21-04-2014, 03:12 PM | #21 |
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Re: सुंदर धरती (The Good Earth)
वह गेट पर काफी देर खड़ा रहा, उसे घूरता रहा. यह मजबूती से बन्द किया गया था, लकड़ी के दो विशाल फाटक, जिन पर काला रोगन किया गया था, लोहे से बंधे हुये और लोहे से ही अलंकृत थे, एक दूसरे पर ढके हुए थे. दो प्रस्तर सिंह प्रतिमाएं, एक-एक दोनों तरफ, गार्ड की तरह खड़ी थीं. इनके अलावा वहाँ कोई नहीं था. वह मुड़ा. यह असंभव था. उसे लगा कि वह बेहोश होने वाला है. वह पहले जाएगा और कुछ खाना खरीदेगा. उसने कुछ न खाया था – खाना भूल ही गया था. वह एक छोटे से सड़क छाप रेस्तराँ में चला गया, और मेज पर दो पेंस रखते हुये, बैठ गया. काला एप्रन पहने हुये एक छोकरा उसके पास आया तो उसने ऑर्डर दिया,”दो कटोरे नूडल लाओ!.” जब नूडल आ गए, वह लालच के वशीभूत हो कर, बाँस की चॉपस्टिक से उन्हें अपने मुंह में ठूंसता हुआ, खाने लगा, जबकि वह लड़का उन सिक्कों को अपने काले अंगूठे और तर्जनी के बीच घुमाता हुआ वहीँ खड़ा रहा. “क्या आप और लेंगे?” लड़के ने उदासीनता से पूछा.
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21-04-2014, 03:18 PM | #22 |
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Re: सुंदर धरती (The Good Earth)
वांग लुंग इनकार में सिर हिलाता हुआ उठ खड़ा हुआ और आस पास देखने लगा. इस छोटे, अँधेरे, मेजों से भरे कमरे में उसकी पहचान का कोई शख्स नज़र नहीं आ रहा था. थोड़े बहुत लोग वहाँ बैठ कर खा रहे थे या चाय पी रहे थे. यह स्थान गरीबों के हिसाब से बना था, और उन लोगों की तुलना में वह ज्यादा साफ़ सुथरा और संपन्न लग रहा था, यहाँ तक की एक भिखारी ने, गुजरते हुए, उस से विनती की,
“दया करें, मालिक! मुझे कुछ पैसे दे दीजिए, बहुत भूख लगी है.” वांग लुंग से आज तक किसी भिखारी ने कुछ नहीं मांगा था, न ही किसी ने उसे मालिक कह कर बुलाया था. वह बहुत प्रसन्न हुआ और उसने भिखारी की ओर दो छोटे सिक्के फेंके, जिनकी कुल कीमत एक पेन्नी के पांचवें भाग जितनी थी, उसने अपना मैला हाथ जल्दी से वापिस खींचा, सिक्कों को संभाला और शीघ्रता से अपने कपड़ों में छुपा लिया. वांग लुंग बैठा रहा और सूरज ऊपर चढ़ आया. वेटर परेशान हो कर उसके पास आ-जा रहा था. ”अगर आपने कुछ और नहीं खरीदना,” आखिरकार उसने अनादर के भाव में कहा,”आपको स्टूल का किराया देना होगा.”
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21-04-2014, 03:19 PM | #23 |
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Re: सुंदर धरती (The Good Earth)
वांग लुंग अपने इस अनादर पर आग बबूला हो गया और वह उठने को हुआ भी, मगर तभी ह्वांग परिवार की बड़ी हवेली में जाने और वहाँ औरत के बारे में बात करने के विचार से ही उसके सारे शरीर से पसीना बहना शुरू हो गया जैसे वह खेत में काम कर रहा हो.
“मेरे लिये चाय लाओ,” वह कमज़ोर स्वर में लड़के से बोला. इस से पहले कि वह पलटता चाय आ गयी. छोटे लड़के ने शीघ्रता से मांग रख दी, “लाइए पेन्नी दीजिए?” वांग लुंग घबरा कर सोचने लगा कि बचने का कोई तरीका नहीं था. उसे कमर में बंधी अपनी पोटली में से एक और पेन्नी निकालनी ही पड़ी. “यह तो सरासर लूट है,” वह बडबडाया, अनिच्छापूर्वक. तब उसने अपने एक पडोसी को अंदर आते हुए देख लिया जिसे उसने दावत पर आमंत्रित किया हुआ था. उसने तेजी से पेन्नी मेज पर रखी और उठ कर सर्र से बगल के दरवाजे से बाहर निकल गया. इस प्रकार एक बार फिर वह गली में था.
