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Old 30-11-2010, 07:39 PM   #11
Bholu
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Aarjo ji namsty
hum dil se aapka sewagat krta hai
aapne badi der laga di av se es forum par aane me
filal apko koi jarorat ho forum par toh yaad karna
hum aap ki jarorat ka sath jaror dege
__________________
Gaurav kumar Gaurav
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Old 30-11-2010, 11:52 PM   #12
jai_bhardwaj
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Default Re: Dil ki Baat

सिमटना, सिकुड़ना, झिझकना, सहमना
खुदा जाने मुझको ये क्या हो रहा है
बहुत कुछ है कहने को ऐ मेरे मौला!
मगर जाने क्यों मुझको डर लग रहा है
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

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Old 02-12-2010, 11:03 PM   #13
Kumar Anil
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Default Re: Dil ki Baat

दिल की बात

फोरम को न जाने क्या हो गया ,
रसातल मेँ न जाने क्योँ हो गया ।
नियामक हैँ इसके कहीँ सो रहे ,
हिन्दी को रोमन मेँ ये बो रहे ।
चिन्तन था मौलिक , बुद्धि प्रखर थी ,
कहाँ खो गये वो कहाँ सो गये ।
निशाँत का जलवा जय की कलम ,
इन नवेलोँ के आगे हो गयी है कलम ।
फोरम के खातिर कुछ मानक बनाओ ,
फूहड़ता को प्रविष्टि मेँ न गिनती कराओ ।
बत्तीसी निकाले जगधर हमारा ,
कूड़ा गजोधर का पढ़ता है प्यारा ।
बत्तीसी दिखाओ गिनती बढ़ाओ ,
अपने को आगे कुछ ऐसे भगाओ ,
प्रविष्टी का कोरम हो गया है पूरा ,
फोरम का उद्देश्य मगर रह गया अधूरा ।
तमगोँ की रेवड़ी बँटती यहाँ है ,
मुझको बताओ क्या फायदा है ।
चिन्तन को प्यारे फिर से सजाओ ,
हिन्दी की कक्षा फिर से लगाओ ,
सूत्र सार्थक हो तब ही बनाओ ,
प्रविष्टि के नाम पर न दुकाने चलाओ ।

Last edited by jai_bhardwaj; 02-12-2010 at 11:23 PM. Reason: पंक्तियाँ लयबद्ध की /
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Old 03-12-2010, 12:07 AM   #14
jai_bhardwaj
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Default Re: दिल की बात

