19-01-2011, 07:58 AM | #1 |
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साड़ी का आधुनिकीकरण!
[IMG]http://www.hamarazone.com/wp-content/uploads/2010/12/shilpa-****-saree8.jpg[/IMG] वर्तमान युग में टीवी का चलन हो गया है, जैसा उसमें कपडे पहनने का दिखाया जाता है हमारे यहाँ की महिलाएं उसे तुरंत अपनाती है|आजकल का फैशन इतना टीवी के सीरियल से जुड़ गया है कि यदि आप बाज़ार जाएँ तो दुकानदार साडी का नाम सीरियल के नाम से पूछता है कि आपको कौन सी साडी चाहिए? फिर साडी कि खरीददारी के बाद साडी पहनने कि बात आती है, तो फिर वही सीरियल आता है कि किसी x.y.z सीरियल में किसी x.y.z ने कुछ हट कर साडी बाँधी थी ठीक उसी प्रकार साडी उन्हें भी चाहिए होती है| अब वो साडी ऐसी बाँधी गयी होती है कि शरीर का आधा से ज्यादा भाग खुला होता है तभी वो मॉडर्न प्रतीत होते है| बाकि जो मर्यादा में साडी बांधते है उन्हें उपाधि दी जाती है "बहनजी टाईप " है| आजकल नया रियल्टी शो शुरू हुआ है उसमें पन्द्रह लड़कियां है शायद जिन्हें भारतीय परिधान साडी,घाघरा से बहुत लगाव है तभी तो कपड़ों का पूरी तरह चीरहरण हो रहा है| कपड़े पहने जाते है शरीर को ढँक कर एक सुंदर एवम सुव्यवस्थित रहने के लिए| कपड़ों से नारी कि मर्यादा बढती है, कपडे चाहे सलवार कुरता हो, या जींस टॉप हो मगर साडी जैसे परिधान जब नारी सही तरीकों में रहती है तो भारतीय नारी कि एक साडी में अलग शोभा बढती है| कपड़ों का आधुनिकीकरण करो किन्तु ऐसा ना कर दो कि ना तो विदेशी रह जाये नाहि स्वदेशी में रह जाये| क्योकि मर्यादा में रह कर किया गया प्रत्येक कार्य बहुत खुबसुरत होता है| |
22-01-2011, 12:30 PM | #2 |
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Re: साड़ी का आधुनिकीकरण!
इसमें गलत क्या है, वक़्त के साथ तो हर चीज़ में बदलाव आता है
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22-01-2011, 12:50 PM | #3 | |
Special Member
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Re: साड़ी का आधुनिकीकरण!
Quote:
बहुत सुन्दर बात कही है भाई आधुनिकता का मैं विरोधी नहीं हूँ हाँ उस भौंडेपन का जरूर हूँ जो आजकल आधुनिकता के नाम पर किया जा रहा है
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घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
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29-01-2011, 05:30 PM | #4 |
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Re: साड़ी का आधुनिकीकरण!
परिधान किसी भी व्यक्ति का व्यक्तिगत विषय है । उसमेँ किसी अन्य की दखलंदाजी नहीँ होनी चाहिये । हमेँ अपनी सोच को दूसरे पर थोपने का अधिकार नहीँ है । यदि पुरुष विवेकशील है तो स्त्री उससे कमतर नहीँ । चूँकि हम एक सभ्य समाज मेँ रहते हैँ और उसमेँ प्रचलित मान्यताओँ के अनुसार आचरण करते हैँ तो हमारा यह दायित्व भी बनता है कि हम फैशन का , परिवर्तन का हिस्सा तो बनेँ परन्तु उसके नाम पर अश्लीलता न परोसेँ । आधुनिकता के नाम पर नग्नता तो शायद हमेँ आदिमयुग मेँ पहुँचा देगी ।
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31-01-2011, 07:30 AM | #5 |
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Re: साड़ी का आधुनिकीकरण!
बहुत अच्छी है साडी
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ईश्वर का दिया कभी 'अल्प' नहीं होता,जो टूट जाये वो 'संकल्प' नहीं होता,हार को लक्ष्य से दूर ही रखना,क्यूंकि जीत का कोई 'विकल्प' नहीं होता. |
31-01-2011, 11:05 AM | #6 | |
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Re: साड़ी का आधुनिकीकरण!
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"आपरूप भोजन पररूप श्रृंगार" आपको मतलब बताने की आवश्यकता तो नहीं होगी
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01-02-2011, 07:49 AM | #7 | |
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Re: साड़ी का आधुनिकीकरण!
यह सब पाश्चात्य संस्कृति का कमाल है. आज की बड़े शहर की महिलायों को अधिक कपडे काटने को दौड़ते है. कई जगह तो साडी शादियों और पूजा के अवसर पर ही देखने को मिलता है.
युवतियों को तो सलवार कमीज़ में भी काफी uncomfortable फील होता है. जींस टॉप तो आजकल के generation के सशक्त हस्ताक्षर बन गए है. और यकीन मानिये साड़ी के साथ भी वही हो रहा है, आजकल उच्च वर्गों और पार्टियों में इसे इस तरह पहना जा रहा है की जितना छिपे उससे अधिक दिखे. आज की महिलाएं साड़ी को बीती सदी का परिधान मानती हैं. इस विषय पर मैं शशि थरूर के लिखे हुए लेख में से कुछ quote करूंगा. Quote:
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24-03-2011, 11:01 AM | #8 | |
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Re: साड़ी का आधुनिकीकरण!
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अधिकतर आबादी अभी भी गाँव और कस्बों में है वहां पर पहुँचने में समय लग सकता है / अब इस globalisation और ग्लेमर की दुनिया में इतना तो होगा ही |
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25-03-2011, 01:21 PM | #9 |
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Re: साड़ी का आधुनिकीकरण!
मुझे तो ऐसा नहीं लगता की गावं और कस्बे इससे बचे हुए हैं
आज टीवी घर घर में देखा जा रहा है, dth की बदौलत केवल भी गावं गावं में पहुँच चूका है और साथ साथ फैशन भी
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25-03-2011, 08:42 PM | #10 |
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Re: साड़ी का आधुनिकीकरण!
महाशय
मैंने लगभग देश के अधिकतर राज्यों का भ्रमण किया है ..बाद में विश्लेषण करने पर जो पाया वो तथ्य कुछ सामान्य शब्दों में रखता हूँ १,..आज भी गावों में इतनी गरीबी है की पेटभर खाना नहीं मिलता २ ..आज भी रेडिओ सुनाने वाले लोग टीवी देखने वालों से अधिक है dth की तो बात ही छोड़ दें ३..गाँव के कुछ संभ्रात घर ही इन चीज़ों का इस्तेमाल करतें हैं ..अधिकतर तो समझते ही नहीं ४.दक्षिण भारतीय राज्यों को छोड़ दीजिये तो अन्य राज्य के ग्रामीण अभी भी अशिक्षा के दलदल में फसें है ...वे फैशन क्या करेंगे ५.आज भी भारतीय समाज में पर्दा प्रथा प्रचलित है खासकर गांवों में आगे यही कहूँगा की हम चूँकि वही समझतें है जो सामान्य रूप से देखतें है ..और उसी आधार पर एक मत बनातें है मैंने इसीलिए कहा था की ये गावों और कस्बों तक उतना नहीं पहुँच पाया है |
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