18-04-2014, 08:11 PM | #1 |
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उपन्यास: सुंदर धरती (The Good Earth)
नोबेल पुरस्कार प्राप्त लेखक पर्ल एस. बक कृत विश्वप्रसिद्ध उपन्यास और बेस्ट सैलर पुस्तक ** ** सुन्दर धरती (The Good Earth) * पुराने चीन की एक महान गाथा
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) Last edited by rajnish manga; 21-04-2014 at 12:09 PM. |
18-04-2014, 09:12 PM | #2 |
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Re: सुंदर धरती (The Good Earth)
लेखक का परिचय
** पर्ल एस. बक का जन्म हिल्सबोरो, पश्चिम वर्जीनिया में 26 जून 1892 में हुआ था. उनके माता-पिता दक्षिणी प्रेस्बिटेरियन मिशनरी थे जो अधिकतर चीन में ही रहे, अतः बचपन से पर्ल इंगलिश और चीनी भाषा बोलने लगी थी. वह 1914 में ग्रेजुएशन करने के कुछ ही देर बाद चीन लौट आयी थी, और अगले ही बरस उनकी मुलाकात जॉन लोस्सिंग बक नामक एक नौजवान कृषि अर्थशास्त्री से हुयी. 1917 में उन्होंने शादी कर ली और तुरंत ही वे ग्रामीण अन्ह्वेई राज्य के नन्ह्सुचो नामक स्थान पर रहने लगे. यहाँ पर रहने वाली गरीबों की बस्तियों में काम करते हुये पर्ल ने काफी सामग्री इकट्ठा कर ली थी जिसे वह अपनी पुस्तक ‘सुंदर धरती (The Good Earth)’में प्रयोग करने वाली थी. सन् 1920 के दशक में पर्ल की कहानियां और निबंध जानी मानी पत्रिकाओं में छपने शुरू हो गए थे जिनमें से प्रमुख थीं ‘दी नेशन’, ‘दी चायनीज रिपोर्टर’ ‘एशिया‘ ‘दी एटलांटिक मंथली’. उसका पहला नावल ‘इस्ट विंड वेस्ट विंड’ सन् 1930 में जॉन डे कम्पनी द्वारा प्रकाशित किया गया था. जॉन डे के प्रकाशक रिचर्ड वाल्श ही अंततः 1935 में पर्ल के दूसरे पति होने वाले थे. सन् 1931 में जॉन डे ने पर्ल का दूसरा उपन्यास The Good Earth अथवा ‘सुन्दर धरती’ प्रकाशित किया. यह सन् 1931 व 1932 का सबसे अधिक बिकने वाला उपन्यास था, इसे पुलित्ज़र पुरस्कार मिला तथा 1935 में होवेल मेडल भी प्राप्त हुआ और जिसके ऊपर आधारित एमजीएम की एक फिल्म भी 1937 में बनायी जाने वाली थी. उनके अन्य उपन्यास व गैर-कथात्मक पुस्तकें उसके बाद कुछ ही समय बाद आयीं. सन् 1938 में, पहली पुस्तक प्रकाशित होने के कुछ वर्ष बाद ही पर्ल बक ने साहित्य का नोबेल पुरस्कार जीता. ऐसा करने वाली वे पहली अमरीकी महिला थी. 1973 में अपनी मृत्यु के समय तक पर्ल की 70 से अधिक किताबें छप चुकीं थीं जिनमें उपन्यास, कथा साहित्य, व्यक्ति-कथा व आत्म-कथा, काव्य साहित्य, ड्रामा, बाल साहित्य एवं चीनी भाषा से अनुवादित साहित्य शामिल हैं. मृत्यु उपरांत उनके पार्थिव शरीर को ग्रीन हिल्स फार्म, बक् काउंटी, पेंसिलवेनिया में दफनाया गया.
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18-04-2014, 09:46 PM | #3 |
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Re: सुंदर धरती (The Good Earth)
पर्ल एस. बक कृत सुन्दर धरती (1) किन्तु आज सुबह उसने इंतज़ार नहीं किया. वह तपाक से उठ खड़ा हुआ और उसने अपनी चारपाई के पर्दे एक ओर सरका दिए. उसने खिड़की में बने हुये छोटे से चौरस झरोखे से, जहाँ एक जर्जर कागज का टुकड़ा फड़फड़ा रहा था ओर जहाँ से कांसे जैसे रंग वाला आकाश दिखायी दे रहा था, झाँक कर देखा तो पाया कि बाहर अभी लालिमा लिए अँधेरा पसरा हुआ था. उसने झरोखे के पास जा कर कागज कों फाड़ कर फ़ेंक दिया.
