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Old 10-02-2013, 07:40 PM   #23661
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पुरस्कार और सम्मान से नहीं, पक्षधरता से
‘बड़ा’ बनता है लेखक : डॉ. प्रतिभा राय


नई दिल्ली। किसी भी भाषा या देश का लेखक अपने लेखन के लिए मिले पुरस्कार और सम्मान से नहीं, बल्कि रचनाओं में दमित और शोषित वर्ग की पक्षधरता से बड़ा बनता है। ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त ओड़िया लेखिका डॉ. प्रतिभा राय ने कहा कि लेखक अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज का सुधारक होता है। वह अपने लेखन और उसके लिए पुरस्कार-सम्मान से नहीं, अपनी जनपक्षधरता और सामाजिक सरोकार से बड़ा बनता है। प्रतिभा राय को साहित्यिक क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। वह ज्ञानपीठ पुरस्कार पाने वाली ओड़िशा की पहली महिला हैं। भारतीय सांस्कृतिक सम्बंध परिषद् की ओर से आयोजित 11वें अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी उत्सव में डॉ. प्रतिभा राय ने कहा कि लेखक का काम समाज की विषमताओं को सामने लाना और बराबरी के हक में खड़ा होना है। वह सिर्फ लेखन में नहीं, बल्कि व्यवहार और विचार में भी विद्रोही होता है। उसकी प्रत्येक रचना दमित और शोषित वर्ग की वकालत करती है। दरअसल उसका यही विद्रोह और पक्षधरता समाज के प्रति उसकी जिम्मेदारी होती है। उल्लेखनीय है कि ओड़िशा सरकार ने अपने राजकीय मुखपत्र ‘ओड़िशा रिव्यू’ का ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता इस लेखिका पर केन्द्रित विशेषांक निकालने की घोषणा की है। ओड़िशा के सूचना एवं जनसंपर्क मंत्री अरूण साहू ने बताया कि उत्कल प्रसंग (उड़िया) और ओडिशा रिव्यू (अंग्रेजी) के प्रिंट एवं वेब दोनों संस्करणों में यह विशेषांक प्रकाशित किया जाएगा। डॉ. प्रतिभा राय को ज्ञानपीठ के अलावा अनेक पुरस्कारों से विभूषित किया जा चुका है। प्रतिभा राय का जन्म 21 जनवरी 1943 को हुआ था। उनकी साहित्यिक यात्रा नौ वर्ष की आयु में ही प्रारंभ हो गई थी, लेकिन एक सशक्त लेखिका के तौर पर उनकी पहचान 1974 में प्रकाशित उपन्यास ‘वर्षा, बसंत बैसाख’ से बनी। इसके बाद 1977 में उनके उपन्यास ‘अरण्या’, 1978 में ‘निशीधा पृथिवी’ और 1979 में ‘परिचय’ भी को भी काफी सराहना मिली। प्रतिभा राय को उनके उपन्यास ‘शिलापद्म’ के लिए ओड़िशा साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ, जबकि उन्हें उनके उपन्यास ‘यज्ञसेनी’ के लिए मूर्तिदेवी पुरस्कार और सरला पुरस्कार भी मिला। उनकी पुस्तकें ओड़िशा में काफी लोकप्रिय हैं।
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Old 10-02-2013, 07:40 PM   #23662
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एमसीआई अधिनियम में होगा बदलाव
सरकार लाने जा रही है नया विधेयक

नई दिल्ली। भारतीय चिकित्सा परिषद (एमसीआई) के भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे होने के मद्दे-नजर सरकार ‘नैतिक भ्रष्टाचार’ में संलिप्त पाए जाने पर इसके अध्यक्ष और अन्य पदाधिकारियों को हटाने का अधिकार अपने हाथ में लेने की योजना बना रही है। सरकार ने भारतीय चिकित्सा परिषद (संशोधन) विधेयक, 2013 के जरिए एमसीआई पर लागू होने वाले कानून में बदलाव लाने का प्रस्ताव रखा है, जिस पर स्वास्थ्य मंत्रालय विचार कर रहा है। प्रस्तावित विधेयक में नए प्रावधान के जरिए एमसीआई