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Old 29-11-2010, 01:34 PM   #31
YUVRAJ
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Default Re: हिन्दू धर्म - हज़ार करम ???

पाँच तत्व {क्षिति,जल,पावक,गगन, समीरा} ही इश्वर हैं। जो सृष्टि की रचना में सहायक हुये।
धर्म की बात पर आप से सहमत हूँ। इस का निर्माण प्राणियों ने समय और अपनी आवश्यकताओं के अनुरूप किया।
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Originally Posted by kuram View Post
अमित और अन्य मित्रो की पोस्ट का इन्तजार रहेगा. वैसे अमित की इस बात से में सहमत हूँ की धर्म कोई पत्थर की लकीर nahi होती है. यह समय के साथ परिवर्तन शील होता है. बस उद्देश्य की एकता होती है अच्छा उन्नत जीवन और व्यवस्था बनी रहे.
जब मनुष्य आबादी कम थी और चिकित्सा सुविधाए कम होने के कारण मृत्युदर अधिक थी तब बहु विवाह और अधिक संतानोत्पति को धर्म ने सही माना. अकाल के कारण खाने की कमी हो गयी थी तो ब्राह्मणों और ऋषियों को दो तीन जानवरों के मांस खाने के लिए धर्म में छूट मिली. धर्म मनुष्य की ही देन है और इश्वर के बारे में तो सटीक जवाब कोई नहीं दे पाया तो हम कौनसे बाग़ की मूली है
पूरी दुनिया में कितने धर्म है और देवता है हर कोई अपने धर्म को और देवता को सच्चा बताता है लेकिन जहां तक मेरा मानना है इस बारे में इंसान को विचार शील होना चाहिए. अगर कोई एक धर्म ही सच्चा होता और उसके देवता या पैगम्बर ही सच्चे होते तो बाकी धर्म्वालाम्बियो का जन्म ही नहीं होना चाहिए था.
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Old 01-12-2010, 08:31 AM   #32
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Default Re: हिन्दू धर्म - हज़ार करम ???

अमित भाई जी,
और कितना इन्तज़ार कराओगे …
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Originally Posted by amit_tiwari View Post
बंधू ................
.........................
आपके उत्तर पर कुछ देर में लिखूंगा विस्तार से |
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Old 01-12-2010, 11:48 AM   #33
amit_tiwari
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Default Re: हिन्दू धर्म - हज़ार करम ???

Sorry for interruption but I had to come Mumbai and then Goa day before yesterday so I can't answer. Will try to post late tonight or tomorrow from Delhi.

-Amit
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Old 02-12-2010, 02:13 AM   #34
amit_tiwari
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Default Re: हिन्दू धर्म - हज़ार करम ???

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Originally Posted by kuram View Post
अमित और अन्य मित्रो की पोस्ट का इन्तजार रहेगा. वैसे अमित की इस बात से में सहमत हूँ की धर्म कोई पत्थर की लकीर nahi होती है. यह समय के साथ परिवर्तन शील होता है. बस उद्देश्य की एकता होती है अच्छा उन्नत जीवन और व्यवस्था बनी रहे.
जब मनुष्य आबादी कम थी और चिकित्सा सुविधाए कम होने के कारण मृत्युदर अधिक थी तब बहु विवाह और अधिक संतानोत्पति को धर्म ने सही माना. अकाल के कारण खाने की कमी हो गयी थी तो ब्राह्मणों और ऋषियों को दो तीन जानवरों के मांस खाने के लिए धर्म में छूट मिली. धर्म मनुष्य की ही देन है और इश्वर के बारे में तो सटीक जवाब कोई नहीं दे पाया तो हम कौनसे बाग़ की मूली है
पूरी दुनिया में कितने धर्म है और देवता है हर कोई अपने धर्म को और देवता को सच्चा बताता है लेकिन जहां तक मेरा मानना है इस बारे में इंसान को विचार शील होना चाहिए. अगर कोई एक धर्म ही सच्चा होता और उसके देवता या पैगम्बर ही सच्चे होते तो बाकी धर्म्वालाम्बियो का जन्म ही नहीं होना चाहिए था.
इश्वर की परिकल्पना में मेरा पूरा विश्वास है | कोई एक शक्ति इस सारे तमाशे को चलाती है, चीटियों को भी रस्ते का पता चलना, जानवरों का भी बच्चो से प्यार करना, नवजात बच्चे का बिना किसी के सिखाये माँ के स्तन से दूध पीना! यह सब कोई शक्ति जीव में पहले से डाल देती हैं | धर्म भी अपने मूल रूप में एक पवित्र रास्ता है उस शक्ति को समझने का किन्तु उस पर इतने आडम्बरी लोग इतने आवरण चढ़ा देते हैं की उसका मूल स्वरुप ही खो जाता है |

