04-07-2013, 09:19 PM | #391 |
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Re: Mahfil Mitra Di !
बस हम निभाना जानते है खुदा से दुआ करते है की आपकी दोस्ती पाना चाहते है| |
04-07-2013, 09:19 PM | #392 |
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Re: Mahfil Mitra Di !
ए खुदा आज ये फ़ैसला करदे, उसे मेरा या मुझे उसका करदे.
बहुत दुख सहे हे मैने, कोई ख़ुसी अब तो मूक़दर करदे. बहुत मुश्किल लगता है उससे दूर रहना, जुदाई के सफ़र को कम करदे. जितना दूर चले गये वो मुझसे, उसे उतना करीब करदे. नही लिखा अगर नसीब मे उसका नाम, तो ख़तम कर ये ज़िंदगी और मुझे फ़ना करदे |
05-07-2013, 07:20 AM | #393 |
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Re: Mahfil Mitra Di !
रात के सन्नाटे में हमने क्या-क्या धोके खाए है
अपना ही जब दिल धड़का तो हम समझे वो आए है॥
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मैं क़तरा होकर भी तूफां से जंग लेता हूं ! मेरा बचना समंदर की जिम्मेदारी है !! दुआ करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मत ! यह एक चिराग कई आंधियों पर भारी है !! |
05-07-2013, 07:21 AM | #394 |
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Re: Mahfil Mitra Di !
सारी बस्ती में ये जादू नज़र आए मुझको
जो दरीचा भी खुले तू नज़र आए मुझको॥ .
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05-07-2013, 07:23 AM | #395 |
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Re: Mahfil Mitra Di !
रचनाकार: क़तील शिफ़ाई
जब भी चाहें एक नई सूरत बना लेते हैं लोग एक चेहरे पर कई चेहरे सजा लेते हैं लोग मिल भी लेते हैं गले से अपने मतलब के लिए आ पड़े मुश्किल तो नज़रें भी चुरा लेते हैं लोग है बजा उनकी शिकायत लेकिन इसका क्या इलाज बिजलियाँ खुद अपने गुलशन पर गिरा लेते हैं लोग हो खुशी भी उनको हासिल ये ज़रूरी तो नहीं गम छुपाने के लिए भी मुस्कुरा लेते हैं लोग ये भी देखा है कि जब आ जाये गैरत का मुकाम अपनी सूली अपने काँधे पर उठा लेते हैं लोग
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05-07-2013, 07:25 AM | #396 |
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Re: Mahfil Mitra Di !
रचनाकार: क़तील शिफ़ाई
अपने होंठों पर सजाना चाहता हूँ आ तुझे मैं गुनगुनाना चाहता हूँ कोई आँसू तेरे दामन पर गिराकर बूँद को मोती बनाना चाहता हूँ थक गया मैं करते-करते याद तुझको अब तुझे मैं याद आना चाहता हूँ छा रहा है सारी बस्ती में अँधेरा रोशनी हो, घर जलाना चाहता हूँ आख़री हिचकी तेरे ज़ानों पे आये मौत भी मैं शायराना चाहता हूँ
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मैं क़तरा होकर भी तूफां से जंग लेता हूं ! मेरा बचना समंदर की जिम्मेदारी है !! दुआ करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मत ! यह एक चिराग कई आंधियों पर भारी है !! |
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