19-02-2012, 03:40 AM | #351 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
वाशिंगटन। प्यार का सहारा हो तो इंसान सात समुंदर तक पार कर जाता है और अब वैज्ञानिकों ने भी इस बात की पुष्टि कर दी है कि प्यार डर पर काबू पाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है । वैज्ञानिकों ने एक ऐसे हार्मोन का पता लगाया है जो मां और बच्चे के बीच के संबंध को मजबूती प्रदान करता है जिससे डर को नियंत्रित करने में मस्तिष्क की क्षमता को मजबूत बनाने में भी मदद मिलती है । वैज्ञानिकों का कहना है कि इसी हार्मोन के कारण माएं भयानक स्थितियों का भी पूरी निडरता से मुकाबला करने में सक्षम हो पाती हैं । स्विट्जरलैंड में यूनिवर्सिटी आफ लुसाने के वैज्ञानिकों की एक टीम ने पाया कि मस्तिष्क बेहद तेजी के साथ आक्सीटोसीन नामक हार्मोन का स्राव करता है जो बच्चे के जन्म के समय से ही मांओं में बनना शुरू हो जाता है । इसी हार्मोन की मदद से न केवल माताएं प्रसूति पीड़ा से गुजर जाती हैं बल्कि बाद में भी अपने शिशु की रक्षा करने में वह आक्रामक हो जाती है । चूहों पर किए गए इस परीक्षण के बारे में जानकारी देते हुए लुसाने के स्नायु तंत्र वैज्ञानिक और शोध के लेखक रान स्टूप ने बताया कि इस रिपोर्ट के नतीजे आटिजम , बेचैनी तथा भय संबंधी मानसिक विकृतियों के इलाज में मददगार हो सकते हैं। यह रिपोर्ट लाइव साइंस में प्रकाशित हुई है।
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19-02-2012, 03:41 AM | #352 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
त्वचा से बनाई गई दिमागी कोशिकाएं
लंदन। वैज्ञानिकों ने पहली बार इंसानी त्वचा से दिमाग के उत्तकों को बनाने में सफलता पाई है जिससे पक्षाघात और अल्जाइमर की बीमारी का नया और प्रभावी इलाज का रास्ता तैयार हो सकता है। अब तक विवादित भू्रण को तोड़कर बनी स्टेम कोशिकाओं के इस्तेमाल से दिमाग के हिस्से सेरेब्रल कोटेक्स से ही उत्तकें बनाना संभव था। अब, यूनिवर्सिटी आफ कैंब्रिज की एक टीम का कहना है कि उन्होंने त्वचा की कोशिकाओं की पुर्नसंरचना कर प्रयोगशाला में इंसानी दिमाग की कोशिकाएं तैयार की है ताकि वे सेरेब्रल कोटेक्स में पाए जाने वाले न्यूरोन में विकसित हो सके। संडे टेलीग्राफ के मुताबिक, अध्ययन दल के अगुवा डॉ. रिक लिवसी ने कहा, सेरेब्रल कोटेक्स इंसानी दिमाग के 75 फीसदी हिस्से को तैयार करता है। यह वह क्षेत्र है जहां सारी महत्वपूर्ण प्रक्रियाएं होती हैं। यहीं पर बीमारियां भी पैदा होती हैं। उन्होंने कहा, हम त्वचा की कोशिकाओं की पुर्नसंरचना में कामयाब रहे हैं ताकि वे दिमागी स्टेम कोशिकाओं में बदल सकें।
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19-02-2012, 03:41 AM | #353 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
अब ई चेक की बारी
लंदन। परंपरागत कागज के चेक जल्द ही अब इतिहास के पन्नों में समा जाएंगे क्योंकि अब इस ई दौर में चेक भी ‘ईचेक’ में बदलने जा रहे हैं। ब्रिटिश शोधकर्ताओं के एक दल ने दावा किया है कि उन्होंने इलैक्ट्रोनिक चेक विकसित किया है जो परंपरागत व्यवस्था का ही फायदा देता है, लेकिन इससे कागज के चेक बनाने में आने वाली लागत भी कम होगी और उसके परिवहन आदि का भी झंझट समाप्त हो जाएगा। यह हाई टेक चेक बुक देखने और इस्तेमाल करने में परंपरागत चेक जैसी ही होगी जिसका इस्तेमाल हम पीढ़ियों से करते आए हैं, लेकिन इस चेक पर लिखने के लिए डिजीटल पेन की जरूरत होगी। शोध टीम के प्रमुख डा. जान वाइन्स ने बताया कि इस चेक को 80 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों के एक समूह के साथ मिलकर विकसित किया गया है। डेली मेल ने यह खबर दी है।
