01-01-2011, 12:19 PM | #1 |
Special Member
Join Date: Nov 2010
Location: Patal Lok
Posts: 1,867
Rep Power: 18 |
राष्ट्रीय गौरव से समझौता????
|
01-01-2011, 12:21 PM | #2 |
Special Member
Join Date: Nov 2010
Location: Patal Lok
Posts: 1,867
Rep Power: 18 |
Re: राष्ट्रीय गौरव से समझौता????
दो हजार वर्ष पहले शकों ने सौराष्ट्र और पंजाब को रौंदते हुए अवंती पर आक्रमण किया तथा विजय प्राप्त की। विक्रमादित्य ने राष्ट्रीय शक्तियों को एक सूत्र में पिरोया और शक्तिशाली मोर्चा खड़ा करके ईसा पूर्व 57 में शकों पर भीषण आक्रमण कर विजय प्राप्त की। थोड़े समय में ही इन्होंने कोंकण, सौराष्ट्र, गुजरात और सिंध भाग के प्रदेशों को भी शकों से मुक्त करवा लिया। वीर विक्रमादित्य ने शकों को उनके गढ़ अरब में भी करारी मात दी। इसी सम्राट विक्रमादित्य के नाम पर भारत में विक्रमी संवत प्रचलित हुआ। सम्राट पृथ्वीराज के शासनकाल तक इसी संवत के अनुसार कार्य चला। इसके बाद भारत में मुगलों के शासनकाल के दौरान सरकारी क्षेत्र में हिजरी सन चलता रहा। इसे भाग्य की विडंबना कहें अथवा स्वतंत्र भारत के कुछ नेताओं की अकृतज्ञता कि सरकार ने शक संवत को स्वीकार कर लिया, लेकिन सम्राट विक्रमादित्य के नाम से प्रचलित संवत को कहीं स्थान न दिया। 31 दिसंबर की आधी रात को नव वर्ष के नाम पर नाचने वाले आम जन को देखकर तो कुछ तर्क किया जा सकता है, पर भारत सरकार को क्या कहा जाए जिसका दूरदर्शन भी उसी रंग में रंगा श्लील-अश्लील कार्यक्रम प्रस्तुत करने की होड़ में लगा रहता है और स्वयं राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री पूरे राष्ट्र को नव वर्ष की बधाई देते हैं। भारतीय सांस्कृतिक जीवन का विक्रमी संवत से गहरा नाता है। इस दिन लोग पूजापाठ करते हैं और तीर्थ स्थानों पर जाते हैं। लोग पवित्र नदियों में स्नान करते हैं। मांस-मदिरा का सेवन करने वाले लोग इस दिन इन तामसी पदार्था से दूर रहते हैं, पर विदेशी संस्कृति के प्रतीक और गुलामी की देन विदेशी नव वर्ष के आगमन से घंटों पूर्व ही मांस मदिरा का प्रयोग, श्लील-अश्लील कार्यक्रमों का रसपान तथा अन्य बहुत कुछ ऐसा प्रारंभ हो जाता है जिससे अपने देश की संस्कृति का रिश्ता नहीं है। विक्रमी संवत के स्मरण मात्र से ही विक्रमादित्य और उनके विजय अभियान की याद ताजा होती है, भारतीयों का मस्तक गर्व से ऊंचा होता है जबकि ईसवी सन के साथ ही गुलामी द्वारा दिए गए अनेक जख्म हरे होने लगते हैं। पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई को जब किसी ने पहली जनवरी को नव वर्ष की बधाई दी तो उन्होंने उत्तर दिया था- किस बात की बधाई? मेरे देश और देश के सम्मान का तो इस नव वर्ष से कोई संबंध नहीं। यही हम लोगों को भी समझना होगा।
|
01-01-2011, 12:22 PM | #3 |
Special Member
Join Date: Nov 2010
Location: Patal Lok
Posts: 1,867
Rep Power: 18 |
Re: राष्ट्रीय गौरव से समझौता????
