20-11-2010, 09:26 AM | #1 |
Exclusive Member
Join Date: Oct 2010
Location: Bihar
Posts: 6,261
Rep Power: 35 |
"हिन्दू काल गणना"
~!!"हिन्दू काल गणना"!!~ प्राचीन हिन्दू खगोलीय और पौराणिक पाठ्यों में वर्णित समय चक्र आश्चर्यजनक रूप से एक समान हैं। प्राचीन भारतीय भार और मापन पद्धतियां, अभी भी प्रयोग में हैं ( मुख्यतः हिन्दू और जैन धर्म के धार्मिक उद्देश्यों में)। यह सभी सूरत शब्द योग में भी पढ़ाई जातीं हैं। इसके साथ साथ ही हिन्दू ग्रन्थों मॆं लम्बाई , भार, क्षेत्रफ़ल मापन की भी इकाइयाँ परिमाण सहित उल्लेखित हैं। हिन्दू ब्रह्माण्डीय समय चक्र सूर्य सिद्धांत के पहले अध्याय के श्लोक 11–23 में आते हैं. "(श्लोक 11). वह जो कि श्वास (प्राण) से आरम्भ होता है, यथार्थ कहलाता है; और वह जो त्रुटि से आरम्भ होता है, अवास्तविक कहलाता है. छः श्वास से एक विनाड़ी बनती है. साठ श्वासों से एक नाड़ी बनती है. (12). और साठ नाड़ियों से एक दिवस (दिन और रात्रि) बनते हैं. तीस दिवसों से एक मास (महीना) बनता है. एक नागरिक (सावन) मास सूर्योदयों की संख्याओं के बराबर होता है. (13). एक चंद्र मास, उतनी चंद्र तिथियों से बनता है. एक सौर मास सूर्य के राशि में प्रवेश से निश्चित होता है. बारह मास एक वरष बनाते हैं. एक वरष को देवताओं का एक दिवस कहते हैं. (14). देवताओं और दैत्यों के दिन और रात्रि पारस्परिक उलटे होते हैं. उनके छः गुणा साठ देवताओं के (दिव्य) वर्ष होते हैं. ऐसे ही दैत्यों के भी होते हैं. (15). बारह सहस्र (हज़ार) दिव्य वर्षों को एक चतुर्युग कहते हैं. यह चार लाख बत्तीस हज़ार सौर वर्षों का होता है. (16) चतुर्युगी की उषा और संध्या काल होते हैं। कॄतयुग या सतयुग और अन्य युगों का अन्तर, जैसे मापा जाता है, वह इस प्रकार है, जो कि चरणों में होता है: (17). एक चतुर्युगी का दशांश को क्रमशः चार, तीन, दो और एक से गुणा करने पर कॄतयुग और अन्य युगों की अवधि मिलती है. इन सभी का छठा भाग इनकी उषा और संध्या होता है. (18). इकहत्तर चतुर्युगी एक मन्वन्तर या एक मनु की आयु होते हैं. इसके अन्त पर संध्या होती है, जिसकी अवधि एक सतयुग के बराबर होती है, और यह प्रलय होती है. (19). एक कल्प में चौदह मन्वन्तर होते हैं, अपनी संध्याओं के साथ; प्रत्येक कल्प के आरम्भ में पंद्रहवीं संध्या/उषा होती है. यह भी सतयुग के बराबर ही होती है। (20). एक कल्प में, एक हज़ार चतुर्युगी होते हैं, और फ़िर एक प्रलय होती है. यह ब्रह्मा का एक दिन होता है. इसके बाद इतनी ही लम्बी रात्रि भी होती है. (21). इस दिन और रात्रि के आकलन से उनकी आयु एक सौ वर्ष होती है; उनकी आधी आयु निकल चुकी है, और शेष में से यह प्रथम कल्प है. (22). इस कल्प में, छः मनु अपनी संध्याओं समेत निकल चुके, अब सातवें मनु (वैवस्वत: विवस्वान (सूर्य) के पुत्र) का सत्तैसवां चतुर्युगी बीत चुका है. (23). वर्तमान में, अट्ठाईसवां चतुर्युगी का कॄतयुग बीत चुका है. उस बिन्दु से समय का आकलन किया जाता है. |
20-11-2010, 10:57 AM | #2 |