युवराज जो आपने इश्वर की जन्म की संकल्पनाएँ बताई वो पुरानों में लिखी बातें हैं |
प्राचीन काल में लोगों के पास करने को अधिक कुछ नहीं था अतः आध्यात्म के लिए काफी समय होता था किन्तु 600BC तक व्यापार और कृषि बहुत बढ़ चुके थे | अब आध्यात्म के लिए किसी के पास समय नहीं था तो धर्म की उतनी गहन संकल्पना को समझना सबके बस की बात नहीं रह गयी थी इसलिए लम्बे समय से कहानियों के रूप में चल रही संकल्पनाओं को लिपिबद्ध किया गया | पुराण इसी समय लिखे गए | अथर्ववेड और यजुर्वेद का लेखन काल भी यही था | अथर्ववेद के इस काल के होने के कारण ही इसका पुरातात्विक महत्त्व बढ़ जाता है |
शायद कुछ लोगों को जानकार हैरानी हो कि कुछ उपनिषद पुराण और अथर्व वेद से भी पहले के हैं | मुंडकोपनिषद, जाबालोपनिषद कुछ ऐसे ग्रन्थ हैं जो अपने रचना काल में ऋग्वेद के काफी समीप हैं | एक और हैरत कि बात कि राम के बाद आने पैदा होने वाले कृष्ण का पहला उल्लेख जाबालोपनिषद में मिलता है | जाबाल ऋषि के द्वारा लिखे गए इस उपनिषद में ऋषि स्वयं बताते हैं कि उनका सबसे प्रखर शिष्य कृष्ण हैं | कृष्ण का इतना पुराना उल्लेख??? क्या महाभारत के समय इसी प्रखर शिष्य कि इमेज को पुनः चमका कर प्रयोग किया गया ??? किसे पता !!!

खैर ऋग्वेद के काल के उपनिषदों कि चर्चा चलो तो कुछ और भी याद आ गया |
ऋग्वेद में कुछ कहानियाँ दी गयी हैं, जगह जगह पर छोटी छोटी !!! इन कहानियों में वैसे कुछ मनोरंजक नहीं है किन्तु इनसे तब कि प्रथाओं और बुराइयों कि झलक मिलती है |
जैसे एक कहानी में लेखक एक व्यक्ति को धिक्कार रहा है कि कैसे उसने जुएँ में अपना सब कुछ हार दिया और उसे भविष्य में इससे बचने को कह रहा है | मतलब कि जुआं तब भी एक अभिशाप बन चूका था |
एक और कहानी में लेखक पाठकों से कहता है कि sabhi को स्त्रियों से बचना चाहिए क्यूंकि उनके ह्रदय कुत्ते और भेड़ियों के होते हैं और वे तुम्हारा सब कुछ छें कर भाग जाएँगी ( मैं यहाँ जान बुझ कर इन शब्दों को सेंसर नहीं कर रहा हूँ क्यूंकि ये ऐतिहासिक दस्तावेज़ हैं किसी सामायिक व्यक्ति के वचन नहीं ) अब ये किस सन्दर्भ में बातें कहीं है वह तो कहीं से स्पष्ट नहीं होता किन्तु मेरा अपना अनुमान है कि ये सब उन कुछ चरित्रहीन स्त्रियों के विषय में था जो देह व्यापार में संलग्न थीं | इसका आधार है महाभारत से मिलते जुलते काल का रामशरण शर्मा द्वारा किया गया अध्ययन | इसमें उन्होंने उल्लेख किया है कि कैसे स्टेडियम जैसे खुले प्रन्गद में कुछ ताकतवर स्त्रियाँ कई कई पुरुषों के साथ खुले आसमान के नीचे सम्भोग करती थीं और दर्शक उसका आनंद लेते थे |

