10-01-2013, 05:51 PM | #11 | |
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Re: समाज का गिरता हुआ स्तर-जिम्मेदार कौन ?
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जरूरत है कि सार्वजनिक स्थलो पर इसका प्रयोग और इसे प्रयोग करने के बाद सार्वजनिक स्थलो पर जाना प्रतिबन्धित हो सकता है..!! पर हमारे देश मै कानून को लागू करवाना ही सबसे बडी समस्या है..!! वैसे भी मेरे नजर मे सारी समस्या ही ये है कि कानून मे बहुत ढिलाइ बरती जाती है..कल ही टाइम्स ओफ इंडिया मै एक लेख पढने को मिला जिसमे कहा गया है कि निचले स्तर पर और छोटे अपराधो के लिये सजा सुनिश्चित करके ही कानून का राज कायम कर पाना सम्भव है..!! एक मामूली से रेहडी चलाने वाले के हाथो बिक जाने वाली पुलिस से क्या उम्मीद करें कि वो असल अपराधियो से भी सांठ गांठ ना रखते होंगे..??
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12-01-2013, 12:58 PM | #12 |
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Re: समाज का गिरता हुआ स्तर-जिम्मेदार कौन ?
कल एक एपीसोड सावधान इंडिया का देखा तो अपने आप को भारत-वासी कहने मे शर्म मेहसूस हो रही है...!!
एक लडकी को उसका सगा मामा अपने साथ शहर ले आया और उसके साथ कुकर्म करता रहा और फिर एक दिन जब उसने ज्यादा रोना पीटना किया तो उसे किसी दलाल के हाथो बेच दिया...फिर उस दलाल ने भी उसके साथ कुकर्म किया और उसको अपने दोस्तो के सामने भी कुकर्म के लिये पेश कर दिया, इस कडी मे वो लडकी अनगिनत बार कुकर्म का शिकार हुयी और इस दौरान उसे पुलिस वालो के सामने भी परोसा गया और उन्होने भी उसके साथ कई बार कुकर्म किया..और उन्होने अपने सीनियर अधिकारी के सामने भी उसे इस कुकर्म के लिये पेश किया और उस सीनियर अधिकारी ने भी उसके साथ कुकर्म किया.. वो किसी तरह भाग निकली और किसी की सहायता से केस अदालत तक पहुंचा तो समस्या ये खडी हुयी कि लड्की हिन्दी नहीं बोल सकती ठीक इसलिये उसके लिये दोभाषिये की व्यवस्था की गयी..दोभाषिये के रूप मे जो औरत उसे नसीब हुयी उसने उसके दर्द को समझा और उसे पता चला कि उसका वकील भी अपराधियो से मिला हुआ था क्योंकि पुलिस और उनके एक उच्च अधिकारी भी इसमे शामिल थे...!! उस दोभाषिये ने उसका पूरा स्टेटमेन्ट उसके वकील को बिना बताये सीधा कोर्ट मे ही सुनाया तो वकील ने अगली डेट ले ली और उस दौरान उस दोभाषी औरत को और उसके लड्की और उसके पति को पुलिस के अधिकारी लोगो ने गुन्डो की तरह देख लेने और उसकी लडकी के साथ भी उसी तरह बलात्कार करने की धमकी दी...!! उस दोभाषी बनी हुयी औरत ने फिर भी हिम्मत से काम लिया और उस वकील की शिकायत करते हुये..पूरी सुनवाइ होने तक केस को सुने जाने की अपील की...