मित्र अनिल,
विचारोत्तेजक अभिव्यक्ति पढ़ कर हर्ष हुआ /
मैं आपके अवसाद को तनिक क्षीण करने की चेष्टा कर रहा हूँ /
मित्रवर! इस फोरम के सिद्धांत बहुत कुछ भारतीय परिवेश और भारतीय सोच पर टिके हुए हैं / अपने इस फोरम में हम हिन्दी (देवनागरी लिपि) में लिखना पढ़ना चाहते हैं और सचमुच हम ऐसा ही कर रहे हैं / कुछ नवागत सदस्य , मोबाइल (ऐसे जिनमे हिंदी से लिख पाना संभव नहीं है) से फोरम का भ्रमण करने वाले सदस्य, अत्यंत धीमी इन्टरनेट गति के माध्यम से फोरम में घूमने वाले सदस्य और हाँ ! कुछ तकनीकी परेशानियों से पीड़ित सदस्य ही रोमन में या फिर अंगरेजी में लिखते हैं / हमें ऐसे सदस्यों की मजबूरी समझनी ही पड़ती है /अब देखिये .. सभी सदस्यों की सोच एक जैसी तो नहीं हो सकती है , न / अपने इस फोरम में दोनों ही प्रकार की भाषाओं और विधाओं (अंगरेजी एवं हिन्दी-देवनागरी और रोमन) में लिखने की स्वतन्त्रता है किन्तु हिन्दी भाषा के प्रेमी सदस्य भला ऐसे रोमन लिखने वाले सदस्यों से कैसे विचलित हो सकते हैं ? हमें तो सभी को साथ लेकर चलना है !! कोई कंधा छोटा है कोई बड़ा तो क्या साथ छोड़ दें !! नहीं मित्र नहीं !! ऐसा तो हमारा स्वभाव नहीं है / जब वे रोमन लिखना नहीं छोड़ सकते तो हम हिंदी लिखना कैसे छोड़ सकते हैं /
सभी नियामक और प्रभारी अपने अपने कार्य में परिपक्व हैं निरंतर क्रियाशील हैं / कुछ नए नए विचारों - विषयों और फोरम के उत्कर्ष के लिए हम सभी निरंतर चर्चा कर रहे हैं / तमगों की रेवड़ियां सदस्यों को फोरम में(नियंत्रित किन्तु) स्वचालित पद्धति के अनुसार प्राप्त हो रही हैं /
साफ़ सुथरे और सार गर्भित सूत्रों और प्रविष्टियों की हमें भी आवश्यकता है और हम निरंतर स्वयं को ऐसे ही वातावरण में पाते हैं किन्तु यदि बगीचे में खिले हुए गुलाबों के मध्य कोई एक दो खरपतवार के पौधे खड़े हों तो उनसे हमें घृणा नहीं करनी चाहिए बल्कि गुलाबों पर प्यार बरसाना चाहिए / गुलाब दीर्घजीवी हैं किन्तु खरपतवार...? अल्पजीवी !
मुझे आपसे कुछ बहुउद्देशीय सूत्रों की प्रतीक्षा है /
धन्यवाद /
__________________
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Old 03-12-2010, 12:18 AM   #15
jai_bhardwaj
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Default Re: दिल की बात


लगी दिल की न बुझ पाए, उसे सावन कहूँ कैसे,
कली मन की न खिल पाए,उसे मधुबन कहूँ कैसे
विकलता की हवा का विष, तुम्हे भी छू गया है तो
मुझे फिर बन्धु ! बतलाओ, तुम्हे चन्दन कहूँ कैसे !!
गड़ा कर आँख में आँखे, सच्चाई जो न कह पाए
जमी हो धुन्ध चेहरे पर , उसे दरपन कहूँ कैसे !!
बंधा धागे में प्रिय अपना, जिसे सुनकर ना आ जाए
धड़कता तो है दिल लेकिन, उसे धड़कन कहूँ कैसे !!
यहाँ इस स्वार्थ के युग में, निभाया साथ तो अब तक,
नियति की वक्रता बतला, तुझे दुश्मन कहूँ कैसे !!
उठाकर शव स्वयं अपना, स्वयं अपने ही कंधे पर
विवश ढोना पड़े जिसको, उसे जीवन कहूँ कैसे !!
__________________
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Old 03-12-2010, 01:21 AM   #16
amit_tiwari
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Originally Posted by Kumar Anil View Post
दिल की बात

फोरम के खातिर कुछ मानक बनाओ ,
फूहड़ता को प्रविष्टि मेँ न गिनती कराओ ।
बत्तीसी निकाले जगधर हमारा ,
कूड़ा गजोधर का पढ़ता है प्यारा ।
बत्तीसी दिखाओ गिनती बढ़ाओ ,
अपने को आगे कुछ ऐसे भगाओ ,

==================
==================

सूत्र सार्थक हो तब ही बनाओ ,
प्रविष्टि के नाम पर न दुकाने चलाओ ।
अनिल भाई, काफी प्रसन्नता हुई जानकर आपके विचार |
बाकी जो आपको कहना है और जो मैं प्रतिक्रिया देना चाहता हूँ, आप समझ गए होंगे |
बहुतायत में सूत्र ऐसे बन रहे हैं जिनका उद्देश्य नहीं और प्रविष्टियाँ ऐसी हो रही हैं जिनका अर्थ नहीं |

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Originally Posted by bhaaiijee View Post



