06-11-2011, 06:26 PM | #1 |
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विद्यापति की कवितायें
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06-11-2011, 06:26 PM | #2 |
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Re: विद्यापति की कवितायें
विद्यापति के दोहे
जय जय भैरवि असुर-भयाउनि, पशुपति भामिनी माया। सहज सुमति वर दिअ हे गोसाऊनि, अनुगति गति तुअ पाया।। वासर रैन सवासन शोभित, चरण चन्द्रमणि चूडा। कतओक दैत्य मारि मुख मेलल, कतओ उगलि कय कूडा।। साँवर वरन नयन अनुरंजित, जलद जोग फूल कोका। कट-कट विकट ओठ पुट पांडरि, लिधुर फेन उठि फोका।। घन-घन घनन घुँघरू कत बाजय, हन-हन कर तुअ काता। विद्यापति कवि तुअ पद सेवक, पुत्र बिसरू जनु माता।।
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06-11-2011, 06:28 PM | #3 |
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Re: विद्यापति की कवितायें
अभिनव कोमल सुन्दर पात
अभिनव कोमल सुन्दर पात। सगर कानन पहिरल पट रात। मलय-पवन डोलय बहु भांति अपन कुसुम रसे अपनहि माति।। देखि-देखि माधव मन हुलसंत। बिरिन्दावन भेल बेकत बसंत।। कोकिल बोलाम साहर भार। मदन पाओल जग नव अधिकार।। पाइक मधुकर कर मधु पान। भमि-भमि जोहय मानिनि-मान।। दिसि-दिसि से भमि विपिन निहारि। रास बुझावय मुदित मुरारि। भनइ विद्यापति ई रस गाव। राधा-माधव अभिनव भाव।।
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06-11-2011, 06:29 PM | #4 |
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Re: विद्यापति की कवितायें
अभिनव पल्लव बइसंक देल
अभिनव पल्लव बइसंक देल। धवल कमल फुल पुरहर भेल।। करु मकरंद मन्दाकिनि पानि। अरुन असोग दीप दहु आनि।। माह हे आजि दिवस पुनमन्त।। करिअ चुमाओन राय बसन्त।। संपुन सुधानिधि दधि भल भेल। भगि-भगि भंगर हंकराय गेल।। केसु कुसुम सिन्दुर सम भास। केतकि धुलि बिथरहु पटबास।। भनइ विद्यापति कवि कंठहार। रस बझ सिवसिंह सिव अवतार।।
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06-11-2011, 06:29 PM | #5 |
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Re: विद्यापति की कवितायें
अम्बर बदन झपाबह गोरि
अम्बर बदन झपाबह गोरि। राज सुनइ छिअ चांदक चोरि।। घरे घरे पहरु गेल अछ जोहि। अब ही दूखन लागत तोहि।। कतय नुकायब चांदक चोरि। जतहि नुकायब ततहि उजोरि।। हास सुधारस न कर उजोर। बनिक धनिक धन बोलब मोर।। अधर समीप दसन कर जोति। सिंदुर सीम बैसाउलि मोति।। भनइ विद्यापति होहु निसंक। चांदुह कां किछु लागु कलंक।।
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06-11-2011, 06:30 PM | #6 |
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Re: विद्यापति की कवितायें
आजु दोखिअ सखि बड़
आजु दोखिअ सखि बड़ अनमन सन, बदन मलिन भेल तारो। मन्द वचन तोहि कओन कहल अछि, से न कहिअ किअ मारो। आजुक रयनि सखि कठि बितल अछि, कान्ह रभस कर मंदा। गुण अवगुण पहु एकओ न बुझलनि, राहु गरासल चंदा।। अधर सुखायल केस असझासल, धामे तिलक बहि गेला। बारि विलासिनि केलि न जानथि, भाल अकण उड़ि गेला।। भनइ विद्यापति सुनु बर यौवति, ताहि कहब किअ बाधे। जे किछु पहुँ देल आंचर बान्हि लेल, सखि सभ कर उपहासे।।
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06-11-2011, 06:34 PM | #7 |
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Re: विद्यापति की कवितायें
आसक लता लगाओल सजनी
आसक लता लगाओल सजनी, नयनक नीर पटाय। से फल आब परिनत भेल मजनी, आँचर तर न समाय।। कांच सांच पहु देखि गेल सजनी, तसु मन भेल कुह भान। दिन-दिन फल परिनत भेल सजनी, अहुनख कर न गेआना। सबहक पहु परदेस बसु सजनी, आयल सुमिरि सिनेह। हमर एहन पति निरदय सजनी, नहि मन बाढय नहे।। भनइ विद्यापति गाओल सजनी, उचित आओत गुन साइ। उठि बधाव करु मन भरि सजनी, अब आओत घर नाह।।
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06-11-2011, 06:34 PM | #8 |
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Re: विद्यापति की कवितायें
आहे सधि आहे सखि
आहे सधि आहे सखि लय जनि जाह। हम अति बालिक आकुल नाह।। गोट-गोट सखि सब गेलि बहराय। ब केबाड पहु देलन्हि लगाय।। ताहि अवसर कर धयलनि कंत। चीर सम्हारइत जिब भेल अंत।। नहि नहि करिअ नयन ढर नीर। कांच कमल भमरा झिकझोर।। जइसे डगमग नलिनिक नीर। तइसे डगमग धनिक सरीर।। भन विद्यापति सुनु कविराज। आगि जारि पुनि आमिक लाज।।
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06-11-2011, 06:35 PM | #9 |
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Re: विद्यापति की कवितायें
ए धनि माननि करह संजात
ए धनि माननि करह संजात। तुअ कुच हेमघाट हार भुजंगिनी ताक उपर धरु हाथ।। तोंहे छाडि जदि हम परसब कोय। तुअ हार-नागिनि कारब माथे।। हमर बचन यदि नहि परतीत। बुझि करह साति जे होय उचीत।। भुज पास बांधि जघन तले तारि। पयोधर पाथर अदेह मारि।। उप कारा बांधि राखह दिन-राति। विद्यापति कह उचित ई शादी।।
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06-11-2011, 06:38 PM | #10 |
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Re: विद्यापति की कवितायें
कंटक माझ कुसुम परगास
कंटक माझ कुसुम परगास। भमर बिकल नहि पाबय पास।। भमरा भेल कुरय सब ठाम। तोहि बिनु मालति नहिं बिसराम।। रसमति मालति पुनु पुनु देखि। पिबय चाह मधु जीव उपेंखि।। ओ मधुजीवि तोहें मधुरासि। सांधि धरसि मधु मने न लजासि।। अपने मने धनि बुझ अबगाही। तोहर दूषन बध लागत काहि।। भनहि विद्यापति तओं पए जीव। अधर सुधारस जओं परपीब।।
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