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Old 11-01-2013, 03:50 PM   #71
arvind
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Default Re: सफलता की सीढ़ी।

आत्मविश्वासी लोग जोड़ने का काम करते है

कुछ लीडर की आदत होती है कि वे अपने कर्मचारियों को जोड़ने में नहीं, तोड़ने में विश्वास करते हैं. ऐसा करनेवाले अक्सर कमजोर होते हैं, जिन्हें हमेशा यह डर रहता है कि कहीं उनकी सत्ता न चली जाये.

ऐसे लोग अलग-अलग विभाग के लोगों से अलग-अलग तरीके से बात करते हैं और हर किसी के मन में एक-दूसरे के प्रति दुर्भावना भरने का काम करते हैं, ताकि बाकी लोग आपस में लड़ते रहें और वह सभी का खास बन कर राज करते रहे.

अगर आपका सामना भी किसी ऐसे बॉस से है, तो सावधान हो जायें. अपने साथ के लोगों पर भरोसा करके चलें. किसी की बात को तुरंत न मान लें, जब तक कि आपने खुद अनुभव न किया हो.

एक बार महात्मा बुद्ध पहाड़ी इलाके से गुजर रहे थे, तभी एक हत्यारे ने उन्हें घेर लिया. उसने बुद्ध को रोका और कहा कि तुम वापस लौट जाओ तो मैं तुम्हें छोड़ दूं, अन्यथा मेरी तलवार तुम्हारी गर्दन को काट देगी.

बुद्ध ने कहा, एक दिन तो यह गर्दन गिर ही जानी है, अगर तुम्हारे काम आ जाये तो मैं तैयार हूं. लेकिन इससे पहले कि तुम मेरी गर्दन काटो, एक छोटा-सा काम करके मुझ पर कृपा करते जाओ. उस हत्यारे ने पूछा, कौन-सा काम, मरते हुए आदमी की अब कौन-सी इच्छा? और उसे कौन पूरी न कर दे? बोलो क्या काम है?

बुद्ध ने कहा, यह जो सामने पेड़ है, उस पर से थोड़ी पत्तियां मुङो तोड़ दो. वह बहुत हैरान हुआ, उसने कहा, इसका क्या करोगे? बुद्ध ने कहा, तुम तोड़ो तो उसे. उस हत्यारे ने तलवार मारी और एक छोटी शाखा काट कर बुद्ध के हाथों में दे दी. बुद्ध ने कहा, इतना तुमने किया, एक छोटा-सा काम और कर दो. इसे वापस जोड़ दो. हत्यारा बोला, यह तो मुश्किल है, यह नहीं हो सकता.

तो बुद्ध ने कहा, तोड़ने का काम तो बच्च भी कर सकता था. तुम तो पुरुष हो, बहादुर हो, जोड़ने का काम करो, तोड़ने में कहां गौरव है. आओ अब तुम मेरी गर्दन काट लो. इतना सुनते ही हत्यारे ने तलवार पटक दी और बुद्ध की चरणों में गिर पड़ा.

बात पते की

- तोड़ने का काम तो बच्च भी कर सकता है. आत्मविश्वासी लोग हमेशा जोड़ने का काम करते हैं.
- किसी की भी बात तुरंत न मान लें, जब तक कि आपने खुद अनुभव न किया हो. अपने साथ के लोगों के साथ हमेशा मिल कर रहें.
- सौरभ सुमन -
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Old 11-01-2013, 03:53 PM   #72
arvind
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Default Re: सफलता की सीढ़ी।

बेहतर आउटपुट चाहिए तो बेहतर इनपुट भी दीजिए

अगर आप यह सोचते हैं कि लोगों को डांट-डपट कर आप उनसे बेहतर काम ले सकते हैं, तो आप गलत हो सकते हैं. अक्सर लीडर्स की आदत होती है कि वे अपने साथियों से उम्मीदें तो बहुत कर लेते हैं, लेकिन उन उम्मीदों को पूरा करने में जिन संसाधनों व माहौल की जरूरत होती है, वह उपलब्ध नहीं करा पाते. यह ध्यान रखें कि आपके कर्मचारी कितना और कैसा आउटपुट देंगे, यह बहुत हद तक इस बात पर निर्भर है कि आप उन्हें कितना बेहतर माहौल दे पा रहे हैं और उनकी जरूरतें किस हद तक पूरी कर पा रहे हैं.

