23-01-2016, 10:12 PM | #1 |
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पापा की सज़ा
साभार: तेजेंदर शर्मा पापा ने ऐसा क्यों किया होगा? उनके मन में उस समय किस तरह के तूफ़ान उठ रहे होंगे? जिस औरत के साथ उन्होंने सैतीस वर्ष लम्बा विवाहित जीवन बिताया; जिसे अपने से भी अधिक प्यार किया होगा; भला उसकी जान अपने ही हाथों से कैसे ली होगी? किन्तु सच यही था - मेरे पापा ने मेरी मां की हत्या, उसका गला दबा कर, अपने ही हाथों से की थी। सच तो यह है कि पापा को लेकर ममी और मैं काफ़ी अर्से से परेशान चल रहे थे। उनके दिमाग़ में यह बात बैठ गई थी कि उनके पेट में कैंसर है और वे कुछ ही दिनों के मेहमान हैं। डाक्टर के पास जाने से भी डरते थे। कहीं डाक्टर ने इस बात की पुष्टि कर दी, तो क्या होगा? रंगहीन तो ममी का जीवन हुआ जा रहा था। उसमें केवल एक ही रंग बाकी रह गया था। डर का रंग। कई बार तो कोई चीज ओवन में रख कर ओवन चलाना ही भूल जाती। और पापा, वैसे तो उनको भूख ही कम लगती थी, लेकिन जब कभी खाने के लिये टेबल पर बैठते तो जो खाना परोसा जाता उससे उनका पारा थर्मामीटर तोड़ कर बाहर को आने लगता। ममी को स्यवं समझ नहीं आ रहा था कि उन्हें क्या होता जा रहा है। पापाको हस्पताल जाने से बहुत डर लगता है। उन्हें वहां के माहौल से ही दहशत होने लगती है। उनकी मां हस्पताल गई, लौट कर नहीं आई। पिता गये तो उनका भीशव ही लौटा। भाई की अंतिम स्थिति ने तो पापा को तोड़ ही दिया था। शायदइसीलिये स्वयं हस्पताल नहीं जाना चाहते थे। किन्तु यह डर दिमाग में भीतर तकबैठ गया था कि उन्हें पेट में कैंसर हैं। पेट में दर्द भी तो बहुत तेज़उठता था। पापा को एलोपैथी की दवाओं पर से भरोसा भी उठ गया था। उन पलों मेंबस ममी पेट पर कुछ मल देतीं, या फिर होम्योपैथी की दवा देतीं। दर्द रुकनेमें नहीं आता और पापा पेट पकड़ कर दोहरे होते रहते। >>>
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23-01-2016, 10:13 PM | #2 |
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Re: पापा की सज़ा
पापा की हरकतें दिन प्रतिदिन उग्र होती जा रही थीं। हर वक्त बस आत्महत्या के बारे में ही सोचते रहते। एक अजीब सा परिवर्तन देखा था पापा में। पापा ने गैराज में अपना वर्कशॉप जैसा बना रखा था। वहां के औज़ारों को तरतीब से रखने लगे, ठीक से पैक करके और उनमें से बहुत से औज़ार अब फैंकने भी लगे। दरअसल अब पापा ने अपनी बहुत सी काम की चीज़ें भी फेंकनी शुरू कर दी थीं। जैसे जीवन से लगाव कम होता जा रहा हो। पहले हर चीज़ को संभाल कर रखने वाले पापा अब चिड़चिड़े हो कर चिल्ला उठते, 'ये कचरा घर से निकालो !'
