|
08-06-2011, 05:03 PM | #152 |
Senior Member
Join Date: May 2011
Posts: 584
Rep Power: 21 |
Re: दुनिया की अद्भुत रहस्य,रोमांचक घटनाएँ
पहाड़ को तराशकर सात मीटर ऊंचा और करीब सात मीटर चौड़ी यह दरवाजे जैसी आकृति बनाई गई है। इस लंबे-चौड़े दरवाजे के बीच में दो मीटर चौड़ा एक और दरवाजा बनाया गया है। ये इंसानों के लिए रास्ता हो सकता है, फिर भी इस रास्ते का कुछ पता नहीं चलता है। यह कब और किसने बनाया था, ये भी पता नहीं चलता।
जोस लुइस डेलगाडो ने 1996 में इसे तलाशा था। वह उस समय वहां टूरिस्ट के तौर पर गए थे। दूसरी जानकारी के अनुसार यह एक मंदिर हो सकता है, जिसके संत अमारू मुरू रहे होंगे। यहां पर सुरंग बनी होगी जो बाद में कभी नजर नहीं आई। इस तरह यह क्या था, ये कोई नहीं पता लगा सका है। इसे टैंपल ऑफ सेवन रेज भी कहा जाता है।
__________________
'' हम हम हैं तो क्या हम हैं '' तुम तुम हो तो क्या तुम हो ' आपका दोस्त पंकज |
08-06-2011, 05:04 PM | #153 |
Senior Member
Join Date: May 2011
Posts: 584
Rep Power: 21 |
Re: दुनिया की अद्भुत रहस्य,रोमांचक घटनाएँ
राज़ है गहरा
पेरू में पूनो से 35 किलोमीटर दूर हायू मार्का पहाड़ को एक विशाल दरवाजे के शेप में तराशा गया है। ये कब और कैसे बना था, ये पता नहीं चलता। लोगों के अनुसार यह स्वर्ग का द्वार है। इसे किसने बनाया था, यह भी एक राज़ है।
__________________
'' हम हम हैं तो क्या हम हैं '' तुम तुम हो तो क्या तुम हो ' आपका दोस्त पंकज |
08-06-2011, 05:07 PM | #154 |
Senior Member
Join Date: May 2011
Posts: 584
Rep Power: 21 |
Re: दुनिया की अद्भुत रहस्य,रोमांचक घटनाएँ
__________________
'' हम हम हैं तो क्या हम हैं '' तुम तुम हो तो क्या तुम हो ' आपका दोस्त पंकज |
29-06-2011, 11:21 PM | #155 |
Senior Member
Join Date: May 2011
Posts: 584
Rep Power: 21 |
Re: दुनिया की अद्भुत रहस्य,रोमांचक घटनाएँ
चीन में दिखा प्रकृति का बेहद रहस्यमयी रूप.......
चीन के एक शहर में ऐसी मरीचिका यानि धूल और आंधी से बनने वाली आकृति देखी गई जैसी पहले कभी नहीं देखी गई. लोगों ने इस रचना को "घोस्ट सिटी" का नाम दिया. महीने के शुरुआत में भारी बारिस और आद्रता के कारण इस तरह की आकृतियाँ बनना आम बात है. लेकिन पूर्वी चाइना के हुशान शहर में बनने वाली यह आकृति अब तक देखी गई किसी भी आकृति से बेहद अलग और साफ़ थी. आसमान में अचानक ऐसा नजारा दिखा जैसे कोई भव्य महल आसमान में उड़ रहा हो...........
__________________
'' हम हम हैं तो क्या हम हैं '' तुम तुम हो तो क्या तुम हो ' आपका दोस्त पंकज |
29-06-2011, 11:21 PM | #156 |
Senior Member
Join Date: May 2011
Posts: 584
Rep Power: 21 |
Re: दुनिया की अद्भुत रहस्य,रोमांचक घटनाएँ
इस रचना को देख पहले तो लोग चौक गए. कुछ ने कहा कि यह किसी समाप्त हो चुकी सभ्यता की तस्वीर है जिसे दिखा कर प्रकृति सन्देश देना चाहती है कि इस सभ्यता का अंत भी निकट है. विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे मौसम में मिराज का बनाना कोई बड़ी बात नहीं लेकिन जितना साफ़ और विचित्र ढंग का मिराज यहाँ बना है ऐसा पहले कभी नहीं देख गया.