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19-02-2012, 03:42 AM | #354 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
बिना अंग्रेजी ज्ञान के विदेशियों ने पास किया ड्राइविंग टेस्ट
लंदन। ब्रिटेन में दस हजार से अधिक विदेशियों ने बिना मूल अंग्रेजी ज्ञान के ड्राइविंग परीक्षा पास कर ली और प्रशासन इससे चिंतित होकर तुरंत हरकत में आ गया है और व्यवस्था की समीक्षा करना शुरू कर दिया है। डेली एक्सप्रेस द्वारा सूचना की स्वतंत्रता अधिनियम के तहत हासिल की गयी जानकारी के अनुसार, कुल 10330 लोगों ने बिना अंगे्रजी के ज्ञान के ड्राइविंग परीक्षा पास कर ली और इस काम में पिछली सीट पर बैठकर दुभाषिये ने उनकी मदद की जो उनकी मातृभाषा में उन्हें निर्देश देता रहा। हालांकि ये लोग ऐसे थे कि अगर अकेले सड़क पर निकल जाएं तो अंग्रेजी भाषा में लिखे साधारण यातायात निर्देशों तक को नहीं पढ सकते। सरकार का कहना है कि वह मानवाधिकार उल्लंघन संबंधी कानूनों के कारण इस व्यवस्था में बदलाव के लिए दबाव नहीं डाल सकते। इस समय ड्राइविंग टेस्ट की लिखित थ्योरी 19 भाषाओं में अनुवादित की जाती है जिससे हजारों लोग बिना अंग्रेजी जाने टेस्ट को पास करने में सफल हो जाते हैं। परिवहन मंत्री माइक पेनिंग ने कहा, मुझे यह अजीब लगता है कि लेबर पार्टी को यह विचार सही लगता है कि लोगों को बिना अंग्रेजी ज्ञान के सड़कों पर निकल जाने दिया जाए। सड़क सुरक्षा हमारी शीर्ष प्राथमिकता होनी चाहिए।
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19-02-2012, 03:43 AM | #355 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
भारतीय मिर्च से बनी वोदका है विश्व की सबसे ‘तीखी वोदका’
लंदन। अगर आप वोदका प्रेमी हैं और इसका भरूपर आनंद उठाना चाहते हैं, तो पूर्वोत्तर भारत में पाई जाने वाली विश्व की सबसे तीखी मिर्च ‘नगा जोलोकिया’ से बनी वोदका को जरूर चखिए। ‘मेल आनलाइन’ के अनुसार मिर्च के तीखेपन को मापने वाले अंतरराष्ट्रीय मानक ‘स्कोविले स्केल’ पर ‘नगा चिली वोदका’ को 10 लाख के स्तर पर रखा गया है, जिसकी वजह से यह अभी तक की सबसे अधिक प्रभाव वाली वोदका बन गई है। इसे बनाने के लिए कई लीटर वोदका में 18 किलो नगा जोलोकिया मिर्च डाल कर कई दिनों तक रखा जाता है। इससे तैयार हुए मिश्रण को कई हफ्तों तक स्थिर रखा जाता है और इसका रंग गहरा हो जाने के बाद इसे बोतलों में भर कर बाजार में भेज दिया जाता है।
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19-02-2012, 03:45 AM | #356 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
खूब खाने से वयस्कों में याददाश्त संबंधी समस्याएं हो सकती है दोगुनी
ह्यूस्टन। रोजाना 2100 से 6000 कैलोरी की खुराक लेने वाले वयस्कों में याददाश्त संबंधी समस्याएं होने का खतरा अन्य लोग के मुकाबले दोगुना होता है। हाल ही में हुए एक अध्ययन में बताया गया कि एक वयस्क जितना अधिक कैलोरी लेगा उतना ज्यादा उसे याददाश्त संबंधी बीमारी (चिकित्सीय भाषा में माइल्ड कॉग्निटीव इंपेयरमेंट) होने का खतरा होगा। एमसीआई उम्र के साथ होने वाली सामान्य याददाश्त क्षति और अल्जाइमर्स बीमारी के बीच की अवस्था है। अध्ययन दल के अगुवा योनास ई गेडा ने कहा, हमने परीक्षण में पाया कि रोजाना जितनी ज्यादा कैलोरी खाई जाएगी उतनी ही ज्यादा एमसीआई का खतरा होगा। गेडा ने कहा, कैलोरी कम करना और स्वास्थ्यवर्द्धक भोजन उम्र के साथ होने वाली याददाश्त क्षति को रोकने के साधारण तरीके हैं।
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20-02-2012, 10:24 AM | #357 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
