28-10-2010, 10:41 PM | #21 |
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लीक पर वे चलें जिनके चरण दुर्बल और हारे हैं हमें तो जो हमारी यात्रा से बने ऐसे अनिर्मित पन्थ प्यारे हैं साक्षी हों राह रोके खड़े पीले बाँस के झुरमुट कि उनमें गा रही है जो हवा उसी से लिपटे हुए सपने हमारे हैं शेष जो भी हैं- वक्ष खोले डोलती अमराइयाँ गर्व से आकाश थामे खड़े ताड़ के ये पेड़; हिलती क्षितिज की झालरें झूमती हर डाल पर बैठी फलों से मारती खिलखिलाती शोख़ अल्हड़ हवा; गायक-मण्डली-से थिरकते आते गगन में मेघ, वाद्य-यन्त्रों-से पड़े टीले, नदी बनने की प्रतीक्षा में, कहीं नीचे शुष्क नाले में नाचता एक अँजुरी जल; सभी, बन रहा है कहीं जो विश्वास जो संकल्प हममें बस उसी के ही सहारें हैं । लीक पर वें चलें जिनके चरण दुर्बल और हारे हैं, हमें तो जो हमारी यात्रा से बने ऐसे अनिर्मित पन्थ प्यारे हैं |
28-10-2010, 10:42 PM | #22 |
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आग जलती रहे - दुष्यंत कुमार
एक तीखी आँच ने इस जन्म का हर पल छुआ, आता हुआ दिन छुआ हाथों से गुजरता कल छुआ हर बीज, अँकुआ, पेड़-पौधा, फूल-पत्ती, फल छुआ जो मुझे छुने चली हर उस हवा का आँचल छुआ ... प्रहर कोई भी नहीं बीता अछुता आग के संपर्क से दिवस, मासों और वर्षों के कड़ाहों में मैं उबलता रहा पानी-सा परे हर तर्क से एक चौथाई उमर यों खौलते बीती बिना अवकाश सुख कहाँ यों भाप बन-बन कर चुका, रीता, भटकता छानता आकाश आह! कैसा कठिन ... कैसा पोच मेरा भाग! आग चारों और मेरे आग केवल भाग! सुख नहीं यों खौलने में सुख नहीं कोई, पर अभी जागी नहीं वह चेतना सोई, वह, समय की प्रतीक्षा में है, जगेगी आप ज्यों कि लहराती हुई ढकने उठाती भाप! अभी तो यह आग जलती रहे, जलती रहे जिंदगी यों ही कड़ाहों में उबलती रहे । |
29-10-2010, 12:07 PM | #23 |
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‘कौन कहता है आसमान पर सुराख नहीं हो सकता एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो’ आसमान की ओर देखकर हाथ पर पत्थर लिए मै सोचता रहा दुष्यंत की प्रेरणा और अपनी हिम्मत के बीच का द्वंद्व कहाँ, किस ओर से आसमान में है सुऱाख की गुजांइश आसमान के बदलते तेवर और उसे ओढ़े अनेक रक्षा कवचों का मायाजाल सुराख के लिए नहीं बचाता किसी कोने में कोई छोटी-सी जगह डिस्टलरियों के धुएँ की मोटी परतों ने उसे बना दिया है आवारा, मदमस्त और कठोर वह तो धूल की परतों से हो गया है चट्टान फिर भी उछालकर देखा मैंने एक दुष्यंतनुमा पत्थर टकराकर लौट आया वह मेरी ओर और मैंने अपनी ही बचने के लिए खुद बनाई अपने आसपास सुराख कर उसके लिए जगह वैसे भी अब आसमान पर कहाँ जगह बची है आम-आदमी के लिए देशी-विदेशी हवाई-सड़कों ने बना ली है अपनी जगह चील, कौव्वों और गिद्धों से भी खतरा उन्हें एक-दूसरे से भी टकराने का जिन्होंने आसमान को बना लिया है आम रास्ता ज़मीन पर रहने वाले से ऊँचा उड़ने के लिए उन्हें ऊपर से कीड़ों-मकोड़े की तरह देखने के लिए अब तो ये पत्थर भी उठाये नहीं जाते दुष्यंत आसमान से जमीं पर रहने वालों को खतरा है क्योंकि कोशिश के लिए जगह नहीं बची कामयाबी के सटे-सटाये आसमान में इसलिए ज़मीन पर रह कर ही हौसले का पत्थर उछालते हैं कि एक न एक दिन सुराख होकर रहेगा आसमान में ।
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Baba Ranchhod das ki jay......... |
30-10-2010, 08:13 AM | #24 |
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जो जीवन की धूल चाट कर बड़ा हुआ है - केदारनाथ अग्रवाल
जो जीवन की धूल चाट कर बड़ा हुआ है तूफ़ानों से लड़ा और फिर खड़ा हुआ है जिसने सोने को खोदा लोहा मोड़ा है जो रवि के रथ का घोड़ा है वह जन मारे नहीं मरेगा नहीं मरेगा जो जीवन की आग जला कर आग बना है फौलादी पंजे फैलाए नाग बना है जिसने शोषण को तोड़ा शासन मोड़ा है जो युग के रथ का घोड़ा है वह जन मारे नहीं मरेगा नहीं मरेगा |
30-10-2010, 08:15 AM | #25 |
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किसको नमन करूँ मैं भारत? - रामधारी सिंह दिनकर