__________________
'' हम हम हैं तो क्या हम हैं '' तुम तुम हो तो क्या तुम हो ' आपका दोस्त पंकज |
29-06-2011, 11:23 PM | #157 |
Senior Member
Join Date: May 2011
Posts: 584
Rep Power: 21 |
Re: दुनिया की अद्भुत रहस्य,रोमांचक घटनाएँ
देखो प्रकृति के इस बेहद रहस्यमयी रूप को ..क्या ये वाकई कोई भूतिया शहर है
__________________
'' हम हम हैं तो क्या हम हैं '' तुम तुम हो तो क्या तुम हो ' आपका दोस्त पंकज Last edited by The ROYAL "JAAT''; 29-06-2011 at 11:27 PM. |
05-02-2013, 11:32 AM | #158 |
Junior Member
Join Date: Feb 2013
Posts: 1
Rep Power: 0 |
कामाख्या मन्दिर
कामाख्या मन्दिर
कामाख्या मंदिर असम की राजधानी दिसपुर के पास गुवाहाटी से ८ किलोमीटर दूर कामाख्या मे है.कामाख्या से भी १० किलोमीटर दूर नीलाचल पव॑त पर स्थित हॅ । यह मंदिर शक्ति की देवी सती का मंदिर है। यह मंदिर एक पहाड़ी पर बना है व इसका महत् तांत्रिक महत्व है। प्राचीन काल से सतयुगीन तीर्थ कामाख्या वर्तमान में तंत्र सिद्धि का सर्वोच्च स्थल है। पूर्वोत्तर के मुख्य द्वार कहे जाने वाले असम राज्य की राजधानी दिसपुर से 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित नीलांचल अथवा नीलशैल पर्वतमालाओं पर स्थित मां भगवती कामाख्या का सिद्ध शक्तिपीठ सती के इक्यावन शक्तिपीठों में सर्वोच्च स्थान रखता है। यहीं भगव ती की महामुद्रा (योनि-कुण्ड) स्थित है। यह मान्यता है कि भगवान विष्णु के चक्र से खंड-खंड हुई सती की योनि नीलाचल पहाड़ पर गिरी थी। अम्बुवाची पर्व विश्व के सभी तांत्रिकों, मांत्रिकों एवं सिद्ध-पुरुषों के लिये वर्ष में एक बार पड़ने वाला अम्बूवाची योग पर्व वस्तुत एक वरदान है। यह अम्बूवाची पर्वत भगवती (सती) का रजस्वला पर्व होता है। पौराणिक शास्त्रों के अनुसार सतयुग में यह पर्व 16 वर्ष में एक बार, द्वापर में 12 वर्ष में एक बार, त्रेता युग में 7 वर्ष में एक बार तथा कलिकाल में प्रत्येक वर्ष जून माह में तिथि के अनुसार मनाया जाता है। इस बार अम्बूवाची योग पर्व जून की 22, 23, 24 तिथियों में पौराणिक संदर्भ पौराणिक सत्य है कि अम्बूवाची पर्व के दौरान माँ भगवती रजस्वला होती हैं और मां भगवती की गर्भ गृह स्थित महामुद्रा (योनि-तीर्थ) से निरंतर तीन दिनों तक जल-प्रवाह के स्थान से रक्त प्रवाहित होता है। यह अपने आप में, इस कलिकाल में एक अद्भुत आश्चर्य का विलक्षण नजारा है। कामाख्या तंत्र के अनुसार - योनि मात्र शरीराय कुंजवासिनि कामदा। रजोस्वला महातेजा कामाक्षी ध्येताम सदा।। इस बारे में `राजराजेश्वरी कामाख्या रहस्य' एवं `दस महाविद्याओं' नामक ग्रंथ के रचयिता एवं मां कामाख्या के अनन्य भक्त ज्योतिषी एवं वास्तु विशेषज्ञ डॉ. दिवाकर शर्मा ने बताया कि अम्बूवाची योग पर्व के दौरान मां भगवती के गर्भगृह के कपाट स्वत ही बंद हो जाते हैं और उनका दर्शन भी निषेध हो जाता है। इस पर्व की महत्ता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पूरे विश्व से इस पर्व में तंत्र-मंत्र-यंत्र साधना हेतु सभी प्रकार की सिद्धियाँ एवं मंत्रों के पुरश्चरण हेतु उच्च कोटियों के तांत्रिकों-मांत्रिकों, अघोरियों का बड़ा जमघट लगा रहता है। तीन दिनों के उपरांत मां भगवती की रजस्वला समाप्ति पर उनकी विशेष पूजा एवं साधना की जाती है। कामाख्या के शोधार्थी एवं प्राच्य विद्या विशेषज्ञ डॉ. दिवाकर शर्मा कहते हैं कि कामाख्या के बारे में किंवदंती