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Old 28-05-2012, 10:35 PM   #601
Dark Saint Alaick
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Default Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें

‘क्लासपैड’ स्कूलों में अपना जादू दिखाने के लिए तैयार

नई दिल्ली। अब पढ़ना कक्षा की चार दीवारों के अंदर का उबाऊ काम नहीं रहेगा, बल्कि इसमें भरपूर मनोरंजन होगा और परस्पर संवाद भी होगा। शिक्षा के क्षेत्र में एक उल्लेखनीय परिवर्तन के तहत अब पढ़ाई नई पीढ़ी की कक्षाओं में तब्दील होने के लिए तैयार है और यह परिवर्तन लाने जा रहे गैजेटनुमा करिश्मे को नाम दिया गया है ‘क्लासपैड’। यह ‘क्लासपैड’ टैबलेट छात्रों को एक साथ बैठ कर पढ़ने और कागजों पर लिखने पढ़ने के बोझिल कामों से राहत दिलाएगा। इसके साथ ही यह शिक्षकों को पढ़ाने के नतीजों के विश्लेषण में भी मदद करेगा। क्लासटीचर लर्निंग सिस्टम्स (सीएलएस) के सह संस्थापक और सीईओ रोहित पांडे ने कहा कि ‘क्लासपैड’ छात्रों और शिक्षकों के बीच की दूरी कम करने के लिए तैयार किया गया है। इस दूरी की वजह से लंबे समय से शिक्षा में बाधा आ रही थी। यह एक तरीके से व्यक्तिगत तौर पर शिक्षा है, जिसमें प्रत्येक छात्र अपनी व्यक्तिगत मेधा के मुताबिक कक्षा की पढ़ाई में भाग लेगा, उसे समझेगा और अपनी प्रतिक्रिया देगा। ‘क्लासपैड’ नामक गैजेट रोहित ने ही विकसित किया है।
यह गैजेट शिक्षकों को समूह में छात्रों को पढ़ाने के परंपरागत तरीके से आगे जाने में मदद करेगा। इस गैजेट की मदद से शिक्षक व्यक्तिगत तौर पर प्रत्येक छात्र तक पहुंच कर उस पर पूरा ध्यान दे सकेंगे। ‘क्लासपैड’ की मदद से शिक्षक कक्षा में कराया जाने वाला काम छात्र तक पहुंचा सकते हैं, छात्र की सामग्री उन तक तत्काल पहुंच सकती है और वह परीक्षा भी ले सकते हैं। पांडे ने कहा कि गैजेट में ऐसा सॉफ्टवेयर है, जिसकी मदद से छात्र की सवाल हल करने की योग्यता, उसकी रचनात्मकता और भाषाई कौशल की जांच हो सकती है।
पांडे ने बताया कि ‘आकाश’ टैबलेट में जहां हार्डवेयर पर ध्यान केंद्रित किया गया है, वहीं ‘क्लासपैड’ में उसके एप्लीकेशनों पर पूरा ध्यान दिया गया है, जिसकी वजह से इसका उपयोग करना अधिक आसान है। इसकी बैटरी सात घंटे चल सकती है। इसकी प्रॉसेसिंग स्पीड 1.3 गीगाहर्ट्ज है और इसकी मेमोरी 4 गीगाबाइट की है, जिसे आठ गीगाबाइट तक विस्तारित किया जा सकता है। क्लासपैड में ‘इन बिल्ट इन्टेलिजेन्स फैसिलिटी’ भी है।
उन्होंने बताया कि तीसरी कक्षा से बारहवीं कक्षा तक के छात्र ज्यादा बेहतर पढ़ाई के लिए इस गैजेट का उपयोग कर सकते हैं। विभिन्न स्कूलों में 1,500 क्लासपैड का उपयोग कराने के बाद मिली प्रतिक्रिया से उत्साहित होकर अब सीएलएस नई दिल्ली तथा नोयडा स्थित फादर एंजल स्कूलों में करीब 4,000 क्लासपैड टैबलेट मुहैया करा रहा है। क्लासपैड के बारे में प्रतिक्रिया पूछने पर फादर एंजल स्कूल के प्राचार्य जे ऐलेरिको कारवाल्हो ने बताया कि ‘इस गैजेट की मदद से कभी भी पढ़ना और कभी भी पढ़ाना संभव हो गया है। इसकी मदद से छात्र कक्षा में पढ़ाई गई सामग्री कहीं भी ले जा सकते हैं और उसे कभी भी दोहराया जा सकता है। इसमें उनके अभिभावक भी सहभागी हो सकते हैं। गैजेट के बारे में शिक्षकों की प्रतिक्रिया पूछने पर उन्होंने कहा कि जो कुछ शिक्षक जानते हैं, उसे इस गैजेट के संदर्भ में पाठ्यरूप में परिवर्तित करने में उन्हें दिक्कत हुई, लेकिन क्लासपैड ने उनके लिए कोई विकल्प नहीं छोड़ा। आईआईटी दिल्ली के स्नातक पांडे ने कहा कि यह बिल्कुल अलग दौर है। ‘21वीं सदी के छात्रों को क्लासपैड दे कर हमने सही हाथों में प्रौद्योगिकी सौंपी है।
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Old 28-05-2012, 10:39 PM   #602
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Default Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें

पुरुषों का पेशा भी बखूबी कर रही हैं बिहार की महिलाएं

पटना। उन्नत नस्ल के लिए उपयोगी मानी जानी वाली कृत्रिम वीर्यसेचन (आर्टिफिशियल इनसेमिनेशन) या कृत्रिम गर्भाधान के क्षेत्र को अब तक पुरु षों का कार्य माना जाता था और महिलाएं इस कार्य में आगे नहीं आ पाती थीं। लेकिन अब महिलाओं ने इन वर्जनाओं को तोड़ा है और समाज ने भी शुरू में ऐतराज के बाद अब इस क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी को स्वीकार कर लिया है। सहकारिता से अपने परिवार को समृद्धि के रास्ते ले जाने वाली भोजपुर जिले के शाहाबाद की कविता सिंह कहती है कि राजपूत परिवार में जन्मने के कारण दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र में जाने, पशुओं के कृत्रिम वीर्यसेचन का प्रशिक्षण लेने पर शुरू में परिवार वालों आपत्ति थी, लेकिन इस काम से समृद्धि आने लगी तो उनका नजरिया बदल गया। क्षेत्र में महिलाओं की सोच बदली है और बेटियां भी बाहर पढ़ने लगी हैं। इसी कार्य से अपने परिवार की आर्थिक स्थिति बेहतर बनाने वाली सीता कुमारी कहती हैं कि कृत्रिम वीर्यसेचन केंद्र का बीड़ा उठाने पर समाज के लोग घृणा की दृष्टि से देखते थे। लोग कहते थे कि यह महिलाओं का नहीं पुरुषों का कार्यक्षेत्र है। अब महिलाओं ने देखा देखी इसे अपनाया है और दुग्ध उत्पादन में बढ़ोतरी हुई है। कुमारी ने कहा कि अब यह पेशा सम्मान का व्यवसाय बन गया है। बड़ी संख्या में महिला समितियां बन गई हैं और वे अधिक से अधिक रुचि ले रही हैं। लोगों की जिंदगी में समृद्धि आ रही है। बिहार के सहकारिता मंत्री रामाधार सिंह के अनुसार कपड़ा बुनाई, अचार पापड़ निर्माण, जैम जेली और सॉस, टोकरी निर्माण, मत्स्य पालन तथा पशुपालन आदि कार्य से जुड़ी महिलाएं सहकारी समितियां बनाकर सहकारिता आंदोलन से जुड़ सकती हैं। प्राथमिक कृषि साख समिति की सदस्य बनने के लिए एक हिस्से की राशि सरकार अपने हिस्से से देगी। बिहार में कुल 8463 प्राथमिक कृषि साख समितियां (पैक्स) है जिनके सदस्यों की संख्या करीब 92 लाख है। इस सदस्य संख्या का करीब 17 प्रतिशत यानी करीब 16 लाख महिलाएं हैं। इसके अलावा महिलाओं ने अलग से राज्य में 331 महिला सहकारी समितियां गठित की हैं। रामाधार सिंह कहते हैं कि ग्रामीण विकास के मूल मंत्र के रु प में सहकारिता अपना योगदान दे रहा है। राज्य सरकार ने महिला स्वयं सहायता समूह और सहकारी समितियों द्वारा उत्पादित वस्तुओं को बाजार उपलब्ध कराने के लिए राष्ट्रीय राजधानी के दिल्ली हाट के तर्ज पर बिहार में जयप्रकाश नारायण सहकारिता हाट स्थापित करने का निर्णय किया है। सिंह के अनुसार 8463 पैक्स में से 263 की अध्यक्ष महिलाएं हैं। महिलाओं ने खरीफ के मौसम में पैक्स के माध्यम से धान की खरीद में अच्छा योगदान किया है। शहरों में भी सहकारिता का वित्तीय दायरा बढ़ाने के लिए राज्य सरकार के प्रयास का उल्लेख करते हुए रामाधार बताते हैं कि उनका विभाग पटना और नालंदा में दो महिला शहरी सहकारी बैंक गठन करेगा। इसके अलावा प्रति पैक्स 100 महिला सदस्य बनाने का भी फैसला किया गया है। ये बैंक सिर्फ महिलाओं द्वारा संचालित किए जाएंगे।
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Old 28-05-2012, 10:40 PM   #603
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यह है डांट खाने के बाद जबरदस्ती मुस्कराने का राज