१- वास्तवमें, इंग्लैंडके रात के बारह बजे, भारतमें प्रातः है। वैदिक संस्कृति के अनुसार भारतमें, प्रातः ५:३० बजे सूर्योदय के साथ साथ तिथि बदली जाती थी। उज्जैन (भारत) और गीनीच (इंग्लैंड) के अक्षांश में ८२.५ अंशोका (डिग्रीका) अंतर है। उज्जैन या प्रयाग के अक्षांश ८२.५ है, जब ग्रीनीच के (०)-शून्य हैं। इस लिए, भारत में जब प्रातः के, ५:३० बजते हैं, तब ग्रीनीच, इंग्लैंड में पिछली रात के, १२ बजे होते हैं, होती तो मध्य रात्रि है, किंतु भारत की प्रातः से ताल मिलाने के लिए मध्य रात्रि के तुरंत बाद, शेष रात्रिकी ओर दुर्लक्ष्य करते हुए, गुड मॉर्निंग (सु प्रभातम्*) हो जाती है। यह तर्क शुद्ध प्रतीत होता है। इस तथ्य की एक पुष्टि यह भी है, कि भारत को पूरब का देश भी माना जाता है, और ऐसे ही स्वीकारा जाता है। पाठकों को ’पूरब और पच्छिम” नाम का चलचित्र (मूवी)भी स्मरण होगा, जिसमें भारत को पूरब माना गया था, और ऐतिहासिक दृष्टिसे सदा स्वीकारा भी गया है।
इसी संदर्भ में कुछ और भी विधान किया जा सकता है। वास्तव में, उत्तर और दक्षिण दिशाएं, पृथ्वी के, दो ध्रुवों के कारण तर्क शुद्ध हैं। पृथ्वी गोल घुमती है, और, उत्तर ध्रुव और दक्षिण ध्रुव दो स्थिर बिंदू हैं। परंतु, पूर्व दिशा का ऐसा नहीं है। एक मंडल में, या वृत्त में, किस बिंदु को संदर्भ बिंदू (Reference Point) माना जाए, इसका कोई तर्क नहीं दिया जा सकता। इस लिए संदर्भ बिंदू प्रयाग, या उज्जैन (जो, आज कल माना जाता है) हो सकता है। २- कॅलेंडर भी (हमारा कालांतर) संयोग से एक पुर्तगाली क्लायंट के साथ बातचीत करते समय सुना, कि पुर्तगाली भाषा में, अंग्रेज़ी कॅलेंडर के लिए ”कलांदर” शब्द प्रयुक्त होता है, जो शुद्ध संस्कृत ”कालांतर” से अधिक मिलता जुलता प्रतीत होता है। अब जानकारों को यह कालांतर, शुद्ध संस्कृत युगांतर, मन्वंतर, कल्पांतर इत्यादि शब्दों जैसा ही, शुद्ध संस्कृत प्रतीत हो, तो कोई विशेष अचरज नहीं। |
01-01-2011, 12:22 PM | #4 |
Special Member
Join Date: Nov 2010
Location: Patal Lok
Posts: 1,867
Rep Power: 18 |
Re: राष्ट्रीय गौरव से समझौता????
