18-11-2015, 10:05 PM | #28 |
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Re: इधर-उधर से
श्रीनगर (कश्मीर) की वो शाम
13 नवम्बर शुक्रवार के दिन पेरिस में आतंकवादी हमला हुआ है. लगभग 150 निर्दोष व्यक्ति मारे गए हैं और 200 के करीब घायलों का इलाज अस्पतालों में चल रहा है. दुनिया भर के देशों ने इस नृशंस हत्याकांड की निंदा की है. कई पश्चिमी देशों ने is या isis (इस्लामिक स्टेट नामक आतंकवादी संगठन जिसने पेरिस में हुए सीरियल ब्लास्ट की ज़िम्मेदारी ली है) को जड़ से उखाड़ फेंकने का ऐलान किया है. फ़्रांस ने तो इसके विरुद्ध पहले से जारी हमले और तेज कर दिए हैं. भारत में भी फ्रांस में हुए हमलों के विरुद्ध लोगों में आक्रोश है. कई जगह कैंडल लाइट जलूस निकाले गए हैं. मीडिया- प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक दोनों –में इसके विरोध की अनुगूंज सुनाई दे रही है. टीवी पर बहसें हो रही हैं. मुख्य मुद्दा यह है कि भारत में मुस्लिम समुदाय के लोगों द्वारा फ्रांस में हुए वहशियाना हमलों और कत्लेआम की पुरज़ोर तरीके से निंदा क्यों नहीं की गयी? ऐसे माहौल में मुझे अपने जीवन की एक घटना याद आती है जिसे मैं आप सब के साथ बांटना चाहता हूँ.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) Last edited by rajnish manga; 18-11-2015 at 10:17 PM. |
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