आउटपुट एक तरफा नहीं हो सकता. जितना बेहतर इनपुट होगा, उतना ही बेहतर आउटपुट होगा. बेहतर इनपुट का मतलब केवल पैसे से नहीं है. बेहतर इनपुट मतलब आप अपने कर्मचारियों का कितना ध्यान रखते हैं. कंपनी के लिए उनका क्या महत्व है, यह अहसास एक लीडर होने के नाते आपको ही कराना है.

एक राजा शिकार का पीछा करते हुए अपने साथियों से भटक गया. उसे जोर की प्यास लगी. कुछ दूर गन्ने का एक खेत दिखा. एक किसान खेत की रखवाली कर रहा था. राजा ने किसान से पानी मांगा. किसान ने एक गन्ना तोड़ा और कोल्हू से उसका रस निकाल कर राजा को दे दिया. एक गन्ने में से इतना अधिक और मीठा रस निकलते देख राजा ने किसान से पूछा- गन्ने पर भी कर लगता है क्या?
किसान ने कहा- नहीं, हमारे राजा दयालु हैं. वे किसानों से कोई कर नहीं लेते.

कुछ देर राजा ने वहीं विश्रम किया. इस बीच राजा सोच रहा था कि एक गन्ने से इतना अधिक रस..गन्नों पर भी कर अवश्य लगाना चाहिए. चलते समय राजा ने एक बार फिर रस पीने की इच्छा प्रकट की. किसान ने फिर एक गन्ने का रस निकाला.

इस बार रस की मात्र पहले से बहुत कम थी.
राजा ने आश्चर्य से पूछा- यह क्या..पहले की अपेक्षा रस की मात्र बहुत कम है और यह इतना मीठा भी नहीं? किसान अनुभवी था, बोला- लगता है हमारे राजा की नीयत बिगड़ गयी है, तभी ऐसा हुआ है.
राजा के आचरण का प्रभाव समाज की दशा और दिशा दोनों पर पड़ता है. इसी तरह एक लीडर के आचरण का प्रभाव पूरे ऑफिस पर पड़ता है.
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Old 11-01-2013, 03:56 PM   #73
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Default Re: सफलता की सीढ़ी।

बड़ा लक्ष्य पाना है, तो पहले छोटा लक्ष्य तय करें

साधारणत : लोगों को जब जिंदगी का लक्ष्य तय करना होता है, तो वे सीधे बड़ा लक्ष्य तय करते हैं. बड़ा लक्ष्य तय करना गलत नहीं, लेकिन उस लक्ष्य तक पहुंचने के लिए पहले आपको छोटे-छोटे लक्ष्य प्राप्त करने होंगे. अगर आप इन छोटे लक्ष्यों को इग्नोर कर सीधे बड़े लक्ष्य तक पहुंचना चाहेंगे, तो पहुंचना आसान न होगा.

एक बहुत ही महात्वाकांक्षी राजा था. वह हमेशा अपने से बड़े और शक्तिशाली राजाओं के खिलाफ युद्ध कर रहा था. वह उनके मुख्य भवनों पर आक्रमण करके उन्हें जीतना चाहता था, लेकिन जीत नहीं पा रहा था.

एक बार वह युद्ध में विजय पाने की नीति बनाते हुए घूमते-घूमते दूर निकल गया. वहां उसे भूख लगी. आसपास देखने पर एक झोपड़ी दिखायी दी. राजा उस झोपड़ी में गया, झोपड़ी में एक बुढ़िया रहती थी. राजा बहुत भूखा था, अत: उसने भोजन की याचना की.

बुढ़िया ने राजा को सिपाही समझा. बुढ़िया ने उसके लिए चावल तैयार किये और पत्तल पर रख कर उसे दिया. राजा बहुत भूखा था. इसलिए उसने जल्दी-जल्दी में चावल के बीच हाथ डाल दिया. गर्म चावल के कारण उसकी उंगलियां जल उठीं. राजा ने तुरंत हाथ खींचा और उंगलियों को फूंक मारने लगा.