ममी दहशत से भर उठतीं। ममी को अब समझ ही नहीं आता था कि कचरा क्या है और काम की चीज़ क्या है। क्ई बार तो डर भी लगता कि उग्र रूप के चलते कहीं मां पर हाथ ना उठा दें, लेकिन मां इस बुढ़ापे के परिवर्तन को बस समझने का प्रयास करती रहती। अपने पति को गलत मान भी कैसे सकती थी? कभी कभी अपने आप से बातें करने लगती. "मेरी कार घर के सामने रुकी। वहां पुलिस की गाड़ियां पहले से ही मौजूद थीं। पुलिस ने घर के सामने एक बैरिकेड सा खड़ा कर दिया था। आसपास के कुछ लोग दिखाई दे रहे थे - अधिकतर बूढ़े लोग जो उस समय घर पर थे। सब की आंखों में कुछ प्रश्न तैर रहे थे। कार पार्क कर के मैं घर के भीतर घुसी। पुलिस अपनी तहकीकात कर रही थी।" >>>
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23-01-2016, 10:14 PM | #3 |
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Re: पापा की सज़ा
मुझेऔर मां को हर वक्त यह डर सताता रहता था कि पापा कहीं आत्महत्या न कर लें।ममी तो हैं भी पुराने ज़माने की। उन्हें केवल डरना आता है। परेशान तो मैंउस समय भी हो गई थी जब पापा ने मुझे अपने कमरे में बुलाया। उन्होंने कमरेमें बुला कर मुझे बहुत प्यार किया और फिर एक पाँच हजार का चैक मुझे थमादिया, 'डार्लिंग, हैप्पी बर्थडे !' मैं पहले हैरान हुई और फिर परेशान। मेरेजन्मदिन को तो अभी तीन महीने बाकी थे। पापा ने पहले तो कभी भी मुझेजन्मदिन से इतने पहले मेरा तोहफ़ा नहीं दिया। फिर इस वर्ष क्यों।
'पापा, इतनी भी क्या जल्दी है? अभी तो मेरे जन्मदिन में तीन महीने बाकी हैं।' 'देखो बेटी, मुझे नहीं पता मैं तब तक जिऊंगा भी या नहीं। लेकिन इतना तो तू जानती है कि पापा को तेरा जन्मदिन भूलता कभी नहीं।' मैंपापा को उस गंभीर माहौल में से बाहर लाना चाह रही थी। 'रहने दो पापा, आपतो मेरे जन्मदिन के तीन तीन महीने बाद भी मांगने पर ही मेरा गिफ्ट देतेहैं।' और कहते कहते मेरे नेत्र भी गीले हो गये। मैं पापा को वहींखड़ा छोड़ अपने घर वापिस आ गई थी। उस रात मैं बहुत रोई थी। मेरे पतिबहुत समझदार हैं। वो मुझे रात भर समझाते रहे। कब सुबह हो गई पता ही नहींचला। पापा के जीवन को कैसे मैनेज करूं, समझ नहीं आ रहा था। ध्यान हरवक्त फ़ोन की ओर ही लगा रहता था। डर, कि कहीं ममी का फ़ोन न आ जाए और वहरोती हुई कहें कि पापा ने आत्महत्या कर ली है। >>>
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23-01-2016, 10:15 PM | #4 |
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Re: पापा की सज़ा
फ़ोन आया लेकिनफ़ोन ममी का नहीं था। फ़ोन पड़ोसन का था - मिसेज़ जोन्स। हमारी बंद गली केआख़री मकान में रहती थी, ' जेनी, दि वर्स्ट हैज़ हैपण्ड।.. युअर पापा... ' और मैं आगे सुन नहीं पा रही थी। बहुत से चित्र बहुत तेज़ी से मेरी आंखों केसामने से गुज़रने लगे। पापा ने ज़हर खाई होगी, रस्सी से लटक गये होंगे याफिर रेल्वे स्टेशन पर.. . मिसेज़ जोन्स ने फिर से पूछा, 'जेनी तुम लाइन पर हो न?' 'जी।' मैं बुदबुदा दी। 'पुलिस को भी तुम्हारे पापा ने ख़ुद ही फ़ोन कर दिया था। ...आई एम सॉरी माई चाइल्ड। तुम्हारी मां मेरी बहुत अच्छी सहेली थी।' '...थी? ममी को क्या हुआ?' मैं अचकचा सी गई थी। 'आत्महत्या तो पापा ने की है न?' ' नहीं मेरी बच्ची, तुम्हारे पापा ने तुम्हारी ममी का ख़ून कर दिया है। 'औरमैं सिर पकड़ कर बैठ गई। कुछ समझ नहीं आ रहा था। ऐसे समाचार की तो सपने मेंभी उम्मीद नहीं थी। पापा ने ये क्या कर डाला। अपने हाथों से अपने जीवनसाथीको मौत की नींद सुला दिया ! पापा ने ऐसे क्यों किया होगा? मैं कुछभी सोच पाने में असमर्थ थी। मेरे पति अपने काम पर गये हुए थे। मुझे समझ नहीं आरहा था कि मेरी प्रतिक्रिया क्या हो। एकाएक पापा के प्रति मेरे दिल मेंनफ़रत और गुस्से का एक तूफ़ान सा उठा। फिर मुझे उबकाई का अहसास हुआ; पेटमें मरोड़ सा उठा। मेरे साथ यह होता ही है। जब कभी कोई दहला देने वालासमाचार मिलता है, मेरे पेट में मरोड़ उठते ही हैं। >>>
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23-01-2016, 10:16 PM | #5 |
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Re: पापा की सज़ा
हिम्मत जुटाने की आवश्यक्ता महसूस हो रही थी। मैं अपने पापा को एक कातिल के रूप में कैसेदेख पाऊंगी। एक विचित्र सा ख्याल दिल में आया, काश! अगर मेरी ममी को मरनाही था, उनकी हत्या होनी ही थी तो कम से कम हत्यारा तो कोई बाहर का होता।मैं और पापा मिल कर इस स्थिति से निपट तो पाते। अब पापा नाम के हत्यारे सेमुझे अकेले ही निपटना था। मैं कहीं कमज़ोर न पड़ जाऊं.. .