है कि घमंड में चूर असुरराज नरकासुर एक दिन मां भगवती कामाख्या को अपनी पत्नी के रूप में पाने का दुराग्रह कर बैठा था। कामाख्या महामाया ने नरकासुर की मृत्यु को निकट मानकर उससे कहा कि यदि तुम इसी रात में नील पर्वत पर चारों तरफ पत्थरों के चार सोपान पथों का निर्माण कर दो एवं कामाख्या मंदिर के साथ एक विश्राम-गृह बनवा दो, तो मैं तुम्हारी इच्छानुसार पत्नी बन जाऊँगी और यदि तुम ऐसा न कर पाये तो तुम्हारी मौत निश्चित है। गर्व में चूर असुर ने पथों के चारों सोपान प्रभात होने से पूर्व पूर्ण कर दिये और विश्राम कक्ष का निर्माण कर ही रहा था कि महामाया के एक मायावी कुक्कुट (मुर्गे) द्वारा रात्रि समाप्ति की सूचना दी गयी, जिससे नरकासुर ने क्रोधित होकर मुर्गे का पीछा किया और ब्रह्मपुत्र के दूसरे छोर पर जाकर उसका वध कर डाला। यह स्थान आज भी `कुक्टाचकि' के नाम से विख्यात है। बाद में मां भगवती की माया से भगवान विष्णु ने नरकासुर असुर का वध कर दिया। नरकासुर की मृत्यु के बाद उसका पुत्र भगदत्त कामरूप का राजा बना। भगदत्त का वंश लुप्त हो जाने से कामरूप राज्य छोटे-छोटे भागों में बंट गया और सामंत राजा कामरूप पर अपना शासन करने लगा। नरकासुर के नीच कार्यों के बाद एवं विशिष्ट मुनि के अभिशाप से देवी अप्रकट हो गयी थीं और कामदेव द्वारा प्रतिष्ठित कामाख्या मंदिर ध्वंसप्राय हो गया था। पं. दिवाकर शर्मा ने बतलाया कि आद्य-शक्ति महाभैरवी कामाख्या के दर्शन से पूर्व महाभैरव उमानंद, जो कि गुवाहाटी शहर के निकट ब्रह्मपुत्र नदी के मध्य भाग में टापू के ऊपर स्थित है, का दर्शन करना आवश्यक है। यह एक प्राकृतिक शैलदीप है, जो तंत्र का सर्वोच्च सिद्ध सती का शक्तिपीठ है। इस टापू को मध्यांचल पर्वत के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि यहीं पर समाधिस्थ सदाशिव को कामदेव ने कामबाण मारकर आहत किया था और समाधि से जाग्रत होने पर सदाशिव ने उसे भस्म कर दिया था। भगवती के महातीर्थ (योनिमुद्रा) नीलांचल पर्वत पर ही कामदेव को पुन जीवनदान मिला था। इसीलिए यह क्षेत्र कामरूप के नाम से भी जाना जाता है। सर्वोच्च कौमारी तीर्थ सती स्वरूपिणी आद्यशक्ति महाभैरवी कामाख्या तीर्थ विश्व का सर्वोच्च कौमारी तीर्थ भी माना जाता है। इसीलिए इस शक्तिपीठ में कौमारी-पूजा अनुष्ठान का भी अत्यन्त महत्व है। यद्यपि आद्य-शक्ति की प्रतीक सभी कुल व वर्ण की कौमारियाँ होती हैं। किसी जाति का भेद नहीं होता है। इस क्षेत्र में आद्य-शक्ति कामाख्या कौमारी रूप में सदा विराजमान हैं। इस क्षेत्र में सभी वर्ण व जातियों की कौमारियां वंदनीय हैं, पूजनीय हैं। वर्ण-जाति का भेद करने पर साधक की सिद्धियां नष्ट हो जाती हैं। शास्त्रों में वर्णित है कि ऐसा करने पर इंद्र तुल्य शक्तिशाली देव को भी अपने पद से वंछित होना पड़ा था। जिस प्रकार उत्तर भारत में कुंभ महापर्व का महत्व माना जाता है, ठीक उसी प्रकार उससे भी श्रेष्ठ इस आद्यशक्ति के अम्बूवाची पर्व का महत्व है। इसके अंतर्गत विभिन्न प्रकार की दिव्य आलौकिक शक्तियों का अर्जन तंत्र-मंत्र में पारंगत साधक अपनी-अपनी मंत्र-शक्तियों को पुरश्चरण अनुष्ठान कर स्थिर रखते हैं। इस पर्व में मां भगवती के रजस्वला होने से पूर्व गर्भगृह स्थित महामुद्रा पर सफेद वस्त्र चढ़ाये जाते हैं, जो कि रक्तवर्ण हो जाते हैं। मंदिर के पुजारियों द्वारा ये वस्त्र प्रसाद के रूप में श्रद्धालु भक्तों में विशेष रूप से वितरित किये जाते हैं। इस पर्व पर भारत ही नहीं बल्कि बंगलादेश, तिब्बत और अफ्रीका जैसे देशों के तंत्र साधक यहां आकर अपनी साधना के सर्वोच्च शिखर को प्राप्त करते हैं। वाममार्ग साधना का तो यह सर्वोच्च पीठ स्थल है। मछन्दरनाथ, गोरखनाथ, लोनाचमारी, ईस्माइलजोगी इत्यादि तंत्र साधक भी सांवर तंत्र में अपना यहीं स्थान बनाकर अमर हो गये हैं। |