यह देख कर बुढ़िया जोर से हंसने लगी. उसने कहा-सिपाही तेरी शक्ल राजा से बहुत मिलती है और लगता है कि तू भी राजा की ही तरह मूर्ख भी है. बुढ़िया की बात सुन कर राजा को आश्चर्य हुआ. उसने कहा-भला राजा ने ऐसी कौन-सी मूर्खता की है, जो उन पर हंस रही है और मैंने ऐसी क्या मूर्खता की है, जो राजा से मिलती-जुलती है?

बुढ़िया ने कहा-तूने किनारे-किनारे ले कर थोड़ा-थोड़ा चावल खाने की जगह बीच के चावलों पर हाथ मारा और उंगलियां जली ली. इसलिए मैंने तुझे मूर्ख कहा. राजा भी इसी तरह की मूर्खता करता है.

वह भी दूर किनारों पर बसे छोटे-छोटे किलों पर हमला करने की जगह बड़े किलों पर हमला करता है और मात खाता है. राजा को अपनी असफलता का कारण समझ आ गया था. उसने अपनी गलती सुधारी और विजय रथ पर चल पड़ा.

बात पते की

- लक्ष्य तय करें, तो फोकस जरूर बड़े लक्ष्य की तरफ हो, लेकिन उसे पाने के लिए छोटे-छोटे लक्ष्य पहले तय करें.
- छोटे-छोटे लक्ष्यों को इग्नोर कर आप बड़ा लक्ष्य तय नहीं कर सकते.
- सौरभ सुमन -
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Old 15-01-2013, 05:23 PM   #74
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Default Re: सफलता की सीढ़ी।

न खुशी में इतराएं, न निराशा से घबराएं

शायद ही कोई ऐसा हो, जो आपसे यह कहे कि वह कभी निराश नहीं हुआ. ज्यादातर लोगों को यही लगता है कि बुरा हमेशा उन्हीं के साथ होता है. जबकि हकीकत यह है कि खुशियां और निराशा सभी के जीवन में होती हैं और ये दोनों ही स्थायी नहीं हो सकती.

आप चाहेंगे, तो भी नहीं. एक नगर में एक साधू महात्मा पधारे थे. उस नगर के राजा ने जब ये बात सुनी, तब उन्होंने साधु महात्मा को राजमहल पधारने के लिए निमंत्रण भेजा. साधू ने राजा का निमंत्रण स्वीकार किया और राजमहल गये.

राजा ने उनके स्वागत में कोई कसर नहीं छोड़ा. महात्मा जी जब वहां से जाने लगे, तब राजा ने उनसे विनती की और कहा-महात्मन कुछ सीख देते जायें. साधु-महात्मा ने उनके हाथों में दो कागज की बंद पर्ची देते हुए कहा-पहला तब खोलना, जब आप बहुत सुखी रहो और दूसरा तब खोलना जब आप पर बहुत भारी संकट या मुश्किल आन पड़े.

इतना कह कर साधू ने राजा से विदा ली. राजा का सब कुछ अच्छा चल रहा था. चारों तरफ सुख और वैभव से उसका राज्य जगमगा रहा था. बस उसे अपने उत्तराधिकारी की चिंता खाये जा रही थी. वो होता, तो उससे सुखी इंसान और भला कौन होता? कुछ महीनों बाद उसके यहां पुत्र ने जन्म लिया.

अब राजा के जीवन में बस खुशियां ही खुशियां थी. उसे उस महात्मा की बात याद आयी. उसने पहली पर्ची खोला, उसमें लिखा था-ऐसा नहीं रहेगा. कुछ ही सालों बाद राजा के नगर पर दूसरे राजा ने आक्रमण कर दिया. इस युद्ध के दौरान सारी संपित्त और शाही खजाना खर्च हो गया. राजा पर भारी संकट आ पड़ा.