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26-04-2014, 08:09 PM | #24 |
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Re: सुंदर धरती (The Good Earth)
“यह तो करना ही पड़ेगा,” उसने अपने आपसे निराश होते हुए कहा, और उसने अपना रुख एक बार फिर बड़े गेटों की तरफ किया. इस बार, क्योंकि दोपहर के बाद का वक्त था, द्वार भिडे हुए थे और दरबान ड्योढ़ी में सुस्ता रहा था, खाने के बाद बाँस की सींक से दांत खुरच रहा था. वह ऊँचा लंबा व्यक्ति था जिसके बाएं गाल पर एक बड़ा सा तिल था, और इस तिल से तीन लंबे काले बाल लटक रहे थे जिन्हें कभी काटा नहीं गया था. जब वांग लुंग प्रकट हुआ तो उसकी टोकरी देख कर वह जोर से चिल्लाया यह सोच कर कि शायद कोई आदमी कुछ बेचने आया है.
“अब बोलो, क्या चाहिए?” बड़ी कठिनाई से वांग लुंग ने उत्तर दिया, “मेरा नाम वांग लुंग है, मैं किसान हूँ.” “ठीक है, तुम वांग लुंग हो, किसान हो, तो क्या?” दरबान ने, जो अपने मालिक व मालकिन के मित्रों के अतिरिक्त किसी से भी विनम्रता का व्यवहार नहीं करता था, पलट कर सवाल किया. “मैं आया हूँ -- मैं आया हूँ --,” वांग लुंग लड़खड़ा गया. “सो तो मैं देख ही रहा हूँ,” दरबान ने, अपने तिल के बालों को मरोड़ते हुए, अतिशय धेर्य के साथ कहा.
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26-04-2014, 08:10 PM | #25 |
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Re: सुंदर धरती (The Good Earth)
“यहाँ एक महिला हैं,” वांग लुंग ने कहा, उसकी आवाज असहाय हो कर फुसफुसाहट में तब्दील हो गयी. चमकते सूरज में उसका चेहरा पसीने से तर हो गया था.
दरबान ने जोर का ठहाका लगाया. “तो वो तुम हो!” वह दहाड़ा. ”मुझे बताया गया था कि एक दूल्हा आने वाला है. लेकिन तुम्हारे हाथों में टोकरी देख कर मैं तुम्हें पहचान नहीं पाया.” “ ये तो कुछ तरह के मीट हैं,’ वांग लुंग ने क्षमा मांगते हुए कहा, इस प्रतीक्षा में कि दरबान उसे अंदर ले कर चले. किन्तु दरबान हिला तक नहीं. अन्ततः वांग लुंग ने चिंतित होते हुए कहा,”क्या मैं अकेला जाऊं?” दरबान ने उसे भयभीत करते हुए कहा,”बूढ़ा मालिक तुम्हें मार डालेगा!” यह देखते हुये कि वांग लुंग काफी शरीफ लग रहा था, उसने कहा,”चांदी का कोई सिक्का हो तो बात बन सकती है.” वांग लुंग को मालूम हो गया कि यह व्यक्ति मुझसे पैसे लेना चाहता है. “में बड़ा गरीब आदमी हूँ,” वांग लुंग दयनीय स्वर में बोला. “मुझे देखने दो कि तुमने अपने कमरबंद में क्या रखा है.” दरबान बोला. वह मुस्कराया, जब उसने देखा कि वांग लुंग ने, अपनी शराफत के चलते कमरबंद से अपनी थैली निकाली और खरीदारी के बाद बचे हुये सभी पैसे अपने बाएं हाथ पर उंडेल दिए. कुल मिला कर एक चांदी का सिक्का था और चौदह ताम्बे के पेंस थे.