छह महीने के बच्चे के मस्तिष्क में दिखायी देने लगते हैं आटिज्म के लक्षण
वाशिंगटन। हाल में किये गए एक अध्ययन में यह बात सामने आयी है कि आटिज्म के लक्षणों को पता छह महीने के बच्चे के मस्तिष्क में लगाया जा सकता है। इससे यह बात सामने आयी है कि भविष्य में इस आयु में उपचार देकर इस बीमारी के प्रभाव को कम किया जा सकता है। नार्थ कैरोलिना के अनुसंधानकर्ताओं ने यह पता लगाने को अध्ययन किया कि छोटी आयु में मस्तिष्क विकास कैसे करता है। उन्होंने पाया कि मस्तिष्क के विभिन्न हिस्सों को आपस में जोड़ने वाला सफेद पदार्थ आम बच्चों की तुलना में जल्दी नहीं बनता जिनमें बाद में आटिज्म विकसित होता है। अनुसंधानकर्ता जैसन वोल्फ ने कहा, ‘मस्तिष्क की वायरिंग में परिवर्तन आटिज्म से पीड़ित बच्चों में कम था।’
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20-02-2012, 10:37 AM | #358 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
आक्सफोर्ड के स्नातक बन रहे हैं बैरे और बारटेंडर
लंदन। ब्रिटेन में नौकरियों की कमी के कारण आक्सफोर्ड से पास हुए कई छात्रों को बार टेंडर और बैरे जैसे काम करने पड़ रहे है। एक सर्वेक्षण के मुताबिक विश्वविद्यालय से पास होने वाले 3500 छात्रों में से करीब 200 गैर स्नातक काम जैसे कार्यालय लिपिक, विपणन सहायक या बार कर्मचारी का काम कर रहे हैं। डेली टेलीग्राफ के अनुसार आंकड़ों से ब्रिटेन के बाजार की एक तस्वीर उभरकर सामने आई है साथ पता चला है कि कई सुरक्षित पेशेवर डॉक्टर, बैंक कर्मचारी या प्रबंधन परामर्शदाता तथा अन्य कॅरियर में अपने पैरों पर खड़े होने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। विश्वविद्यालय कॅरियर सेवा के निदेशक जोनाथन ब्लैक ने कहा कि हम मंदी के प्रभाव से अछूते रहे हैं क्योंकि नियोक्ता आक्सफोर्ड को एक माध्यम के रूप में देखते हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हमारे सभी छात्र नौकरी पा रहे हैं।
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20-02-2012, 10:38 AM | #359 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
ज्यादातर इंसानों से अकलमंद है ‘जीनियस’ कम्प्यूटर
लंदन। वैज्ञानिकों ने एक ऐसा ‘जीनियस’ कम्प्यूटर तैनात किया है, जो अकलमंदी के मामले में 96 फीसदी इंसानों से कहीं आगे है। इस कम्प्यूटर ने बुद्धि लब्धि (आईक्यू) से जुड़ी परीक्षा में 150 अंक हासिल किए, जबकि एक सामान्य व्यक्ति 100 अंक ही हासिल कर पाता है। ऐसे में इस कम्प्यूटर को ज्यादातर इंसानों से अकलमंद करार दिया गया है। समाचार पत्र ‘डेली मेल’ के मुताबिक स्वीडन में वैज्ञानिकों के एक दल का कहना है कि यह कम्प्यूटर ऐसे प्रोग्राम पर काम करता है, जो गणितीय तर्क और ‘इंसानों जैसी सोच’ के एक मिश्रण के तौर पर इस्तेमाल होता है। ‘यूनिवर्सिटी आफ गोटेनबर्ग’ के वैज्ञानिकों के एक दल के प्रमुख क्लाएस स्ट्रानेगार्ड ने कहा कि हम एक ऐसे प्रोग्राम को विकसित करने का प्रयास कर रहे हैं, जो इंसानों की तरह अलग-अलग पैटर्न पर काम करने में सक्षम होगा।
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20-02-2012, 10:40 AM | #360 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
बढ़ा हुआ रक्त चाप गुर्दे को कर सकता है बेकार
