26-05-2014, 11:27 AM | #11 |
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Re: विभाजन कथा: रफूजी
नानी बाहरवाले दरवाजे पर खड़ी हो गई। किसी आते-जाते से वक्*त पूछेगी। सबके लिए गरम-गरम फुल्*के जो उतारने हैं। गली वीरान भी और चुप भी। नानी ने गाली दी, 'सब मर गए क्*या?' बैलो के गले की घंटियों की आवाज। 'वे, कौन है?' 'नानी, मैं बख्*तावर। जा, अंदर बैठ। अभी सब के आने में देर है।' 'बख्ते, वकीलों की तरह बहस न किया कर। टैम बता, टैम? फुलके उतारने हैं।' 'ओए नानी दी बच्*ची, स्*कूल दो बजे बंद होता है। अभी बच्*चों के आने में देर है, अंदर बैठ। धूप में क्*यों सड़ रही है?' 'तू रहा खोता का खोता। आज शनीचरवार है। तेरे बाप स्*कूलवाले आधी छुट्टी पूरी छुट्टी करते हैं। क्*या टैम हो गया?' 'ओए नानी, टैम नहीं, टाइम कहते हैं।' 'अच्*छा-अच्*छा अंग्रेज दे बीज, टैम बता।' बख्*तावर दसवीं पास है। जाते-जाते नानी को छेड़ा, 'एलेवन फारटी हो गए, फुल्*के उतारना शुरू कर दे।' 'ओए कंजरा, ठीक से टैम बोल। यह फारटी तेरी माँ क्*या होते हैं?' बख्*तावार हँसा। 'ग्*यारह चालीस' कह कर आगे बढ़ गया। नानी घिसटती हुई रसोई में आई। उसे दिखाई नहीं देता, लेकिन छू कर सारी चीजें तलाश कर लेती है। सरक-सरक कर स्*टोव के पास आटा, तवा, चकला इकट्ठा किया। पहली माचिसकी तीली बत्तियोंवाले स्*टोव के बाहर गिरी। उसे पता नहीं चला। थोड़ी देर बाद स्*टोव के मुँह के पास हथेली की, आँच नहीं लगी। दूसरी तीली जलाई, गाली दी - मोया, कितनी तीलियाँ साड़ता है। >>>
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26-05-2014, 11:35 AM | #12 |
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Re: विभाजन कथा: रफूजी
वह जब भी रसोई में काम करे, साथ-साथ आरती शुरू - ओम जय जगदीश...
आँगन में स्*कूटर रुका। इंदर दो बच्*चों और बीवी को साथ ले आया है। दोनों बच्*चे भागते हुए अंदर आए। एक साथ बोले, 'नानी, मुँह खोल, टॉफी खा।' 'फिर आ गए जूते समेत चौके में। निकलो बाहर। मैं नहीं खाँणी टाफी-फाफी।' बच्*चों ने एक-दूसरे की तरफ देखा, पति-पत्नी ने एक-दूसरे की तरफ देखा। आते ही नानी ने बच्चों को डांट दिया, जरूर कोई बात होगी। 'दम्मो, चटाई यहीं रसोई में बिछा दे। गरम-गरम फुल्के खाओ।' नानी आज तक सही नाम दमयंती नहीं बोल सकी। पहली बार सुना तो गाली दी थी, 'मोया कितना मुशकल नाम है? मै तो दम्मो बुलाऊँगी।' सब ने खाना शुरू किया। 'नानी, क्*या बात है, कोई आया था क्या?' 'हाँ, जीता और मल्कीयत आए थे, तेरी शिकायत ले कर।' 'क्*या शिकायत?' इंदर ने जरा कड़ी आवाज में पूछा। >>>
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26-05-2014, 11:41 AM | #13 |
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Re: विभाजन कथा: रफूजी
