19-07-2014, 12:33 AM | #61 |
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Re: बॉलीवुड शख्सियत
दक्षिण मुंबई स्थितसोहराब मोदी का न्यू एम्पायर सिनेमा मार्च 2014 के आखिरी हफ्ते में बंद हो गया।सिनेमा का सुनहरा इतिहास बताने वाला ब्रिटिश काल का यह 100 पुराना थिएटर नयी पीढ़ीको 100 साल की भव्यता भारतीय सिनेमा के पितृ पुरुष कहे जाने वाले सोहराब मोदी का दक्षिणमुंबई में बनाया सिनेमाघर बंद हो गया है। इसे 21 फरवरी 1908 में बनाया गया था। एकहजार सीट वाले इस सिनेमाघर में पहले अंग्रेजी और हिंदी ड्रामा होते थे। 1937 सेफिल्मों का प्रदर्शन शुरू हुआ। इसमें बड़े अच्छे एकॉस्टिक सिस्टम लगे थे जिनसेसाउंड और पिक्चर क्वालिटी परफेक्ट आती थी। इसी वजह से 60 से 80 के दशक तक हॉलीवुडका पैरामाउंट स्टूडियो अपनी सब फिल्में ‘न्यू एम्पायर’ में ही लगाता था। इससे लंबे समय तक इस थिएटर का एकाधिकार रहा। थिएटर फिलहाल सोहराब मोदी के वंशजोंके पास है। उनके मुताबिक पीछे कुछ वर्षों से इसे चलाने में वित्तीय दिक्कतें आ रहीहैं, इसलिए बंद कर रहे है। बीते चार साल में थिएटर को 2.5 करोड़ रुपए का घाटा हुआहै। दक्षिण मुंबई में इसके अलावा रीगल, इरोस, स्टर्लिंग, मराठा मंदिर, न्यूएक्सेलसियर जैसे सिंगल स्क्रीन और आइनॉक्स व मैट्रो बिग जैसे मल्टीप्लेक्स हैं।बड़ी फिल्में सब सिंगल स्क्रीन और मल्टीप्लेक्स में लगती हैं जिससे सब थिएटर्स काकारोबार बंट जाता है। ऐसे हालात में न्यू एम्पायर अपना खर्च नहीं निकाल पा रहा थाऔर घाटे में चल रहा था। नई दरों के बाद साल भर का प्रॉपर्टी टैक्स ही एक करोड़ सेज्यादा हो गया है। एक बात ये भी है कि दक्षिण मुंबई में 100 साल पुरानेथिएटर न्यू एक्सेलसियर और इरोस भी हैं, लेकिन दोनों की इमारतों में थिएटर के अलावाबैंक और रेस्त्रां वगैरह भी बनाए हुए हैं जिनसे सिनेमा का खर्च कुछ कम हो जाता है।लेकिन न्यू एम्पायर में ऐसी कोई कमर्शियल गुंजाइश नहीं रखी गई। हॉलीवुड की ‘300: राइका ऑफ एन एम्पायर’ न्यू एम्पायर में लगी आखिरी फिल्म रही। सूत्र बताते हैं कि थिएटर का मैनेजमेंट चार-पांच साल में ट्रेड यूनियन और अन्यसरकारी उलझनों को सुलझा लेगा और इस प्रॉपर्टी का विकास किया जाएगा। इसके मूल रूप कोबदलते हुए इसमें ग्राउंड, फर्स्ट और सेकेंड फ्लोर को कमर्शियल बिल्डिंग के रूप मेंविकसित करते हुए तीसरी मंजिल पर मल्टीप्लेक्स बनाया जायेगा।
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19-07-2014, 12:36 AM | #62 |
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Re: बॉलीवुड शख्सियत
सोहराब मोदी का न्यू एम्पायर सिनेमा अस्त
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19-07-2014, 11:31 AM | #63 |
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Re: बॉलीवुड शख्सियत
ईस लोह पुरुष के बारेमे जानने की काफी इच्छा थी, और आपने शायद मेरे मन की बात जानली,मेरी मनोकामना पूर्ण करने के लिए आपका हार्दिक आभार.........
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*** Dr.Shri Vijay Ji *** ऑनलाईन या ऑफलाइन हिंदी में लिखने के लिए क्लिक करे: .........: सूत्र पर अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दे :......... Disclaimer:All these my post have been collected from the internet and none is my own property. By chance,any of this is copyright, please feel free to contact me for its removal from the thread. |
19-07-2014, 12:45 PM | #64 |
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Re: बॉलीवुड शख्सियत
दिल खुश कर देने वाले शब्दों में सोहराब मोदी साहब विषयक आलेख की प्रशंसा करने के लिये मेरा हार्दिक आभार स्वीकार करें, डॉ श्री विजय जी. इंडस्ट्री के पुराने लोग उन्हें बब्बर शेर के नाम से यूँ ही नहीं बुलाते थे.