३- Day, Night, Hour इत्यादि अब कुछ Day, Night, Hour इत्यादि शब्दों का विचार करते हैं। जो वास्तव में काल गणना विषय से ही जुडे हुए हैं। Day को दिवस शब्दके मूल धातु ”दिव” के साथ मेल है। इस दिव् का अर्थ दिव्यता अर्थात प्रकाश के साथ जुडा हुआ है। अपने शब्द दिवस, दिन, दिव्यता, देव (प्रकाश युक्त हस्ति) दैव (देवों पर आधारित) दिवंगत (प्रकाशमें लीन हो चुका हुआ) ऐसे शब्दों का मूल भी यह दिवधातु ही है। अंग्रेज़ी में यही दिवधातु के मूल से उदभूत Divine (प्रकाशमान आकृति), Day (दिवस), Deity (दैवी आकृति), Divination ( दैवी सहायता से ढूंढना), इत्यादि शब्दोंका तर्कशुद्ध संधान किया जा सकता है। यह सारे शब्द दिव्धातु से उद्भूत प्रतीत होते हैं।
Night उसी प्रकारसे Night को संस्कृत ”नक्त” (अर्थात रात्रि) के साथ निकटता प्रतीत होती है। संस्कृतमें ”नक्तचर” रात्रि को विचरण करने वाले प्राणियों के लिए प्रयोजा जाता है। नक्त का अर्थ रात्रि, और चर का अर्थ विचरण करने वाला यह होता है। अंग्रेज़ी में भी Nocturnal Animal सुना होगा। इस Nocturanal का ”Noct” वाला हिस्सा ”नक्त” के साथ मिलता प्रतीत होता है। उच्चारण की दृष्टि से जैसे अष्ट से अख्ट,-अठ्ठ (पराकृत और पंजाबी ),–आठ (गुजराती/मराठी/हिंदी) और अंगेज़ी Eight ( उच्चारानुसारी अख्ट) इसे Night (उच्चारानुसारी नख्ट) से तुलना करने पर कुछ अधिक प्रकाश पडता है। Hour का भी मूल ”होरा” इस संस्कृत शब्द से, जिस का अर्थ एक राशि में व्यतीत किया गया समय के अर्थ से लगाया जा सकता है। ज्योतिष को ”होरा” शास्त्र भी कहा जाता है। Last edited by amol; 01-01-2011 at 12:25 PM. |
01-01-2011, 12:24 PM | #5 |
Special Member
Join Date: Nov 2010
Location: Patal Lok
Posts: 1,867
Rep Power: 18 |
Re: राष्ट्रीय गौरव से समझौता????
यह व्युत्पत्तियां अंग्रेजी डिक्शनरियां क्यों दिखाती नहीं है? मुझे यह प्रश्न कई बार पूछा जाता है। मेरी दृष्टि में अनुमानित उत्तर शायद यह है, कि जब यह डिक्षनरियां रची गई, तब हम पर-तंत्र थे, और भारत में मॅकॉले प्रणीत शिक्षा प्रणाली लागु की गई थी; जो भारतियों को भारत की महानता के प्रति उदासीन रखना चाहती थी। सोचिए कि जिस भारत नें विश्व में गणित की आत्मा समझी जाने वाले अंकों का योगदान किया, उन अंकों का उल्लेख भी अरबी अंक इस नाते से किया जाता था। बहुत से लोग आज भी उन्हे अरबी अंक ही मानते हैं; तब यह बात सरलता से समझ में आती है। पर हमें इस मति भ्रमित अवस्था से बाहर आना होगा, और गौरव अनुभव करते हुए, उपर उठना होगा।
संदर्भ: (१) एन्सायक्लोपेडिया ब्रिटानीका (२) विश्व इतिहास के कुछ विलुप्त पृष्ठ– पु. ना. ओक, (३) लेखक का ही, गुजराती त्रैमासिक, ”गुर्जरी” में प्रकाशित लेख, (४) लेखक की टिप्पणियां। (मधुसूदनजी तकनीकी (Engineering) में एम.एस. तथा पी.एच.डी. की उपाधियाँ प्राप्त् की है, भारतीय अमेरिकी शोधकर्ता के रूप में मशहूर है, हिन्दी के प्रखर पुरस्कर्ता: संस्कृत, हिन्दी, मराठी, गुजराती के अभ्यासी, अनेक संस्थाओं से जुडे हुए। अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति (अमरिका) आजीवन सदस्य हैं; वर्तमान में अमेरिका की प्रतिष्ठित संस्*था UNIVERSITY OF MASSACHUSETTS (युनिवर्सीटी ऑफ मॅसाच्युसेटस, निर्माण अभियांत्रिकी), में प्रोफेसर हैं।) |
01-01-2011, 12:31 PM | #6 |
Special Member
Join Date: Nov 2010
Location: Patal Lok
Posts: 1,867
Rep Power: 18 |
Re: राष्ट्रीय गौरव से समझौता????
क्या है न्यू ईयर ?