छी छी कहने कि जरुरत नहीं है और ना ही प्रतिवाद की, ये काल हमारे काल से बहुत बहुत पहले का है | इस समय तक विवाह से पहले कौमार्य का प्रचलन नहीं हुआ है और ना ही कमर के ऊपर कपडे पहने जाते थे ( चाहे तरुण कन्या हो युवक) |

शेष आगे ...
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Old 02-12-2010, 09:40 AM   #35
Kalyan Das
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Default Re: हिन्दू धर्म - हज़ार करम ???

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Originally Posted by arvind View Post
भगवान ने इंसान को बनाया या नहीं, इसपर तो विवाद हो सकता है, परंतु इंसान ने भगवान को बनाया है, यह शत-प्रतिशत सही है।
ये बात आपने षोलाह आना सच कहा !!
__________________
"खैरात में मिली हुई ख़ुशी मुझे अच्छी नहीं लगती,
मैं अपने दुखों में भी रहता हूँ नवाबों की तरह !!"
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Old 02-12-2010, 09:49 AM   #36
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Default Re: हिन्दू धर्म - हज़ार करम ???

हिन्दू धर्म में शक्तिपीठ में पशुबलि का क्या महत्व है ??
१. अंध विश्वाश
२. कु संस्कार
३. बाबाओं , पूजकों का आत्म स्वार्थ
या कुछ और ???
क्या वो पशु माँ (देवी माँ) के संतान नहीं है ???
सुधि और ग्यानी सदस्यों से उत्तर का प्रतीक्षा कर रहें हैं !!!
__________________
"खैरात में मिली हुई ख़ुशी मुझे अच्छी नहीं लगती,
मैं अपने दुखों में भी रहता हूँ नवाबों की तरह !!"
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Old 02-12-2010, 10:43 AM   #37
amit_tiwari
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Default Re: हिन्दू धर्म - हज़ार करम ???

