22-02-2012, 04:28 AM | #371 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
देहरादून। वैज्ञानिकों ने एक ऐसा फंगस (फफूंदी) विकसित किया है, जो कैंसर जैसी घातक बीमारियों के इलाज में कारगर है। देहरादून स्थित भारतीय वन अनुसंधान संस्थान (एफआरआई) के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित इस फंगस से घातक बीमारियों का उपचार तो होगा ही, साथ ही इसे व्यावसायिक रप से उगाकर कि सान भी अपनी आय बढा सकते हैं। वैसे इस फंगस से मलेशिया की एक कंपनी द्वारा निर्मित दवाएं पहले से ही बाजार में उपलब्ध हैं, लेकिन एफआरआई के वैज्ञानिकों ने इस फंगस को भारत की परिस्थितियों के अनुकूल बनाकर यह सुनिश्चित किया है कि इसे समूचे उत्तर भारत में उगाया जा सके। एफआरआई की फारेस्ट पैथालाजी डिवीजन के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. एनएसके हर्ष के अनुसार संस्थान ने एक ऐसे फंगस वाला गैनोडर्मा (गैनोडर्मा ल्यूसिडियम) का पता लगाया है जो पापलर तथा अन्य पादक प्रजातियों के तने पर उगता है। यह एचआईवी, कैंसर जैसी लाइलाज बीमारियों के उपचार के लिए सक्षम है। डा. हर्ष के अनुसार अनुसंधान से साबित हो गया है कि भारत में भी गैनोडर्मा फंगस आसानी से उगाया जा सकता है। उन्होंने एफआरआई परिसर में पापलर तथा अन्य पादक प्रजातियों के वुड ब्लाक पर इस फंगस को उगाकर इसमें समाहित औषधीय गुणों का अध्ययन किया। इससे पहले एशिया में चीन. जापान तथा कोरिया में गैनोडर्मा फंगस को उगाया जाता था। मलेशिया की एक दवा निर्माता कंपनी तो इस फंगस से तैयार दवाएं रिशी, लिंग चि तथा लिंग झि की बाजार में बिक्री करती है। तंत्रिका से संबंधित बीमारियों के उपचार के लिए इन दवाओं का प्रयोग किया जाता है। डा. हर्ष के मुताबिक गैनोडर्मा ल्यूसिडियम फंगस में तंत्रिका से संबंधित बीमारियों के उपचार की क्षमता है। डा. हर्ष का कहना है कि गैनोडर्मा को 64 प्रकार की पादक प्रजातियों पर उगाया जा सकता है। भारतीय बाजार में गैनोडर्मा ल्युसीडम निर्मित दवाएं मलेशियन कंपनी सप्लाई करती हैं. जो बेहद महंगी होती हैं। इस फफूंदी को दवा के मतलब के लिए उगाने में विदेशी कंपनियों की तकनीक 100 दिन का समय लेती हैं। मगर वन अनुसंधान संस्थान की विधि के आधार पर यह बरसात के समय सामान्यत: 72 से 80 दिन में पूरा फंगस तैयार हो जाता है। फंगस उत्पादन के लिए समूचे उत्तर भारत का मौसम अनुकूल है। डा. हर्ष ने बताया कि संस्थान फफूंदी की तकनीक को खेतों तक पहुंचाने की दिशा में प्रयास शुरू कर दिए हैं। कैंसररोधी फफूंद खेतों में उगेंगी तो कई अहम दवाओं के लिए मलेशिया की राह नहीं ताकनी पडेगी। इस फंगस से तैयार दवाओं से एचआईवी, कैंसर, तंत्रिका रोग, उच्च एवं निम्न रक्तचाप, पक्षाघात, हृदय रोग, मधुमेह, हेपेटाइटिस, अल्सर, एल्कोहोलिज्म, अस्थमा, मम्स, इपीलेप्सी, टायरडनेस आदि का इलाज हो सकेगा। वृक्षों के लिए नुकसानदायक औषधीय उपयोग का गैनोडर्मा ल्यूसिडियम फंगस भले ही कई मर्जों की एक दवा हो, लेकिन पादक प्रजातियों के लिए यह नुकसानदायक है। विशेषग्यों के मुताबिक यह फंगस पादक प्रजातियों की जडों में रोग उत्पन्न करता है। वृक्षों की जडों में लगने वाला रोग वृक्षों की वृद्धि को कम कर देता है। रोग के उपचार के लिए वृक्ष की जडों पर दवा का छिडकाव किया जाता है।