वाशिंगटन। आप अक्सर अपने दफ्तर में देखते होंगे कि बॉस की डांट खाने के बाद भी आपके कुछ साथी मुस्कराते रहते हैं। जानते हैं वे ऐसा क्यों करते हैं? शोधकर्ताओं का कहना है कि मुस्कराने की पीछे की सबसे बड़ी वजह अपने भीतर की परेशानी को जाहिर नहीं होने का देना का प्रयास करना है। ऐसी बनावटी हंसी को लोग परखने की भी कोशिश करते हैं और जानतें हैं तो भी यह समझ नहीं पाते कि भला क्या कहा जाए। ‘मैसाचूसट्स इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलॉजी’ के शोधकर्ता एहसन हक ने एक अध्यन में बनावटी हंसी के इर्द-गिर्द के ऐसे कई सवालों के जवाब तलाशने का प्रयास किया है। लाइव सांइस के मुताबिक हक ने कहा, ‘लोग जितना जल्दी मुस्कराते हैं, उससे वे इसका संकेत दे देते हैं कि उनकी अभिव्यक्ति का असल मतलब क्या है। अगर आप अपनी हंसी को लेकर वास्तविक नजर आना चाहते हैं तो इसका समय बहुत महत्वपूर्ण है।’ इस शोध में शामिल लोगों ने नकली खुशी का इजहार करने के लिए कहा गया। इसके बाद बनावटी हंसी और परेशानी की इस कड़ी को समझा गया।
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Old 28-05-2012, 10:43 PM   #604
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एक ही जगह अधिक समय गुजारना चाहते हैं भारतीय : सर्वेक्षण

नई दिल्ली। भारतीय यात्री या पर्यटक अब अनेक जगह की यात्रा के बजाय एक ही जगह या देश में अधिक समय बिताना चाहते हैं, जहां वे नई जगह देख सकें। एक्सपेडिया इंडिया के विपणन प्रमुख मनमीत आहलूवालिया ने कहा कि भारतीय पर्यटक अब नए गंतव्यों को खोजना चाहते हैं। अब वे मलेशिया, थाइलैंड, इंडोनेशिया, चीन, श्रीलंका जाना चाहते हैं। इसके अलावा वे दक्षिण अफ्रीका व ब्रिटेन के नए स्थलों को जाना चाहते हैं। नील्सन इंडिया आउटबोंड मोनिटर तथा पैसेफिक एशिया ट्रेवल एसोसिएशन के अध्ययन में इसकी पुष्टि की गई है। इसमें कहा गया है कि यह इस कारण भी है, क्योंकि भारत से व्यापार की बयार अब इन देशों की ओर बह रही है। उन्होंने कहा कि भारतीय यात्री अब एक यात्रा में कई जगह जाने के बजाय एक ही देश या स्थल पर समय बिताना चाहते हैं।
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Old 28-05-2012, 10:44 PM   #605
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सौर मंडल के छोर पर अनदेखा ग्रह होने के मिले सबूत