Exclusive Member
Join Date: Oct 2010
Location: Bihar
Posts: 6,261
Rep Power: 35 |
Re: "हिन्दू काल गणना"
समय
हिन्दू समय मापन, (काल व्यवहार) का सार निम्न लिखित है: नाक्षत्रीय मापन एक परमाणु मानवीय चक्षु के पलक झपकने का समय = लगभग 4 सैकिण्ड एक विघटि = ६ परमाणु = (विघटि) is २४ सैकिण्ड एक घटि या घड़ी = 60 विघटि = २४ मिनट एक मुहूर्त = 2 घड़ियां = 48 मिनट एक नक्षत्र अहोरात्रम या नाक्षत्रीय दिवस = 30 मुहूर्त (दिवस का आरम्भ सूर्योदय से अगले सूर्योदय तक, ना कि अर्धरात्रि से) विष्णु पुराण में दिया गया अक अन्य वैकल्पिक पद्धति समय मापन पद्धति अनुभाग, विष्णु पुराण, भाग-१, अध्याय तॄतीय निम्न है: 10 पलक झपकने का समय = 1 काष्ठा 35 काष्ठा= 1 कला 20 कला= 1 मुहूर्त 10 मुहूर्त= 1 दिवस (24 घंटे) 50 दिवस= 1 मास 6 मास= 1 अयन 2 अयन= 1 वर्ष, = १ दिव्य दिवस छोटी वैदिक समय इकाइयाँ एक तॄसरेणु = 6 ब्रह्माण्डीय अणु. एक त्रुटि = 3 तॄसरेणु, या सैकिण्ड का 1/1687.5 भाग एक वेध =100 त्रुटि. एक लावा = 3 वेध. एक निमेष = 3 लावा, या पलक झपकना एक क्षण = 3 निमेष. एक काष्ठा = 5 क्षण, = 8 सैकिण्ड एक लघु =15 काष्ठा, = 2 मिनट. 15 लघु = एक नाड़ी, जिसे दण्ड भी कहते हैं. इसका मान उस समय के बराबर होता है, जिसमें कि छः पल भार के (चौदह आउन्स) के ताम्र पात्र से जल पूर्ण रूप से निकल जाये, जबकि उस पात्र में चार मासे की चार अंगुल लम्बी सूईं से छिद्र किया गया हो. ऐसा पात्र समय आकलन हेतु बनाया जाता है. 2 दण्ड = एक मुहूर्त. 6 या 7 मुहूर्त = एक याम, या एक चौथाई दिन या रत्रि. 4 याम या प्रहर = एक दिन या रात्रि. |
20-11-2010, 11:03 AM | #3 |
Exclusive Member
Join Date: Oct 2010
Location: Bihar
Posts: 6,261
Rep Power: 35 |
Re: "हिन्दू काल गणना"
चाँद्र मापन
एक तिथि वह समय होता है, जिसमें सूर्य और चंद्र के बीच का देशांतरीय कोण बारह अंश बढ़ जाता है। तुथियां दिन में किसी भी समय आरम्भ हो सकती हैं, और इनकी अवधि उन्नीस से छब्बीस घंटे तक हो सकती है. एक पक्ष या पखवाड़ा = पंद्रह तिथियां एक मास = २ पक्ष ( पूर्णिमा से अमावस्या तक कॄष्ण पक्ष; और अमावस्या से पूर्णिमा तक शुक्ल पक्ष) एक ॠतु = २ मास एक अयन = 3 ॠतुएं एक वर्ष = 2 अयन ऊष्ण कटिबन्धीय मापन एक याम = 7½ घटि 8 याम अर्ध दिवस = दिन या रात्रि एक अहोरात्र = नाक्षत्रीय दिवस (जो कि सूर्योदय से आरम्भ होता है) अन्य अस्तित्वों के सन्दर्भ में काल-गणना पितरों की समय गणना 15 मानव दिवस = एक पितॄ दिवस 30 पितॄ दिवस = 1 पितॄ मास 12 पितॄ मास = 1 पितॄ वर्ष पितॄ जीवन काल = 100 पितॄ वर्ष= 1200 पितृ मास = 36000 पितॄ दिवस= 18000 मानव मास = 1500 मानव वर्ष देवताओं की काल गणना 1 मानव वर्ष = एक दिव्य दिवस 30 दिव्य दिवस = 1 दिव्य मास 12 दिव्य मास = 1 दिव्य वर्ष दिव्य जीवन काल = 100 दिव्य वर्ष= 36000 मानव वर्ष विष्णु पुराण के अनुसार काल-गणना विभाग, विष्णु पुराण भाग १, तॄतीय अध्याय के अनुसार: 2 अयन (छः मास अवधि, ऊपर देखें) = 1 मानव वर्ष = एक दिव्य वर्ष 4,000 + 400 + 400 = 4,800 दिव्य वर्ष = 1 कॄत युग 3,000 + 300 + 300 = 3,600 दिव्य वर्ष = 1 त्रेता युग 2,000 + 200 + 200 = 2,400 दिव्य वर्ष = 1 द्वापर युग 1,000 + 100 + 100 = 1,200 दिव्य वर्ष = 1 कलि युग 12,000 दिव्य वर्ष = 4 युग = 1 महायुग (दिव्य युग भी कहते हैं) |