05-02-2013, 01:19 PM | #159 |
VIP Member
Join Date: Nov 2012
Location: MP INDIA
Posts: 42,448
Rep Power: 144 |
Re: दुनिया की अद्भुत रहस्य, रोमांचक घटनाएँ
हिन्दु धर्म में देवी के ५१ शक्तिपीठों में से कामाख्या या कामरुप शक्तिपीठ का सबसे अधिक महत्व है । यह भारत की पूर्व-उत्तर दिशा में असम प्रदेश के गुवाहाटी में स्थित होकर कामाख्या देवी मन्दिर के नाम से प्रसिद्ध है। पुराण अनुसार यह देवी का महाक्षेत्र है। यह मन्दिर नीलगिरी नामक पहाड़ी पर स्थित है। यह क्षेत्र कामरुप भी कहलाता है। क्योंकि ऐसा माना जाता है कि देवी कृपा से कामदेव को अपना मूल रुप प्राप्त हुआ। देश में स्थित विभिन्न पीठों में से कामाख्या पीठ को महापीठ माना जाता है। इस मंदिर में १२ स्तम्भों के मध्य देवी की विशाल मूर्ति है। मंदिर एक गुफा में स्थित है। यहां जाने का मार्ग पथरीला है। जिसे नरकासुर पथ भी कहा जाता है। मंदिर के पास ही एक कुण्ड है। जिसे सौभाग्य कुण्ड कहते हैं। इस स्थान को योनि पीठ के नाम से भी जाना जाता है। क्योंकि यहां देवी की देह का योनि भाग गिरा था। यहां पर देवी का शक्ति स्वरुप कामाख्या है एवं भैरव का रुप उमानाथ या उमानंद है। उमानंद को भक्त माता का रक्षक मानते हैं। कथा - शिव जब सती के मृत देह लेकर वियोगी भाव से घूम रहे थे, तब भगवान विष्णु ने उनका वियोग दूर करने के लिए अपने सुदर्शन चक्र से सती के मृत देह के टुकड़े कर दिए । इसके बाद ब्रह्मदेव और भगवान विष्णु ने उन्हें सती के अपार शक्ति के बारे में ज्ञान दिया । इस भगवान शंकर ने कहा मुझे ज्ञान प्राप्त होने पर भी मेरे मन से सती के अलगाव का दु:ख समाप्त नहीं हो रहा। तब ब्रह्मा, विष्णु और भगवान शंकर ने देवी भगवती की प्रसन्नता के लिए इसी कामरुप स्थान पर तपस्या की। जिससे प्रसन्न होकर देवी ने भगवान शंकर को वर दिया कि वे हिमवान के यहां गंगा और पार्वती के रुप में जन्म लेकर उनसे विवाह करेंगी और ऐसा ही किया । इसलिए इस स्थान का बहुत महत्व है । यहां देवी का रुप साक्षात् माना जाता है। महत्व कामाख्या देवी मंदिर में मान्यता है कि यहां देवी को लाल चुनरी या वस्त्र चढ़ाने से सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं । देवी की मात्र पूजा एवं दर्शन से सभी विघ्र, कष्ट दूर हो जाते हैं। यहां कन्या पूजन का भी परंपरा है। कामाख्या देवी मंदिर आषाढ़ माह में तीन दिवस के लिए बंद रहता है । पौष माह के कृष्ण पक्ष की द्वितीया-तृतीया को हर-गौरी महोत्सव भी मनाया जाता है । जिसमें देवी के अनुष्ठान, पूजा व यज्ञ आदि होते है।
__________________
मैं क़तरा होकर भी तूफां से जंग लेता हूं ! मेरा बचना समंदर की जिम्मेदारी है !! दुआ करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मत ! यह एक चिराग कई आंधियों पर भारी है !! |
05-02-2013, 09:00 PM | #160 |
VIP Member
Join Date: May 2011
Location: churu
Posts: 122,463
Rep Power: 245 |
Re: दुनिया की अद्भुत रहस्य, रोमांचक घटनाएँ
अति सुन्दर...........................
|
Bookmarks |
|
|