वाशिंगटन। खगोलविदों ने ऐसा सबूत खोजने का दावा किया है, जिससे इस बात को बल मिलता है कि सौर मंडल के छोर पर प्लूटो से भी आगे पृथ्वी से चार गुना बड़ा ग्रह हो सकता है। वैज्ञानिकों ने कहा कि ग्रह की पृथ्वी से दूरी इतनी अधिक है कि इसे यहां की दूरबीनों से आसानी से नहीं देखा जा सकता। वैज्ञानिकों का कहना है कि हो सकता है कि यह ग्रह बर्फीले पिंडों पर गुरुत्वीय बल डालकर अपनी ओर खींचता हो। इससे उन पिंडों की अजीबोगरीब कक्षाओं के रहस्य को समझने में मदद मिल सकती है। यह दावा रिओ डी जेनेरियो स्थित नेशनल आब्जर्वेटरी आफ ब्राजील के विख्यात खगोलविद रोडनी गोम्स की ओर से किया गया है। गोम्स ने टिंबरलाइन लाज में हाल में आयोजित अमेरिकन एस्ट्रोनॉमिकल सोसाइटी की बैठक में अपना एक कम्प्यूटर माडल पेश करके किया, जिससे दूरस्थ ग्रह के होने की बात को बल मिलता है। इस बैठक में शामिल होने वाले खगोलविद गोम्स की दलीलों से प्रभावित हुए,, लेकिन उन्होंने कहा कि काल्पनिक ग्रह की वास्तविकता को स्वीकार किए जाने से पहले और सबूतों की जरूरत होगी।
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Old 28-05-2012, 10:44 PM   #606
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अब बिना दर्द के भी लगेगा इंजेक्शन

वाशिंगटन। वैज्ञानिकों ने इंजेक्शन लगाने का एक नया तरीका खोजा है, जिससे इंजेक्शन लेते वक्त बिलकुल दर्द नहीं होगा। इस नए तरीके में दवा ध्वनि की गति से त्वचा के भीतर भेजी जाएगी और इसमें सूई का भी उपयोग नहीं होगा। मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट आॅफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) की टीम ने ‘तेज गति वाला जेट इंजेक्टर’ बनाया है। यह दवा को ध्वनि की गति से शरीर के भीतर भेजने के एक छोटे चुंबक और विद्युत प्रवाह का उपयोग करेगा। एमआईटी के मेकैनिकल इंजीनियरिंग विभाग के शोधकर्ताओं में से एक कैथरिन होगन ने बताया कि विद्युत धारा प्रवाह में आए बदलावों के कारण यह इंजेक्टर दो चरणों में काम करता है - पहले चरण में तेज गति से त्वचा के भीतर एक निश्चित गहराई तक जाना और दूसरे चरण में दवा को धीमी गति से शरीर में प्रवेश कराना, ताकि उसका अवशोषण हो सके। ‘लाइवसाइंस’ की खबर के अनुसार होगन का कहना है कि अगर आप सुई से डरते हैं और अक्सर आपको खुद इंजेक्शन लगाना पड़ता है तो यह आपके लिए काफी बेहतर विकल्प होगा।
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Old 28-05-2012, 10:50 PM   #607
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सकारात्मक रूख दीर्घायु के लिए महत्वपूर्ण: अध्ययन

वाशिंगटन। एक नए अध्ययन में दावा किया गया है कि आप जितने अधिक सकारात्मक और आशावादी होंगे, आप उतना अधिक जियेंगे। इस अध्ययन में पाया गया है कि जीवन के प्रति सकारात्मक रूख रखना दीर्घायु होने के लिए अहम है। पुराने शोध में कहा गया था कि किसी व्यक्ति की दीर्घायु के लिए विशेष जीन अहम होता है लेकिन नये अध्ययन में पाया गया कि इसके लिए व्यक्तित्व भी अहम भूमिका निभाता है। ‘एल्बर्ट आइंस्टीन कॉलेज आफ मेडिसिन’ के शोधकर्ता नीर बारजिलाई ने कहा, ‘जब मैंने सौ साल की उम्र पूरी कर चुके लोगों के साथ शोध शुरू किया तो मैंने सोचा कि हम पायेंगे कि वे इतनी उम्र तक इसलिए जिंदा रहे क्योंकि वे चिड़चिड़े थे।’ बारजिलाई के हवाले से ‘लाइवसांइस’ ने कहा, ‘लेकिन हमने इन 243 लोगों के व्यक्तित्व का आकलन किया, हमने इनमें एक गुण एक समान पाया कि उनका जीवन के प्रति सकारात्मक रूख था।’
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Old 29-05-2012, 11:09 PM   #608
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ईसा मसीह के समय में बोली जाने वाली भाषा को पुनर्जीवित करने की कोशिश