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26-04-2014, 08:13 PM | #26 |
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Re: सुंदर धरती (The Good Earth)
“मैं तो चांदी वाला लूँगा,” दरबान ने ठंडे स्वर में कहा, और इस से पहले कि वांग लुंग विरोध कर पाता उसने चांदी का सिक्का अपनी बाजू में डाल लिया और गेट के अंदर चल पड़ा. बोलता भी जा रहा था,
”दुल्हे राजा---दूल्हे राजा!” वांग लुंग ने, जो कुछ उस पर गुज़री उस सब पर बजाय गुस्सा करने के और उसके आगमन की घोषणा पर दहशत दिखाने के, कुछ न करते हुये, उसने अपनी टोकरी उठाई और दायें या बाएं देखे बिना, उसके पीछे चल पड़ा. इस सब के बाद, यद्यपि किसी बड़े परिवार के घर में आने का यह उसका पहला मौका था, उसे कुछ भी याद न रहा. अपने आगे वही गरजती हुई आवाज व हर ओर से उठते हंसी की फुलझडियाँ सुनते हुये, अपना तपता हुआ चेहरा लिये और सिर नीचे झुकाये, वह दालान के बाद दालान पार करता जा रहा था. अचानक, जब उसे लगा कि उसने लगभग एक सौ दालान पार कर ही लिये होंगे दरबान चुप हो गया और उसे एक छोटे प्रतीक्षा कक्ष में धकेल गया. वह वहाँ अकेला खड़ा था और दरबान अंदर कहीं चला गया किन्तु जल्द ही लौट आया और कहने लगा, “बूढी मालकिन कहती हैं कि तुम्हें उनके सामने जाना पड़ेगा.”
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26-04-2014, 08:16 PM | #27 |
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Re: सुंदर धरती (The Good Earth)
“वांग लुंग आगे बढ़ा ही था कि दरबान ने उसे वहीँ रोका व चिढ़ कर कहने लगा,
“तुम इस प्रकार बाजू में सूअर के माँस व बीन कर्ड वाली टोकरी उठाये कैसे हमारी बड़ी मालकिन के सामने जाओगे, कैसे उनके सम्मान में झुकोगे?” “सच कहा --- सच कहा” वांग लुंग ने परेशानी में कहा. लेकिन उसे टोकरी नीचे रखने का साहस न हो रहा था क्योंकि उसे डर था कि उसमे से कुछ चोरी न कर लिया जाए. यह बात उसके दिमाग में ही नहीं आ रही थी कि सारी दुनिया इन खाद्य पदार्थों की दीवानी नहीं होती – दो पाउंड सूअर का माँस, छह ऑउंस गाय का माँस व थोड़ी सी तालाब की मछली. दरबान ने उसके मन के डर को भांप लिया, सो वह तिरस्कार से बोला, “इस जैसे भवन में, हम ऐसी वस्तुएँ कुत्तों को डाल देते हैं!” उसने टोकरी को पकड़ा और दरवाजे के पीछे सरकाया और वांग लुंग को खुद से आगे धकेला. चलते हुये वे एक लम्बे से संकरे बरामदे में आये, जहाँ की छत महीन कारीगरी वाले खम्बों पर टिकी थीं, फिर ऐसे हाल में आ पहुंचे जिसकी बराबरी का हाल वांग लुंग ने आज तक नहीं देखा था. उसके घर जैसे दर्जनों घर इसमें समा सकते थे और पाता भी न लगता, सारा स्थान इतना विस्तृत था, छतें इतनी ऊंची थीं. गजब के नक्काशीदार और आकर्षक रंगों वाले खम्बों को सिर उठा कर आश्चर्य से देखते हुये उसका पांव दरवाजे की ऊंची दहलीज में फंस गया लेकिन उसके गिरने से पहले ही दरबान ने उसकी बाजू पकड़ ली और चिल्लाया,
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05-05-2014, 10:55 PM | #28 |
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Re: सुंदर धरती (The Good Earth)
“अब तुम भलेमानुस बन कर बड़ी मालकिन के आने पर उनके सामने दंडवत करोगे न?”