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18-04-2014, 09:50 PM | #4 |
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Re: सुंदर धरती (The Good Earth)
“इन बसंत के दिनों में मुझे इसकी कोई जरुरत नहीं है,” वह बड़बड़ाया.
उसे यह बात ऊँची आवाज में कहते हुये शर्म आ रही थी कि आज के दिन तो घर साफ़ सुथरा दिहना चाहिए. झरोखा इतना छोटा था कि उसका हाथ मुश्किल से बाहर जा पा रहा था सो उसने हाथ निकाल कर बाहर की हवा को महसूस किया. हलकी हलकी पुरबाई चल रही थी, धीमी और सरसराती हुयी तथा बारिश से भरी हुयी. यह एक अच्छा शगुन था. खेतों को फलने फूलने के लिए वर्षा की जरुरत थी. आज वर्षा के होने का कोई आसार नहीं था, लेकिन अगले कुछ दिनों तक यदि ऐसी हवाएं जारी रहीं तो पानी बरसेगा. अच्छा है. कल ही वह अपने पिता से कह रहा था कि यदि झुलसा देने वाली यह चमकीली धूप बनी रही तो गेहूं की बालियाँ नहीं भरेंगी. वह बीच वाले कमरे की तरफ दौड़ा, ऐसा करते हुये उसने अपने नीले जामे को कस कर थाम रखा था और उसके नाड़े को अपनी कमर के चारों ओर कस कर बाँधने कि कोशिश कर रहा था. उसने अपने उपरी शरीर को तब तक नंगा रख छोड़ा जब तक उसका नहाने का गरम पानी तैयार नहीं हो गया. वह बाहरी खपरैल में दाखिल हुआजो रसोई के काम आती थी और जो घर की दीवार के साथ ही टिकी हुई थी सुबह के धुंधलके में द्वार के निकट नुक्कड़ से एक बैल सिर घुमा कर गौर से उसे देख रहा था.
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18-04-2014, 09:53 PM | #5 |
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Re: सुंदर धरती (The Good Earth)
रसोई का निर्माण भी घर के समान ही मिटटी की ईंटों से किया गया था जिसके लिये उन्होंने अपने खेत से ही बड़े बड़े चौरस खांचे खोदे थे तथा अपनी खेत की गेहूं के भूसे की खपरेल तैयार की थी. इसी धरती से उसके दादा ने घर के लिये एक तंदूर भी बनाया था जिसकी मिटटी पक चुकी थी और बरसों के इस्तेमाल से काली हो गयी थी. मिटटी के इस उपकरण के ऊपर लोहे की एक गहरी, गोल देग रखी रहती थी.
इस देग में उसने क्षमता से कुछ कम पानी भर दिया था, ऐसा करने के लिये उसने आधी तुम्बी का इस्तेमाल किया था और मिटटी के मर्तबान से पानी उंडेला था, बहुत सावधानी से क्योंकि पानी बहुमूल्य था. तब, थोड़ी झिझक के साथ उसने अचानक मर्तबान को ऊपर उठा लिया और सारा पानी देग में उंडेल दिया. आज के दिन वह पूरे बदन को मल मल के नहाना चाहता था. बचपन, जब कि वह अपनी माँ की गोद में था,के बाद से आज तक किसी ने उसके बदन को नहीं देखा था, आज कोई उसे देखेगा अतः आज वह अच्छी तरह नहाना धोना चाहता था. वह पिछली तरफ बने हुये तंदूर की ओर गया और उसने हाथ भर सूखे पत्ते तथा रसोई के एक कोने में रखी डंडियां ले कर तंदूर के मुंह में एहतियात से रख दी ताकि पत्तों का भरपूर फायदा मिल सके. तत्पश्चात, उसने आग जलाने वाले पत्थर और लोहे की रगड़ से आग सुलगाई और उसे घास में डाल दिया जिससे आग जल उठी.
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18-04-2014, 09:55 PM | #6 |
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Re: सुंदर धरती (The Good Earth)
आज की सुबह उसके जीवन में ऐसी अंतिम सुबह होगी जब वह चूल्ह में आग सुलगा रहा होगा. छह वर्ष पूर्व जब उसकी माँ की मौत हुयी, से लेकर आज तक हर सुबह वह आग सुलगाता आ रहा था. वह आग जलाता था, पानी गरम करता था, एक कटोरे में पानी भर कर उस कमरे में ले जाता था जहाँ उसका पिता खांसता हुआ बिस्तर पर बैठा होता और फर्श पर पड़े अपने जूतों को टटोल रहा होता. बीते हुये इन छह वर्षों में हर सुबह उसके पिता ने अपने बेटे का इंतज़ार किया था कि वह गरम पानी लाये और उसे सुबह उठने वाली खांसी से निजात दिलाये.