20-11-2010, 11:07 AM | #4 |
Exclusive Member
Join Date: Oct 2010
Location: Bihar
Posts: 6,261
Rep Power: 35 |
Re: "हिन्दू काल गणना"
ब्रह्मा की काल गणना
1000 महायुग= 1 कल्प = ब्रह्मा का 1 दिवस (केवल दिन) (चार खरब बत्तीस अरब मानव वर्ष; और यहू सूर्य की खगोलीय वैज्ञानिक आयु भी है). (दो कल्प ब्रह्मा के एक दिन और रात बनाते हैं) 30 ब्रह्मा के दिन = 1 ब्रह्मा का मास (दो खरब 59 अरब 20 करोड़ मानव वर्ष) 12 ब्रह्मा के मास = 1 ब्रह्मा के वर्ष (31 खरब 10 अरब 4 करोड़ मानव वर्ष) 50 ब्रह्मा के वर्ष = 1 परार्ध 2 परार्ध= 100 ब्रह्मा के वर्ष= 1 महाकल्प (ब्रह्मा का जीवन काल)(31 शंख 10 खरब 40अरब मानव वर्ष) ब्रह्मा का एक दिवस 10,000 भागों में बंटा होता है, जिसे चरण कहते हैं: चारों युग 4 चरण (1,728,000 सौर वर्ष)-सत युग 3 चरण (1,296,000 सौर वर्ष)-त्रेता युग 2 चरण (864,000 सौर वर्ष) -द्वापर युग 1 चरण (432,000 सौर वर्ष) -कलि युग यह चक्र ऐसे दोहराता रहता है, कि ब्रह्मा के एक दिवस में 1000 महायुग हो जाते हैं एक उपरोक्त युगों का चक्र = एक महायुग (43 लाख 20 हजार सौर वर्ष) श्रीमद्भग्वदगीता के अनुसार "सहस्र-युग अहर-यद ब्रह्मणो विदुः", अर्थात ब्रह्मा का एक दिवस = 1000 महायुग. इसके अनुसार ब्रह्मा का एक दिवस = 4 अरब 32 खरब सौर वर्ष. इसी प्रकार इतनी ही अवधि ब्रह्मा की रात्रि की भी है. एक मन्वन्तर में 71 महायुग (306,720,000 सौर वर्ष) होते हैं. प्रत्येक मन्वन्तर के शासक एक मनु होते हैं. प्रत्येक मन्वन्तर के बाद, एक संधि-काल होता है, जो कि कॄतयुग के बराबर का होता है (1,728,000 = 4 चरण) (इस संधि-काल में प्रलय होने से पूर्ण पॄथ्वी जलमग्न हो जाती है.) एक कल्प में 864,000,0000 - ८ अरब ६४ करोड़ सौर वर्ष होते हैं, जिसे आदि संधि कहते हैं, जिसके बाद 14 मन्वन्तर और संधि काल आते हैं ब्रह्मा का एक दिन बराबर है: (14 गुणा 71 महायुग) + (15 x 4 चरण) = 994 महायुग + (60 चरण) = 994 महायुग + (6 x 10) चरण = 994 महायुग + 6 महायुग = 1,000 महायुग |
20-11-2010, 11:10 AM | #5 |
Exclusive Member
Join Date: Oct 2010
Location: Bihar
Posts: 6,261
Rep Power: 35 |
Re: "हिन्दू काल गणना"
पाल्या
