28-10-2011, 07:02 AM | #11 |
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Re: हिन्दी की श्रेष्ठ ग़ज़लें
आपसी फ़ासिले बढा़एगी । तेरे जीवन का दम्भ टूटेगा, ऐ ख़िज़ां जब बहार आएगी । मुल्क में क्या बचेगा कुछ यारों, बाड़ जब खुद ही खेत खाएगी । इन उनींदे अनाथ बच्चों को, लोरियां दे हवा सुलाएगी । अणुबमों से सज गया संसार, कैसे कुदरत इसे बचाएगी । हम हैं ’दरवेश’ हमको ये दुनिया, क्या रुलाएगी, क्या हंसाएगी । -दरवेश भारती
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु |
28-10-2011, 07:03 AM | #12 |
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Re: हिन्दी की श्रेष्ठ ग़ज़लें
खुशबुओं को जुबान मत देना।
धूप को सायबान मत देना। अपना सब कुछ तो दे दिया तुमने, अब किसी को लगान मत देना। कोई रिश्ता ज़मीन से न रहे, इतनी ऊँची उडा़न मत देना। उनके मुंसिफ़,अदालतें उनकी, देखो,सच्चा बयान मत देना। जिनके तरकश में कोई तीर नहीं, उनको साबुत कमान मत देना। -माधव कौशिक
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु |
28-10-2011, 09:06 AM | #13 | |
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Re: हिन्दी की श्रेष्ठ ग़ज़लें
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बहुत ही खूबसूरत गजल है इन हिंदी गजलोँ से रु-ब-रु कराने के लिए आपका तहेदिल से शुक्रिया |
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28-10-2011, 12:12 PM | #14 | |
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Re: हिन्दी की श्रेष्ठ ग़ज़लें
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अन्य प्रस्तुती भी अच्छी है पर मुझे ये पसंद आयी...............
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मांगो तो अपने रब से मांगो; जो दे तो रहमत और न दे तो किस्मत; लेकिन दुनिया से हरगिज़ मत माँगना; क्योंकि दे तो एहसान और न दे तो शर्मिंदगी। |
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31-10-2011, 01:53 PM | #15 |
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Re: हिन्दी की श्रेष्ठ ग़ज़लें
ये सारा जिस्म झुक कर बोझ से दुहरा हुआ होगा
मैं सजदे में नहीं था आपको धोखा हुआ होगा यहाँ तक आते-आते सूख जाती हैं कई नदियाँ मुझे मालूम है पानी कहाँ ठहरा हुआ होगा ग़ज़ब ये है कि अपनी मौत की आहट नहीं सुनते वो सब के सब परीशाँ हैं वहाँ पर क्या हुआ होगा तुम्हारे शहर में ये शोर सुन-सुन कर तो लगता है कि इंसानों के जंगल में कोई हाँका हुआ होगा कई फ़ाक़े बिता कर मर गया जो उसके बारे में वो सब कहते हैं अब, ऐसा नहीं,ऐसा हुआ होगा यहाँ तो सिर्फ़ गूँगे और बहरे लोग बसते हैं ख़ुदा जाने वहाँ पर किस तरह जलसा हुआ होगा चलो, अब यादगारों की अँधेरी कोठरी खोलें कम-अज-कम एक वो चेहरा तो पहचाना हुआ होगा - दुष्यंत कुमार
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31-10-2011, 01:54 PM | #16 |
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Re: हिन्दी की श्रेष्ठ ग़ज़लें
ज़माने भर का कोई इस क़दर अपना न हो जाए