या राज्य परिषदों द्वारा रखे जाने वाले रजिस्टरों में हर 10 साल में चिकित्सकों के नामांकन के नवीकरण को अनिवार्य बनाने का प्रस्ताव है। एक बार विधेयक अधिनियम बन जाएगा, तो जिन चिकित्सकों के इंडियन मेडिकल रजिस्टर या राज्य चिकित्सा रजिस्टर में नामांकन के 10 साल हो गए होंगे, उन्हें एक साल के भीतर नवीकरण के लिए आवेदन देना होगा। कुछ साल पहले भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरने के बाद काउन्सिल के कामकाज को देखने की जिम्मेदारी काउन्सिल की जगह संचालक मंडल को दी गई थी। विधेयक में इस बात का प्रस्ताव है कि एक व्यक्ति अध्यक्ष या उपाध्यक्ष सिर्फ दो कार्यकाल के लिए रह सकता है। शुरुआती मसौदे के अनुसार काउन्सिल का कार्यकाल मौजूदा पांच साल से घटाकर चार साल कर दिया गया है। एक नई धारा जोड़ी गई है, जिसके तहत केंद्र को अध्यक्ष, उपाध्यक्ष या सदस्य को दिवालिया घोषित हो जाने, शारीरिक और मानसिक तौर पर अक्षम हो जाने और अदालत द्वारा ‘मतिशून्य’ घोषित किए जाने पर उन्हें हटाने की शक्ति दी गई है। अध्यक्ष, उपाध्यक्ष या सदस्य को हटाने का अन्य आधार किसी ऐसे अपराध में दोष सिद्धि है, जो केंद्र सरकार की राय में ‘नैतिक भ्रष्टाचार’ में शामिल है। विधेयक के प्रस्ताव के अनुसार वैसे व्यक्ति को भी पद से हटाया जा सकता है, जिसके वित्तीय या अन्य हित उसके कार्य को प्रभावित कर सकते हैं। एमसीआई के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष या सदस्य को तब भी हटाया जा सकता है, अगर केंद्र मानता है कि उसने अपने पद का दुरुपयोग किया है और उसका पद पर बने रहना जनहित के लिए हानिकारक है। विधेयक के प्रस्ताव के अनुसार अगर कोई व्यक्ति ‘सिद्ध दुर्व्यवहार’ का दोषी पाया जाता है, तो उसे पद से हटाया जा सकता है, लेकिन ऐसे व्यक्ति को अपना पक्ष रखने का ‘तर्कसंगत अवसर’ दिए बिना पद से नहीं हटाया जा सकता है। मेडिकल काउन्सिल आॅफ इंडिया की स्थापना पहली बार भारतीय चिकित्सा परिषद अधिनियम, 1933 के तहत 1934 में की गई थी। काउन्सिल का बाद में भारतीय चिकित्सा परिषद अधिनियम, 1956 के तहत पुनर्गठन किया गया।
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Old 10-02-2013, 07:41 PM   #23663
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देश के किसी भी कोने में दस मिनट में मिलेंगे रुपए
डाक विभाग ने बीएसएनएल के सहयोग से शुरू की योजना

जालंधर। भारत सरकार के डाक विभाग ने भारत संचार निगम लिमिटेड के सहयोग से फंड ट्रांसफर की एक ऐसी व्यवस्था शुरू की है, जिसके तहत, किसी बैंक या डाकघर में खाता न रहने पर भी रकम केवल दस मिनट में लोगों को मिल जाएगी। हालांकि इसके लिए उन्हें अपने निकटतम डाकघर में जाना पड़ेगा। यह सेवा न केवल तत्काल राशि मुहैया कराती है, बल्कि मनीआॅर्डर जैसी सेवा से सस्ती भी है। डाक विभाग के अधिकारियों का कहना है कि इस सेवा का सबसे अधिक लाभ उन कुशल और अकुशल क्षेत्र के श्रमिकों को मिलेगा, जो अपने घर से दूर दूसरे प्रदेशों में जा कर काम करते हैं तथा अपने घर पर रिश्तेदारों को पैसा भेजना चाहते हैं। विभाग का कहना है कि इसके लिए न तो भेजने वाले को और न ही प्राप्तकर्ता को किसी बैंक या डाकघर में बचत खाता खोलने की जरूरत पड़ेगी। हां, प्राप्तकर्ता के पास मोबाइल फोन होना जरूरी है, क्योंकि फंड ट्रांसफर की इस व्यवस्था में मोबाइल नंबर की मदद ली जाती है। इस बारे में जालंधर के वरिष्ठ डाक अधिकारी जी. सी. गोयल