एक पाल्य समय की इकाई है, यह बराबर होती है, भेड़ की ऊन का एक योजन ऊंचा घन बनाने में लगा समय, यदि प्रत्येक सूत्र एक शताब्दी में चढ़ाया गया हो। इसकी दूसरी परिभाषा अनुसार, एक छोटी चिड़िया द्वारा किसी एक वर्ग मील के सूक्ष्म रेशों से भरे कुंए को रिक्त करने में लगा समय, यदि वह प्रत्येक रेशे को प्रति सौ वर्ष में उठाती है। यह इकाई भगवान आदिनाथ के अवतरण के समय की है। यथार्थ में यह 100,000,000,000,000 पाल्य पहले था। वर्तमान तिथि हम वर्तमान में वर्तमान ब्रह्मा के इक्यावनवें वर्ष में सातवें मनु, वैवस्वत मनु के शासन में श्वेतवाराह कल्प के द्वितीय परार्ध में, अठ्ठाईसवें कलियुग के प्रथम वर्ष के प्रथम दिवस में विक्रम संवत २०६४ में हैं। इस प्रकार अबतक १५ नील, ५५ खरब, २१ अरब, ९७ करोड़, १९ लाख, ६१ हज़ार, ६२० वर्ष इस ब्रह्मा को सॄजित हुए हो गये हैं। वर्तमान कलियुग दिनाँक 17 फरवरी / 18 फरवरी को 3102 ई.पू. में हुआ था, ग्रेगोरियन कैलेण्डर के अनुसार। |
20-11-2010, 11:13 AM | #6 |
Exclusive Member
Join Date: Oct 2010
Location: Bihar
Posts: 6,261
Rep Power: 35 |
Re: "हिन्दू काल गणना"
हिन्दू लम्बाई गणना
लम्बाई की इकाइयाँ पृथ्वी की लम्बाई हेतु सर्वाधिक प्रयोगित इकाई है योजन । धार्मिक विद्वान भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद द्वारा उनके पौराणिक अनुवादों में सभी स्थानों पर योजन की लम्बाई को 8 मील (13 कि.मी.) बताया गया है . अधिकांश भारतीय विद्वान इसका माप 13 कि.मी. से 16 कि.मी. (8-10 मील) के लगभग बताते हैं. छोटी इकाइयां इसकी अन्य इकाइयां इस प्रकार हैं: 8 यव = 1 अंगुल 1 अंगुल = 16 मिमी से 21 मिमी (mm) 4 अंगुल = एक धनु ग्रह = 62 मिमी से 83 मिमी; 8 अंगुल = एक धनु मुष्टि (अंगुष्ठ उठा के) = 125 mm से 167 mm ; 12 अंगुल = 1 वितस्ति (अंगुष्ठ के सिरे से पूरे हाथ को खोल कर कनिष्ठिका अंगुली के सिरे तक की दूरी) = 188 mm से 250 mm 2 वितस्ति = 1 अरत्नि (हस्त) = 375 mm से 500 mm 4 अरति = 1 दण्ड = 1.5 से 2.0 m 2 दण्ड = 1 धनु = 3 से 4 m 5 धनु = 1 रज्जु = 15 m से 20 m 2 रज्जु = 1 परिदेश = 30 m से 40 m 100 परिदेश = 1 क्रोश या कोस (या गोरत) = 3 किमी (km) से 4 किमी 4 कोस या कोश = 1 योजन = 13 km से 16 km 1,000 योजन = 1 महायोजन = 13,000 Km से 16,000 Km Last edited by ABHAY; 20-11-2010 at 11:17 AM. |
20-11-2010, 11:22 AM | #7 |
Exclusive Member
Join Date: Oct 2010
Location: Bihar
Posts: 6,261
Rep Power: 35 |
Re: "हिन्दू काल गणना"
हिन्दू हस्त परिमाण- अंगुष्ठ से विभिन्न अंगुलियों की दूरियां रज्जु या रजलोक एक रजलोक होता है - एक देवता द्वारा 2,057,152 योजन प्रति समय की गति से छः मास में तय की दूरी। यह लगभग 2,047,540,985,856,000 किलोमीटर या 216.5 प्रकाश वर्ष) के बराबर होगी। इसे १००० भार की लौह गेंद को छः मास मुक्त गति से स्वर्ग, इंद्र के गृह से गिराया जाये, तो उससे तय हुई दूरी के बराबर भी माना जा सकता है। 7 रज्जु = 1 जगश्रेणी क्षेत्रफ़ल की इकाइयाँ बीघा (भारत में) एक बीघा बराबर है: 2500 वर्ग मीटर (राजस्थान) में 1333.33 वर्ग मीटर (बंगाल)में 14,400 वर्ग फ़ीट (1337.8 m²) या 5 कथा (आसाम) में, एक कथा = 2,880 वर्ग फ़ीट (267.56 m²). एक कठ्ठा= 720 वर्ग फ़ीट बीघा (नेपाल में) 1 बीघा = 20 कठ्ठा (लगभग 2,603.7 m²) 1 कठ्ठा = 20 धुर (लगभग 130.19 m²) 1 बीघा= 13.9 रोपनी 1 रोपनी = 16 आना (लगभग 508.72 m²) 1 आना= 4 पैसा (लगभग 31.80 m²) 1 पैसा= 4 दाम (7.95 m²) |
