29-08-2015, 09:39 PM | #1 |
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उत्सव, त्यौहार और मनुष्य
श्रावण मास कब से शुरु हो गया है। ईस कृषिप्रधान देश में सारे त्यौहार फसल होने के बाद शुरु हो जातें है। ईसलिए पुरे भारतबर्ष में एक के बाद एक त्यौहार और उत्सव मनाए जाएंगे। सभी मित्रों से मेरा निवेदन है की त्यौहारों का आनंद उठाए। परिवार के साथ समय दें, पुराने मित्रों या रिश्तेदारों से मुलाकात करें। आखिरकार यही असली सुख है! |
29-08-2015, 09:42 PM | #2 |
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Re: उत्सव, त्यौहार और मनुष्य
कोर्पोरेट जगत को या अपने आप को प्रेक्टिक्ल समझने वालों को भले भारत का यह ढेर सारे उत्सव मनाना वगैरह पसंद हो न हो। वह भले कर्मचारीयों की छुट्टीयों मे कटौती करता रहे, वैश्विक मंदी के बहाने बोनस कम दें, हमें यह नहीं भुलना चाहिए की पुरा विश्व में भारत अपनी संस्कृति, कला और त्यौहारों के लिए ही जाना जाता है। हम भारतीय सारे उत्सव और त्यौहार बड़े उत्साह और आनंद से मनाते आए है, यही हमारी पहचान है। |
29-08-2015, 09:43 PM | #3 |
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Re: उत्सव, त्यौहार और मनुष्य
कई बार मुझे सुनने में आया था की भारत में कई महिनों तक लोग त्यौहारों में व्यस्त रहतें है, ईन त्यौहारो में लोग काम कर पातें है और उत्पाद वगैरह कम होता है। अगर कर्मचारीयों की छुट्टीयां धीरे धीरे कम कर दी जाए तो ज्यादा मुनाफा मिल सकता है। ईसी लालची विचार से कोर्पोरेट जगत ने उत्सवों की छुट्टीयां तो बंध ही कर दी, साथ साथ त्यौहारों की छुट्टीयां भी कम कर दी। |
29-08-2015, 09:45 PM | #4 |
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Re: उत्सव, त्यौहार और मनुष्य
आम ईन्सान को आय जितनी ज़रुरी है, उतनी ही बचत की भी ज़रुरत है। लेकिन धीरे धीरे विज्ञापनों के द्वारा पैसों को खर्च करना सीखाया गया । समांतरीत रुप से आम ईन्सान की महेनत/करकसर की बचत को भी निशाना बना कर उसे अपने निवेशों की तरफ मोड़ दिया। मतलब की रुपये पैसे की महत्ता बढा दी गई और जीवन के कई महत्वपुर्ण क्षण और समय ले लिए गए। अब सब के उपर भविष्य के डर का एक अनदेखा पींजरा है, बेड़ीयां है जिनसे निकल कर वह जीवन का मुल रस का पान भी नहीं कर सकता। |
29-08-2015, 09:46 PM | #5 |
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Re: उत्सव, त्यौहार और मनुष्य
एसा नहीं है की कोर्पोरेट जगत में सिर्फ विकासशील काम ही किए जाते है और छुट्टीयां नहीं होती! अमेरिका या ब्रिटन, जहां से भी यह कोर्पोरेट जगत का चलन शुरु हुआ है वहां पुरा महीना क्रिसमस की तैयारीयां होती है, जुलुस निकाले जाते है। साल के बीच में पुरा महीना विदेशो की सैर की जाती है। या फिर हफ्ते के अंत में बेतुकी पार्टीयां होती ही रहती है। तो हम सब भारतीय भला हमारे खुद के युगो से चले आ रहे उत्सव/त्यौहार क्युं नही मनाएंगे भला? |
29-08-2015, 09:49 PM | #6 |
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Re: उत्सव, त्यौहार और मनुष्य
उत्सव और त्यौहार ही जीवन में सही रंग भरतें है। आईए मन से सारे बोज को उतार फैंके...प्यार व खुशीयां बाटें और पाएं...बड़ों का अकेलापन दूर करें, बच्चों की छोटी छोटी खुशियां पुरी करें, मित्रों का सहारा बनें। कितनी अजीब बात है की दुनिया की सबसे अच्छे पल हमें मुफ्त में मिलते है। आईए सारे उत्सव व त्यौहार (हमारे हैसियत व तरीके से) मनाए। जीवन भी एक उत्सव है! |
29-08-2015, 11:02 PM | #7 | |
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Re: उत्सव, त्यौहार और मनुष्य
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