06-01-2013, 05:26 AM | #31 |
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Re: बचपन :हमेशा याद आने बाले दिन
माखन चोर
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मैं क़तरा होकर भी तूफां से जंग लेता हूं ! मेरा बचना समंदर की जिम्मेदारी है !! दुआ करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मत ! यह एक चिराग कई आंधियों पर भारी है !! |
06-01-2013, 05:27 AM | #32 |
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Re: बचपन :हमेशा याद आने बाले दिन
छत्रपति शिवाजी
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06-01-2013, 05:29 AM | #33 |
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Re: बचपन :हमेशा याद आने बाले दिन
शकुंतला
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06-01-2013, 05:33 AM | #34 |
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Re: बचपन :हमेशा याद आने बाले दिन
टीचर जी
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10-01-2013, 06:49 PM | #35 |
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Re: बचपन :हमेशा याद आने बाले दिन
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10-01-2013, 06:49 PM | #36 |
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Re: बचपन :हमेशा याद आने बाले दिन
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11-01-2013, 05:43 PM | #37 |
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Re: बचपन :हमेशा याद आने बाले दिन
तुम भूल गए हो
याद हे मुझे आज भी अब कोन लंगड़ी टांग और कोन आईस - पाईस खेलता हे हो गये हैं बच्चे जरूरत से ज्यादा बड़े और बड़े थे जो वो बूढ़े बनकर दुनिया की भीड़ में सारे खो गये चोर सिपाही खेलना भूल गये हैं अब सब सिपाही थे जो मेरे पास कर ली उन्होंने आज चोरों के साथ संधि और जो चोर थे पहले से ही आज वो अंतर्राष्टीय मंचो पे नजर सारे आने लगे हैं चढ़ गये चश्मे बचपन में ही हमारी आँखों में किताबों में थे जो कार्टून वो बच्चों के चेहरे पे सारे नजर आने लगे हैं अँधेरी रातों में टूटते तारों को गिनना भूल अब नेट की चांदनी में बच्चे नहाने लगे हैं याद हे मुझे आज भी बचपन में खाते थे जो कोयला और मिटटी मुहं में डालते ही मां कितना मारती थी हमको छोड़ दही और मक्खन अब तो बड़े भी हमारे कोयला खाने लगे हैं कोयले से दांत मांज-मांज कर कितना चमकाते थे हम आ गये हैं अब बुरे दिन कितने जो दांत कोयले से मांजते थे हम वो चेहरे पे अब लगाने लगे हैं याद हे मुझे आज भी वो बारिश की पहली बूंद की वो सोंधी सी खुशबु जो महकती हुई मेरी सांसो में समा जाती थी आज वो तारकोल की चिकनी सी सडक पर गिरते ही बेहोश हुए जाती हे किसी नदी पोखर की जो बढ़ाती थी शोभा अब वो किसी गंदे नाले में डूबकर मर जाती हे यहाँ पर याद हे मुझे आज भी बारिशों में कागजों की किश्तियाँ कितनी चलाई थी मैंने आज बारिशें खो गई हैं कहां पर किश्तियाँ बिना पानी के उनकी आज सडकों पे चलने लगी हैं मूछें मरोड़ें तो मरोड़ें कैसे उनकी सुबह सवेरे उठते उठते ही वो श्मशान भेजी जाने लगी हैं याद हे मुझे आज भी रबर बैंडों में हवाई जहाजों को बांधकर उड़ाते थे कितना ऊँचा रबर बैंड तो एक दुसरे से गांठों में बंधे हाथों में झूलते रह गये सारे के सारे बिना रबर बैंडो के वो हवाई जहाज सारे अब तो कांडा जैसे लोग उड़ने लगे हैं याद हे मुझे आज भी जब दोड़ते थे सडकों पे सोने चांदी के सिक्के अब भागते हैं हम पेपरों के पीछे जो हम रोज फाड़ते थे याद हे मुझे आज भी वो पहला प्यार अपना जब दूर छत पे खड़े तुमने नजरों से दिया था अपना पहला चुम्बन और मैंने अपनी नजरों से मत पूछो मुझसे तुम्हें कहां कहां चूमा था आज वहशी हो गये हैं चुम्बन सारे प्यार व्यार कह�����ं कोन अब किससे करता हे खेलकर जज्बातों से मेरे यहाँ हर आदमी रोज चलता हे याद हे मुझे आज भी टूटी हुई साइकिलों पर रेस लगाते थे कितनी लम्बी अब तो गाड़ियों के शहर में सडकों को हम ढुंढ तें हैं कितना रस था गीतों में पहले आज वो सब नग्न धूमते हैं आज बदबू सी आती हे उनमे से हम जब उन्हें देखतें हैं फर्क सिर्फ आज इतना हे तुम आज के चमकीलें तारों को अपने पास जोड़ते हो मैं कल के टूटे हुए तारों को अपने पास जोड़ता हूँ दो पीढ़ियों के बीच जो टूट गया हे पुल मैं उस पुल की टूटी हुई रस्सियों में आस की गांठे बांधता हूँ ये लाइने लिखने का बस मकसद हे इतना याद करो थोडा मुड़कर देखो पीछे क्या छोड़ आये तुम पीछे हाथों में तुम्हारे हे जो आज वो कभी न तुम्हारा होगा हंसेगी तुम्हारी ही जिन्दगी तुम पर यह चुटकला ऐसा होगा जिसपे कोई ना हंसने वाला होगा
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11-01-2013, 05:51 PM | #38 |
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Re: बचपन :हमेशा याद आने बाले दिन
बचपन की मासूमियत बड़े होते - होते ना जाने कहाँ खो गयी
किश्ती भी वही पानी भी वही बारिशें ना जाने कहाँ सो गई .
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11-01-2013, 05:55 PM | #39 |
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Re: बचपन :हमेशा याद आने बाले दिन
“बचपन का भी क्या ज़माना था
हँसता मुस्कुराता खुशियो का खज़ाना था खबर न थी सुबह की न शाम का ठिकाना था दादा दादी की कहानी थी परियो का फ़साना था गम की कोई जुबान न थी सिर्फ हसने का बहाना था, अब रही न वो जिन्दगी जैसे बचपन का जमाना था ”
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11-01-2013, 06:26 PM | #40 |
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Re: बचपन :हमेशा याद आने बाले दिन
बिंदु जी आपने तो इस द्वारा मुझे फिर से में भेज दिया, आपको इस सूत्र के लिए धन्यवाद
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With the new day comes new strength and new thoughts.
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