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22-02-2012, 04:33 AM | #372 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
सेक्स और सेलिब्रिटी के मामले में नया नहीं है मीडिया का जुनून
लंदन। कहा जाता है कि ‘द सन’ ने 1970 दशक में ‘पेज 3’ से सेक्स और सेलिब्रिटी को ले कर मिर्च मसाले के साथ चटपटी गप्पशप्प का सिलसिला शुरू किया, लेकिन भारतीय मूल के एक इतिहासकार का कहना है कि इन दो चीजों पर मीडिया का जुनून दो सौ साल पुराना है। आक्सफोर्ड के इतिहासकार फरामर्ज डाभोइवाला इस सिलसिले में 18वीं सदी के इंगलैंड की गणिका किट्टी फिशर की मिसाल देते हैं। डाभोइवाला ने अपनी नयी किताब ‘द आरिजिन्स आफ सेक्स : ए हिस्ट्री आफ द फर्स्ट सेक्सुअल रिवोल्यूशन’ में कहा कि 1960 दशक में समूचे पश्चिमी देशों में सेक्स के मामले में उदारवाद की जो बयार बही, वह वस्तुत: अठारहवीं सदी के घटनाक्रम के चलते ही संभव हो सकी। आक्सफोर्ड की एक विज्ञप्ति के अनुसार डाभोइवाला ने कहा, किट्टी जैसी महिलाएं पहली पिन-अप थी। उन्होंने अपनी तस्वीरों की हजारों प्रतियां बनवाई ताकि लोग उसे खरीद सकें।’’ उन्होंने कहा कि 1600 तक पश्चिमी देशों में विवाहेतर सेक्स को खतरनाक समझा जाता था। उस वक्त परपुरूष गमन की सजा मौत थी। इंगलैंड में परपुरूष गमन के लिए जिस आखिरी महिला को मौत की सजा दी गई, वह सुसन बाउंटी थी। उसे 1654 में फांसी पर चढाया गया। डाभोइवाला ने कहा कि जहां 17वीं सदी में महज एक प्रतिशत जन्म शादी के बंधन के बाहर होते थे, चीजें तेजी से बदली और 1800 आते-आते यह स्थिति हुई कि शादी के समय 40 प्रतिशत दुल्हन गर्भवती थीं। सेक्स के प्रति रूझान में इस बदलाव पर पहली बार उनकी निगाह उस समय गई जब वह आक्सफोर्ड में 17वीं और 18वीं सदी के कानूनी स्रोतों पर शोध कर रहे थे। विज्ञप्ति के अनुसार इसके बाद डाभोइवाला ने अपने शोध का दायरा उस काल के साहित्यिक, चित्रात्मक और अन्य स्रोतों तक फैलाया। वह पहले यौन क्रांति को धर्म के प्रति बदलते रूख, सजाए मौत की समाप्ति और यौन स्वतंत्रता के सिद्धांत के विकास से जोड़ते हैं।
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22-02-2012, 04:35 AM | #373 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
जब पहली बार इंग्लैड और भारत के बीच भेजा गया टेलीग्राफिक संदेश