एक जनवरी के नजदीक आते ही जगह-जगह हैप्पी न्यू ईयर के बैनर व होर्डिंग लगने लगते हैं। जश्न मनाने की तैयारियां प्रारम्भ हो जाती हैं। होटल, रेस्तरॉ, व पव इत्यादि अपने-अपने ढंग से इसके आगमन की तैयारियां करने लगते हैं। पोस्टर व कार्डों की भरमार के साथ दारू की दुकानों की भी चांदी कटने लगती है। कहीं कहीं तो जाम से जाम इतने टकराते हैं कि घटनाऐं दुर्घटनाओं में बदल जाती हैं और मनुष्य- मनुष्यों से तथा गाड़ियां गाडियों से भिडने लगते हैं। रात-रात भर जाग कर नया साल मनाने से ऐसा प्रतीत होता है मानो सारी खुशियां एक साथ आज ही मिल जायेंगी। हम भारतीय भी पश्चिमी अंधानुकरण में इतने सराबोर हो जाते हैं कि उचित अनुचित का बोध त्याग अपनी सभी सांस्क्रतिक मर्यादाओं को तिलांजलि दे बैठते हैं। पता ही नहीं लगता कि कौन अपना है और कौन पराया। जनवरी से प्रारम्भ होने वाली काल गणना को हम ईस्वी सन् के नाम से जानते हैं जिसका सम्बन्ध ईसाई जगत् व ईसा मसीह से है। इसे रोम के सम्राट जूलियस सीजर द्वारा ईसा के जन्म के तीन वर्ष बाद प्रचलन में लाया गया। भारत में ईस्वी सम्वत् का प्रचलन अग्रेंजी शासकों ने 1752 में किया। अधिकांश राष्ट्रों के ईसाई होने और अग्रेंजों के विश्वव्यापी प्रभुत्व के कारण ही इसे विश्व के अनेक देशों ने अपनाया। 1752 से पहले ईस्वी सन् 25 मार्च से प्रारम्भ होता था किन्तु 18वीं सदी से इसकी शुरूआत एक जनवरी से होने लगी। ईस्वी कलेण्डर के महीनों के नामों में प्रथम छः माह यानि जनवरी से जून रोमन देवताओं (जोनस, मार्स व मया इत्यादि) के नाम पर हैं। जुलाई और अगस्त रोम के सम्राट जूलियस सीजर तथा उनके पौत्र आगस्टस के नाम पर तथा सितम्बर से दिसम्बर तक रोमन संवत् के मासों के आधार पर रखे गये। जुलाई और अगस्त, क्योंकि सम्राटों के नाम पर थे इसलिए, दोनों ही इकत्तीस दिनों के माने गये अन्यथा कोई भी दो मास 31 दिनों या लगातार बराबर दिनों की संख्या वाले नहीं हैं। |
01-01-2011, 12:32 PM | #7 |
Special Member
Join Date: Nov 2010
Location: Patal Lok
Posts: 1,867
Rep Power: 18 |
Re: राष्ट्रीय गौरव से समझौता????
