21-02-2011, 02:35 AM | #1 |
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इस्लाम से आपका परिचय
सुरु करता हूँ अल्लाह के नाम से प्यारे दोस्तों इस सूत्र का मकसद आप तक इस्लाम को पहुँचाना है सूत्र को पढ़कर इस्लाम के बारे में जाने मेरा ये प्रयास होगा की आपको ज्यादा से ज्यादा बता सकूँ नोट :किसी भी प्रकार की बहस या विवाद न करें
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Last edited by Sikandar_Khan; 09-11-2011 at 06:01 PM. Reason: edit |
21-02-2011, 02:38 AM | #2 |
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Re: इस्लाम से आपका परिचय
इस्लाम का जन्म
इस्लाम का अर्थ इस्लाम अरबी शब्द है जिसकी धातु सिल्म है। सिल्म का अर्थ सुख, शांति, एवं समृद्धि है। कुरआन के अनुसार जो सुख, संपदा और संकट में समान रहते हैं, क्रोध को पी जाते हैं और जिनमें क्षमा करने की ताकत हैं, जो उपकारी है, अल्लाह उन पर रहमत रखता है।शब्दकोश में दिए अर्थ के अनुसार इस्लाम का अर्थ है - अल्लाह के सामने सिर झुकाना, मुसलमानों का धर्म। इस्लाम को अरबी में हुक्म मानना, झुक जाना, आत्म समर्पण, त्याग, एक ईश्वर को मानने वाले और आज्ञा का पालन करने वाला कहा है। इस प्रकार संक्षिप्त में हम कह सकते हैं कि विनम्रता और पवित्र ग्रंथ कुरआन में आस्था ही इस्लाम की पहचान है। वास्तव में इस्लाम अरबी भाषा का शब्द है। जिसका अर्थ है 'शांति में प्रवेश करना होता है। अत: सच्चा मुस्लिम व्यक्ति वह है जो 'परमात्मा और मनुष्य के साथ पूर्ण शांति का सम्बंध रखता हो। अत: इस्लाम शब्द का लाक्षणिक अर्थ होगा वह धर्म जिसके द्वारा मनुष्य भगवान की शरण लेता है तथा मनुष्यों के प्रति अङ्क्षहसा एवं प्रेम का बर्ताव करता है। इस्लाम धर्म का उद्भव और विकास इस्लाम धर्म के प्रर्वतक हजरत मुहम्मद साहब थे। इनका जन्म अरब देश के मक्का शहर में सन् 570 ई. में हुआ था। जब हजरत मुहम्मद अरब में इस्लाम का प्रचार कर रहे थे उन दिनों भारत में हर्षवर्धन और पुलकेशी का राज्य था। इस्लाम धर्म के मूल ग्रंथ कुरआन और हदीस हैं। कुरआन उस पुस्तक का नाम है जिसमें मुहम्मद साहब के पास देवदूतोँ के माध्यम से ईश्वर के द्वारा भेजे गए संदेश एकत्रित हैं। हदीश उस पुस्तक का नाम है जिसमें मुहम्मद साहब के कर्मों का उल्लेख और उपदेशों का संकलन(एकत्रित) हैं। संस्थापक मुहम्मद साहब ने इस्लाम धर्म की स्थापना किसी योजना के तहत नहीं की बल्कि इस धर्म का उन्हें इलहाम (ध्यान समाधि की अवस्था में प्राप्त हुआ) हुआ था। कुरान में उन बातों का संकलन है जो मुहम्मद साहब के मुखों से उस समय निकले जब वे अल्लाह के संपर्क में थे। यह भी मान्यता है कि भगवान कुरआन की आयतों को देवदूतों के माध्यम से मुहम्मद साहब के पास भेजते थे। इन्हीं आयतों के संकलन (इकट्ठा करना) से कुरआन तैयार हुई है। मुहम्मद साहब का आध्यात्मिक जीवनजब से मुहम्मद साहब को धर्म का इलहाम हुआ तभी से लोग उन्हें पैगम्बर, नबी और रसूल कहने लगे। पैगम्बर कहते हैं पैगाम (संदेश) ले जाने वाले को। हजरत मुहम्मद के जरिए भगवान का संदेश पृथ्वी पर पहुंचा। इसलिए वे पैगम्बर कहे जाते हैं। नबी का अर्थ है किसी उपयोगी परम ज्ञान की घोषणा को। मुहम्मद साहब ने चूंकि ऐसी घोषणा की इसलिए वे नबी हुए। तब से नबी का अर्थ वह दूत भी गया जो परमेश्वर और