पोर्थकुर्नो (इंग्लैंड)। हाल ही में खोजे गए ऐतिहासिक दस्तावेजों से पता चला है कि भारत और ब्रिटेन के बीच 23 जून 1870 को पहली बार टेलीग्राफिक संदेश भेजा गया था और हजारों किलोमीटर तक समुद्र के नीचे बिछायी गयी केबल के जरिए ही यह करिश्मा संभव हो पाया था। इस टेलीग्राफिक संपर्क का कमाल यह हुआ कि दोनों देशों के बीच संदेशों के आदान प्रदान में लगने वाला समय महीनों के बजाय मिनटों में सिमट गया। आज भी शायद ही किसी को मालूम हो कि दक्षिण पश्चिम लंदन से 506 किलोमीटर दूर अटलांटिक तट पर कोर्नवैल में पोर्थकुर्नो घाटी ही वह जगह थी, जहां इस संपर्क क्रांति की शुरूआत हुई। यहीं से ब्रिटेन और उसके पूर्व उपनिवेशों के बीच संवाद स्थापित करने की प्रक्रिया शुरू हुई। यहां स्थित संग्रहालय के अधिकारियों ने बताया कि पोर्थकुर्नो 1870 से 1970 के बीच अंतरराष्ट्रीय केबल संवाद का मुख्य केन्द्र था। यहां 1993 तक भी संचार उद्योग के लिए प्रशिक्षण कालेज कार्यरत था। अब यहां स्थित संग्रहालय में दुर्लभ उपकरण , टेलीग्राफ के इतिहास का ब्यौरा और अन्य दस्तावेजों को संभाल कर रखा गया है। पिछले सप्ताह खोजे गए दुर्लभ अभिलेखों में पोर्थकुर्नो से मुंबई (तत्कालीन बांबे) को भेजे गए पहले टेलीग्राफिक संदेशों का एक संग्रह भी मिला है। इस ऐतिहासिक दिन तक इंग्लैंड और भारत के बीच संपर्क अविश्वसनीय था और कई बार एक संदेश को भेजने में महीनों का समय लग जाता था। दस्तावेजों के अनुसार पहला संदेश 23 जून 1870 की रात को भेजा गया और उसके पांच मिनट बाद ही उसका जवाब मिला और उस क्षण की खुशी ऐतिहासिक थी। इस संदेश को ‘लंदन के मैनेजिंग डायरेक्टर और बांबे के मैनेजिंग डायरेक्टर के बीच’ ‘सद्भावना टेलीग्राम’ कहा गया। पहला संदेश एंड्रसन ने स्टेसी को भेजा जो इस प्रकार था ‘आप सब कैसे हैं’, इसका जवाब था ‘सब ठीक हैं।’ दूसरा संदेश एंड्रसन की ओर से था ‘‘मेहरबानी कर बांबे प्रेस के जेंटलमैन से कहें कि न्यूयार्क की प्रेस के जेंटलमैन को संदेश भेजे।’’ भारत के साथ सबसे पहले टेलीग्राफिक संपर्क 1864 में जमीन के उपर से यूरोप से फारस की खाड़ी होते हुए और कराची में समुद्र के नीचे केबल डालकर स्थापित किया गया था, लेकिन यह कभी भी बेहद संतोषजनक नहीं रहा । इसी के चलते समुद्र के नीचे केबल बिछाने के बारे में सोचा गया। 1869 में टेलीग्राफ के प्रणेता जान पेंडर ने ब्रिटिश इंडियन सबमैरीन टेलीग्राफ कंपनी की स्थापना की जिसे भारत के लिए समुद्र के नीचे केबल बिछाने की जिम्मेदारी सौंपी गयी।
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22-02-2012, 04:56 AM | #374 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
आस्ट्रेलिया के कॉरल सी का खाका बनाया
मेलबर्न। शोधकर्ताओं ने आस्ट्रेलिया के ‘कॉरल सी’ का खाका तैयार करने में कामयाबी पाई है जिसमें चट्टानों और पर्वतों के ब्यौरे के साथ-साथ इसके अंदर की घाटियों की भी पूरी जानकारी दी गई है। रॉबिन बीमैन की अगुवाई वाली ‘जेम्स कुक यूनिवर्सिटी’ की टीम ने एक नक्शा पेश किया है जिसके दायरे में 10 लाख वर्ग किलोमीटर के इलाके को शामिल किया गया है। इसके एक छोर पर ‘ग्रेट बैरियर रीफ मरीन पार्क’ की बाहरी सीमा है तो दूसरे छोर पर