'और कौन-सी नई बात करेंगे। कहरे थे तूने उगरवादियों के खलाफ बोलना बंद नहीं किया।'
'जो गलत बात है, उसके खिलाफ तो बोलूँगा ही।' 'क्यों, सिर फट चुका है पहले भी, अक्कल नहीं आई? हिन्दुओं के खलाफ बोलता था न! जब दिल्*ली में पाकस्*तान बना, फाड़ दिया न सिर अगलों ने?' 'शीज राइट।' पत्*नी ने समझाया। 'दम्मो, तुझे सौ बार कहा है मेरे सामने गिट-पिट मत मारा करो। अपनी बोली में कह, जो कहना है।' इंदर ने पत्*नी को डाँटा, 'तुम बीच में मत बोलो। पढ़ी-लिखी हो फिर भी इतनी समझ नहीं कि हमारे चुप रहने से जो गलत है, ठीक नहीं हो जाता।' 'इंदर पुत्तर, पढ़-लिख कर तेरी मत मारी गई है क्या। तू सच का नंबरदार तो नहीं। पहले तो सिर फूटा था, अब मारा जाएगा, मारा। सच्चा होने से अक्लमंद होना चंगा है। एक चुप सौ सुख।' वह चुप हो गया। दोनों बच्चों ने ताली बजाई, 'पापा को पनिशमेंट, पापा को पनिशमेंट।' नानी का मुँह उँगलियों से खोला, एक-एक टॉफी जीभ पर रखी।नानी ने लंबी साँस अंदर खींची। टाफी का रस जीभ पर बिछला और वह हँस पड़ी। 'इंदर, रेडियो सुणा। आज तो कोई नहीं मारा गया न?' 'नानी, पाँच मरे।' और वह खाना बीच में ही छोड़ कर उठ गया। न हालात बदले, न ही इंदर बदला। आदमी-तो-आदमी, अब जानवर भी दिन ढलने से पहले लौट आते हैं, बिना मालिक गाएँ और सड़की-कुत्ते दुकानों के गलियारों में दुबके हुए। इन्होने भी सब जगह व्याप्त खतरे को सूँघ लिया, पहचान लिया। >>>
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26-05-2014, 11:45 AM | #14 |
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Re: विभाजन कथा: रफूजी
पहले नानी के नाम एक पोस्टकार्ड आया। चेतावनी दी गई कि अपने इंदर शर्मा को समझा ले, नहीं तो... गाँववालों ने नानी को समझाया कि किसी शरारती लड़के ने लिख दियाहोगा। लेकिन हमेशा गरज कर बोलनेवाला मल्कियत सिंह यह खत पढ़ कर कुछ न बोला, सिर्फ लंबी उसाँस भर कर नानी के आँगन से उठ गया। हाँ, आजकल वह अपनी दोनाली बंदूक हरवक्*त पास रखता है। सूरज ढलने के बाद सुरजीत सिंह के साथ प्रत्*येक हिंदू परिवार के घर के सामने से गुजरता है, उन्*हें हौसला बँधाता हुआ। नानी के घर दोनों रातगए तक बैठते हैं।
रात का पहला पहर ढल चुका होगा। मोटर साइकिल की आवाज नानी के घर की तरफ बढ़ती हुई। सबसे पहले सुनी भी उसने। डर हमारी इन्द्रियों को सान पर चढ़ा कर चौकस कर देताहै। उसने पूरे जोर से इंदर को आवाज दी, 'इंदर, उठ। अंदर भाग। आ गए। वो लोग।' उसने भी मोटरसाइकिल की आवाज सुनी। नानी की फटे ढोल की आवाज ने उसे झटके से जगा दिया। 'सो जा नानी। यहाँ कौन आएगा। कोई पिक्चर देख कर शहर से लौटा होगा।' नानी की आँखों में अपने बड़े बेटे के कटे सिर की जगह इंदर के सिर लगने का दृष्य फिर कूद आया। चीख-चीख कर - 'बचाओ, ए लोगो बचाओ' आसमान सिर पर उठा लिया। नीम परसोए परिंदे जागे, इंदर की बीवी और बच्चे जागे, आँगन में कुहराम मच गया। मोटरसाइकिल उनके घर के आगे रुकी। नानी और दमयंती इंदर को आँगन से अंदर की ओर घसीटती हुई। बाहर का दरवाजा किसी ने लात मार कर तोड़ दिया। मुँह पर कपड़ा लपेटे एकआदमी अंदर आया। कंधे पर बंदूक रखी। >>>