समझदार प्राणी के बीच आता जाता है। मुहम्मद साहब रसूल हैं, क्योंकि परमात्मा और मनुष्यों के बीच उन्होंने धर्मदूत का काम किया। इस्लाम का मूल मंत्र ला इलाह इल्लल्लाह मुहम्मदुर्रसूलल्लाह यह इस्लाम का मूल है। जिसका अर्थ है-''अल्लाह के सिवा और कोई पूज्यनीय नहीं है तथा मुहम्मद उनके रसूल है। ऐसी मान्यता हैं, कि केवल अल्लाह को मनाने से कोई आदमी पक्का मुसलमान नहीं हो जाता, उसे यह भी मानना पड़ता है कि मुहम्मद अल्लाह के नबी, रसूल और पैगम्बर हैं।
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Last edited by Sikandar_Khan; 15-03-2012 at 12:01 PM. Reason: बदलाव |
21-02-2011, 02:40 AM | #3 |
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Re: इस्लाम से आपका परिचय
इस्लाम धर्म की मान्यताएं एवं परंपराएं
कुरान ही इस्लाम धर्म का प्रमुख ग्रंथ है। कुरान में मुसलमानों के लिए कुछ नियम एवं तौर-तरीके बताए गए हैं। जिनका पालन करना सभी मुसलमानों के लिए अनिवार्य बताया गया है। कुरान हर मुसलमान के लिए पांच धार्मिक कार्य निर्धारित करता है। वे कृत्य हैं :- १. कलमा पढऩा- कलमा पढऩे का मतलब यह है कि हर मुसलमान को इस आयत को पढऩा चाहिए। अल्लाह एक है और मुहम्मद उसके रसूल है। 'ला इलाह इल्लल्लाह मुहम्मदुर्रसूलल्लाहรณ इस्लाम का ऐकेश्वरवाद (तोहीद) इसी मंत्र पर आधारित है। २. नमाज पढऩा- हर मुसलमान के लिए यह नियम है कि वह प्रतिदिन दिन में पांच बार नमाज पढ़े। इसे सलात भी कहा जाता है। ३. रोजा रखना- अर्थात् रमजान के पूरे महीनेभर केवल सूर्यास्त के बाद भोजन करना। वर्षभर में रमजान महीना इसलिए चुना गया कि इसी महीने में पहले-पहल कुरान उतारा था। ४. जकात- इस्लाम धर्म में जकात का बड़ा महत्व है। अरबी भाषा में जकात का अर्थ है- पाक होना, बढऩा, विकसित होना। अपनी वार्षिक आय का चालीसवां हिस्सा (ढाई प्रतिशत) दान में देना। ५. हज- अर्थात् तीर्थों में जाना। इस्लाम धर्म में हज (तीर्थयात्रा) के लिए अरब देश के मक्का मदीना शहर जाया जाता है ।
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Last edited by Sikandar_Khan; 10-06-2011 at 11:23 PM. |
21-02-2011, 02:42 AM | #4 |
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Re: इस्लाम से आपका परिचय
इस्लाम के रीति-रिवाज
१. जन्नत- इस्लाम धर्म जन्नत पर यकीन करने वाला धर्म है। जन्नत स्वर्ग को कहते हैं। जहां पर अल्लाह को मानने वाले, सच बोलने वाले, ईमान रखने वाले (ईमानदार) मुसलमान रहेंगे। २. जिहाद- इस्लाम धर्म में जिहाद से बड़ा महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। जिहाद का वास्तविक मतलब है किसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए अपनी जान की पूरी ताकत लगा देने वाला। जिहाद केवल लडऩा या युद्ध करना नहीं है। जिहाद का वास्तविक तात्पर्य यह है कि हर इंसान, हर घड़ी अपने उद्देश्य की प्राप्ति में पूरे दिलो-दिमाग से लगा रहे। अपनी समस्त क्षमता धन, यश, बुद्धि, वाणी व लेखनी से लगातार अपनी मंजिल को पाने की कोशिश करता रहे, अपने लक्ष्य और उद्देश्य के लिए ही पूरी तरह समर्पित हो जाए। लक्ष्य प्राप्ति तक बिना रुके जुटा रहे यही जिहाद है। ३. कुर्बानी- इस्लाम धर्म में कुर्बानी की बड़ी मान्यता है। मुस्लिम मत के अनुसार हजरत इब्राहिम की