किन्तु यदि बगीचे में खिले हुए गुलाबों के मध्य कोई एक दो खरपतवार के पौधे खड़े हों तो उनसे हमें घृणा नहीं करनी चाहिए बल्कि गुलाबों पर प्यार बरसाना चाहिए / गुलाब दीर्घजीवी हैं किन्तु खरपतवार...? अल्पजीवी !
मुझे आपसे कुछ बहुउद्देशीय सूत्रों की प्रतीक्षा है /
धन्यवाद /
भाई बीच में हमेशा कि तरह टांग अडाने के लिए खेद है किन्तु यह आप स्वयं जानते हैं कि गुलाब ही एक दो हैं खर-पतवार ज्यादा हो रहा है ! हमें पता है आप कह नहीं सकते किन्तु विश्वास है कि आप मंतव्य समझ रहे हैं |

ये खरपतवार अल्पजीवी है किन्तु ये बगिया में इतना कचरा ना कर दे कि कल को साफ़ करना ही असंभव हो जाये |

==============================
==============================
फोरम के एक कर्ताधर्ता से भी मैंने इस विषय में कहा था किन्तु उन्हें उचित समय की प्रतीक्षा है, मेरा बस इतना कहना है कि No matter how fast you code, if it has bug your program will not run.
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Old 03-12-2010, 07:51 AM   #17
kamesh
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kamesh has a spectacular aura aboutkamesh has a spectacular aura aboutkamesh has a spectacular aura about
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दिल की बात

फोरम को न जाने क्या हो गया ,
रसातल मेँ न जाने क्योँ हो गया ।
नियामक हैँ इसके कहीँ सो रहे ,
हिन्दी को रोमन मेँ ये बो रहे ।
चिन्तन था मौलिक , बुद्धि प्रखर थी ,
कहाँ खो गये वो कहाँ सो गये ।
निशाँत का जलवा जय की कलम ,
इन नवेलोँ के आगे हो गयी है कलम ।
फोरम के खातिर कुछ मानक बनाओ ,
फूहड़ता को प्रविष्टि मेँ न गिनती कराओ ।
बत्तीसी निकाले जगधर हमारा ,
कूड़ा गजोधर का पढ़ता है प्यारा ।
बत्तीसी दिखाओ गिनती बढ़ाओ ,
अपने को आगे कुछ ऐसे भगाओ ,
प्रविष्टी का कोरम हो गया है पूरा ,
फोरम का उद्देश्य मगर रह गया अधूरा ।
तमगोँ की रेवड़ी बँटती यहाँ है ,
मुझको बताओ क्या फायदा है ।
चिन्तन को प्यारे फिर से सजाओ ,
हिन्दी की कक्षा फिर से लगाओ ,
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मन रे तू कहे न धीर धरे
वो नेर्मोही मोह न जाने जिन का मोह करे

वह क्या बात कही है सर जी आप ने
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तोडना टूटे दिलों का बुरा होता है

जिसका कोई नहीं उस का तो खुदा होता है
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Old 03-12-2010, 11:28 AM   #18
Kumar Anil
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Default Re: दिल की बात

[QUOTE=amit_tiwari;22286]अनिल भाई, काफी प्रसन्नता हुई जानकर आपके विचार |
बाकी जो आपको कहना है और जो मैं प्रतिक्रिया देना चाहता हूँ, आप समझ गए होंगे |
बहुतायत में सूत्र ऐसे बन रहे हैं जिनका उद्देश्य नहीं और प्रविष्टियाँ ऐसी हो रही हैं जिनका अर्थ नहीं |