वांग लुंग लज्जा से बाहर आ कर अपने आपको बमुश्किल संभाला और अपने सामने की ओर देखा, कमरे के बीचोबीच एक चबूतरे पर उसने एक वयोवृद्ध महिला को देखा, उसका छोटा किन्तु सुन्दर शरीर चमकदार, मोतियों वाले सलेटी साटिन के कपड़े से ढका हुआ था, उसके बगल में एक कम ऊँचाई वाले बेंच पर हुक्का पड़ा था जिसके ऊपर अफीम की चिलम जल रही थी. उसने अपने पतले और झुर्रियों वाले चेहरे पर लगी छोटी, तेज, काली आँखों से, जो बन्दर की आँखों के समान धंसी हुयी और तेज थी, उसको देखा. पाईप को पकड़े हुये हाथ की त्वचा जैसे उसकी छोटी हड्डियों पर कसी हुयी थी, इतनी स्निग्ध और इतनी पीली जैसे किसी मूर्ति पर सोना चढ़ाया गया हो. वांग लुंग अपने घुटनों के बल गिर पड़ा और टाईलों वाले फर्श पर अपना सिर झुका दिया. “उठाओ उसे,” वृद्ध महिला ने गंभीरतापूर्वक दरबान से कहा, ”इन औपचारिकताओं की कोई जरुरत नहीं. क्या वह औरत के लिये आया है?” “जी हाँ, आदरणीय माता,” दरबान ने उत्तर दिया. “वह खुद बात क्यों नहीं कर रहा?” वृद्ध महिला ने पूछा. “क्योंकि वह मूर्ख है, आदरणीय माता,” दरबान ने तिल पर उगे बालों को ताव देते हुये कहा.
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05-05-2014, 11:02 PM | #29 |
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Re: सुंदर धरती (The Good Earth)
यह सुन कर वांग लुंग को बुरा लगा और उसने दरबान की ओर हिकारत से देखा.
“मैं एक सीधा साधा आदमी हूँ, महान व आदरणीय माता,” उसने कहा,”मैं नहीं जानता कि मुझे आपके सामने कैसे बात करनी चाहिए.” वृद्ध महिला ने उसे ध्यानपूर्वक देखा और पूरी गंभीरता से कुछ कहते कहते जैसे रुक गयी हो, उसने हुक्के के पाईप को जोर से पकड़ लिया जिसकी चिलम एक गुलाम लड़की की देख रेख में थी, और एक क्षण को जैसे वह उसे भूल गयी. वह झुकी और एक क्षण के लिये पाईप में तबीयत से गहरा कश लगाया, उसकी आँखों से तेजी गायब हो गयी और उसके स्थान पर उनमें भूल जाने की प्रवृति झलकने लगी. वांग लुंग उसके सामने खड़ा रहा जब तक कि उसकी घुमती हुयी निगाह उस पर न पड़ी, “यह आदमी यहाँ क्या कर रहा है?” उसने अचानक गुस्से से भर कर पूछा. ऐसे लगा जैसे उसे सब कुछ भूल चुका था. दरबान का चेहरा अचल था. उसने कुछ न कहा. “मैं उस स्त्री को लेने आया हूँ, राजमाता,” वांग लुंग ने बड़े आश्चर्य के साथ कहा.
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05-05-2014, 11:06 PM | #30 |
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Re: सुंदर धरती (The Good Earth)
“स्त्री? कैसी स्त्री----?” वृद्ध महिला ने कहना शुरू किया, किन्तु उसकी बगल में खड़ी हुई गुलाम लाडली ने झुकते हुये उसके कान में कुह कहा तो वह संभल गयी. “अह, हाँ, मैं एक क्षण को भूल गयी थी --- मामूली सी बात ---, तुम उस गुलाम लड़की, जिसका नाम ओ-लान है, के लिये आये हो न? मुझे याद आया कि हमने एक किसान को उससे शादी का वचन दिया था. तुम्ही वह किसान हो?”
“मैं ही वह किसान हूँ,”वांग लुंग ने उत्तर दिया. “ओ-लान को जल्दी बुलाओ,” वृद्ध महिला ने अपने गुलाम को कहा. ऐसा लगा कि वह अचानक उकता चुकी हो और इस सब से जल्द फारिग होना चाहती थी और अपने कमरे के एकांत में अफीम वाले हुक्के का आनंद लेना चाहती थी. एक क्षण में वह गुलाम लड़की वापिस आ गयी, उसका हाथ पकड़े जो लड़की उसके पीछे आ रही थी जिसका चेहरा चौकोर, कद लंबा था और उसने नीले रंग का साफ़ सूती कोट व पेंट पहन रखी थी. वांग लुंग ने एक नज़र उसको देखा और फिर निगाहें फेर लीं. तो इस लड़की के साथ उसकी शादी होगी. ”इधर आओ, गुलाम लड़की,” वृद्ध महिला ने लापरवाही से कहा. ”यह आदमी तुम्हें लेने आया है.” वह लड़की वृद्ध महिला के सामने आयी और सिर झुका, हाथ जोड़ कर खड़ी हो गयी.
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