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Originally Posted by kalyan View Post
हिन्दू धर्म में शक्तिपीठ में पशुबलि का क्या महत्व है ??
१. अंध विश्वाश
२. कु संस्कार
३. बाबाओं , पूजकों का आत्म स्वार्थ
या कुछ और ???
क्या वो पशु माँ (देवी माँ) के संतान नहीं है ???
सुधि और ग्यानी सदस्यों से उत्तर का प्रतीक्षा कर रहें हैं !!!
अच्छा याद दिलाया बन्धु ! ये टोपिक तो छूट ही गया था |
असल में अब जो पशु बलि का स्वरुप है वो काफी कम है |
मूल धर्म प्रथा में यज्ञ का अर्थ ही बलि होता था और यज्ञ की भव्यता बलियों की संख्या से तय की जाती थी | यह पहले के लिए तो ठीक था, कमजोर और वृद्ध पशुओं को ठिकाने लगा दिया जाता था किन्तु जैसे जैसे जनसँख्या बढ़ी यज्ञों की संख्या भी बढती गयी और ब्राम्हणों ने भी होड़ में अधिक बालियाँ करानी प्रारंभ कर दी | ये वह समय था जब कृषि काफी विकसित हो चली थी और व्यापर में वृद्धि हो रही थी | दोनों में ही पशुओं की आवश्यकता होती थी किन्तु ब्रम्हां यज्ञों में एक से बढ़कर एक तंदरुस्त और सुन्दर बली पशुओं की बलि दे रहे थे | ऐसे ही समय में बुद्ध धर्म आया और बुद्ध ने समय की आवश्यकता को देखते हुए जीव हिंसा को निषेध किया | बुद्ध धर्म में हिंसा का कोई स्थान नहीं था, हर व्यक्ति बिना जाती के सामान था और सिर्फ इन्ही दो बातों ने बुद्ध धर्म को जंगल की आग से भी अधिक गति से फैलाया |
पहले ब्राम्हणों ने इसका विरोध किया किन्तु बुद्ध की मृत्यु के बाद भी जब बुद्ध धर्म का प्रसार नहीं रुका तो उन्होंने मनन करके यह समझ लिया कि क्यूँ हिन्दू धर्म से इतने लोग कट रहे हैं और इसके बाद तुरंत ही जीव हत्या निषेध, दया जैसे मूल्य स्थापित किये गए और यहाँ तक कि कुछ ग्रंथों में तो बुद्ध को विष्णु का अवतार तक बता दिया गया |
अब सामान्यतया बलि समाप्त हो चुकी हैं, कुछ मंदिरों, सम्प्रदायों में यह अभी भी चलती है किन्तु उस स्तर पर नहीं और होना भी नहीं चाहिए ये प्रथा | अगर मेरे घर में शांति या सफलता के लिए मैं किसी निरीह बेजुबान मेमने की गर्दन कटवा दूँ तो लानत है ऐसी सफलता और शांति पर |
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Old 08-12-2010, 12:14 PM   #38
kuram
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Default Re: हिन्दू धर्म - हज़ार करम ???

मनुष्य की एक फितरत समझ से परे है. धर्म के विषय में पुरानी बातो को ज्यादा सही माना जाता है. जबकि नयी बातो का विरोध. जितने भी अवतार या ऋषि हुए सबका अपने जमाने में विरोद्ध हुआ. फिर चाहे वह बुद्ध हो या साईं बाबा. कृष्ण का भी समकालीन लोगो ने विरोद्ध किया था. और आज विरोद्धी नगण्य है. ऐसा क्यों ??? क्या सिर्फ पुराने काल के लोग ही धर्म के विषय में सच्चे होते है ?
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Old 10-12-2010, 12:02 AM   #39
amit_tiwari
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Originally Posted by kuram View Post
मनुष्य की एक फितरत समझ से परे है. धर्म के विषय में पुरानी बातो को ज्यादा सही माना जाता है. जबकि नयी बातो का विरोध. जितने भी अवतार या ऋषि हुए सबका अपने जमाने में विरोद्ध हुआ. फिर चाहे वह बुद्ध हो या साईं बाबा. कृष्ण का भी समकालीन लोगो ने विरोद्ध किया था. और आज विरोद्धी नगण्य है. ऐसा क्यों ??? क्या सिर्फ पुराने काल के लोग ही धर्म के विषय में सच्चे होते है ?
असल में बन्धु इसी जाले को हटाने के लिए यह सूत्र बनाया था |
मैं यही कहना चाहता हूँ कि ये भी व्यक्ति थे या व्यक्ति के आविष्कार थे फिर आज हम इन्हें क्यूँ एक पत्थर कि लकीर मान रहे हैं |
उदाहरण के लिए बुद्ध : मेरे विचार से दुनिया का पहला mba था | कितनी तीक्ष्ण बुद्धि से उन्होंने देखा कि समाज में दो समस्याएं हैं १) नीची जाती वाले अपनी सामाजिक स्थिति से दुखी हैं, २) उपयोगी पशुओं की हानि यज्ञों में हो रही है और नतीजा निकला बुद्ध धर्म | अन्यथा तत्कालीन हिन्दू और बौद्ध धर्म में क्या असमानता है | और हिन्दू धार्मिक लोगों कि बुद्धिमत्ता देखिये कि उन्होंने गलती का पता चलते ही उसे सुधार लिया किन्तु आज यदि कोई गलती निकाले तो वो धर्म विरोधी, नास्तिक और ना जाने क्या क्या !!!
साईं बाबा का भी वही हाल है, एक ऐसा सीधा सरल प्राणी जिसने एक अति साधारण भाषा में सिर्फ इतना कहा कि राम रहीम एक है, घी का दिया ना मिले तो तेल का ही दिया जला दो भगवान् भावना से खुश हो जायेंगे | आज देखिये उसी के मंदिर बना दिए ! मेरे विचार से उस व्यक्ति का इससे बड़ा अपमान क्या होगा कि जिस आडम्बर का उसने जीवन भर तिरस्कार सहते हुए विरोध किया उसे उसी का हिस्सा बना दिया |
फिर भी खुद को धार्मिक कहते हैं |
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Old 10-12-2010, 12:08 PM   #40
kuram
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Default Re: हिन्दू धर्म - हज़ार करम ???