यादगार को कुर्बानी कहते हैं। हजरत इब्राहिम ने अपने बेटे इस्माइल को अल्लाह की प्रसन्नता के लिए कुर्बान करना चाहा। अल्लाह ने हजरत इब्राहीम की ये भेंट दूसरे रूप में स्वीकार की। अल्लाह ने हजरत इब्राहीम को पवित्र काबा में नियुक्त कर दिया। तब से अपनी जान के बदले जानवर की कुर्बानी करने की प्रथा बन गई। ४. आखरियत- इस्लाम धर्म में आखरियत को बहुत अधिक महत्व दिया गया है। आखरियत का आशय परलोकगामी है और परलौकिक जीवन भी है। ये बात इस्लाम की मौलिक शिक्षाओं में शामिल है। इस्लाम धर्म की मान्यता है कि वर्तमान जीवन अत्यंत सीमित एवं छोटा है।एक समय आएगा जब विश्व की व्यवस्था बिगड़ जाएगी और ईश्वर नए विश्व का निर्माण करेगा जिसके नियम कायदे वर्तमान विश्व से भिन्न होंगे। जो कि वर्तमान में अप्रत्यक्ष है। ईमान और कुफ्रइस्लाम के समग्र सिद्धांत दो भागों में बांटे जा सकते हैं। एक का नाम 'उसूल' और दूसरे का नाम 'फरु' है। कुरान सिर्फ ईमान और अमल, इन दो शब्दों को उल्लेख करता है। अब ईमान का पर्याय उसूल और अमल का फरु है। उसूल वे धार्मिक सिद्धांत है जिन्हें नबी ने बताया है। फरु उन सिद्धांतों के अनुसार आचरण करने को कहते हैं। अतएव मुहम्मद साहब के उपदेश उसूल अथवा मूल हैं और उन पर अमल करने का नाम 'फरु' अथवा शाखा है।इस्लाम धर्म की मान्यता है कि अल्लाह ही अपने में सभी को समेटे है। उसने सभी को एक समान बनाया है। न कोई छोटा है और न कोई बड़ा । इस्लाम धर्म भी अन्य धर्मों की तरह स्त्रियों को अधिकार देता है। इस्लाम धर्म की मान्यता है कि मनुष्यों की एक जाति है।
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21-02-2011, 02:44 AM | #5 |
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Re: इस्लाम से आपका परिचय
इस्लाम धर्म के उपदेश
१ अल्लाह है और वह एक है, सबसे बड़ा है। २ अल्लाह ने मनुष्यों के मार्गदर्शन को नबी भेजें। ३ मोहम्मद साहब आखिरी रसूल हंै। ४ आखरियत सत्य हंै। ५ एक दिन दुनिया मिट जाएगी। फिर खुदा दूसरी दुनिया बनाएगा। जीवन दान देगा। ६ खुदा बंदे के अच्छे बुरे कामों का बदला देगा। ७ धर्म के पाबंद लोग ही जन्नत जाएंगे। ८ धर्म न मानने वाले काफिर जहन्नुम में जाएंगे। ९ नमाज पढऩा व रोजा रखना फर्ज है। १० कुरान की बात मानना हर मुसलमान का फर्ज है। यह खुदा की किताब है। ११ किसी पर बुरी नजर न रखो, किसी पर जुल्म मत करो, बदचलनी से बचो। १२ जकात व कुर्बानी मानना हर मुस्लिम का फर्ज है। १३ अन्याय के शिकार व्यक्ति की आह को अल्लाह कभी भी अनसुना नहीं करता। १४ अल्लाह की दया काफिर व मोमिन दोनों को समान रूप। जन्नत का रास्ता इस्लाम धर्म के अनुसार हदीस कहती है कि बंदे तू मुझे छह बातों का विश्वास दिला, मैं तुझे जन्नत बख्श दुंगा। ये छ: बातें हैं: 1. सच बोलो 2. अपना वायदा पूरा करो 3. बदचलनी से बचो 4. अमानत में पूरे उतरो 5. किसी पर बुरी नजर मत डालो 6. किसी पर जुल्म न करोइन छह बातों के अतिरिक्त हदीस का यह भी कहना है कि जिसके पड़ौसी दु:खी हो वह सच्चा मुसलमान नहीं। जो स्वार्थी है, अल्लाह को नहीं मानता, वो मुसलमान नहीं।
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21-02-2011, 02:50 AM | #6 |
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Re: इस्लाम से आपका परिचय
जिहाद और कुर्बानी: क्या कहता है इस्लाम ?