और मामले की तह खुलती देख वकील ने नाटक किया पर सुनवाइ पूरी हुयी और उसकी मेडिकल जांच के लिये उसे पुलिस के संरक्षण मे दिया गया और इस दौरान उस दोभाषी औरत को उसके घर मे घुस कर पुलिस वालो ने गम्भीर धमकिया दी...और उस औरत के पति ने उसे इस केस से हट जाने के लिये कहा..और उसने उस केस से हटने की बात स्वीकार कर ली... पर जब उसे पता चला कि पुलिस कस्टडी मे इस दौरान भी उसके साथ बलात्कार होता रहा और उसे अपना वयान बदलने के लिये कहा जाता रहा...तो उसने उस केस से हटने का निर्णय बदल कर फिर से इस केस को अपने सामने ही अंजाम तक पहुंचाने के रास्ते पर डटे रहने का निश्चय किया...!! इस दौरान इन जज महाशय ने उसे पुलिस कस्टडी से हटा कर ज्यूडिशियल कस्टडी मे दे दिया...और इसी के तुरंत बाद इन जज साहब का तबादला हो गया..!! और पुलिस ने नये जज से विनती करके उसे फिर से पुलिस कस्टडी मे ले लिया...पर नये वकील और नये जज और उस दोभाषी औरत ने इस केस को इसके अंजाम तक पहुंचाया और उस लडकी की शिनाख्त पर उसका मामा, वो दलाल, वो पुलिस वाले और वो पुलिस का सीनियर अधिकारी सभी सलाखो के पीछे भेजे जा सके...!! इस पूरे प्रकरण को देख कर एक ही बात समझ मे आयी कि हमारी पुलिस गुंडो से भी बदतर हो चुकी है..और किसी को नयाय मिलना एक संयोग मात्र ही रह गया है..क्योकि सारा का सारा तंत्र बेसहारा के खिलाफ खडा है..और अगर वो दोभाषी औरत इनके धमकियो मे आ जाती ( जिसकी की पूरी सम्भावना थी..) तो लडकी को कभी भी नयाय नहीं मिल पाता...!! और पता नही कितने ही ऐसे केस दम तोड चुके होंगे...?? चिंताजनक बात ये है कि ऐसे मामा, ऐसे दलाल, ऐसे वकील, ऐसे पुलिस वाले और उनके उच्च अधिकारी जिनके उपर उस लडकी की रक्षा का भार था, भक्षक बने हुये है..और समाज का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बने हुये है..क्योंकि उस दोभाषी औरत के जितनी हिम्मत जुटा पाना एक बडे से बडे हिम्मतवाले इंसान के लिये बहुत कठिन कार्य है क्योंकि उसे पता है कि उसकी रक्षा करने वाले भी यही लोग है जो कि पहले से ही भक्षक बन चुके है...!! इस पूरे प्रकरण मै गर्व करने लायक कोइ पहलू है तो दोनो जजो का न्याय के प्रति कठोर कमिटमेंट और उस दोभाषी औरत की इन कठिन परिस्थिति मे दिखायी गयी बेमिसाल हिम्मत..!! मेरे लिये तो ऐसी औरतो को भारत रत्न माना जाना चाहिये...!
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12-01-2013, 01:07 PM | #13 |
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Re: समाज का गिरता हुआ स्तर-जिम्मेदार कौन ?
Hello..
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12-01-2013, 07:19 PM | #14 |
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Re: समाज का गिरता हुआ स्तर-जिम्मेदार कौन ?
