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Old 18-04-2011, 07:49 PM   #81
chndrsekhar
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chndrsekhar is a jewel in the roughchndrsekhar is a jewel in the rough
Default Re: आधुनिक समाज में बिखरते परिवार

मित्रों आज के आधुनिक भारत मैं ये कहावत पुरे जोर से चल रही है " मियाँ बीबी और बच्चा , नींद आये अच्छा.
भारत मैं परिवार के बिखराव के कोई एक कारण नही है, बल्कि ये बहुत सारे कारणों का मिला जुला परिणाम है .
भारतीय समाज मैं भारतीय फिल्मो की समाज निर्माण ,या बदलाव मैं महतवपूर्ण भूमिका सुरु से आज तक रही है,भारतीय सिनेमा को भारत का आयेना कहा जाता है.
पहले इस आएने मैं भारतीय संस्किरिती, रीती रिवाज, घर मैं बुजुर्गो का सम्मान , भाई भाई का प्यार ,भाई बहन का प्यार , माँ के प्रति बच्चो की कर्तव निष्ठा , समाज के प्रति जिम्मेदारी इत्यादी दिखाई जाती थी.
रोमांटिक सिनेमा भी पारिवारिक पिरिस्ठ्भूमि पे आधारित रहता था. नायक नायिका को अपनी माँ ,भाभी से मिलवाता था.


मित्रों मेरी ये सोच काफी दूर तक जायेगी सेस कल ............
__________________
किसी की आलोचना मत करो. बस उसके विचारों से कुछ फायदा उठायो.हर बेकार चीज़ मैं भी एक कार छुपी है.
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Old 18-04-2011, 08:02 PM   #82
dev b
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Default Re: आधुनिक समाज में बिखरते परिवार

बिलकुल मित्र आप ने ठीक कहा ये भी एक कारण है
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Originally Posted by chndrsekhar View Post
मित्रों आज के आधुनिक भारत मैं ये कहावत पुरे जोर से चल रही है " मियाँ बीबी और बच्चा , नींद आये अच्छा.
भारत मैं परिवार के बिखराव के कोई एक कारण नही है, बल्कि ये बहुत सारे कारणों का मिला जुला परिणाम है .
भारतीय समाज मैं भारतीय फिल्मो की समाज निर्माण ,या बदलाव मैं महतवपूर्ण भूमिका सुरु से आज तक रही है,भारतीय सिनेमा को भारत का आयेना कहा जाता है.
पहले इस आएने मैं भारतीय संस्किरिती, रीती रिवाज, घर मैं बुजुर्गो का सम्मान , भाई भाई का प्यार ,भाई बहन का प्यार , माँ के प्रति बच्चो की कर्तव निष्ठा , समाज के प्रति जिम्मेदारी इत्यादी दिखाई जाती थी.
रोमांटिक सिनेमा भी पारिवारिक पिरिस्ठ्भूमि पे आधारित रहता था. नायक नायिका को अपनी माँ ,भाभी से मिलवाता था.


मित्रों मेरी ये सोच काफी दूर तक जायेगी सेस कल ............
__________________
प्यार बाटते चलो , प्यार ही जीवन है ...एन्जॉय करो ..मस्त रहो .........आप का अपना देव भारद्वाज
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Old 19-04-2011, 07:56 AM   #83
Kumar Anil
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Default Re: आधुनिक समाज में बिखरते परिवार