इस्लाम धर्म में जिहाद को बड़ा महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। जिहाद इतना अद्भुत और कीमती शब्द है कि इसको समझने में अक्सर भूल या गलती की जाती है। जिहाद के मायने- जिहाद का वास्तविक मतलब है किसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए अपनी जान की पूरी ताकत लगा देने वाला कारनामा। जिहाद केवल लडऩा या युद्ध करना नहीं है। जिहाद का असली मतलब यह है कि हर इंसान, हर घड़ी अपने उद्देश्य की प्राप्ति में पूरे दिलो-दिमाग से लगा रहे। अपनी समस्त क्षमता धन, यश, बुद्धि, वाणी व लेखनी से लगातार अपनी मंजिल को पाने की कोशिश करता रहे। अपने लक्ष्य और उद्देश्य के लिए ही पूरी तरह समर्पित हो जाए। लक्ष्य प्राप्ति तक बिना रुके जुटा रहे यही जिहाद है। क्या है कुर्बानी -इस्लाम धर्म में कुर्बानी की बड़ी मान्यता है। मुस्लिम मत के अनुसार हजरत इब्राहिम की यादगार को कुर्बानी कहते हैं। हजरत इब्राहिम ने अपने बेटे इस्माइल को अल्लाह की प्रसन्नता के लिए कुर्बान करना चाहा। अल्लाह ने हजरत इब्राहिम को पवित्र काबा में नियुक्त कर दिया। तब से अपनी जान के बदले जानवर की कुर्बानी करने की प्रथा बन गई। कुर्बानी की प्रथा इंसान को धर्म के लिये सबकुछ बलिदान कर देने की प्रेरणा देती है।
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21-02-2011, 02:53 AM | #7 |
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Re: इस्लाम से आपका परिचय
कुरान शरीफ एवं प्रमुख त्यौहार
मुस्लिम धर्म की सर्व प्रमुख पुस्तक का नाम कुरान है इस पुस्तक में मुहम्मद साहब के पास अल्लाह द्वारा भेजे गए संदेशों का संकलन है। मान्यता है कि इसे फरिश्तों (देवदूतों) ने मुहम्मद साहब पर उतारा था। इस्लाम धर्म की ऐसी मान्यता है कि खुदा ने मुहम्मद साहब को अपना दूत मुकर्रर किया। (ऐसा कुरान में लिखा है।) अत: इस्लाम धर्म में, मुसलमान मोहम्मद साहब को पैगम्बर (अल्लाह का दूत) व कुरान को उन पर उतारी गई (अवतरित की गई) ईश्वरीय पुस्तक मानते हैं। कुरान को मुस्लिम धर्म में खुदा की किताब यानी सुंदर पुस्तक मानते हैं। मुस्लिम धर्म के प्रमुख त्यौहार रमजान का पहला दिन: रमजान मास- 1शहादत हजरत अली: रमजान मास- 21शबे कद्र: रमजान मास- 27जमेपतुल विदा: रमजान मास- 23ईदुल फितर: शव्वाल मास- 1ईदुल जुहा: जिल्काद मास-१०मोहर्रम: मोहर्रम मास- 1०चेहलम: सफर मास- २0आखरी चहारशम्बा: सफर मास -2६बारा वफात: सफर मास- १2ईद ए गौलात: रवि- उल- अव्वल मास -17पातिहाप जदुहुम: रबि- उल- अव्वल मास- 11जन्म हजरत अली: रज्जब मास-13शबे मीराज: रज्जब मास- 27
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21-02-2011, 02:57 AM | #8 |
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Re: इस्लाम से आपका परिचय
इबादत के साथ अनुशासन भी देती है नमाज
मुस्लिम समाज में खुदा की इबादत की एक खास पद्धति है जिसे नमाज कहा जाता है। नमाज पढऩे वालों पर अल्लाह मेहरबान होता है। ऐसी मान्यता है। नमाज खुदा को याद करने का तरीका है। दिनभर में 5 बार नमाज अदा की जाती है। प्रात: फजर, दोपहर में जौहर, सूरज ढलने पर असर, गोधुली बेला पर मगरिब एवं रात्रि के प्रथम पहर पर इशा की नमाज अदा की जाती है। इनके समय में ऋतुओं के हिसाब से अंग्रेजी समय से फेरबदल होता है। नमाज अदा करने से खुदा की इबादत के साथ ही शरीर को स्वस्थ रखने की क्रिया भी संपन्न हो जाती है। नमाज जिस तरह से अदा की जाती है उसको करने से शरीर के पाचन तंत्रों का विकास होता है। नेत्रों की ज्योति बढ़ती है तथा स्फूर्ति बनी रहती है। बल की वृद्धि होती है। स्वास्थ्य अच्छा हो तो मन भी प्रसन्न रहता है। यही प्रसन्नता खुदा की नियामत मानी जाती है। उसकी तरफ से गेबी मदद मिलती है।नमाजी व्यक्ति छल-कपट व अन्य अनैतिक कर्मों से दूर रहता है। वैसे नमाज हर दिन आवश्यक है परंतु शुक्रवार को यह पांचों समय पर पूरे रीति रिवाज के साथ ही जाती है। मुस्लिम समाज के स्त्री, पुरुष, बच्चे सभी बड़े सम्मान के साथ अदा करते है।
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21-02-2011, 03:01 AM | #9 |
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Re: इस्लाम से आपका परिचय
क्यों पढ़ते हैं पांच बार नमाज?