गत वर्ष स्त्री अस्मिता और उसके वजूद से जुड़े कई अनुत्तरित सवाल छोड़ गया.यह सच है कि आज भी समाज में’ झूले से लेकर कब्र’ तक या यूँ कहें कि ‘कोख से लेकर कब्र तक’ का सफ़र स्त्री के लिए अगर कठिन है तो इस में स्वयं को सुशिक्षित और सभ्य कहलाये जाने वाले पुरुषों का भी दोष कम नहीं है.ताज़ा बयान इस बात के पुख्ता सबूत दे रहे हैं. मैं अक्सर यह बात सोचती हूँ कि स्त्री के ही कोख से जन्म लेने वाले कुछ पुरुष स्त्री को ही क्यों और कैसे अपमानित कर बैठते हैं.उनमें स्त्री के प्रति सम्मान का भाव क्यों नहीं उत्पन्न हो पाता ? उनके लिए स्त्री महज़ हाड-मांस का एक खिलौना या पुतला क्यों होती हैं?अगर हाल के इस दुष्कृत्य और पिछली कई बलात्कार की घटनाओं पर गौर किया जाए तो एक स्पष्ट है कि ऐसे दुष्कृत्य को अंजाम देने वाले सिर्फ अपनी खुशी,अपनी संतुष्टि,अपनी जिद पर जीने वाले लोग होते हैं.सभी पुरुष वर्ग को इस श्रेणी में नहीं रखा जा सकता पर फिर भी महाभारत युगीन द्रौपदी चीर हरण से लेकर वर्त्तमान शोकजनक और दरिन्दगी की घृणित बानगी पेश करते गैंगरेप की घटना तक एक बात बरकरार है कि स्वयं को बेहद सभ्य,सुसंस्कृत कहलाये जाने वाले पुरुषों का एक वर्ग ऐसी दुर्घटनाओं पर आज भी या तो सिर्फ मूक दृष्टा होता है या फिर स्त्री मर्यादा और शुचिता के सवालों को लेकर अति प्रतिक्रियावादी हो जाता है .तब्दीलियाँ कहाँ आयी हैं?आज की बहन बेटियाँ भी द्रौपदी की तरह अपने ही समाज में,स्वजनों के बीच विवश हैं.मूल्यों का गट्ठर उठाये फिरता समाज कब मूल्य विहीन हो जाए समझ ही नहीं आता.
मर्यादा,परम्परा,शील,शुचिता के सारे सवाल सिर्फ स्त्री से ही क्यों ???हमेशा स्त्री पुरुषों द्वारा गढ़े फ्रेम में ही क्यों सजती है ? दुष्कृत्य करने वाला पुरुष वर्ग होता है पर मुंह स्त्री को छुपाना पड़ता है …..नाम की पहचान उसे छुपानी पड़ती है ?एकतरफा प्यार का कोप भाजन भी स्त्री को ही बनना होता है …..उस पर तेज़ाब फेंकने का दुस्साहस भी पुरुष ही करता है …..रिश्तेदारों की रंजिश में बदले की भावना का शिकार भी स्त्री ही बनती है .क्या पुरुष समाज में अपने अस्तित्व को लेकर इतनी असुरक्षा है कि वह हर हाल में स्त्री को ही मिटा देना चाहता है?कोई स्त्री शिखर तक पहुंचे तो उसकी प्रतिभा की प्रशंसा से ज्यादा उसके चरित्र पर प्रश्नचिन्ह लगते हैं….उसकी सही सटीक बातों को मानने से भी पुरुष वर्ग गुरेज़ करता है .आखिर क्यों ??? समाज के ठेकेदारों ने स्त्री को इतना दोयम दर्ज़ा क्यों दे दिया है कि वह कहीं भी कभी भी अपनी प्रतिभा ,स्व निजता आत्मसम्मान के साथ उसे ही स्वीकार्य नहीं है.अपनी हीनता से उपजे अवसाद का शिकार वह स्त्री को ही क्यों बनाता है?……सभ्यता का सूर्य कब ,कहाँ उदित हुआ और कब ,कहाँ अस्त भी हो गया……जन प्रचलित पुराने रूढ़ हो चुके सालों पुराने किस्से आज और भी वीभ्स्त रूप में सामने आ रहे हैं.स्त्री की निजता,स्वावलंबन,अधिकार सम्पन्नता ,समानता, प्रभुत्व,आत्मविश्वास के समस्त दावे उस वक्त कितने खोखले साबित होते हैं जब समाज ऐसी घृणित घटनाओं का साक्षी बनता है.