ईसा से 753 वर्ष पहले रोम नगर की स्थापना के समय रोमन संवत् प्रारम्भ हुआ जिसके मात्र दस माह व 304 दिन होते थे। इसके 53 साल बाद वहां के सम्राट नूमा पाम्पीसियस ने जनवरी और फरवरी दो माह और जोड़कर इसे 355 दिनों का बना दिया। ईसा के जन्म से 46 वर्ष पहले जूलियस सीजन ने इसे 365 दिन का बना दिया। सन् 1582 ई. में पोप ग्रेगरी ने आदेश जारी किया कि इस मास के 04 अक्टूबर को इस वर्ष का 14 अक्टूबर समझा जाये। आखिर क्या आधार है इस काल गणना का ? यह तो ग्रहों व नक्षत्रों की स्थिति पर आधारित होनी चाहिए।
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् नवम्बर 1952 में वैज्ञानिक और औद्योगिक परिषद के द्वारा पंचांग सुधार समिति की स्थापना की गयी। समिति ने 1955 में सौंपी अपनी रिपोर्ट में विक्रमी संवत को भी स्वीकार करने की सिफारिश की थी। किन्तु, तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू के आग्रह पर ग्रेगेरियन कलेण्डर को ही सरकारी कामकाज हेतु उपयुक्त मानकर 22 मार्च 1957 को इसे राष्ट्रीय कलेण्डर के रूप में स्वीकार कर लिया गया। ग्रेगेरियन कलेण्डर की काल गणना मात्र दो हजार वर्षों के अति अल्प समय को दर्शाती है। जबकि यूनान की काल गणना 3579 वर्ष, रोम की 2756 वर्ष यहूदी 5767 वर्ष, मिस्त्र की 28670 वर्ष, पारसी 198874 वर्ष तथा चीन की 96002304 वर्ष पुरानी है। इन सबसे अलग यदि भारतीय काल गणना की बात करें तो हमारे ज्योतिष के अनुसार पृथ्वी की आयु एक अरब 97 करोड़ 39 लाख 49 हजार 109 वर्ष है। जिसके व्यापक प्रमाण हमारे पास उपलब्ध हैं। हमारे प्राचीन ग्रंथों में एक-एक पल की गणना की गयी है। |
01-01-2011, 12:32 PM | #8 |
Special Member
Join Date: Nov 2010
Location: Patal Lok
Posts: 1,867
Rep Power: 18 |
Re: राष्ट्रीय गौरव से समझौता????
जिस प्रकार ईस्वी सम्वत् का सम्बन्ध ईसा जगत से है उसी प्रकार हिजरी सम्वत् का सम्बन्ध मुस्लिम जगत और हजरत मुहम्मद साहब से है। किन्तु विक्रमी सम्वत् का सम्बन्ध किसी भी धर्म से न हो कर सारे विश्व की प्रकृति, खगोल सिद्धांत व ब्रह्माण्ड के ग्रहों व नक्षत्रों से है। इसलिए भारतीय काल गणना पंथ निरपेक्ष होने के साथ सृष्टि की रचना व राष्ट्र की गौरवशाली परम्पराओं को दर्शाती है। इतना ही नहीं, ब्रह्माण्ड के सबसे पुरातन ग्रंथ वेदों में भी इसका वर्णन है। नव संवत् यानि संवत्सरों का वर्णन यजुर्वेद के 27वें व 30वें अध्याय के मंत्र क्रमांक क्रमशः 45 व 15 में विस्तार से दिया गया है। विश्व में सौर मण्डल के ग्रहों व नक्षत्रों की चाल व निरन्तर बदलती उनकी स्थिति पर ही हमारे दिन, महीने, साल और उनके सूक्ष्मतम भाग आधारित होते हैं।
इसी वैज्ञानिक आधार के कारण ही पाश्चात्य देशों के अंधानुकरण के बावजूद, चाहे बच्चे के गर्भाधान की बात हो, जन्म की बात हो, नामकरण की बात हो, गृह प्रवेश या व्यापार प्रारम्भ करने की बात हो, सभी में हम एक कुशल पंडित के पास जाकर शुभ लग्न व मुहूर्त पूछते हैं। और तो और, देश के बडे से बडे़ राजनेता भी सत्तासीन होने के लिए सबसे पहले एक अच्छे मुहूर्त का इंतजार करते हैं जो कि विशुद्ध रूप से विक्रमी संवत् के पंचांग पर आधारित होता है। भारतीय मान्यतानुसार कोई भी काम यदि शुभ मुहूर्त में प्रारम्भ किया जाये तो उसकी सफलता में चार चांद लग जाते हैं। वैसे भी भारतीय संस्कृति श्रेष्ठता की उपासक है। जो प्रसंग समाज में हर्ष व उल्लास जगाते हुए एक सही दिशा प्रदान करते हैं उन सभी को हम उत्सव के रूप में मनाते हैं। राष्ट्र के स्वाभिमान व देश प्रेम को जगाने वाले अनेक प्रसंग चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से जुडे़ हुए हैं। यह वह दिन है जिस दिन से भारतीय नव वर्ष प्रारम्भ होता है। आईये, इस दिन की महानता के प्रसंगों को देखते हैं - |
01-01-2011, 12:33 PM | #9 |
Special Member
Join Date: Nov 2010
Location: Patal Lok
Posts: 1,867
Rep Power: 18 |
Re: राष्ट्रीय गौरव से समझौता????