20-11-2010, 11:25 AM | #8 |
Exclusive Member
Join Date: Oct 2010
Location: Bihar
Posts: 6,261
Rep Power: 35 |
Re: "हिन्दू काल गणना"
भार की इकाइयाँ
रत्ती एक रत्ती भारतीय पारंपरिक भार मापन इकाई है, जिसे अब 0.12125 ग्राम पर मानकीकृत किया गया है। यह रत्ती के बीज के भार के बराबर होता था। 1 तोला = 12 माशा = 11.67 ग्राम (यह तोला के बीज के भार के बराबर्होता था, जो कि कुछ स्थानों पर जरा बदल जाता था) 1 माशा = 8 रत्ती = 0.97 ग्राम 1 धरनी = 2.3325 किलोग्राम (लगभग 5.142 पाउण्ड) = 12 पाव (यह नेपाल में प्रयोग होती थी)। १ सेर = १ लीटर = 1.06 क्वार्ट (इसे सन १८७१ में यथार्थ १ लीटर मानकीकृत किया गया था, जो कि बाद में अप्रचलित हो गयी थी) १ पंसेरी = 4.677 kg (10.3 पाउण्ड) = पांच सेर १ सेर = ८० तोला चावल का भार हिन्दू गणना महत्ता के क्रम हिन्दू गणित सदा ही अग्रणी रही है। इसमें अति सूक्षम गणनाओं के प्रावधान प्राचीन काल से ही होते आ रहे हैं। इसके महत्ता के क्रम इस प्रकार हैं। एकम् = 1 दशकम् = 10 शतम् = 100 सहस्रम् = 1000 दशसहस्रम् = 10000 लक्षम् = 100000 दशलक्षम् = 10^6 कोटि = 10^7 अयुतम् = 10^9 |
20-11-2010, 11:31 AM | #9 |
Exclusive Member
Join Date: Oct 2010
Location: Bihar
Posts: 6,261
Rep Power: 35 |
Re: "हिन्दू काल गणना"
'10'
10 से अधिक परिमाण नियुतम् = 10^11 कंकरणम् = 10^13 विवर्णम् = 10^15 परार्धः = 10^17 निवाहः = 10^19 उत्संगः = 10^21 बहुलम् = 10^23 नागबलः = 10^25 तितिलम्बम् = 10^27 व्यवस्थान - प्रज्ञापतिः = 10^29 हेतुहीलम् = 10^31 कराहुः = 10^33 हेतविन्द्रीयम् = 10^35 सम्पत-लम्भः= 10^37 गणनागतिः= 10^39 निर्वाद्यम्= 10^41 मुद्राबलम्= 10^43 सर्वबलम्= 10^45 विषमग्नागतिः= 10^47 सर्वाग्नः= 10^49 '50' 10 से अधिक परिमाण विभूतांगम्= 10^51 तल्लाक्षणम्= 10^53 |
20-11-2010, 11:35 AM | #10 |
Exclusive Member
Join Date: Oct 2010
Location: Bihar
Posts: 6,261
Rep Power: 35 |
Re: "हिन्दू काल गणना"
परिमाण की कोटि
किसी राशि के परिमाण को निकटतम दस के घात के रूप में अभिव्यक्ति को उस राशि के परिमाण की कोटि कहते हैं। इस प्रकार कहते हैं कि धरती के द्रव्यमान के परिमाण की कोटि १०२२ टन है जबकि सूर्य के द्रव्यमान के परिमाण की कोटि १०२७ टन है। महत्ता के क्रमों का प्रयोग प्रायः बहुत लगभग के आंकलनों/तुलनाओं हेतु किया जाता है । यदि दो संख्याएं एक महत्ता के क्रम के अंतर पर हैं, तो एक संख्या दूसरी के लगभग दस गुणा के बराबर है । एसे ही यदि वे दो क्यमों का अंतर दिखाती हैं, तो वह सौ गुणा है । एक ही क्रम के दो नम्बरों में एक ही पैमाने पर स्थित होते हैं । बङी संख्या छोटी संख्या का अधिकतम दस गुणा हो सकती है । यही कारण है सार्थक संख्याओं के पीछे । जो राशि छोङ या पूर्णांकित की जाती है, वह कुल राशि के महत्ता से कुछ क्रम छोटी होती है, अतएव तुच्छ है । |
Bookmarks |
Tags |
अभय गणना |
|
|