मुस्लिम समाज में इबादत को लेकर नियम काफी सख्त हैं। इबादत यानी अल्लाह से प्रार्थना में थोड़ी भी लापरवाही नहीं चलती है। दिन में पांच बार नमाज अदायगी का नियम है। कई गैर-मुस्लिम लोग आजकल की दौड़भाग भरी और आधुनिक जिंदगी में ऐसे नियमों को गैर-जरूरी समझते हंैं लेकिन यह नियम पूरी तरह वैज्ञानिक है। पांच बार नमाज के पीछे केवल धार्मिक कट्टरता का भाव नहीं है बल्कि यह तो जिंदगी में अनुशासन और स्वास्थ्य के लिए है। पांच बार नमाज के पीछे व्यक्ति में वक्त की पाबंदी लाना सबसे बड़ा उद्देश्य है। आदमी अपने रोजमर्रा के काम समय पर निपटाए ताकि पांचों वक्त की नमाज पढ़ सके। नमाज पढ़ने में दूसरा सबसे बड़ा फायदा है शारीरिक कसरत का। शरीर के सारे जोड़ों की कसरत हो जाती है। तीसरा फायदा है रात को जल्दी सोने और सुबह नमाज के लिए जल्दी उठने का, यह भी सीधा सेहत से जुड़ा हुआ है। इसलिए मुस्लिम समाज में दिन में पांच बार नमाज पढ़ने का नियम है।
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21-02-2011, 03:04 AM | #10 |
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Re: इस्लाम से आपका परिचय
पांच बार नमाज करने के कई अन्य फायदे
नमाज पांच बार करने के कई अन्य फायदे भी है। नमाज का जो समय निर्धारित किया गया है। वह पूरी तरह मनुष्य के शारीरिक, मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखते हुए किया गया है। प्रात: फजर की नमाज के लिए जल्दी उठना ही पड़ता है। जो उसको तन और मन की प्रसन्नता देता है। नमाज की क्रिया से हुआ हल्का व्यायाम स्फूर्ति देने वाला है। ऐसे मान्यता है कि इसी समय अल्लाह के भेजे हुए दो फरिश्ते उसके दोनों कंधों पर बैठ जाते हैं। जो उसके दिन भर के क्रिया कलाप पर नजर रखते हैं। दोपहर की जौहर, सूर्यास्त की असर एवं गोधुली बेला की मगरिब की नमाज का वक्त ऐसा इसलिए निर्धारित किया गया कि मनुष्य दिनभर अनुशासन में रहे। दोपहर के समय सोये नहीं एवं कोई भी अनैतिक कार्य नहीं कर पाए। दोपहर में सोने से कफ, सर्दी एवं श्वास संबंधी कई प्रकार के रोग होने की संभावना रहती है। रात्रि प्रथम पहर ईशा की नमाज का वक्त वह खुदा से दिनभर में अलग कोई, खता हुई हो तो उसकी क्षमा मांग सकता है तथा वे दोनों फरिश्ते भी कंधे से उतरकर अल्लाह के समक्ष जाकर नमाजी के दिनभर के कर्मों का वर्णन करते हैं। अल्लाह नमाजी के सत्कर्मों से उसका सिला प्रदान करते हैं। अलगे दिन सुबह जल्दी नमाज पढऩे के लिए उसको जल्दी सोना भी पड़ता है। जल्दी सोने से भी उसको तन-मन को स्वस्थ्ता मिलती है तथा शरीर को अधिक कार्य की क्षमता प्राप्त होती है।
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