ने बताया कि पूरी प्रक्रिया दस मिनट की है। भेजने वाले से हम एक फार्म भरवाते हैं, जिसमें प्राप्तकर्ता का मोबाइल नंबर अंकित करना जरूरी है। जैसे ही विभाग को भेजने वाले से फार्म और पैसा मिलेगा, तत्काल एक सिस्टम जेनरेटेड कोड प्राप्तकर्ता के मोबाइल पर पहुंचेगा। वह इस कोड और नाम को बता कर अपने नजदीकी डाकघर से रकम प्राप्त कर सकता है। भारत सरकार ने इस सेवा की शुरुआत पिछले साल नवंबर में पंजाब, बिहार और केरल सहित कुछ अन्य प्रदेशों में की थी। अब यह सेवा लगभग पूरे देश में शुरू हो चुकी है। ज्यादातर लोगों को इसकी जानकारी नहीं है। गोयल ने कहा कि ‘मोबाइल मनी ट्रांसफर’ नामक यह नई सेवा मनीआॅर्डर से सस्ती है और खासकर ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोगों के लिए अब तक की किसी भी फंड ट्रांसफर की व्यवस्था से बेहतर और त्वरित जरिया है। उन्होंने बताया कि 100-1500 रुपए भेजने के लिए शुल्क के तौर पर 45 रुपए, 1501 से 5000 रुपए के लिए 79 रुपए जबकि 5001 से दस हजार रुपए तक के लिए 112 रुपए बतौर शुल्क देना होगा। इसमें कमीशन तथा कर दोनों शामिल हैं। उन्होंने बताया कि इसके लिए न तो भेजने वाले को न ही प्राप्तकर्ता को किसी प्रकार के खाते की जरूरत है। इस सेवा का लाभ पूरे देश में कहीं भी उठाया जा सकता है। इसका सबसे अधिक लाभ घर से दूर जाकर काम करने वाले श्रमिकों को मिलेगा, जिनके पास किसी प्रकार का खाता नहीं है और उन्हें रुपए भेजने में कठिनाई आती है। गोयल ने यह भी कहा कि यह न केवल श्रमिकों को बल्कि घरेलू पर्यटकों अथवा हर आम या खास के लिए बेहतर है। कई बार रुपए की कमी के कारण तत्काल आपको आवश्यकता होती है, आप अपने किसी भी सगे सम्बंधी या दोस्त को फोन कर रुपए मंगवा सकते हैं। रुपए भेजने के 21 दिन के भीतर प्राप्तकर्ता को पैसा ले लेना होता है। अगर 21 दिन तक प्राप्तकर्ता रुपए पर दावा नहीं करता है, तो इसके बाद वह न तो दावा कर सकता है और न ही प्राप्त कर सकता है। एक सवाल के उत्तर में गोयल ने कहा कि जरूरी नहीं है कि फार्म पर जिस शहर का पता लिखा हो, उसी शहर के किसी डाकघर से रुपए लिए जाएं। सिस्टम जेनरेटेड कोड और फार्म पर लिखा नाम बता कर आप देश के किसी भी डाकघर से पैसा प्राप्त कर सकते हैं। यह पूछे जाने पर कि क्या इसका दुरुपयोग हो सकता है, गोयल ने कहा कि इसका दुरुपयोग नहीं हो सकता। अगर किसी को सिस्टम जेनरेटेड कोड मिल भी जाता है, तो उसको नाम पता नहीं होगा कि किसके नाम से भेजा गया है और जब तक दोनों बातों की जानकारी नहीं मिलेगी, तब तक प्राप्तकर्ता को यह रुपए नहीं मिल सकते। उन्होंने कहा कि यह भी नहीं हो सकता कि कोई अपना कोड किसी को बता दे। इसमें जब तक प्राप्त करने वाला खुद किसी को नहीं बताएगा, तब तक कोई गड़बड़ी नहीं हो सकती।
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Old 10-02-2013, 07:42 PM   #23664
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‘दुर्लभतम में से दुर्लभ’ जांच को चाहिए समाज की मंजूरी : सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ‘दुर्लभतम में से दुर्लभ’ जांच न्यायाधीश केंद्रित नहीं है, बल्कि यह समाज की धारणा पर निर्भर करती है कि क्या वह खास तरह के अपराधों में दोषी पाए गए लोगों को मौत की सजा को मंजूरी देता है। न्यायमूर्ति के. एस. राधाकृष्णन और न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की पीठ ने कहा कि अदालतें मौत की सजा देती हैं, क्योंकि