ऐतिहासिक महत्व
1 यह दिन सृष्टि रचना का पहला दिन है। इस दिन से एक अरब 97 करोड़ 39 लाख 49 हजार 109 वर्ष पूर्व इसी दिन के सूर्योदय से ब्रह्मा जी ने जगत की रचना प्रारंभ की। 2 विक्रमी संवत का पहला दिन: उसी राजा के नाम पर संवत् प्रारंभ होता था जिसके राज्य में न कोई चोर हो, न अपराधी हो, और न ही कोई भिखारी हो। साथ ही राजा चक्रवर्ती सम्राट भी हो। सम्राट विक्रमादित्य ने 2067 वर्ष पहले इसी दिन राज्य स्थापित किया था। 3 प्रभु श्री राम का राज्याभिषेक दिवस : प्रभु राम ने भी इसी दिन को लंका विजय के बाद अयोध्या में राज्याभिषेक के लिये चुना। 4 नवरात्र स्थापना : शक्ति और भक्ति के नौ दिन अर्थात्, नवरात्र स्थापना का पहला दिन यही है। प्रभु राम के जन्मदिन रामनवमी से पूर्व नौ दिन उत्सव मनाने का प्रथम दिन। 5 गुरू अंगददेव प्रगटोत्सव : सिख परंपरा के द्वितीय गुरू का जन्म दिवस। 6 आर्य समाज स्थापना दिवस : समाज को श्रेष्ठ (आर्य) मार्ग पर ले जाने हेतु स्वामी दयानंद सरस्वती ने इसी दिन को आर्य समाज स्थापना दिवस के रूप में चुना। 7 संत झूलेलाल जन्म दिवस : सिंध प्रान्त के प्रसिद्ध समाज रक्षक वरूणावतार संत झूलेलाल इसी दिन प्रगट हुए। 8 शालिवाहन संवत्सर का प्रारंभ दिवस : विक्रमादित्य की भांति शालिनवाहन ने हूणों को परास्त कर दक्षिण भारत में श्रेष्ठतम राज्य स्थापित करने हेतु यही दिन चुना। 9 युगाब्द संवत्सर का प्रथम दिन : 5112 वर्ष पूर्व युधिष्ठिर का राज्यभिषेक भी इसी दिन हुआ। प्राकृतिक महत्व 1 वसंत ऋतु का आरंभ वर्ष प्रतिपदा से ही होता है जो उल्लास, उमंग, खुशी तथा चारों तरफ पुष्पों की सुगंधि से भरी होती है। 2 फसल पकने का प्रारंभ यानि किसान की मेहनत का फल मिलने का भी यही समय होता है। 3 नक्षत्र शुभ स्थिति में होते हैं अर्थात् किसी भी कार्य को प्रारंभ करने के लिये यह शुभ मुहूर्त होता है। क्या एक जनवरी के साथ ऐसा एक भी प्रसंग जुड़ा है जिससे राष्ट्र प्रेम जाग सके, स्वाभिमान जाग सके या श्रेष्ठ होने का भाव जाग सके। आइये! विदेशी को फैंक स्वदेशी अपनाऐं और गर्व के साथ भारतीय नव वर्ष यानि विक्रमी संवत् को ही मनायें तथा इसका अधिक से अधिक प्रचार करें। |
01-01-2011, 01:12 PM | #10 |
Special Member
|
Re: राष्ट्रीय गौरव से समझौता????
अमोल भाई कुछ बातें छापने और पढ़ने में रोचक भले ही हों पर प्रायोगिक नहीं हो सकती
आपकी लिखी बातें उन्ही में एक हैं वैश्विक एकीकरण के इस दौड़ में ऐसी बातें बेमानी सी लगती है
__________________
घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
Bookmarks |
|
|