विशेष आर्थिक क्षेत्र है। इस नक्शे में पानी के भीतर की घाटियों के साथ-साथ समुद्री पहाड़ों (सीमाउंट्स) को भी दिखाया गया है जो समुद्र की सतह से कम से कम 1 हजार मीटर की ऊंचाई पर हैं । बीमैन ने कहा कि फ्रेजर नाम का एक समुद्री पहाड़ 4060 मीटर ऊंचा है जो आस्ट्रेलिया के सबसे ऊंचे पर्वत माउंट कॉस्सियुस्ज्को की दोगुनी ऊंचाई है। हैरत की बात तो यह है कि इन समद्री पहाड़ों का कोई नाम नहीं है। यदि ऐसा सूखी जमीन पर हुआ होता तो यह बड़ा असामान्य होता।
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22-02-2012, 04:57 AM | #375 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
भूकंपों और उनका कारण बनने वाले बलों के बीच संबंधों का पता लगा
वॉशिंगटन। भारतीय मूल के एक शोधकर्ता सहित कई वैज्ञानिकों ने मिलकर एक ऐसा मॉडल ईजाद किया है जिसके बारे में उनका दावा है कि इससे भूकंपों और उनका कारण बनने वाले बलों के बीच संबंधों का पता लगाया जा सकेगा । स्टोनी बू्रक यूनिवर्सिटी के ऐत्रेयी घोष और उनके सहकर्मियों का कहना है कि उनका शोध धरती के तरल-रूपी ‘मैंटल’ पर तैरने वाले प्लेटों की प्रणाली पर केंद्रित है जो भूगर्भीय समय के मानकों पर एक संवहन प्रणाली के तौर पर काम करती हैं। ये प्लेट एक- दूसरे को धक्का देती हैं और टूटकर एक-दूसरे से अलग हो जाती हैं या प्लेट सीमा क्षेत्र में डूब जाते हैं। महाद्वीपों के बीच की टक्कर से बड़ी-बड़ी पर्वत शृंखलाएं बनीं हैं और इनसे जोरदार जलजले भी आए हैं, लेकिन प्लेटों पर जोर पड़ने की वजह से इनके अंदर भूकंप भी आते हैं । टीम की अगुवाई करने वाले विलियम ई होल्ट ने कहा, प्लेटों की गति की सटीक भविष्यवाणी करना वैश्विक मॉडलों के लिए एक चुनौती रही है। इनका सटीक पूर्वानुमान प्लेटों की गति के लिए जिम्मेदार बलों को समझने के लिए बहुत जरूरी है।
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22-02-2012, 04:58 AM | #376 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
कुछ ही साल में मनुष्यों से अधिक हो जाएंगे मोबाइल उपकरण
न्यूयार्क। एक अध्ययन के अनुसार 2016 तक दुनिया में मोबाइल से जुड़े उपकरणों (डिवाइस) की संख्या मनुष्यों से अधिक जाएगी। अमेरिका की प्रमुख प्रौद्योगिकी कंपनी सिस्को सिस्टम्स ने एक अध्ययन में यह निष्कर्ष निकाला है। इस रपट में मोबाइल इंटरनेट, वीडियो, डेटा तथा स्मार्टफोन के विकास की समीक्षा की गई। इसमें अनुमान लगाया गया है कि 2016 में दुनिया में दस अरब से अधिक मोबाइल से जुड़े डिवाइस होंगे, जबकि संयुक्त राष्ट्र के अनुसार तब तक दुनिया की कुल जनसंख्या 7.3 अरब होगी। सिस्को के उपाध्यक्ष (उत्पाद) सूरज शेट्टी ने कहा कि 2016 तक मोबाइल उपभोक्ताओं का 60 प्रतिशत हिस्सा (दुनियाभर में तीन अरब लोग) गीगा बाइट क्लब में होेंगे। इस क्लब के लोग (प्रत्येक) हर महीने एक गीगाबाइट मोबाइल डेटा टैñफिक पैदा कर रहे होंगे।