ममी कोअंतिम समय कैसे महसूस हो रहा होगा..! जब उन्होंने पापा को एक कातिल के रूपमें देखा होगा, तो ममी कितनी मौतें एक साथ मरी होंगी..! क्या ममी छटपटाईहोगी..! क्या ममी ने पापा पर भी कोई वार किया होगा..! सारी उम्र पापा कोगॉड मानने वाली ममी ने अंतिम समय में क्या सोचा होगा..!ममी.. प्रामिस मी, यू डिड नॉट डाई लाईक ए कावर्ड, मॉम आई एम श्योर यू मस्ट हैव रेज़िस्टिड..! मैनेहिम्मत की और घर को ताला लगाया। बाहर आकर कार स्टार्ट की और चल दी उस घरकी ओर जिसे अपना कहते हुए आज बहुत कठिनाई महसूस हो रही थी। ममी दुनियां हीछोड़ गईं और पापा - जैसे अजनबी से लग रहे थे। रास्ते भर दिमाग़ में विचारखलबली मचाते रहे। मेरे बचपन के पापा जो मुझे गोदी में खिलाया करते थे..!मुझे स्कूल छोड़ कर आने वाले पापा .. ..! मेरी ममी को प्यार करने वालेपापा.. ..! घर में कोई बीमार पड़ जाए तो बेचैन होने वाले पापा ..! ट्रेनड्राइवर पापा ..! ममी और मुझ पर जान छिड़कने वाले पापा ..! कितने रूप हैंपापा के, और आज एक नया रूप - ममी के हत्यारे पापा ..! कैसे सामना कर पाऊंगीउनका.. ..! उनकी आंखों में किस तरह के भाव होंगे..! सोच कहीं थम नहीं रहीथी। >>>
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23-01-2016, 10:18 PM | #6 |
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Re: पापा की सज़ा
मेरी कार घर के सामने रुकी। वहां पुलिस की गाड़ियां पहले से हीमौजूद थीं। पुलिस ने घर के सामने एक बैरिकेड सा खड़ा कर दिया था। आसपास केकुछ लोग दिखाई दे रहे थे - अधिकतर बूढ़े लोग जो उस समय घर पर थे। सब कीआंखों में कुछ प्रश्न तैर रहे थे। कार पार्क कर के मैं घर के भीतर घुसी।पुलिस अपनी तहकीकात कर रही थी। ममी का शव एक पीले रंग के प्लास्टिक में रैपकिया हुआ था। ... मैनें ममी को देखना चाहा..मैं ममी के चेहरे के अंतिमभावों को पढ़ लेना चाहती थी।.. देखना चाहती थी कि क्या ममी ने अपने जीवन कोबचाने के लिये संघर्ष किया या नहीं। अब पहले ममी की लाश - कितना कठिन हैममी को लाश कह पाना - का पोस्टमार्टम होगा। उसके बाद ही मैं उनका चेहरा देखपाऊंगी।
एक कोने में पापा बैठे थे। पथराई सी आंखें लिये, शून्य मेंताकते पापा। मैं जानती थी कि पापा ने ही ममी का ख़ून किया है। फिर भी पापाख़ूनी क्यों नहीं लग रहे थे ? .. पुलिस कांस्टेबल हार्डिंग ने बताया किपापा ने स्वयं ही उन्हें फ़ोन करकेबताया कि उन्होंने अपनी पत्नी की हत्याकर दी है। पापा ने मेरी तरफ़ देखा किन्तु कोई प्रतिक्रिया व्यक्तनहीं की। उनका चेहरा पूरी तरह से निर्विकार था। पुलिस जानना चाह्यती थी किपापा ने ममी की हत्या क्यों की। मेरे लिये तो जैसे यह जीने और मरने काप्रश्न था। पापा ने केवल ममी की हत्या भर नहीं की थी – उन्होंने हम सब केविश्वास की भी हत्या की थी। भला कोई अपने ही पति, और वो भी सैंतीस वर्षपुराने पति, से यह उम्मीद कैसे कर सकती है कि उसका पति उसी नींद में ही हमेशा के लिये सुला देगा। >>>
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23-01-2016, 10:19 PM | #7 |
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Re: पापा की सज़ा
पापा पर मुकद्दमा चला। अदालत ने पापा केकेस में बहुत जल्दी ही निर्णय भी सुना दिया था। जज ने कहा, "मैं मिस्टरग्रीयर की हालत समझ सकता हूं। उन्होंने किसी वैर या द्वेश के कारण अपनीपत्नी की हत्या नहीं की है। दरअसल उनके इस व्यवहार का कारण अपनी पत्नी केप्रति अतिरिक्त प्रेम की भावना है। किन्तु हत्या तो हत्या है। हत्या हुई हैऔर हत्यारा हमारे सामने है जो कि अपना जुर्म कबूल भी कर रहा है। मिस्टरग्रीयर की उम्र का ध्यान रखते हुए उनके लिये यही सज़ा काफ़ी है कि वे अपनीबाकी ज़िन्दगी किसी ओल्ड पीपल्स होम में बिताएं। उन्हें वहां से बाहर जानेकि इजाज़त नहीं दी जायेगी। लेकिन उनकी पुत्री या परिवार का कोई भी सदस्यजेल के नियमों के अनुसार उनसे मुलाक़ात कर सकता है। दो साल के बाद, हर तीनमहीने में एक बार मिस्टर ग्रीयर अपने घर जा कर अपने परिवार के सदस्यों सेमुलाक़ात कर सकते हैं।"