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Originally Posted by dev b View Post
प्रिय मित्र ..ये सूत्र तो मैंने आज कल के समाज में टूटते परिवारों के बारे में बनाया है ....हां चर्चा जरुर की है सूत्र में उस परिवार की सचाई की एक उदाहरण के रूप में ...क्रप्या आप सूत्र के मूल को देखे मित्र
देव जी ,
किस टूटते परिवार की बात कर रहे हैँ हम , पति पत्नी और एक जोड़ी बच्चे वाले परिवार की । भारतीय परिवार मेँ ऐसे कई परिवार समाहित रहते थे । भारतीय परिवार के बरगदी आकार को जब हमने अपनी निजता की चाह मेँ छाँटकर बोनसाई कर डाला , तो भला उससे छाँव की उम्मीद कैसे करेँ । उस विशाल वृक्ष की शाखाओँ को तोड़कर रोपने की क़ोशिश भला कैसे फलीभूत होगी । हम जो बोयेँगे , वही तो काटेँगे न । शाखाओँ मेँ जब जड़े नहीँ तो वे कैसे पुष्पित पल्लवित होँगी । तथाकथित स्वातन्त्रय , प्राईवेसी , निजता की कसमसाहट जब हमेँ बाप , दादाओँ , भाई बन्धुओँ से दूर रखने के लिये विवश करती है तो पति पत्नी के आपसी सम्बन्धोँ मेँ स्पेस की तलाश बेमानी नहीँ , अत्यन्त सहज है । इन परिणामोँ के लिये तो हमेँ तैयार रहना ही होगा । आधुनिकता का वरण रिश्तोँ का तो क्षरण करेगा ही । जब हम संवेदनाओँ , भावनाओँ , प्यार की तिलाँजलि अपने क्षुद्र अहं के लिये देकर एकल परिवार की नीँव डाल रहे थे तो भला कैसे भूल गये कि एक दिन हमारी भी नीँव दरकेगी और उसे मरम्मत करने वाले हमारे माँ , बाप , भाई रिश्तेदार की हैसियत से दूर विवश खड़े होँगे ।
एक बात और है जब 24 घण्टे हम एक ही रिश्ता जीते हैँ तब वस्तुतः कुछ समय उपरान्त रिश्ता ढोने लगते है क्योँकि रिश्ते हमेशा एक ताव पर नहीँ रहते परन्तु संयुक्त परिवारोँ मेँ ऐसा नहीँ होता । वहाँ हम एक साथ कई रिश्ते जीते हैँ जिसके फलस्वरूप छिद्रान्वेषी बन केवल एक ही रिश्ते की सतही मीमांसा नहीँ करते अपितु टुकड़े टुकड़े समस्त रिश्तोँ का आनन्द लेते हैँ । पति पत्नी की कलुषता को दूर करने वाले , उन्हेँ उपचारित करने वाले कई हाथ होते हैँ ।
__________________
दूसरोँ को ख़ुशी देकर अपने लिये ख़ुशी खरीद लो ।
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Old 19-04-2011, 11:17 AM   #84
Ranveer
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Default Re: आधुनिक समाज में बिखरते परिवार

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Originally Posted by kumar anil View Post
देव जी ,
किस टूटते परिवार की बात कर रहे हैँ हम , पति पत्नी और एक जोड़ी बच्चे वाले परिवार की । भारतीय परिवार मेँ ऐसे कई परिवार समाहित रहते थे । भारतीय परिवार के बरगदी आकार को जब हमने अपनी निजता की चाह मेँ छाँटकर बोनसाई कर डाला , तो भला उससे छाँव की उम्मीद कैसे करेँ । उस विशाल वृक्ष की शाखाओँ को तोड़कर रोपने की क़ोशिश भला कैसे फलीभूत होगी । हम जो बोयेँगे , वही तो काटेँगे न । शाखाओँ मेँ जब जड़े नहीँ तो वे कैसे पुष्पित पल्लवित होँगी । तथाकथित स्वातन्त्रय , प्राईवेसी , निजता की कसमसाहट जब हमेँ बाप , दादाओँ , भाई बन्धुओँ से दूर रखने के लिये विवश करती है तो पति पत्नी के आपसी सम्बन्धोँ मेँ स्पेस की तलाश बेमानी नहीँ , अत्यन्त सहज है । इन परिणामोँ के लिये तो हमेँ तैयार रहना ही होगा । आधुनिकता का वरण रिश्तोँ का तो क्षरण करेगा ही । जब हम संवेदनाओँ , भावनाओँ , प्यार की तिलाँजलि अपने क्षुद्र अहं के लिये देकर एकल परिवार की नीँव डाल रहे थे तो भला कैसे भूल गये कि एक दिन हमारी भी नीँव दरकेगी और उसे मरम्मत करने वाले हमारे माँ , बाप , भाई रिश्तेदार की हैसियत से दूर विवश खड़े होँगे ।
एक बात और है जब 24 घण्टे हम एक ही रिश्ता जीते हैँ तब वस्तुतः कुछ समय उपरान्त रिश्ता ढोने लगते है क्योँकि रिश्ते हमेशा एक ताव पर नहीँ रहते परन्तु संयुक्त परिवारोँ मेँ ऐसा नहीँ होता । वहाँ हम एक साथ कई रिश्ते जीते हैँ जिसके फलस्वरूप छिद्रान्वेषी बन केवल एक ही रिश्ते की सतही मीमांसा नहीँ करते अपितु टुकड़े टुकड़े समस्त रिश्तोँ का आनन्द लेते हैँ । पति पत्नी की कलुषता को दूर करने वाले , उन्हेँ उपचारित करने वाले कई हाथ होते हैँ ।
बहुत सुन्दर बात लिखी है आपने
एक एक वाक्य सोचने पर मजबूर करता है
__________________
ये दिल तो किसी और ही देश का परिंदा है दोस्तों ...सीने में रहता है , मगर बस में नहीं ...
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Old 19-04-2011, 06:13 PM   #85
dev b
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Default Re: आधुनिक समाज में बिखरते परिवार