स्थिति की ऐसी ही मांग होती है, संवैधानिक बाध्यता होती है, यह जनता की इच्छा द्वारा प्रतिबिंबित होता है, न कि यह न्यायाधीश केंद्रित है। पीठ ने कहा कि मौत की सजा देने के लिए भड़काने वाली परिस्थितियों (अपराध जांच) को पूरी तरह संतुष्ट किया जाना चाहिए और आरोपी के पक्ष में गंभीरता कम करने वाली परिस्थितियां (अपराधी परीक्षण) नहीं होनी चाहिए। पीठ ने कहा कि अगर आरोपी के खिलाफ दोनों जांच संतुष्ट करने लायक होती हैं, तो भी अदालत को अंतत: दुर्लभतम में दुर्लभ मामले वाली जांच को लागू करना होता है, जो समाज की धारणा पर निर्भर करती है और न्यायाधीश केंद्रित नहीं है, कि क्या किसी खास तरह के अपराध में मौत की सजा को समाज मंजूरी देगा। शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी दो लोगों को सुनाई गई मौत की सजा को आजीवन कारावास में तब्दील करते हुए की। इन दोनों कोे पंजाब में संपत्ति विवाद में अगस्त 2000 में एक परिवार के चार सदस्यों की हत्या के मामले में दोषी ठहराया गया था। शीर्ष अदालत ने उनकी सजा में संशोधन करते हुए इसे 30 साल के आजीवन कारावास में तब्दील कर दिया। न्यायालय ने कहा कि जहां तक इस मामले का सवाल है, तो मौत की सजा की जरूरत नहीं है। गुरवैल और सतनाम सिंह को निचली अदालत ने 2000 में मौत की सजा सुनाई थी। इसे पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने 2005 में बरकरार रखा था।
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मध्य प्रदेश में आदिवासियों के प्रेम पर्व ‘भगोरिया’ की उल्टी गिनती शुरू

इंदौर। दुनियाभर में 14 फरवरी को मनाया जाने वाला ‘वैलेंटाइन डे’ न जाने कितने प्रेमी युगलों को एक कर देगा, लेकिन पारंपरिक प्रणय पर्व ‘भगोरिया’ की मस्ती में डूबने के लिए पश्चिमी मध्य प्रदेश के आदिवासी युवाओं को अभी इंतजार करना होगा। राज्य में इस साल प्रमुख ‘भगोरिया मेलों’ की शुरूआत 20 मार्च से हो रही है और यह सिलसिला 26 मार्च तक चलेगा। प्रेम का यह परंपरागत पर्व ‘हिंदुस्तान का दिल’ कहलाने वाले सूबे के झाबुआ, अलीराजपुर, धार, खरगौन और बड़वानी जैसे आदिवासी बहुल जिलों में मनाया जायेगा। इस पर्व के दौरान पश्चिमी मध्यप्रदेश के इन जिलों में 100 से ज्यादा स्थानों पर लगने वाले साप्ताहिक हाट ‘भगोरिया मेलों’ में तब्दील हो जाएंगे। सदियों से मनाए जा रहे भगोरिया के दौरान आदिवासी युवाओं के बेहद अनूठे ढंग से अपना जीवनसाथी चुनने की परंपरा है। हर साल टेसू (पलाश) के पेड़ों पर खिलने वाले सिंदूरी फूल पश्चिमी मध्य प्रदेश के आदिवासियों को फागुन के आने की खबर दे देते हैं और वे ‘भगोरिया’ मनाने के लिये तैयार हो जाते हैं। भगोरिया हाट को आदिवासी युवक-युवतियों का ‘मिलन समारोह’ कहा जा सकता है। परंपरा के मुताबिक भगोरिया हाट में आदिवासी युवक, युवती को पान का बीड़ा पेश करके अपने प्रेम का मौन इजहार करता है। युवती के बीड़ा ले लेने का मतलब है कि वह भी युवक को पसंद करती है। इसके बाद यह जोड़ा भगोरिया हाट से ‘भाग’ जाता है और तब तक घर नहीं लौटता, जब तक दोनों के परिवार उनकी शादी के लिये रजामंद नहीं हो जाते। बहरहाल, प्रेम की इस सदियों पुरानी जनजातीय परंपरा पर आधुनिकता का रंग गहराता जा रहा है। जनजातीय संस्कृति के जानकार बताते हैं कि भगोरिया मेलों के दौरान आदिवासी युवाओं के परंपरागत तरीके से जीवनसाथी चुनने के दृश्य लगभग गायब हो गए हैं। मगर वक्त के तमाम बदलावों के बावजूद भगोरिया का उल्लास जस