मैं चिढ़चिढ़ी होती जा रही थी। कैनेथ भीपरेशान थे। बहुत समझाते, बहलाते। किन्तु मैं जिस यन्त्रणा से गुज़र रही थीवो किसी और को कैसे समझा पाती। किसी से बात करने को दिल भी नहीं करता था।कैनेथ ने बताया कि वोह दो बार पापा को जा कर मिल भी आया है। समझ नहीं आ रहाथा कि उसका धन्यवाद करूं या उससे लड़ाई करूं। कैनेथ ने मुझे समझायाकि मेरा एक ही इलाज है। मुझे जा कर अपने पापा से मिल आना चाहिये। यदि जीचाहे तो उनसे ख़ूब लड़ाई करूं। कोशिश करूं कि उन्हें माफ़ कर सकूं। क्यामेरे लिये पापा को माफ़ कर पाना इतना ही आसान है? तनाव है कि बढ़ता ही जारहा है। सिर दर्द से फटता रहता है। पापा का चेहरा बार बार सामने आता है। फिर अचानक मां की लाश मुझे झिंझोड़ने लगती है। >>>
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23-01-2016, 10:22 PM | #8 |
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Re: पापा की सज़ा
मेरी बेटी का जन्मदिन आ पहुंचा है, "ममी मेरा प्रेज़ेन्ट कहां है?" मैं अचानक अपने बचपन में वापिस पहुंच गई हूं। पापा एकदम सामने आकर खड़े हो गये हैं। मेरी बेटी को उसका जन्मदिन का तोहफ़ा देने लगे हैं ।
अगले ही दिन मैं पहुंच गई अपने पापा को मिलने। इतनी हिम्मत कहां से जुटाऊं कि उनकी आंखों में देख सकूं। कैसे बात करूं उनसे। क्या मैं उनको कभी भी माफ़ कर पाऊंगी? दूर से ही पापा को देख रही थी। पापा ने आज भी लंच नहीं खाया था। भोजन बस मेज़ पर पड़ा उनकी प्रतीक्षा करता रहा, और वे शून्य में ताकते रहे। अचानक ममी कहीं से आ कर वहां खड़ी हो गयीं। लगी पापा को भोजन खिलाने। पापा शून्य में ताके जा रहे थे। कहीं दूर खड़ी मां से बातें कर रहे थे। मैं वापिस चल दी, बिना पापा से बात किये। हां, पापा के लिये यही सज़ा ठीक है कि वे सारी उम्र मां को ऐसे ही ख़्यालों में महसूस करें, उसके बिना अपना बाकी जीवन जियें, उनकी अनुपस्थिति पापा को ऐसे ही चुभती रहे। जाओ पापा मैंने तुम्हें अपनी ममी का ख़ून माफ़ किया। **
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25-01-2016, 12:45 AM | #9 |
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Re: पापा की सज़ा
इसलिए कहा जाता है की कितनी भी बड़ी मुसीबत क्यूँ न आये इन्सान को खुद का मानसिक संतुलन नहीं गवाना चाहिए यदि हम दुःख के समय या परेशानियों में टूट जाते हैं तब एइसे हालत खड़े होते हैं कोई भी बात मन को चुभ रही हो तो उसे मन में स्थान देने की बजाय इग्नोर करना चाहिए वर्ना एक छोटी सी बात बड़ा घाव बनकर नासूर बन जाती है .
ये कहानी आज के समय की सत्यता है भाई .. इंसानों को आज हजारो समस्याओं ने घेर रखा है और एइसे में , एइसे किस्से समाज में बनते जा रहे हैं कही पैसे के लिए, कही रिश्तों के लिए, अहिं आभाव तो कही बीमारियाँ हैं जिसने समाज को एईसी कहानिया बनाने के लिए मजबूर किया है . बहुत अच्छी कहानी सेर करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद भाई |
25-01-2016, 04:56 PM | #10 | |
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Re: पापा की सज़ा
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