नई दिल्ली। रक्त चाप को अक्सर हृदय रोगों से जोड़ कर देखा जाता है लेकिन अगर कम उम्र में रक्त चाप बढ़ने की समस्या हो तो यह गुर्दे में खराबी का संकेत हो सकता है और ऐसी अवस्था में किडनी की जांच कराकर समुचित इलाज कराना चाहिए अन्यथा गुर्दा प्रत्यारोपण की नौबत आ सकती है। गुर्दा विशेषज्ञों का कहना है कि उच्च रक्त चाप गुर्दे के बेकार होने का प्रमुख कारण है जिसे चिकित्सकीय भाषा में अग्रिम स्थिति का गुर्दा रोग अथवा इंड स्टेज रीनल डिजिज कहा जाता है इसके मरीज को या तो नियमित रूप से डायलिसिस करानी पड़ती है या किडनी प्रत्यारोपण कराना पड़ता है। नेफ्रोलॉजिस्ट डा. जितेन्द्र कुमार ने कहा हमारे देश में मधुमेह का प्रकोप बढ़ने के साथ किडनी में खराबी की समस्या तेजी से बढ़ रही है और पिछले 15 वर्षों में किडनी की खराबी से ग्रस्त मरीजों की संख्या दोगुनी हो गई है। यहां स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के नेफ्रोलॉजी विभाग के डा. सुरेश चन्द्र दास और संजय कुमार अग्रवाल के अनुसार गंभीर किडनी रोग विश्व भर में खतरनाक बीमारी के रूप में उभरे हैं लेकिन भारत जैसे विकासशील देशों के लिए यह और गंभीर समस्या है क्योंकि इसका उपचार बहुत मंहगा है और यह जीवन भर चलता है। डा. दास और अग्रवाल के मुताबिक दुनिया भर में करीब दस लाख किडनी मरीजों को जीवित रहने के लिए नियमित डायलिसिस या गुर्दा प्रत्यारोपण कराना पड़ता है। फरीदाबाद स्थित एशियन इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल साइंसेस (एआईएमएस) के नेफ्रोलॉजी विभाग के प्रमुख डा. जितेन्द्र कुमार बताते हैं कि हर साल डेढ से दो लाख लोग पूरे भारत में किडनी में खराबी की अंतिम अवस्था से ग्रस्त एडवांस किडनी फेल्योर होने के मामले आते हैं। उन्होंने कहा कि 20 से 30 प्रतिशत मधुमेह के मरीजों को किडनी समस्या होने की आशंका होती है। एक अनुमान के अनुसार 2030 में भारत में सबसे अधिक मधुमेह के मरीज होंगे और ऐसे में किडनी फेल्योर के मरीजों की संख्या में कई गुना इजाफा होगा। डा. कुमार ने बताया कि रक्त चाप को सही रखने में किडनी की मुख्य भूमिका होती है। दूसरी तरफ रक्त चाप में गड़बड़ी होने पर किडनी पर असर पड़ता है। बढ़ा हुआ रक्त चाप किडनी को नुकसान पहुंचाता है और यह गंभीर किडनी रोग का कारण बनता है। रक्त चाप बढ़ने से किडनी सहित पूरे शरीर की रक्त नलिकाओं को नुकसान पहुंचता है। किडनी की रक्त नलिकाओं के नुकसान पहुंचने से शरीर से अतिरिक्त तरल एवं फालतू पदार्थों का निकलना बंद हो सकता है। इससे रक्त चाप और बढ़ जाता है। इस तरह से यह खतरनाक चक्र चलता रहता है। उन्होंने बताया कि खास तौर पर 15-20 साल की उम्र में रक्त चाप के बढ़ने की समस्या किडनी में गड़बड़ी के कारण होती है लेकिन अक्सर लोग जानकारी के अभाव में इसकी अनदेखी करते हैं और अगर किडनी में खराबी के कारण रक्त चाप बढ़ रहा हो तब तीन से चार महीने तक समुचित इलाज नहीं कराना घातक साबित हो सकता है। उन्होंनें कहा कि इलाज कराने में तीन से चार महीने का विलंब होने से किडनी स्थाई रूप से खराब हो सकती है और ऐसी स्थिति में डायलिसिस या गुर्दा प्रत्यारोपण ही विकल्प होता है। जबकि शुरूआती अवस्था में इलाज कराने पर कुछ रुपए खर्च करके किडनी को खराब होने से बचाया जा सकता है। किडनी की बीमारी खामोश बीमारी है जिसके अक्सर कोई खास लक्षण नहीं होते हैं या ऐसे लक्षण होते हैं जिससे भ्रम पैदा हो जाता है। जैसे पैरों में हल्का-हल्का सूजन आना। ऐसे में लोग सोच लेते हैं कि पैर लटकाने के कारण या ज्यादा चलने के कारण पैर में सूजन आ गई है। इसके अलावा पेशाब में प्रोटीन के आने के लक्षण की तरफ भी लोग ज्यादा ध्यान नहीं देते। पेशाब रूक-रूक कर होने या पेशाब में जलन होने या रात में बार-बार पेशाब के लिए उठने जैसे लक्षण को भी ज्यादा उम्र का प्रभाव समझ कर टाल दिया जाता है। इसके अलावा गैस या खाना हजम करने में दिक्कत जैसी समस्या को भी पेट की खराबी समझ कर टाल दिया जाता है।
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