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22-02-2012, 05:04 AM | #377 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
दूध में यूरिया की मिलावट जांचने की विधि को मिला पेटेंट
हिसार। दूध में यूरिया मिलाना अब आसान नहीं होगा। लाला लाजपत राय पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय हिसार को दूध में यूरिया की मिलावट का पता लगाने के लिए पेटेंट मिल गया है। विश्वविद्यालय के पशु चिकित्सा जन स्वास्थ्य विभाग के अध्यक्ष डॉ. पी. के. कपूर ने शनिवार को बताया कि उनके विभाग के वैज्ञानिक डॉ. गुलशन नारंग ने इसका पता लगाने के लिए एक बहुत आसान विधि विकसित की है। इस विधि के अनुसार दूध में यूरिया जांचने के द्रय की एक बूंद सोखता कागज पर डालने के बाद दूध की बूंद डाली जाती है। अगर दूध में यूरिया मिला हो तो दूध के चारों ओर पीले रंग का छल्ला बन जाता है। यह परीक्षण किसी भी अत्याधुनिक उपकरणों के बिना रसोई घर में एक घरेलू महिला तथा बड़ी डेयरीज द्वारा सड़क के किनारे दूध के संग्रह करने वाली जगह पर ही किया जा सकता है। यह किट विश्वविद्यालय के किसान सेवा केन्द्र एवं कृषि विज्ञान केन्द्र करनाल में उपलब्ध है। इस बीच डॉ. नारंग ने बताया कि यूरिया स्वास्थ्य के लिए बहुत खतरनाक है। गर्मियों एवं त्यौहारों के मौसम के दौरान देश के कई हिस्सों में दूध में मिलावट के कारण यह किट बहुत महत्व रखती है। इस किट के परिणामों को देखते हुए बाहर के कुछ देशों से भी इसकी उपलब्धता के विषय में जानकारी मांगी गई है।
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23-02-2012, 02:39 PM | #378 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
जानवरों की ‘गुप्त भाषा’ का राज खुला
लंदन। प्राणी जगत में उपयोग की जाने वाली ‘गुप्त भाषा’ का पता लग गया है। वैज्ञानिकों का दावा है कि संवाद के लिए कुछ प्राणी एक खास किस्म की प्रकाश का प्रयोग करते हैं। पत्रिका ‘करेंट बॉयोलॉजी’ के मुताबिक वैज्ञानिकों ने पता लगाना शुरू किया कि जानवर ‘धुव्रीकरण’ का प्रयोग संवाद के लिए कैसे करते हैं। यह प्रकाश की एक प्रकार है जो मनुष्यों को नहीं दिखता है। वैज्ञानिकों ने एक समुद्री जीव कटलफीश की प्रजाति पर अध्ययन किया कि प्राणी जगत में धुव्रीकरण को किस तरह संवाद के लिए इस्तेमाल किया जाता है और जीव विज्ञान में इन संकेतों का क्या महत्व है। ब्रिटेन के ब्रिस्टल विश्वविद्यालय और आस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के मुताबिक अध्ययन से खुलासा हुआ कि समुद्री जीव सीफालोपोडस को ‘पोलराइज्ड लाइट’ की कई सारी दिशाओं का कैसे पता होता है। स्तनपायी और कुछ अन्य समूहों में ‘पी-वीजन’ नहीं है, लेकिन प्राणी जगत के कई समूहों में यह होता है। चींटियां, मक्खी और मछली भी धु्रवीकरण का इस्तेमाल मार्ग-निर्देशन के लिए करते हैं। जिस तरह से रंग की अहमियत हमारे लिए है उसी तरह पशु भी आपस में संवाद के लिए ‘पी विजन’ का प्रयोग करते हैं।