जीश। इस पवित्र भूमि के दो गांवों में रहने वाले ईसाई समुदाय को वह भाषा पढ़ाई जा रही है जो कभी सदियों पहले ईसा मसीह बोलते थे। आरमाइक पहली सदी में पश्चिम एशिया में प्रचलित भाषा थी जो बाद में विलुप्त हो गई। अब इस भाषा को पुनर्जीवित करने के प्रयास किए जा रहे हैं। करीब 2,000 साल पहले प्रचलित इस भाषा को पुनर्जीवित करने के लिए आधुनिक प्रौद्योगिकी की मदद ली जा रही है। इसके तहत स्वीडन का एक आरमाइक भाषी टेलीविजन चैनल सक्रिय है जहां आव्रजन समुदाय यह प्राचीन भाषा को जीवित रखे हुए है। फलस्तीनी गांव बेइत जाला में आरमाइक भाषियों की पुरानी पीढ़ी अपने नई पीढ़ी को आरमाइक सिखाने के लिए प्रयासरत है। बेइत जाला बेथेलेहम के समीप है। बाइबिल के न्यू टेस्टामेंट के अनुसार, ईसा मसीह का जन्म बेथेलेहम में ही हुआ था। गैलीलियन पहाड़ियों समीप स्थित, अरब इसराइली गांव जीश में ईसा मसीह रहते थे और उपदेश देते थे। जीश के स्कूलों में अब बच्चों को आरमाइक सिखाई जा रही है। ज्यादातर बच्चे मैरोनाइट ईसाई समुदाय के हैं। मैरोनाइट विशेष पूजा आरमइक में ही करते हैं लेकिन प्रार्थना कुछ ही लोगों को समझ में आती है।
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आस्ट्रेलियाई शोधकर्ताओं ने खोजा जानलेवा एलर्जी का राज

मेलबर्न। आस्ट्रेलिया में शोधकर्ताओं के एक दल ने दावा किया है कि उन्होंने मिर्गी और एड्स की बीमारी के इलाज के दौरान होने वाले जानलेवा एलर्जी के कारणों का पता लगा लिया है । मेलबर्न विश्वविद्यालय और मोनाश विश्वविद्यालय के नेतृत्व में हुए इस अनुसंधान से दवाओं के प्रति अतिसंवेदनशीलता का पता लगाया जा सकता है । इस अनुसंधान के परिणाम विज्ञान पत्रिका ‘नेचर’ में प्रकाशित हुए हैं। अनुसंधान में दिखाया गया है कि कैसे किसी उत्तक की विभिन्न प्रक्रियाएं दवाओं के प्रति एलर्जी विकसित कर लेते हैं।
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बड़े पैमाने पर विलुप्तता से उबरने के लिए धरती को लगे एक करोड़ साल

लंदन। एक नए अध्ययन में दावा किया गया है कि पृथ्वी को बड़े पैमाने पर विलुप्तता से उबरने में एक करोड़ साल लगे। करीब 25 करोड़ साल पहले हुई इस विलुप्तता ने जीवन लगभग समाप्त ही कर डाला था। वैज्ञानिकों के बीच लंबे समय से यह बहस चल रही है कि जीवन बड़ी व्यापक विलुप्तता के बाद कैसे बहाल हुआ... धीरे-धीरे या तीव्र गति से। इस आपदा के बाद केवल दस फीसदी पेड़ और पौधे ही बच पाए थे। वुहान में चाइना यूनिवर्सिटी आफ जियोसाइन्सेज और यूनिवर्सिटी आॅफ ब्रिस्टल के एक अंतर्राष्ट्रीय दल को नए प्रमाण मिले हैं, जिनसे एक करोड़ साल पहले व्यापक पैमाने पर विलुप्तता का संकट समाप्त होने और धरती के इससे उबरने के संकेत मिलते हैं। अध्ययन का ब्योरा ‘नेचर जियोसाइन्सेज’ जर्नल में प्रकाशित हुए हैं। इसमें कहा गया कि धरती को व्यापक विलुप्तता से उबरने में दो कारणों से समय लगा। पहला कारण संकट की तीव्रता और दूसरा कारण प्रतिकूल परिस्थितियों का लंबे समय तक बना रहना बताया गया है।
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