अब पिता और पुत्र दोनों को आराम मिल सकेगा. घर में एक स्त्री का आगमन हो रहा था. अब वांग लुंग को गर्मी या सर्दी कभी भी आग जलाने के लिये तड़के उठना नहीं पड़ेगा. वह बिस्तर पर पड़ा पड़ा इंतज़ार कर सकता है और उसे भी पानी से भरा कटोरा ला कर दिया जाएगा और यदि फसल अच्छी रही तो पानी में चाय की पत्ती भी उबाली जायेगी. किसी किसी साल दैवयोग से ऐसा होता था. औरत के बुढा हो जाने के बाद उसके बच्चे आग जलाया करेंगे. उस से वांग लुंग को कई संतान प्राप्त होंगी. वांग लुंग रुका, वह सोचने लगा की कैसे बच्चे उनके तीनों कमरों मे धमा चौकड़ी मचाएंगे. उन्हें तीन कमरे पर्याप्त रहते थे, जब से उसकी माँ का स्वर्गवास हुआ, उनका आधा घर खाली पड़ा रहता था. वे अपने बाल बच्चों वाले रिश्तेदारों को आने से रोकते थे कि कहीं घर में भीड़ भाड़ न हो जाये, जैसे कि उसके चाचा, जिनके पास बेशुमार बच्चों कि भरमार थी, चाहते थे.
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18-04-2014, 10:02 PM | #7 |
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Re: सुंदर धरती (The Good Earth)
वे कहते- “भला बताइए, दो छड़े व्यक्तियों के लिये कितने कमरे चाहिएं? क्या पिता और पुत्र दोनों इकटठा नहीं सो सकते? नौजवान के शरीर की गर्मी से बूढ़े कि खांसी को आराम मिलेगा.”
परन्तु पिता हमेशा यही उत्तर देते, “मैंने अपने बिस्तर को अपने पोते के लिये बचा कर रखा है. वही मेरी बूढ़ी हड्डियों को ऊष्मा प्रदान करेगा.” लो अब पोते आने लगे हैं, पोतों के बाद पोते, पोतों के बाद पोते. उन्हें अपने बिस्तर दीवार के साथ साथ लगाने पड़ेंगे और बीच वाले कमरे में भी. घर में बिस्तर ही बिस्तर हो जायेंगे. इधर वांग लुंग आधे खाली घर में बिछने वाले बिस्तरों के विचारों में खोया था, उधर चूल्हे में आग मंद पड़ चुकी थी और पानी देग में पड़ा ठंडा होने लगा था. उसे बूढ़े पिता की छाया जैसी आकृति दालान में दिखाई दी, जिसने अपने तन पर लिपटे बटन विहीन कपड़ों को हाथों से थाम रखा था. वह खांस रहा था और थूकता जा रहा था कि हैरान हो कर बोला- “ऐसे कैसे कि अभी तक पानी गरम नहीं हुआ जिस से मेरे फेफड़ों को गर्माइश मिले?” वांग लुंग ने गौर से देखा और विचारों से बाहर निकलने पर शर्मिंदा हुआ. “यह जलावन गीला है,”उसने चूल्हे के पीछे से कहा,” हवा में भी नमी ___”.
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18-04-2014, 10:03 PM | #8 |
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Re: सुंदर धरती (The Good Earth)
बूढ़ा आदमी कष्ट से तब तक खांसता रहा जब तक पानी गरम न हो गया. वांग लुंग ने थोड़ा पानी कटोरे में डाला, और फिर, कुछ पल बाद, उसने चूल्हे के एक ओर रखे चमकदार जार में से मुड़ी तुड़ी आकृति वाली कोई दर्जन भर सूखी चाय की पत्तियां पानी की सतह पर छिड़क दी. बूढ़े आदमी की आँखें लालच के मारे खुल गयी पर वह तत्काल ही शिकायत के लहजे में बोला.