तब राजा को साधू महात्मा की दी हुई दूसरी पर्ची याद आयी. उन्होंने पलभर की भी देर किये बगैर उस पर्ची को खोला. इस बार उसमें लिखा था-यह भी नहीं रहेगा. राजा समझ गये. अभी उनका बुरा वक्त चल रहा है, यह भी ज्यादा दिन तक नहीं रहेगा. खुशी और निराशा कुछ भी स्थायी नहीं होता, इसलिए सुख में इतराना नहीं चाहिए और दुख में घबराना नहीं चाहिए.

बात पते की

- यह न सोचें कि आपकी जिंदगी में निराशा ही है. ऐसा सोचने का सीधा असर आपके काम पर पड़ेगा.
- खुशी और निराशा कुछ भी स्थायी नहीं होता. इसलिए दोनों ही स्थिति में खुद को सामान्य बनाये रखें.

- सौरभ सुमन -
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Old 15-01-2013, 05:32 PM   #75
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Default Re: सफलता की सीढ़ी।

..क्योंकि शब्दों के घाव बहुत गहरे होते हैं

कुछ लोगों की आदत होती है कि वे बहुत जल्दी क्रोधित हो जाते हैं और क्रोध में सामनेवाले को कुछ भी बोल देते हैं, लेकिन थोड़ी देर बाद फिर सामान्य भी हो जाते हैं और सब कुछ नॉर्मल हुआ मानने लगते हैं. लेकिन शब्दों की टीस सामनेवाले को चुभती रहती है.

बहुत समय पहले की बात है, एक गांव में एक लड़का रहता था. वह बहुत ही गुस्सैल था. छोटी-छोटी बात पर आपा खो बैठता और लोगों को भला-बुरा कह देता. उसकी इस आदत से परेशान होकर एक दिन उसके पिता ने उसे कीलों से भरा हुआ एक थैला दिया और कहा कि अब जब भी तुम्हें गुस्सा आये, तो तुम इस थैले में से एक कील निकालना और बाड़े में ठोंक देना.

पहले दिन उस लड़के को 30 बार गुस्सा आया और इतनी ही कीलें बाड़े में ठोंक दी. पर धीरे-धीरे कीलों की संख्या घटने लगी, उसे लगने लगा कि कीलें ठोंकने में इतनी मेहनत करने से अच्छा है कि अपने क्रोध पर काबू किया जाये और अगले कुछ हफ्तों में उसने अपने गुस्से पर बहुत हद तक काबू करना सीख लिया. फिर एक दिन ऐसा आया कि उस लड़के ने पूरे दिन में एक बार भी अपना टेंपर लूज नहीं किया.

जब उसने अपने पिता को ये बात बतायी तो उन्होंने फिर उसे एक काम दे दिया. उन्होंने कहा कि अब हर उस दिन जिस दिन तुम एक बार भी गुस्सा न करो इस बाड़े से एक कील निकाल देना.

लड़के ने ऐसा ही किया और बहुत समय बाद वो दिन भी आ गया, जब लड़के ने बाड़े में लगी आखिरी कील भी निकाल दी और अपने पिता को खुशी से ये बात बतायी. तब पिताजी उसका हाथ पकड़ कर उसे बाड़े के पास ले गये और बोले, बेटे तुमने बहुत अच्छा काम किया है, लेकिन क्या तुम बाड़े में हुए छेदों को देख पा रहे हो.

अब वो बाड़ा कभी भी वैसा नहीं बन सकता, जैसा वो पहले था. जब तुम क्रोध में कुछ कहते हो तो वे शब्द भी इसी तरह सामनेवाले व्यक्ति पर गहरे घाव छोड़ जाते हैं.

इसलिए अगली बार जब क्रोध आये, तो पहले सोचिए कि क्या आप भी उस बाड़े में और कीलें ठोंकना चाहते हैं.

बात पते की

- जब भी गुस्सा आये, तो कम से कम यह जरूर कोशिश करें कि कुछ सेकेंड खुद को शांत रखें, कुछ बोलें नहीं.
- शब्दों के घाव बहुत गहरे होते हैं. इस घाव का जख्म जल्दी भरता नहीं, इसलिए शब्दों के महत्व को समझते हुए सोच-समझकर बोलें.

- सौरभ सुमन -
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