तिवारी जी शुक्रिया मेरी पीड़ा मेँ सहभागिता के लिए ।मित्र आपका कथन शत प्रतिशत सत्य है कि सोद्देश्यपूर्ण सूत्र मेँ अर्थपूर्ण प्रविष्टि ही की जानी चाहिए । निशाँत जी के सूत्र चरित्रहीन के मामिँक विश्लेषण मे डूबने के लिए उसके साथ तादात्म्य स्थापित करने के लिए मैँ प्रायः हर दूसरे तीसरे उसे पढ़ता अवश्य हूँ मगर आज वो अनर्गल प्रलाप भरे सूत्रोँ के धक्के खाकर अन्तिम पृष्ठ पर अपनी नियति पर आँसू बहा रहा है । आप जैसे विवेकशील मेरी मनःस्थिति का स्वतः अनुमान कर सकते हैँ । कतिपय सदस्योँ को अपनी पोस्ट मेँ अप्रासंगिक रूप से ही ही हा हा मात्र लिखकर प्रविष्टि बढ़ाते हुए पाया , निश्चय ही कालान्तर मेँ इसके दुष्परिणाम हमारे सम्मुख होँगे ।प्रेम के सम्बन्ध मेँ सूत्रधार उसे सेक्स बता रहा है । प्रेम की व्यापकता को कितने संकीर्ण अर्थ मेँ प्रस्तुत किया जा रहा है बल्कि मैँ तो देख रहा हूँ कि इन मायावी शब्दोँ के माध्यम से फोरम मेँ विकार पैदा करने का एक सतत् कार्यक्रम जारी हो गया है ।
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Old 03-12-2010, 11:49 AM   #19
teji
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[QUOTE=Kumar Anil;22422]
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Originally Posted by amit_tiwari View Post
निशाँत जी के सूत्र चरित्रहीन के मामिँक विश्लेषण मे डूबने के लिए उसके साथ तादात्म्य स्थापित करने के लिए मैँ प्रायः हर दूसरे तीसरे उसे पढ़ता अवश्य हूँ मगर आज वो अनर्गल प्रलाप भरे सूत्रोँ के धक्के खाकर अन्तिम पृष्ठ पर अपनी नियति पर आँसू बहा रहा है ।

मैं पर्वतारोही हूँ।
शिखर अभी दूर है।
और मेरी साँस फूलनें लगी है।

मुड़ कर देखता हूँ
कि मैनें जो निशान बनाये थे,
वे हैं या नहीं।
मैंने जो बीज गिराये थे,
उनका क्या हुआ?

किसान बीजों को मिट्टी में गाड़ कर
घर जा कर सुख से सोता है,

इस आशा में
कि वे उगेंगे
और पौधे लहरायेंगे ।
उनमें जब दानें भरेंगे,
पक्षी उत्सव मनानें को आयेंगे।

लेकिन कवि की किस्मत
इतनी अच्छी नहीं होती।
वह अपनें भविष्य को
आप नहीं पहचानता।

हृदय के दानें तो उसनें
बिखेर दिये हैं,
मगर फसल उगेगी या नहीं
यह रहस्य वह नहीं जानता ।
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Old 03-12-2010, 12:03 PM   #20
teji
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[QUOTE=Kumar Anil;22422]
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Originally Posted by amit_tiwari View Post
कतिपय सदस्योँ को अपनी पोस्ट मेँ अप्रासंगिक रूप से ही ही हा हा मात्र लिखकर प्रविष्टि बढ़ाते हुए पाया
हम जीवन के महाकाव्य हैं

केवल छ्न्द प्रसंग नहीं हैं।


कंकड़-पत्थर की धरती है
अपने तो पाँवों के नीचे


हम कब कहते बन्धु! बिछाओ
स्वागत में मखमली गलीचे
रेती पर जो चित्र बनाती
ऐसी रंग-तरंग नहीं है।


तुमको रास नहीं आ पायी
क्यों अजातशत्रुता हमारी


छिप-छिपकर जो करते रहते
शीतयुद्ध की तुम तैयारी
हम भाड़े के सैनिक लेकर
लड़ते कोई जंग नहीं हैं।


कहते-कहते हमें मसीहा
तुम लटका देते सलीब पर


हंसें तुम्हारी कूटनीति पर
कुढ़ें या कि अपने नसीब पर
भीतर-भीतर से जो पोले
हम वे ढोल-मृदंग नहीं है।


तुम सामुहिक बहिष्कार की
मित्र! भले योजना बनाओ


जहाँ-जहाँ पर लिखा हुआ है
नाम हमारा, उसे मिटाओ
जिसकी डोर हाथ तुम्हारे
हम वह कटी पतंग नहीं है।
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