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Originally Posted by kumar anil View Post
देव जी ,
किस टूटते परिवार की बात कर रहे हैँ हम , पति पत्नी और एक जोड़ी बच्चे वाले परिवार की । भारतीय परिवार मेँ ऐसे कई परिवार समाहित रहते थे । भारतीय परिवार के बरगदी आकार को जब हमने अपनी निजता की चाह मेँ छाँटकर बोनसाई कर डाला , तो भला उससे छाँव की उम्मीद कैसे करेँ । उस विशाल वृक्ष की शाखाओँ को तोड़कर रोपने की क़ोशिश भला कैसे फलीभूत होगी । हम जो बोयेँगे , वही तो काटेँगे न । शाखाओँ मेँ जब जड़े नहीँ तो वे कैसे पुष्पित पल्लवित होँगी । तथाकथित स्वातन्त्रय , प्राईवेसी , निजता की कसमसाहट जब हमेँ बाप , दादाओँ , भाई बन्धुओँ से दूर रखने के लिये विवश करती है तो पति पत्नी के आपसी सम्बन्धोँ मेँ स्पेस की तलाश बेमानी नहीँ , अत्यन्त सहज है । इन परिणामोँ के लिये तो हमेँ तैयार रहना ही होगा । आधुनिकता का वरण रिश्तोँ का तो क्षरण करेगा ही । जब हम संवेदनाओँ , भावनाओँ , प्यार की तिलाँजलि अपने क्षुद्र अहं के लिये देकर एकल परिवार की नीँव डाल रहे थे तो भला कैसे भूल गये कि एक दिन हमारी भी नीँव दरकेगी और उसे मरम्मत करने वाले हमारे माँ , बाप , भाई रिश्तेदार की हैसियत से दूर विवश खड़े होँगे ।
एक बात और है जब 24 घण्टे हम एक ही रिश्ता जीते हैँ तब वस्तुतः कुछ समय उपरान्त रिश्ता ढोने लगते है क्योँकि रिश्ते हमेशा एक ताव पर नहीँ रहते परन्तु संयुक्त परिवारोँ मेँ ऐसा नहीँ होता । वहाँ हम एक साथ कई रिश्ते जीते हैँ जिसके फलस्वरूप छिद्रान्वेषी बन केवल एक ही रिश्ते की सतही मीमांसा नहीँ करते अपितु टुकड़े टुकड़े समस्त रिश्तोँ का आनन्द लेते हैँ । पति पत्नी की कलुषता को दूर करने वाले , उन्हेँ उपचारित करने वाले कई हाथ होते हैँ ।
बिलकुल सही बात कही आप ने मित्र
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Old 19-04-2011, 06:40 PM   #86
amit_tiwari
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Originally Posted by kumar anil View Post
देव जी ,
किस टूटते परिवार की बात कर रहे हैँ हम , पति पत्नी और एक जोड़ी बच्चे वाले परिवार की । भारतीय परिवार मेँ ऐसे कई परिवार समाहित रहते थे । भारतीय परिवार के बरगदी आकार को जब हमने अपनी निजता की चाह मेँ छाँटकर बोनसाई कर डाला , तो भला उससे छाँव की उम्मीद कैसे करेँ । उस विशाल वृक्ष की शाखाओँ को तोड़कर रोपने की क़ोशिश भला कैसे फलीभूत होगी । हम जो बोयेँगे , वही तो काटेँगे न । शाखाओँ मेँ जब जड़े नहीँ तो वे कैसे पुष्पित पल्लवित होँगी । तथाकथित स्वातन्त्रय , प्राईवेसी , निजता की कसमसाहट जब हमेँ बाप , दादाओँ , भाई बन्धुओँ से दूर रखने के लिये विवश करती है तो पति पत्नी के आपसी सम्बन्धोँ मेँ स्पेस की तलाश बेमानी नहीँ , अत्यन्त सहज है । इन परिणामोँ के लिये तो हमेँ तैयार रहना ही होगा । आधुनिकता का वरण रिश्तोँ का तो क्षरण करेगा ही । जब हम संवेदनाओँ , भावनाओँ , प्यार की तिलाँजलि अपने क्षुद्र अहं के लिये देकर एकल परिवार की नीँव डाल रहे थे तो भला कैसे भूल गये कि एक दिन हमारी भी नीँव दरकेगी और उसे मरम्मत करने वाले हमारे माँ , बाप , भाई रिश्तेदार की हैसियत से दूर विवश खड़े होँगे ।
एक बात और है जब 24 घण्टे हम एक ही रिश्ता जीते हैँ तब वस्तुतः कुछ समय उपरान्त रिश्ता ढोने लगते है क्योँकि रिश्ते हमेशा एक ताव पर नहीँ रहते परन्तु संयुक्त परिवारोँ मेँ ऐसा नहीँ होता । वहाँ हम एक साथ कई रिश्ते जीते हैँ जिसके फलस्वरूप छिद्रान्वेषी बन केवल एक ही रिश्ते की सतही मीमांसा नहीँ करते अपितु टुकड़े टुकड़े समस्त रिश्तोँ का आनन्द लेते हैँ । पति पत्नी की कलुषता को दूर करने वाले , उन्हेँ उपचारित करने वाले कई हाथ होते हैँ ।
सही कहा भाई |