का तस बना हुआ है। आदिवासी टोलियां इस बार भी ढोल और मादल (एक तरह का बाजा) की थाप और बांसुरी की स्वर लहरियों पर भगोरिया हाट में सुध-बुध बिसराकर झूूमने को बेचैन हैं। जनजाति के परंपरागत सुरों में हालांकि अब डीजे साउंड भी खूब घुल-मिल गया है। भगोरिया की विश्वप्रसिद्ध मस्ती को आंखों में कैद करने के लिए पश्चिमी मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल जिलों में इस बार भी बड़ी संख्या में देशी-विदेशी पर्यटकों के उमड़ने की उम्मीद है।
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रमन की एनएसजी सुरक्षा पर कांग्रेस ने उठाए सवाल, भाजपा खफा

रायपुर। केन्द्र सरकार द्वारा छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह को नक्सलियों की टॉप हिटलिस्ट में होने के कारण राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (एनएसजी) की सुरक्षा दिए जाने के निर्णय पर प्रदेश कांग्रेस द्वारा सवाल उठाने पर भाजपा ने कड़ी नाराजगी जताई है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की छत्तीसगढ़ इकाई के महामंत्री शिवरतन शर्मा ने आज यहां जारी बयान में कहा कि कांग्रेसियों को तो केवल गांधी-नेहरू परिवार पर ही खतरा नजर आता है और उन्हें सुरक्षा देने के लिए नियमों को परिवर्तित करने में भी उन्हें खामी नजर नहीं आती, पर अगर किसी अन्य नेता को सुरक्षा देने की बात होती है, तो उन्हें ऐतराज हो जाता है। उन्होंने कहा कि डॉ. सिंह पर नक्सली खतरे की बात किसी से भी छिपी नही है। केन्द्र सरकार की खुफिया एजेन्सियों ने इस बारे में पूरी सूचना केन्द्रीय गृह मंत्रालय को दी। इसके बाद वहीं से डॉ. सिंह की सुरक्षा को कड़ा करने तथा उनकी सुरक्षा में एनएसजी गार्ड तैनात करने का निर्णय हुआ है। शर्मा ने कहा कि केन्द्र में कांग्रेस नीत गठबंधन सरकार है और उसके द्वारा लिए निर्णय पर ही प्रदेश के कांग्रेसी नेताओ को ऐतराज है। उन्होंने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नन्द कुमार पटेल को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि मुख्यमंत्री या राज्य सरकार की ओर से डॉ. सिंह की सुरक्षा में एनएसजी गार्ड की तैनाती का कोई अनुरोध नहीं किया गया है।
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नाबालिग लड़की से दुराचार

सीतापुर। उत्तर प्रदेश में सीतापुर जिले के सकरन क्षेत्र में एक नाबालिग लड़की को कथित रूप से हवस का शिकार बनाए जाने का मामला सामने आया है। पुलिस सूत्रों ने आज यहां बताया कि बेलवा बसैया गांव में सोनू नामक व्यक्ति ने कल शाम खेत से सब्जी लेने गई 13 साल की एक लड़की से कथित रूप से बलात्कार किया। पुलिस ने मामला दर्ज कर अभियुक्त की तलाश शुरू कर दी है।
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साक्ष्य तोड़ने मरोड़ने पर पुलिस की खिंचाई
अदालत ने बलात्कार के आरोपी को बरी किया

नई दिल्ली। दिल्ली की एक त्वरित अदालत ने अपहरण और बलात्कार के मामले में आरोपी को बरी करते हुए इस प्रकरण में साक्ष्य तोड़ने-मरोड़ने को लेकर कुछ पुलिसकर्मियों के खिलाफ जांच शुरू करने का आदेश दिया है। इन पुलिस कर्मियों में एक महिला अधिकारी भी शामिल है। महिलाओं के प्रति यौन हिंसा के मामलों की सुनवाई के लिए गठित त्वरित अदालत के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश वीरेन्द्र भट ने पुलिस आयुक्त को निर्देश दिया है कि इस मामले में दोषी पाए गए पुलिस अधिकारियों