“तुम इतने शाह खर्च क्यों हो? चाय पीना तो ऐसा है जैसे चांदी निगलना.” “आज का दिन ही ऐसा है,” तनिक हँसते हुए वांग लुंग ने जवाब दिया. “खाओ और मजे लो.” बूढ़े आदमी ने कांपती हुयी, गांठों वाली उँगलियों से कटोरे को पकड़ा और बीच बीच में बडबडाने लगा और छोटे छोटे उलाहने अस्फुट स्वरों में देने लगा. इस बीच वह चाय की पत्तियों को सीधा होते हुए और पानी की सतह पर फैलते हुए देखने लगा, इस कीमती वस्तु को पीने से वह खुद को रोक नहीं पा रहा था. “यह ठण्डी हो जायेगी,” वांग लुंग ने कहा. “ठीक है ---- ठीक है----“ बूढ़े ने घबरा कर कहा, और गरम चाय के बड़े बड़े घूंट सुड़कने लगा. उसे पशुवत संतोष अनुभव हुआ, ऐसे जैसे कोई बच्चा पूरे मनोयोग से दूध पी रहा हो. परन्तु वह इतना भुलक्कड़ नहीं था कि उसे यह भी न पता चलता कि वांग लुंग देग में से कितनी बेरहमी से पानी लकड़ी के गहरे टब में उंडेल रहा था. उसने अपने सिर को ऊपर उठाया और अपने लड़के को देखने लगा.
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18-04-2014, 10:09 PM | #9 |
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Re: सुंदर धरती (The Good Earth)
“हमारे यहाँ पूरी फसल लगाने लायक पर्याप्त पानी है न,” अचानक उसने कहा.
वांग लुंग अंतिम बूँद तक पानी उंडेल कर निकाल लेना चाहता था. अतः उसने कोई उत्तर न दिया. “सुना नहीं?” उसके पिता ने चिल्ला कर कहा. “मैंने नव वर्ष के बाद से अपने पूरे बदन को समूचा एक साथ नहीं धोया,” वांग लुंग ने धीमे स्वर में कहा. अपने पिता को यह बताने में उसे शर्म आ रही थी कि वह चाहता था कि एक औरत के सामने जाने से पहले अपने शरीर को साफ़ कर लेना चाहता था. वह जल्दी से पानी के टब को उठा कर अपने कमरे में घुस गया. दरवाजा अपने जर्जर फ्रेम के सहारे झूल रहा था और पूरी तरह बन्द नहीं हो पाता था. बूढ़े आदमी ने बीच के कमरे में आ कर उसके कमरे कि झिरी में मुंह टिकाते हुए बोला, ”यह हमारे लिये अच्छा न होगा कि एक औरत इस प्रकार हमें देखे कि प्रातः चाय बने और पानी के साथ इस प्रकार की धुलाई!” “केवल एक दिन की ही तो बात है, ”वांग लुंग चिल्लाया. और फिर बोला, ”नहाने के बाद मैं सारा पानी खेती की जमीन पर ही तो फेकूंगा तो यह फ़िज़ूल कैसे नष्ट होगा.”
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18-04-2014, 10:13 PM | #10 |
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Re: सुंदर धरती (The Good Earth)
बूढ़ा आदमी यह सुन कर चुप रहा. वांग लुंग ने कपड़े उतार दिए. चौरस झरोखे से आने वाले प्रकाश में उसने एक तौलिया लिया, उसे गरम पानी में भिगोया और अपने दुबले काले बदन को रगड़ कर साफ़ किया. उसके विचार से हवा अभी गरम थी किन्तु जब उसका शरीर गीला था तो उसे ठण्ड लगने लगी थी, सो अब वह जल्दी जल्दी तौलिए को तब तक गरम पानी में डालता रहा और निकालता रहा जब तक उसके पूरे शरीर से कोमल भाप का बादल सा न उठने लगा. तब वह एक संदूक के पास गया, जो उसकी माँ का था, और उसमे से उसने नीले रंग का नया सूती सूट निकाला.
गरम कपड़ों के बिना उसे आज थोड़ी सर्दी तो अवश्य लगती किन्तु नहाने के फ़ौरन बाद अपने धुले शरीर पर गरम कपड़े पहनना उसे ठीक नहीं लग रहा था. वैसे भी उनका बाहरी हिस्सा फट चुका था और मैला हो गया था और उनकी पैडिंग जगह जगह से बाहर झाँकने लगी थी – सलेटी तथा खराब. वह नहीं चाहता था कि उसकी होने वाली बीवी उसे पहली बार इन जीर्ण कपड़ों में देखे. बाद में तो उसे ही ये धोने पड़ेंगे और मरम्मत करने पड़ेंगे लेकिन आज पहले दिन नहीं.
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