तुझको या तेरे नदीश, गिरि, वन को नमन करूँ, मैं ? मेरे प्यारे देश ! देह या मन को नमन करूँ मैं ? किसको नमन करूँ मैं भारत ? किसको नमन करूँ मैं ? भू के मानचित्र पर अंकित त्रिभुज, यही क्या तू है ? नर के नभश्चरण की दृढ़ कल्पना नहीं क्या तू है ? भेदों का ज्ञाता, निगूढ़ताओं का चिर ज्ञानी है मेरे प्यारे देश ! नहीं तू पत्थर है, पानी है जड़ताओं में छिपे किसी चेतन को नमन करूँ मैं ? भारत नहीं स्थान का वाचक, गुण विशेष नर का है एक देश का नहीं, शील यह भूमंडल भर का है जहाँ कहीं एकता अखंडित, जहाँ प्रेम का स्वर है देश-देश में वहाँ खड़ा भारत जीवित भास्कर है निखिल विश्व को जन्मभूमि-वंदन को नमन करूँ मैं ! खंडित है यह मही शैल से, सरिता से सागर से पर, जब भी दो हाथ निकल मिलते आ द्वीपांतर से तब खाई को पाट शून्य में महामोद मचता है दो द्वीपों के बीच सेतु यह भारत ही रचता है मंगलमय यह महासेतु-बंधन को नमन करूँ मैं ! दो हृदय के तार जहाँ भी जो जन जोड़ रहे हैं मित्र-भाव की ओर विश्व की गति को मोड़ रहे हैं घोल रहे हैं जो जीवन-सरिता में प्रेम-रसायन खोर रहे हैं देश-देश के बीच मुँदे वातायन आत्मबंधु कहकर ऐसे जन-जन को नमन करूँ मैं ! उठे जहाँ भी घोष शांति का, भारत, स्वर तेरा है धर्म-दीप हो जिसके भी कर में वह नर तेरा है तेरा है वह वीर, सत्य पर जो अड़ने आता है किसी न्याय के लिए प्राण अर्पित करने जाता है मानवता के इस ललाट-वंदन को नमन करूँ मैं ! |
30-10-2010, 08:17 AM | #26 |
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तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार - शिवमंगल सिंह सुमन
तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार आज सिन्धु ने विष उगला है लहरों का यौवन मचला है आज ह्रदय में और सिन्धु में साथ उठा है ज्वार तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार लहरों के स्वर में कुछ बोलो इस अंधड में साहस तोलो कभी-कभी मिलता जीवन में तूफानों का प्यार तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार यह असीम, निज सीमा जाने सागर भी तो यह पहचाने मिट्टी के पुतले मानव ने कभी ना मानी हार तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार सागर की अपनी क्षमता है पर माँझी भी कब थकता है जब तक साँसों में स्पन्दन है उसका हाथ नहीं रुकता है इसके ही बल पर कर डाले सातों सागर पार तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार ।। |
03-11-2010, 04:47 PM | #28 |
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सूत्र में बड़ी संख्या में उर्दू ग़ज़ल और नज़्म भी शामिल हैं, अतः मेरे विचार से शीर्षक में सिर्फ 'हिन्दी' उपयुक्त नहीं है ! कविताएं वाकई बेहतरीन हैं !
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18-11-2010, 12:36 PM | #29 |
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Re: प्रसिद हिंदी कविताये
[QUOTE=raju;6049]हम होंगे कामयाब एक दिन
- A translation of english song 'We shall overcome' by गिरिजाकुमार माथुर All of us have heard "हम होंगे कामयाब" innumerable times in India. This song is translation of famous english song 'We shall Overcome' -- a song with origins in early 1900s in America. It became quite famous there during civil rights movement in 1960s. You can find more information about this at Wikipedia . The tune of hindi song is same as that of its english original (I think it's probably one of the most recognized tune in the world). एक सुन्दर सूत्र के माध्यम से ख्यातिलब्ध गीत की पृष्ठभूमि पर राजू जी ने अच्छी जानकारी प्रदान की और ज्ञानवर्द्धन किया , इसके लिए मेरी ओर से बधाई स्वीकार करेँ |
18-11-2010, 01:04 PM | #30 |
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Re: प्रसिद हिंदी कविताये
[QUOTE=jalwa;6054]छोटे बच्चे, मन के सच्चे
( स्फुट बोल बोलते बच्चे। ) मित्र एक अनुरोध है आशा है कि आप इसे अन्यथा नहीँ लेँगे । मेरे दृष्टिकोण से उपर्युक्त पँक्ति मेँ स्फुट शब्द के स्थान पर अस्फुट का प्रयोग होना चाहिए । कृपया इसका निवारण करने का कष्ट करेँ । |
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