निजता की चाह में घर से दूर भागे पंछी जब खोच्किलों में रहते हुए ऊबने लगते हैं तब पुराने टीले की कीमत समझ आती है |
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Old 19-04-2011, 06:42 PM   #87
dev b
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सही कहा भाई |

निजता की चाह में घर से दूर भागे पंछी जब खोच्किलों में रहते हुए ऊबने लगते हैं तब पुराने टीले की कीमत समझ आती है |
बिलकुल ठीक कहा मित्र आप ने
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Old 19-04-2011, 06:49 PM   #88
dev b
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मित्रो अभी हम ने बिखरते परिवारों के बारे में चर्चा की ....बहुत से कारण है इस के ....अब सवाल ये उठाता है मित्रो की सारी समस्याओं को झेलते हुए जिंदगी में आगे बढ़ते हुए क्या सावधानी बरती जाए की परिवार टूटे ना और जिंदगी खुशहाल हो ?????????????????????????????????????????????????? ?????????????????????????????????????????????????? ????????????????????????????
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Old 20-04-2011, 11:13 AM   #89
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प्रतिक्रया नहीं आ रही मित्रो??????????
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Old 26-04-2011, 08:41 AM   #90
Kumar Anil
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Originally Posted by dev b View Post
मित्रो अभी हम ने बिखरते परिवारों के बारे में चर्चा की ....बहुत से कारण है इस के ....अब सवाल ये उठाता है मित्रो की सारी समस्याओं को झेलते हुए जिंदगी में आगे बढ़ते हुए क्या सावधानी बरती जाए की परिवार टूटे ना और जिंदगी खुशहाल हो ?????????????????????????????????????????????????? ?????????????????????????????????????????????????? ????????????????????????????
आप तो सिविल इंजीनियर हैँ । आपका कार्य तो जोड़ने का है , चाहे सेतु हो , घर हो अथवा लोगोँ को जोड़ने के लिये सड़क । दो किनारोँ को मिलाने के लिये , बीच मेँ आ रहे अवरोध को दूर करने के लिये निर्मित पुल मेँ कितनी ख़ूबसूरती से सपोर्ट देकर अपने काम को अंजाम देते हैँ । बस ऐसे ही अभियन्त्रण की आवश्यकता हमारे परिवार को है । चूँकि आपका सूत्र एकल परिवारीय व्यवस्था यानि पति पत्नी तक सीमित है तो मैँ भी उसी संदर्भ मेँ निवेदन करूँगा । क्या हो रहा है आज आधुनिक शहरी परिवार मेँ ? हम परिवार रूपी रथ के दूसरे पहिये को साथ लेकर चल नहीँ पा रहे हैँ और यहाँ नेट पर कल्पित दोस्तोँ को काँधे पर लेकर घूम रहे हैँ । अमित तिवारी जी के यूजिँग , मिसयूजिँग और एडिक्शन के मध्य कटे कनकौव्वे की तरह दिशाहीन हो गये हैँ । बीबी के नौकरी करने से हमारा आर्थिक स्तर तो ऊँचा हो रहा है पर उसका हाथ बँटाने मेँ हमारे भीतर का मर्द घायल होने लगता है । न जाने हमारी सहयोग की भावना कहाँ घास चरने चली जाती है । दोस्तोँ के साथ अंडरस्टैँडिँग बनाने मेँ हमारा कोई सानी नहीँ पर जीवनसाथी को अंडरस्टैँड करने मेँ कोई दिलचस्पी ही नहीँ । एक बात और है कि मूल्योँ के क्षरण ने भी हमेँ बिखेरने मेँ कोई कोर कसर नहीँ छोड़ी । पति पत्नी को जोड़े रखने वाले एड्हेसिव मेँ अहं के क्रिस्टल भी गड़ रहे हैँ ।
भावनाओँ का सम्मान , अहं का त्याग , समर्पण , सहयोग ही इस गठबंधन को मजबूत कर सकता है ।
__________________
दूसरोँ को ख़ुशी देकर अपने लिये ख़ुशी खरीद लो ।

Last edited by Kumar Anil; 26-04-2011 at 10:21 AM. Reason: शब्द
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