26-07-2014, 11:48 PM | #71 |
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Re: प्राचीन सूफ़ी संत और उनका मानव प्रेम
मिर्जा कोकलताश के वालिद अतगा खान का मकबरा भी दरगाह के नजदीक ही है। अतगा खान की बीवी जीजी अंगा ने अकबर को बचपन में अपना दूध पिलाया था और वह बादशाह के करीबी लोगों में थे। बादशाह अकबर की एक और दाई मां महम अंगा (महामंगा ? - एडीटर) के बेटे आदम खान ने 1562 में अतगा खान की हत्या कर दी। इसके बाद बादशाह अकबर के हुक्म पर आदम खान को आगरे के किले से नीचे फेंक कर मार डाला गया था। लाल बलुआ पत्थर से बने अतगा खान के मकबरे को मिर्जा कोकलताश ने 1566-67 में बनवाया था। इस मकबरे के मामार उस्ताद खुदा कुली थे और इसकी बाहरी दीवारों में लगी संगमरमर की पट्टियों पर बुखारा के मशहूर कातिब बाकी मोहम्मद ने कुरान की आयतें उकेरी थीं। मकबरे के बाजू में उसी जमाने का एक छोटा सा मदरसा भी बना हुआ है। देस बिदेस में ढूंढ फिरी हूं ऐसो रंग और नहीं पायो निजाम मोहे तोरा रंग मन भायो ... (आलेख आभार: सुविधा कुमरा)
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25-08-2014, 01:19 PM | #72 |
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Re: प्राचीन सूफ़ी संत और उनका मानव प्रेम
मौलाना रूमी की शिक्षाप्रद कथायें
चुड़ैल का जादू एक राजा था। उसके एक नौजवान लड़का था। लड़का बड़ा सुंदर था। राज ने एक दिन स्वप्न में देखा कि लड़का मर गया। इकलौता बेटा, फिर सुन्दर और होनहार। राजा खूब रोया और सिर धुनने लगा। इतने में उसकी निद्रा भंग हो गयी। जागा तो सब भ्रम था। लड़का बड़े आनंद में था। पुत्र के जन्म पर जो खुशी हुई थी, अब उसके मरकर जीने पर उससे अधिक खुशी हुई। जब राज-ज्योतिषियों को यह हाल मालूम हुआ तो वे दौड़े आये कहने लगे कि यह स्वप्न विवाह का सूचक है। अब जल्द राजकुमार का विवाह हो जाना चाहिए। राजा एक साधु से परिचित थे, जो अपनी तपस्या और विद्या के कारण विख्यात था। साधु एक बड़ी सुन्दर लड़की थी। उसीसे राजा ने राजकुमार का विवाह करने का निश्चय किया। साधु के पास सन्देश भेजा। साधु बड़ा खुश हुआ और विवाह के लिए राजी हो गया। राजा के लड़के और साधु की लड़की का विवाह हो गया। जब रानी को यह हाल मालूम हुआ कि पुत्र-वधू एक साधारण साधु की लड़की है, तो उसे बड़ा क्रोध आया। राजा से बोली, "तुमने अपनी प्रतिष्ठा का कुछ भी ख्याल न किया। राजा होकर साधु से रिश्ता जोड़ लिया!" राजा ने रानी की बात सुनी तो कहने लगा, "तू उसको साधु न समझ, वह तो राजा है। जिसने अपनी इच्छाओं को वश में कर लिया वही राजा है। इन्द्रियों के दास को कौन बुद्धिमान मनुष्य राजा कह सकता है? बस, अब चिन्ता न कर मैंने राजा से रिश्ता जोड़ा है, साधु से नहीं।" इधर तो यह हुआ और उधर राजकुमार को वह साधु की लड़की, जो वास्तव में बड़ी रुपवती थी, पसन्द नहीं आयी। उसे एक दूसरी ही स्त्री पसन्द थी। वह स्त्री बिलकुल चुड़ैल थी। सब उससे नफरत करते थे। पर राजकुमार उसपर मुग्ध था। उसे इस चुड़ैल का इतना मोह हो गया था कि इसके लिए जान देने को भी तैयार था। राजा का