को संवदेनशील बनाने के साथ ही प्रशिक्षित किया जाए, ताकि भविष्य में ऐसी घटना दोबारा नहीं हो। अदालत ने जून, 2010 में एक लड़की के अपहरण और बलात्कार के आरोप से युवक को बरी करते हुए यह आदेश दिया। अदालत ने कहा कि इस फैसले की प्रति पुलिस आयुक्त और दक्षिण पश्चिम दिल्ली के अतिरिक्त आयुक्त के पास भेजी जाए, ताकि उन्हें मातहत अधिकारी की जांच के तरीके और अदालत में झूठ बोलने के बारे में पता चल सके। अदालत ने कहा कि यदि आवश्यक हो तो इस मामले में जांच करके यह पता लगाया जाए कि साक्ष्यों के साथ हेराफेरी क्यों की गई। अदालत ने इस मामले में लड़की के पिता की मिलीभगत से जांच में हेराफेरी के लिए महिला जांच अधिकारी सब इंसपेक्टर सुनीता शर्मा को भी आड़े हाथ लिया। अदालत ने कहा कि इस अधिकारी ने शिकायतकर्ता के प्रभाव और निगरानी में ही मामले की जांच की है। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने कहा कि ऐसा लगता है कि वह शिकायतकर्ता के इशारे पर काम कर रही थी और उसने आरोप पत्र में तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर पेश किया। यह घटिया जांच का नहीं, बल्कि शिकायतकर्ता के प्रभाव और निगरानी में हुई जांच का मामला है। आरोपी अली को बलात्कार के आरोप से बरी करते हुए अदालत ने कहा कि सारे तथ्यों और परिस्थितियों के मद्देनजर, जिसमें यह लड़की अपनी मर्जी से आरोपी के साथ मुंबई गई और उसके साथ ठहरी, यह विश्वास करना मुश्किल है कि उसने लड़की की इच्छा के बगैर ही उसके साथ यौन सम्बंध बनाए। लड़की की गवाही से भी यह तथ्य सिद्ध नहीं हुआ है। इस लड़की के पिता ने जून, 2010 में पुलिस में मामला दर्ज कराया था कि उसकी 14 वर्षीय बेटी बाजार से घर नहीं लौटी है। शिकायत में कहा गया था कि उसके पड़ोसियों ने लड़की को अंतिम बार आरोपी मोहम्मद बाशित अली के साथ देखा था और बहुत संभव है कि वह उसे मुंबई अपने दोस्त के घर ले गया हो। पुलिस के अनुसार अली और यह लड़की मुंबई में नहीं मिले, लेकिन बाद में इन दोनों को गोपनीय सूचना के आधार पर महाबीर एंक्लेव से पकड़ा गया। इस मामले की सुनवाई के दौरान अदालत को पता चला कि दिल्ली पुलिस के दो अधिकारी इस आरोपी को मुंबई से पकड़ने के बाद यहां लाये थे। अदालत ने कहा कि जांच अधिकारी ने अभियोग के गवाह के रूप में पेश होते वक्त इस सम्बंध में अदालत में सफेद झूठ बोला। अभियोजन के गवाह के रूप में पेश दूसरे अधिकारियों ने भी जांच अधिकारी के कहने पर इस मामले में अदालत में झूठ बोला। अदालत ने कहा कि इस मामले में मुंबई के उल्हास नगर थाने के पुलिस अधिकारियों से अभियोजन के गवाहों के रूप में पूछताछ भी नहीं की गई। अदालत ने कहा कि यह स्पष्ट नहीं है कि किन परिस्थितियों और किस सूचना के आधार पर आरोपी को मुंबई में पुलिस अधिकारियों ने गिरफ्तार किया।
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सह-जीवन साथी को धोखा देने वाले युवक पर बलात्कार का आरोप

नई दिल्ली। दिल्ली पुलिस ने बचपन की मित्र से शादी करने के बहाने कथित रूप से पांच साल सहजीवन की जिंदगी गुजारने और शारीरिक सम्बंध बनाने वाले युवक के खिलाफ उस लड़की से बलात्कार के आरोप में अदालत में आरोप पत्र दाखिल किया है। मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट ज्योति क्लेयर की अदालत में दाखिल आरोप पत्र में पुलिस ने कहा है कि बहुराष्ट्रीय कंपनी में कार्यरत रोहन अपनी बचपन की मित्र से साथ रहते हुए 2007 से ही बलात्कार कर