22-12-2011, 09:24 PM | #11 |
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Re: !!भोजपुरी लोकगीत !!
समधी धीरे धीरे रउवा आईँ, राउर धोतिया मलिन होई जाई अब धोबिया जे राउर बहनोइया लेहब उनका से कपड़ा धोआई समधी पांवे पांवे रउवा आईँ, राउर जूतवा धूमिल हो जाई अब मोचिया जे राउर बहनोइया अब पालिश दिहे ओहिपे लगाई
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ये दिल तो किसी और ही देश का परिंदा है दोस्तों ...सीने में रहता है , मगर बस में नहीं ...
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22-12-2011, 09:27 PM | #12 |
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Re: !!भोजपुरी लोकगीत !!
केकर बटिया निहारेलु गोरिया,
बईठल छितिज्वा के पास, केकरा सपनवा में रहेलू गोरिया, लागल अंचरवा में दाग
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22-12-2011, 09:31 PM | #13 |
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Re: !!भोजपुरी लोकगीत !!
तोहरा के देखनी दूल्हा बकरी चरावत हो
कईसे कईसे अइल दूल्हा बाबा के पसंद हो तोहरा के देखनी दूल्हा हरवा चलावत हो कईसे कईसे अइल दूल्हा भईया के पसंद हो के अइसन वर खोजल बुडबक गवार हो बाड़ा लज्कोकड़ बा की खूब दतचीयार हो बाबा के अंखिया लागल रहे मधुमखिया हो ओही आँखे कईले बाबा दूल्हा पसंद हो भईया के अंखिया लागल रहे मधुमखिया हो ओही आँखे कईले भईया दूल्हा पसंद हो
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ये दिल तो किसी और ही देश का परिंदा है दोस्तों ...सीने में रहता है , मगर बस में नहीं ...
Last edited by Ranveer; 24-12-2011 at 09:25 PM. |
24-12-2011, 09:21 PM | #14 |
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Re: !!भोजपुरी लोकगीत !!
इस गीत में लड़की और लड़के में फर्क पर टिप्पणी की गयी है -
एके कोखी बेटा जन्मे एके कोखी बेटिया दू रंग नीतिया काहे कईल हो बाबू जी दू रंग नीतिया बेटा के जनम में त सोहर गवईल अरे सोहर गवईल हमार बेरिया, काहे मातम मनईल हमार बेरिया दू रंग नीतिया काहे कईल हो बाबू जी दू रंग नीतिया बेटा के खेलाबेला त मोटर मंगईल अरे मोटर मंगईल हमार बेरिया, काहे सुपली मऊनीया हमार बेरिया दू रंग नीतिया काहे कईल हो बाबू जी दू रंग नीतिया बेटा के पढ़ाबेला स्कूलिया पठईल अरे स्कूलिया पठईल हमार बेरिया, काहे चूल्हा फूँकवईल हमार बेरिया दू रंग नीतिया काहे कईल हो बाबू जी दू रंग नीतिया बेटा के बिआह में त पगड़ी पहिरल अरे पगड़ी पहिरल हमार बेरिया, काहे पगड़ी उतारल हमार बेरिया दू रंग नीतिया काहे कईल हो बाबू जी दू रंग नीतिया एके कोखी बेटा जन्मे एके कोखी बेटिया दू रंग नीतिया काहे कईल हो बाबू जी दू रंग नीतिया (आभार -अंतर्जाल )
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24-12-2011, 10:56 PM | #15 |
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Re: !!भोजपुरी लोकगीत !!
बहुत अच्छा भाइ आगे पोस्ट करो
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ईश्वर का दिया कभी 'अल्प' नहीं होता,जो टूट जाये वो 'संकल्प' नहीं होता,हार को लक्ष्य से दूर ही रखना,क्यूंकि जीत का कोई 'विकल्प' नहीं होता. |
25-12-2011, 08:19 AM | #16 | |
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Re: !!भोजपुरी लोकगीत !!
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घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
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