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Originally Posted by amit_tiwari View Post
असल में बन्धु इसी जाले को हटाने के लिए यह सूत्र बनाया था |
मैं यही कहना चाहता हूँ कि ये भी व्यक्ति थे या व्यक्ति के आविष्कार थे फिर आज हम इन्हें क्यूँ एक पत्थर कि लकीर मान रहे हैं |
उदाहरण के लिए बुद्ध : मेरे विचार से दुनिया का पहला mba था | कितनी तीक्ष्ण बुद्धि से उन्होंने देखा कि समाज में दो समस्याएं हैं १) नीची जाती वाले अपनी सामाजिक स्थिति से दुखी हैं, २) उपयोगी पशुओं की हानि यज्ञों में हो रही है और नतीजा निकला बुद्ध धर्म | अन्यथा तत्कालीन हिन्दू और बौद्ध धर्म में क्या असमानता है | और हिन्दू धार्मिक लोगों कि बुद्धिमत्ता देखिये कि उन्होंने गलती का पता चलते ही उसे सुधार लिया किन्तु आज यदि कोई गलती निकाले तो वो धर्म विरोधी, नास्तिक और ना जाने क्या क्या !!!
साईं बाबा का भी वही हाल है, एक ऐसा सीधा सरल प्राणी जिसने एक अति साधारण भाषा में सिर्फ इतना कहा कि राम रहीम एक है, घी का दिया ना मिले तो तेल का ही दिया जला दो भगवान् भावना से खुश हो जायेंगे | आज देखिये उसी के मंदिर बना दिए ! मेरे विचार से उस व्यक्ति का इससे बड़ा अपमान क्या होगा कि जिस आडम्बर का उसने जीवन भर तिरस्कार सहते हुए विरोध किया उसे उसी का हिस्सा बना दिया |
फिर भी खुद को धार्मिक कहते हैं |
गीता पढ़ते पढ़ते कृष्ण की एक बात आगे आयी - "धर्म क्या है और अधर्म क्या है इस विषय में पंडित लोग भी भ्रमित हो जाते है तो मनुष्य को चाहिए की सोच विचारकर धर्म और अधर्म का निर्णय करे" अब इससे आगे बेचारा क्या कहेगा. लेकिन हंसी तो तब आयी जब अध्याय ख़त्म होते ही उस अध्याय के पीछे उसका महात्म्य था जिसमे एक तोते को विष्णु भगवान् के दूतो ने यमदूतो से खाली इसलिए छीन लिया क्योंकि उसने सात आठ बार एक ऋषि के आश्रम में यह अध्याय सुना था. और तोते को वैकुण्ठ मिल गया.
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