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26-05-2014, 11:49 AM | #15 |
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Re: विभाजन कथा: रफूजी
मोटर साइकिल की आवाज मल्कियत सिंह ने भी सुनी। दौड़ कर अपने मकान की छत पर चढ़ा। नानी का घर साफ दिखाई दिया। इतनी दूर से निशाना तो क्या लगेगा, लेकिन फायर करकेडराया तो जा सकता है। पहली गोली उसने नीम के पेड़ की तरफ चलाई। मुँह पर कपड़ा बाँधे आदमी के कंधे पर रखी बंदूक गोली की आवाज से थोड़ा नीचे हो गई। उसने भी फायरकिया। गोली इंदर की जाँघ पर लगी। मोटरसाइकिल पर बैठे आदमी ने कुछ कहा। मल्कियत ने दूसरा फायर किया। वह आदमी आँगन से दौड़ कर बाहर निकला। मोटरसाइकिल के पीछेबैठा। दनदनाती 'बुलेट' गाँव से बाहर जाती सड़क पर मुड़ गई।
गोलियों की आवाज गाँव के सारे लोगों ने भी सुनी। आँगन में सो रहे लोग घरों के अंदर भाग गए। दरवाजे मजबूती से बंद कर लिए। सब से पहले मल्कियत और सुरजीत नानी केघर पहुँचे। पास खड़ी इंदर की पत्नी को सुरजीत ने डाँटा, 'बीवी, अंदर जा और बच्चों को चुप करा। तू कहाँ की डॉक्टर है?' मल्कियत ने इंदर की लुंगी खोली। जाँघ को छुआ, जो खून से लथ-पथ हो चुकी थी। सुरजीत ने टार्च जलाई। मल्कियत ने हाथ से ही जाँघ का खून पोंछा, घाव देखने के लिए। 'नानी, बच गया। गोली पट्ट के मांस पर ही लगी है। बाहर निकल गई। हड्डी बच गई है। चार दिन में चंगा हो जाएगा। मल्कियत का बड़ा लड़का गाँव की डिस्पेंसरी के हिंदू डॉक्टर को साथ ले कर वहाँ पहुँचा। डॉक्टर ने चौखट के सहारे बैठी नानी को गुस्से से देखा और जहरीली आवाज में कहा, 'नानी, यह तेरा इंदर गाँव के सारे हिंदुओ को क़त्ल करवा कर ही रहेगा।' >>>
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26-05-2014, 11:56 AM | #16 |
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Re: विभाजन कथा: रफूजी
जवाब सुरजीत ने दिया, 'भरावा। तू पहले इंदर की पट्टी कर दे, फिर हिंदू-सिख का रोना रो लेना।'
'यह तो पुलिस-केस है। पहले रिपोर्ट दर्ज...' 'क्यों भाई डॉक्टर साहब, बंदूक बड़ी कि पुलिस?' मल्कियत सिंह ने अपनी बंदूक कंधे पर रख कर पूछा। डॉक्टर सहम गया। अपनी दवाइयों का बैग खोला। इंदर को सुबह तक होश आ गया। गाँव से, बड़े-बूढ़े से आपस में सलाह की कि पुलिस में रपट दर्ज कराने से कुछ न होगा, उलटा इंदर की जिंदगी बिलकुल खतरे में पड़ जाएगी।