कि अपनी ज़िंदगी ख़ुद आपको बेगाना हो जाए। सहर होगी ये शब बीतेगी और ऐसी सहर होगी कि बेहोशी हमारे होश का पैमाना हो जाए। किरन फूटी है ज़ख़्मों के लहू से : यह नया दिन है : दिलों की रोशनी के फूल हैं – नज़राना हो जाए। ग़रीबुद्दहर थे हम; उठ गए दुनिया से अच्छा है हमारे नाम से रोशन अगर वीराना हो जाए। बहुत खींचे तेरे मस्तों ने फ़ाक़े फिर भी कम खींचे रियाज़त ख़त्म होती है अगर अफ़साना हो जाए। चमन खिलता था वह खिलता था, और वह खिलना कैसा था कि जैसे हर कली से दर्द का याराना हो जाए। वह गहरे आसमानी रंग की चादर में लिपटा है कफ़न सौ ज़ख़्म फूलों में वही पर्दा न हो जाए। इधर मैं हूँ, उधर मैं हूँ, अजल तू बीच में क्या है? फ़कत एक नाम है, यह नाम भी धोका न हो जाए। वो सरमस्तों की महफ़िल में गजानन मुक्तिबोध आया सियासत ज़ाहिदों की ख़ंदए-दीवाना हो जाए - शमशेर बहादुर सिंह
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08-11-2011, 10:35 AM | #17 |
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Re: हिन्दी की श्रेष्ठ ग़ज़लें
‘अनमोल’ अपने आप से कब तक लड़ा करें
जो हो सके तो अपने भी हक़ में दुआ करें हम से ख़ता हुई है कि इंसान हैं हम भी नाराज़ अपने आप से कब तक रहा करें अपने हज़ार चेहरे हैं, सारे हैं दिलनशीं किसके वफ़ा निभाएं हम किससे जफ़ा करें नंबर मिलाया फ़ोन पर दीदार कर लिया मिलना सहल हुआ है तो अक्सर मिला करें तेरे सिवा तो अपना कोई हमज़ुबां नहीं तेरे सिवा करें भी तो किस से ग़िला करें दी है कसम उदास न रहने की तो बता जब तू न हो तो कैसे हम ये मोजिज़ा करें -रविकांत अनमोल
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08-11-2011, 10:36 AM | #18 |
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Re: हिन्दी की श्रेष्ठ ग़ज़लें
दरीचे ज़हनों के खुलने की इब्तिदा ही नहीं
जो उट्ठे हक़ की हिमायत में वो सदा ही नहीं ज़मीर शर्म से ख़ाली हैं, दिल मुहब्बत से हम इरतेक़ा जिसे कहते हैं, इरतेक़ा ही नहीं तख़य्युलात की परवाज़ कौन रोक सका परिंद जब ये उड़ा फिर कहीं रुका ही नहीं ग़म ए जहां पे नज़र की तो ये हुआ मालूम जफ़ा जो हम ने सही, वो कोई जफ़ा ही नहीं बग़ैर इल्म के ज़ुलमत कदा है ज़ह्न मेरा जो कर दे फ़िक्र को रौशन, वो इक ज़िया ही नहीं तेरी वफ़ाओं का शीराज़ा मुंतशिर हो कर बता रहा है हक़ीक़त में ये वफ़ा ही नहीं जब आया आख़री लम्हात में मसीहा वो न शिकवा कोई 'शेफ़ा' और कोई गिला ही नहीं -इस्मत ज़ैदी
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08-11-2011, 10:38 AM | #19 |
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Re: हिन्दी की श्रेष्ठ ग़ज़लें
हाथ में लेकर खड़ा है बर्फ़ की वो सिल्लियाँ
धूप की बस्ती में उसकी हैं यही उपलब्धियाँ आसमा की झोपड़ी में एक बूढ़ा माहताब पढ़ रहा होगा अँधेरे की पुरानी चिट्ठियाँ फूल ने तितली से इकदिन बात की थी प्यारकी मालियों ने नोंच दीं उस फूल की सब पत्तियाँ मैं अंगूठी भेंट में जिस शख़्स को देने गया उसके हाथों की सभी टूटी हुई थी उँगलियाँ -ज्ञानप्रकाश विवेक
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08-11-2011, 10:39 AM | #20 |
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Re: हिन्दी की श्रेष्ठ ग़ज़लें
अँधेरे चंद लोगों का अगर मक़सद नहीं होते
यहाँ के लोग अपने आप में सरहद नहीं होते न भूलो, तुमने ये ऊँचाईयाँ भी हमसे छीनी हैं हमारा क़द नहीं लेते तो आदमक़द नहीं होते फ़रेबों की कहानी है तुम्हारे मापदण्डों में वगरना हर जगह बौने कभी अंगद नहीं होते तुम्हारी यह इमारत रोक पाएगी हमें कब तक वहाँ भी तो बसेरे हैं जहाँ गुम्बद नहीं होते चले हैं घर से तो फिर धूप से भी जूझना होगा सफ़र में हर जगह सुन्दर— घने बरगद नही होते -द्विजेन्द्र 'द्विज'
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