जब यह हाल मालूम हुआ तो सन्न रह गया। बार-बार राजकुमार के सौन्दर्य और उसकी वधू के रूप की याद करके उसके भाग्य पर रोने लगा। अब राजा को यह चिन्ता हुई कि किसी तरह राजकुमार का मन अपनी विवाहित स्त्री की ओर आकर्षित हो और इस चुड़ैल से छुटकारा मिले। यत्न करने से कार्य सिद्ध होता है। राजा ने जब यत्न करने का बीड़ा उठाया तो सफलता नज़र आने लगी। राजा को एक जादूगर मिल गया। उसने कहा, "मैं अपनी विद्या से राजकुमार को चुड़ैल के चक्कर से निकाल दूंगा। आप घबराएं नहीं।" यह कहकर जादूगर राजकुमार के पास पहुंचा और उसको अपनी जादू-भरी वाणी से उपदेश करने लगा। उपदेश सुनना था कि राजकुमार के होश ठिकाने आ गये और चुड़ैल को डांटकर कहने लगा कि तूने मुझे इतने दिनों तक बहकाये रक्खा। अब मैं एक क्षण के लिए भी तेरी सूरत नहीं देखना चाहता। चुडैल तुरन्त वहां से भाग गयी। राजकुमार उसके फन्दे से निकलकर अपनी परी-जैसी पत्नी के पास आ पहुंचा। जब उसे इस देवी के दर्शन हुए तो फूला न समाया। अब व अपने को सचमुच धन्य समझने लगा। [यह दुनिया चुड़ैल के समान है, जो भोले मनुष्य को अपने जाल में फंसा कर, मक्ति-पथ से विचलित कर देती हैं परन्तु जब जादूगर की तरह कोई सच्चा ज्ञानी मिल जाता है तो मनुष्य के मन को परमात्मा की ओर लगा देता है।]
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25-08-2014, 01:21 PM | #73 |
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Re: प्राचीन सूफ़ी संत और उनका मानव प्रेम
मौलाना रूमी
बुद्धिमानों का संग एक तुर्क घोड़े पर सवार चला आ रहा था। उसने देखा कि एक सोते हुए मनुष्य के मुंह में एक सांप घुस गया। सांप को मुंह से निकालने की कोई युक्ति समझा में न आयी तो मुसाफिर सोनेवाले के मुंह घूंसे लगाने लगा। सोनेवाला गहरी नींद से एकदम उछल पड़ा। देखा, एक तुर्क तड़ातड़ घूंसे मारता जा रहा है। वह मार को सहन न कर सका और उठकर भाग खड़ा हुआ। आगे-आगे वह और पीछे-पीछे तुर्क। एक पेड़ के नीचे पहुंचे। वहां बहुत से सेव झड़े हुए पड़े थे। तुर्क कहा, "ऐ भाई! इन सेवों में से जितने खाये जायें, उतने तू खा। कमी मत करना।" तुर्कं ने उसे ज्यादा सेव खिलाये कि सब खाया-पिया उगल-उगलकर मुंह से निकालने लगा। उसने तुर्कं से चिल्लाकर कहा, "ऐ अमीर! मैंने तेरा क्या बिगाड़ा था तू मेरी जान लेने पर उतारू हो गया? अगर तू मेरे प्राणों का ही गाहक है तो तलवार के एक ही वार से मेरा जीवन समाप्त कर दे। वह भी क्या बुरी घड़ी थी जबकी मैं तुझे दिखाई दिया।" वह इसी तरह शोर मचाता और बुरा-भला कहता रहा और तुर्कं बराबर मुक्के-पर मुक्का मारता रहा। उस आदमी का सारा बदन दुखने लगा। वह थककर चूर-चूर हो गया। लेकिन वह तुर्कं दिन छिपने तक मार-पीट करता रहा, यहां तक कि पित्त के प्रकोप से उस आदमी का अब बार-बार बमन होनी शुरु हो गयी। सांप वमन के साथ बहार निकल आया। जब उसेन अपने पेट से सांप को बाहर निकलते देखा तो डर का कारण थर-थर कांपने लगा। शरीर में जो पीड़ा घूंसों की मार से उत्पन्न हो गयी थी, वह तुरन्त जाती रही। वह आदमी तुर्कं के पैरों पर गिर पड़ा और कहने