सुरजीत ने भरी आवाज में इंदर और नानी को सलाह दी अब उन्*हें यहाँ से चले जाना चाहिए। मल्कियत आँखें नीचे किए धरती को घूरता रहा। वह कह या कर भी क्*या सकता है।इंदर पर रास्ते में भी हमला हो सकता है। तब कौन बचाएगा? 'हाँ पुत्तरो, अब हम हिन्दुस्तान चले जाएँगे, नानी की आवाज में न दम, न नोक-झोंक, मल्कियत ने समझाया, 'नानी, झल्ली तो नहीं हो गई? कौन-से हिन्दुस्तान जाएगी?' 'न, हम हिन्दुस्तान चले जाएँगे।' इंदर को करनाल के एक कॉलेज में नौकरी मिल गई। दीवाली से एक दिन पहले वहीं जाना तय हो गया। नानी ने गाँव की औरतों का बताया, 'हम हिन्दुस्तान जा रहे हैं। कुलछेतर कंप लगा है।' 'नानी, इंदर को करनाल नौकरी मिली है, हम कुरुक्षेत्र नहीं जा रहे।' इंदर की पत्नी ने समझाया। लेकिन नानी तो पिछले महीने-भर से अतीत में जी रही है - विभाजन के दिनों ने गुफा से निकल कर उसके दिमाग के छोटे-से जाग्रत हिस्से पर कब्जा कर लिया है। अतीतहमेशा अपने को दोहराता है इसलिए हमेशा वर्तमान से जुड़ा हुआ। >>>
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26-05-2014, 12:08 PM | #17 |
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Re: विभाजन कथा: रफूजी
'देखो दम्मो, मुझे झूठे दिलासे मत दे, हाँ, हम कुलछेतर कंप में जा रहे हैं। मुझे सब पता है।'
ट्रक का प्रबंध सुरजीत ने कर दिया। सुबह मुँह अँधेरे सामान लाद गया। नानी को उठा कर ट्रक में मल्कियत ने लिटाया और हौसला दिया, 'नानी, मैं तुझे वापस लेने आऊँगा।यहाँ के मकान की फिकर न करना। रब्ब सब कुछ जल्दी ही ठीक कर देगा।' 'न पुत्तर मलकीते। हम तो अब कुलछेतर कंप में ही रहेंगे।' नानी ने आँखें बंद कर लीं। सुरजीत और मल्कियत अपनी जीप में इनके साथ जाएँगे, पंजाब की सीमा तक पहुँचाने। आगे-आगे ट्रक, पीछे-पीछे जीप। हवा में ठंडका आ गया है। नानी ने मोटा खेस मुँह पर लपेटा और सो गई। छोटे बच्चे और दम्मो की भी आँख लग गई। इंदर आगे ड्राइवर केपास बैठा है। लगभग तीन घंटे में ट्रक हरियाणा की सीमा में पहुँच गया। धूप में थोड़ी गर्मी। पुलिस चौकीवालों ने चेकिंग के लिए रोका। इंदर ने उन्*हें करनाल में नौकरी मिलने कीबात बताई। सच पुलिसवालों को भी पता है। उन्होंने चुपचाप, उदास चेहरों से ट्रक अंदर देखा और आगे जाने की आज्ञा दे दी। मल्कियत ट्रक में चढ़ा। नानी के पैर छुए, ऊँची ओर छेड़ती आवाज में कहा – 'नानी, उठ, तेरा हिन्दुस्तान आ गया।' लेकिन नानी ने कोई जवाब नहीं दिया। सुरजीत ने नानी के मुँह से खेस हटाया। कान के पास जोर से बोला, 'नानी, उठ अपना हिन्दुस्तान देख ले।' लेकिन नानी न हिली, न डुली, बस पथराई आँखें खुली-की खुली। मल्कियत ने हथेली से उसकी मरी हुई आँखें बंद कीं। नानी हिन्दुस्तान की सीमा के पार जा चुकी थी। **
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