वर्षों पूर्व मृत गीता चोपड़ा के गुनाहगारों को फांसी दी गयी थी,धनञ्जय नाम के बलात्कारी को भी फांसी की सज़ा हुई थी पर ये गिनी चुनी सज़ा है जिनसे भय व्याप्त ना हो सका क्योंकि जब तक न्याय मिलता है तब तक एक पीढी गुज़र चुकी होती है ;एक पीढी जवान हो चुकी होती है और ऐसी घटना और उसकी सज़ा से वाकिफ ही नहीं हो पाती है. आधुनिकता के वजूद के साथ सर उठा कर जीने वाली स्त्रियों में से कितनी आत्मविश्वास के साथ अपनी पुत्रियों को घर से बाहर भेज कर उसके सुरक्षित लौट आने का दावा कर सकती हैं? एक भी नहीं; बस अपने कृष्णा से प्रार्थना करती हैं कि वे उनकी लाडो की रक्षा करे. अवचेतनावस्था में भी ऐसी घटनाओं की दस्तक उन्हें बेचैन करती हैं.स्त्री की घुटन,दर्द,अनकहा डर आज भी वैसा ही है जैसा सदियों पूर्व ऐतिहासिक पन्नों पर दर्ज है या फिर उससे भी भयावह रूप में सामने खडा उनके आत्मविश्वास को खंडित कर रहा है. कैसी रूढ़ विचारधाराओं ने सदियों से जकड रखा है हिन्दुस्तान को स्त्री की ही पूजा करते और चोट भी पहुंचाते उसके ही हैं सम्मान को. ……… अत्याचार,दुराचार,वेदनाओं की बस बनी जा रही लम्बी कहानी है इस दोयम समाज में बालाओं की फ्रेम पर ही सिमटती निशानी है. ……… यह कैसी सहनशीलता कि वही ,अपराध दोहराए जाएं फिर बार-बार स्त्री मर्यादा व शालीनता का हवाला देते रह जाएं सामाजिक ठेकेदार. ………. मासूम बहन बेटियों को यूँ तड़प कर मरते देख कब तक सब मौन रहे बलात्कार जनित वेदना की तपिश भला अब इतने दिन तक कौन सहे. ………… क्रूरता,हैवानियत का घृणित तांडव,क्यों भूल जाता जीवन की कीमत महफूज़ कहाँ हैं आज बेटियाँ,समयपूर्व इनमें से कई हो रही रूखसत. ………. कब हो पायेगी भारतीय न्याय व्यवस्था त्वरित और चुस्त-दुरुस्त कैसे हो पाएंगे बेरहम आतताइयों के नापाक पाशविक इरादे ध्वस्त. ………….. सब सामान्य हो जाता है जैसे कल तक यहाँ कुछ भी घटा ही ना हो सन्नाटा पसरता कुछ घरों में मानो वहां कभी उजाला हुआ ही ना हो. …………. मोमबत्तियां जला,मानव श्रृंखला बना कब तक करते रहे सब अफ़सोस कानूनी दांव-पेंच की लम्बी तारीखों पर बस रह जाते हैं सब मन मसोस. ……… जिस घर की ज्योति ही बुझ जाए वहां जलती मोमबत्तियों का क्या अर्थ ? दुःख में सब हैं साथ तेरे, किये गए ऐसे आश्वाशन भी हो जाते निरा व्यर्थ. ………. ज़रुरत है समाज में ऐसी घृणित दुष्कृत्य की कहानी कभी ना भूली जाए आह्वान है कि बेगुनाह बेटियों की चिता बेवक्त यूँ कभी भी ना सजाई जाए. ……… O brutes !I want to get you released for a second to show you the album full of my daughter’s smiles , due to your brutal behavior my doll is quiet now but shedding tears… from miles,miles and miles . ( लेखिका यमुना पाठक जी एक स्वतंत्र ब्लॉगर हैं)
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर । परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।। विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम । पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।। कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/ यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754 |
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