लगा, "तू तो दया का अवतार है और मेरा परम हितकारी है। मैं तो मर चुका था। तूने ही मुझे नया जीवन दिया है। ऐ मेरे बादशाह, अग तू सच्चा हाल जरा भी मुझे बाता देता साथ ऐसी अशिष्टता क्यों करता है? परन्तु तूने अपनी खामोशी से मुझे हैरान कर दिया, और बिना कारण बताए बदन पर घूंसा मारने लगा। ऐ परोपकारी पुरुष! जो कुछ गलती से मेरे मुंह से निकल गया, उसके लिए मुझे क्षमा करना।" तुर्कं ने कहा, "अगर मैं इस घटना का जरा भी संकेत कर देता ता उसी समय तेरा पित्त हो जाता और डर के मारे तेरी आधी जान निकल जाती। उस समय न तुझमें इतने सेव खाने की हिम्मत होती और न उल्टी होने की नौबत आती है। इलिए मैं तो तेरे दुर्वचनों को भी सहन करता रहा। कारण बताना उचित नहीं था और तुझे छोड़ना भी मुनासिब नही था।" [बुद्धिमानों की शत्रुता भी ऐसी होती है कि उनका दिया हुआ विष भी अमृत हो जाता है। इसके विपरीत मूर्खो की मित्रता से दु:ख और पथ-भ्रष्टता प्राप्त हाती है]
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25-08-2014, 01:26 PM | #74 |
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Re: प्राचीन सूफ़ी संत और उनका मानव प्रेम
मौलाना रूमी
स्वच्छ हृदय चीनियों को अपनी चित्रकला पर घमंड था और रुमियों को अपने हुनर पर गर्व था। सुलतान ने आज्ञा दी कि मैं तुम दोनों की परीक्षा करुंगा। चीनियों ने कहा, "बहुत अच्छा, हम अपना हुनर दिखायेंगे।" रुमियों ने कहा, "हम अपना कमाल दिखायेंगे।" मतलब यह कि चीनी और रुमियों में अपनी-अपनी कला दिखाने के लिए होड़ लग गई। चीनियों ने रुमियों से कहा, "अच्छा, एक कमरा हम ले लें और एक तुम ले लो।" दो कमरे आमने-सामने थे। इनमें एक चीनियों को मिला और दूसरा रुमियों कों चीनियों ने सैकड़ों तरह के रंग मांगें बादशाह ने खजाने का दरवाज खोल दिया। चीनियों को मुंह मांगे रंग मिलने लगे। रुमियों ने कहा, "हम न तो कोई चित्र बनाएंगे और न रंग लगायेगे, बल्कि अपना हुनर इस तरह दिखायेंगे कि पिछला रंग भी बाकी न रहें।" उन्हों दरवाजे बन्द करके दीवारों को रगड़ना शुरु किया और आकाश की तरह बिल्कुल और साफ सादा घाटा कर डाला। उधर चीनी अपना काम पूरा करके खुशी के कारण उछलने लगे। बादशाह ने आकर चीनियों का काम देखा और उनकी अदभुत चित्रकारी को देखकर आश्चर्य-चकित रह गया। इसके पश्चात वह रुमियों की तरफ आया। उन्होंने अपने काम पर से पर्दा उठाया। चीनियों के चित्रों का प्रतिबिम्ब इन घुटी हुई दीवार इतनी सुन्दर मालूम हुई कि देखनेवालों कि आंखें चौंधिसयाने लगीं। [रूमियां की उपमा उन ईश्वर-भक्त सूफियों की-सी है, जिन्होंने न तो धार्मिक पुस्तकें पढ़ी और न किसी अन्य विद्या या कला में योग्यता प्राप्त की है। लेकिन लोभ, द्वेष, दुर्गुणों को दूर करके अपने हृदय को रगड़कर, इस तरह साफ कर लिया है कि उसके दिल स्वच्छ शीशें की तरह उज्जवल हो गये है।, जिनमें निराकार ईश्चरीय ज्योति का प्रतिबिम्ब स्पष्ट झलकता है।]
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25-08-2014, 03:33 PM | #75 | |||
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