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23-02-2012, 02:40 PM | #379 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
पहेलियां बुझाने से बच्चे होते हैं गणित में बेहतर
लंदन। अभिभावको को अपने बच्चों को पहेलियां हल करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। हो सके तो उन्हें बच्चे को रोजाना पहेलियां बुझाने के कहना चाहिए क्योंकि एक नये अध्ययन के अनुसार पहेलियां हल करने से बच्चों का गणितीय कौशल बेहतर होता है। शिकागो विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के एक दल ने अभिभावक और बच्चों की 53 जोड़ियों को अपने इस अध्ययन में शामिल किया। उन्होंने पता लगाया कि दो से चार साल के वह बच्चे जो पहेलियां से खेलते थे उनमें स्थानिक कौशल का बेहतर विकास हुआ और वह तर्क के माध्यम से गणितीय सवालों को आसानी से हल कर सकते थे। इस शोध के अंतर्गत शोधकर्ताओं ने अभिभावकों से अपने बच्चों के साथ वैसे ही बातचीत करने के लिए कहा जैसा वह आमतौर पर करते थे। अध्ययन में शामिल आधे बच्चों ने कम से कम एक बार पहेलियां हल की थीं। इसमें पाया गया कि पहेलियां सुलझाने से बच्चों में गणित, विज्ञान और तकनीकी कैशल बेहतर होता है। साथ ही यह बच्चों की समझ और ज्ञान का महत्वपूर्ण पहलू बन जाता है। शोधकर्ताओं के दल के प्रमुख सुसान लेवाइन ने कहा कि इस अध्ययन से पता चलता है कि दो से चार साल की उम्र के वह बच्चे जो पहेलियां हल करते थे, दो साल बाद उनका निरीक्षण करने पर उनमें गणित के प्रति बेहतर समझ और कौशल पाया गया।
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23-02-2012, 02:41 PM | #380 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
यदि रहना है मस्तिष्क ज्वर से दूर, तो हर बार खाने के बाद जरूर करिए ब्रश
लंदन। अभी तक हम यह समझ रहे थे कि हर बार खाने के बाद ब्रश करने से केवल सांस संबंधी बदबू, कैविटी और मसूडों संबंधी रोगों से मुक्ति मिलती है लेकिन अब नये अध्ययन में खुलासा हुआ है कि यह आदत आपको मस्तिष्क ज्वर से भी दूर रखने में मदद कर सकती है। द डेली टेलीग्राफ की खबर के मुताबिक स्विटरजलैंड के अनुसंधानकताओं को मुंह के सामान्य प्रकार के बैक्टीरिया और मस्तिष्क ज्वर के बीच संबंध नजर आया। दरअसल मस्तिष्क ज्वर मस्तिष्क और मेरूदंड को ढकने वाली भित्ति से संबद्ध बैक्टीरियाई संक्रमण है। ज्यूरिख में अनुसंधानकर्ताओं को स्टेप्टोकोकस टिगरिनस नामक नवीनतम बैक्टेरिया मस्तिष्क ज्वर के रोगियों के रक्त में मिला। उन्हें यह बैक्टेरिया स्पोंडायलोडिसिटीस के रोगियों में भी मिला। मुख्य अनुसंधानकर्ता डॉ. एंड्रिया ज्बिनदेन ने कहा कि इस बैक्टेरिया में गंभीर बीमारी पैदा करने की क्षमता लगती है। दरअसल मसूड़े से जहां से रक्त निकल रहा है, वहां से यह बैक्टेरिया रक्त में पहुंच सकता है। हालांकि उसके खास जोखिम को तय नहीं किया जा सका है।
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