रहा था। अदालत ने आरोप पत्र का संज्ञान लेते हुए रोहन को 21 फरवरी को व्यक्तिगत रूप से पेश होने के लिये सम्मन जारी किया है। इस मामले में गिरफ्तारी के तुरंत बाद ही रोहन को जमानत मिल गई थी। आरोप पत्र के अनुसार रोहन और यह लड़की एक दूसरे को बचपन से जानते थे। दोनों मेरठ जिले में पड़ोसी थे। दोनों ने एक साथ ही एमबीए किया था और फिर वे नौकरी के लिये 2007 में दिल्ली आ गए थे। दिल्ली में सितंबर, 2012 तक वे सहजीवन व्यतीत कर रहे थे। इसी बीच, युवक के कार्यालय ने उसका तबादला राजस्थान कर दिया, लेकिन एक बार फिर दिल्ली लौटने पर वे एक साथ रहने लगे थे। पुलिस के अनुसार साथ-साथ रहने के दौरान युवक ने इस लड़की के साथ विवाह करने के बहाने जबर्दस्ती शारीरिक सम्बंध स्थापित कर लिए थे। यह लड़की निजी क्षेत्र के एक बैंक में कार्यरत है। आरोप पत्र के अनुसार लड़की रोहन को अपना पति मानती थी, लेकिन वह उस समय स्तब्ध रह गई, जब लड़के ने कहा कि वह उससे विवाह नहीं कर सकता, क्योंकि उसके माता-पिता इस रिश्ते के खिलाफ हैं। पुलिस के अनुसार लड़की ने रोहन के परिवार के सदस्यों से भी मिलने का प्रयास किया, लेकिन उन्होंने उसे अपने घर में ही नहीं आने दिया। यही नहीं उन्होंने कहा कि वह उनके बेटे से शादी नहीं कर सकती। इसके बाद जैसे ही लड़की को पता चला कि रोहन अपने माता-पिता की पसंद की किसी लड़की से शादी करने जा रहा है, तो उसने 28 सितंबर, 2012 को पुलिस में शिकायत दर्ज करा दी। लड़की ने अपनी शिकायत में कहा कि रोहन और उसके परिवार ने उसका मानसिक और शारीरिक रूप से शोषण किया है।
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भोजशाला में पूजन और नमाज एक साथ हो सकती है : उमा भारती

होशंगाबाद (मप्र)। गंगा समग्र की सूत्रधार एवं मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने कहा है कि इस बार बसंत पंचमी शुक्रवार को पड़ने की वजह से धार स्थित भोजशाला में पूजन और जुमे की नमाज एक साथ हो सकती है तथा इसके लिए मुसलमानों को सहिष्णुता दिखानी चाहिए। अंतर्राष्ट्रीय नदी महोत्सव में शामिल होने आई उमा ने कल यहां संवाददाताओं से कहा कि कुछ साल पहले भी ऐसा ही मौका आया था, जब शुक्रवार के दिन बसंत पंचमी का उत्सव था। तब मुसलमानों ने सहिष्णुता दिखाते हुए भोजशाला की छत पर नमाज पढ़ी थी और हिन्दुओं ने नीचे पूजन किया था। उन्होंने कहा कि भोजशाला में परंपरानुसार बसंत पंचमी को हिन्दू समुदाय वाग्देवी की पूजा कर सके और उस दिन शुक्रवार होने की वजह से कमाल मौला मस्जिद में मुसलमान जुमे की नमाज अदा कर सकें, इसके लिए मुस्लिमों सहित सभी को सहिष्णुता दिखानी चाहिए, ताकि शांतिपूर्वक पूजन कार्यक्रम हो सके। पंचमी पूजन एवं जुमे की नमाज का आयोजन हिन्दू-मुस्लिम बंधुओं को मिलकर करना चाहिए। इससे प्रदेश और देश में सांप्रदायिक सद्भाव का संदेश जाएगा। संसद पर हमले के दोषी अफजल गुरू को दी गई फांसी पर प्रतिक्रिया में उमा ने कहा कि आतंकी अफजल गुरू को फांसी देने में देरी हुई है, जिससे देश को नुकसान हुआ है। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर पेश करने की चर्चा के संदर्भ में उन्होंने कहा कि उन्होंने (मोदी) कोई दावेदारी नहीं की है, फिर भी अगर उनका नाम सामने आ रहा है, तो पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह जब उनसे परामर्श लेंगे, तो वह अपने मत से उन्हें अवगत कराएंगी।
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