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19-07-2014, 01:18 PM | #65 |
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Re: बॉलीवुड शख्सियत
बुलंद इरादों वाले व्यक्तित्व थे सोहराब मोदी
अपने समय के मशहूर पटकथा-संवाद लेखक अली रजा ने एक बार साफ तौर पर कहा था कि फिल्म इंडस्ट्री ने सोहराब मोदी के साथ न्याय नही किया। उन्हें फिल्म इतिहास में जितनी जगह मिलनी चाहिए थी, नही मिली। बातचीत में अमूमन हर पुराने फिल्मकार मानते है कि अगर कभी ईमानदारी से भारतीय फिल्म का इतिहास लिखा जाएगा तो उसमें एक पूरा अध्याय सोहराब मोदी का होगा। सोहराब मोदी अपने बुलंद इरादों के लिए ही नही, बुलंद आवाज के लिए भी मशहूर थे। उन दिनों इंडस्ट्री में दो ही ऐसे शख्स थे जो थियेटर के प्रभाव का इस्तेमाल फिल्मों में भी कर रहे थे। एक तो स्वयं सोहराब मोदी थे और दूसरे पृथ्वीराज कपूर, लेकिन यही बुलंद आवाज आगे चलकर उन पर भारी हो गई। पारसी थियेटर यानी नाटक का असर तब समाप्त होने लगा जब दिलीप कुमार, राज कपूर, देव आनंद जैसे कलाकारों का उदय हो गया। इन्होंने अभिनय की नई दुनिया की शुरुआत थी। शायद यही वह बात थी कि सोहराब मोदी उतार पर आ गए। पारसी होने के बावजूद सोहराब मोदी, जिस शैली में हिंदी और उर्दू बोलते थे, दर्शक-श्रोता भौंचक रह जाते थे। दरअसल, उनका बचपन उत्तर प्रदेश के रामपुर मे बीता था, जहां उनके पिता सरकारी अधिकारी हुआ करते थे। वहीं की भाषा उन्होंने ग्रहण कर ली थी। थियेटर करने के बाद जब वह मुंबई आए तो फिल्मों की ओर मुड़ गए। चूंकि वह अपने मूड की फिल्म बनाना चाहते थे, इसलिए उन्होंने फिल्म कंपनी ‘मिनर्वा मूवीटोन’ की स्थापना की।
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19-07-2014, 01:34 PM | #66 |
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Re: बॉलीवुड शख्सियत
सोहराब मोदी ने अपनी फिल्मों के विषय ऐतिहासिक चुने। 1939 में ‘पुकार’, 1941 मे ‘सिकंदर’ और 1943 में ‘पृथ्वी बल्लभ’ बनाकर उन्होंने दर्शकों को इतिहास का दर्शन कराया। ‘पुकार’ में मुगल शासक जहांगीर के कारनामे थे। इसमें संग्राम सिंह की भूमिका में सोहराब मोदी ने अमिट छाप छोड़ी थी। ‘सिकंदर’ मे उन्होंने स्वयं भारतीय राजा पुरु का रोल किया था। सोहराब मोदी ने स्त्री-पुरुष संबंधों को भी फिल्मों का विषय बनाया। इनमें ‘भरोसा’ और ‘जेलर’ प्रमुख है। ‘पृथ्वी बल्लभ’ मे एक उम्रदराज रानी (दुर्गा खोटे) का संबंध पृथ्वी (सोहराब मोदी) के साथ दिखाया गया था, लेकिन जिस एक फिल्म ने सोहराब मोदी को गहरे आर्थिक संकट में धकेला‘वह झांसी की रानी’ थी।
^ ^ ^ फिल्म 'पृथ्वीवल्लभ' का पोस्टर व कुछ दृष्य आजादी मिलने के बाद मोदी ने राष्ट्रीय भावना को जगाने के लिए यह फिल्म बनाई थी, जो फ्लॉप हो गई। इस महंगी और नए टेक्नीकलर फिल्म में उन्होंने लीड रोल अपनी पत्नी महताब को दिया था। सोहराब मोदी अपने समय की खूबसूरत हीरोइन नसीम को प्यार करते थे लेकिन शादी हुई महताब से। ‘झांसी की रानी’ की विफलता से सोहराब मोदी को काफी झटका लगा था, लेकिन साल डेढ़ साल बाद ही ‘मिर्जा गालिब’ बनाकर खुद को पुन: चर्चा में ला दिया। इस फिल्म को राष्ट्रीय अवार्ड हासिल हुआ। बाद में उन्होंने ‘गुरु दक्षिणा’ बनाने की घोषणा की, लेकिन वह पूरी नही हो पाई। कैंसर ने उन्हें दबोच लिया। सोहराब मोदी मीना कुमारी से काफी प्रभावित थे। उन्होंने मीना कुमारी पर एक फिल्म भी बनाई थी। इस फिल्म की काफी चर्चा हुई थी। सोहराब मोदी जिन फिल्मों में अपने किरदार से चर्चित हुए, उनमें ‘यहूदी’ भी थी। आज यही लगता है कि नई हवा का कालचक्र नही चला होता तो सोहराब मोदी लंबे समय तक बने रहते, फिर भी वह लगभग पाँच दशक तक छाये रहे, जो कम न था।
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19-07-2014, 01:51 PM | #67 |
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Re: बॉलीवुड शख्सियत
सोहराब मोदी---- ऐतिहासिक फिल्मों का सिकंदर
आलेख आभार: रवि के. गुरुबक्षाणी फिल्मों में कुछ कलाकार ऐसे होते है जो अपने नाम मात्र से विश्वास की कसौटी पर खरे उतरते है. सोहराब मोदी ऐसी ही फिल्मी शख्सियत थे. बात चाहे फिल्म निर्माण की हो, अभिनय की हो अथवा संवाद बोलने की शैली की हो. सोहराब मोदी का जवाब नहीं था. कहते है कि उनके संवाद सुनने के लिए अंधें भी उनकी फिल्में देखने जाते थे. उनकी सशक्त संवाद अदायगी के कारण उन्हें मिनर्वा का शेर कहा जाता था. हिन्दी फिल्म जगत को समृद्ध एवं गौरवशाली स्वरुप प्रदान करने में जिन दो-चार लब्ध प्रतिष्ठित फिल्मकारों का योगदान अविस्मरणीय माना जाता है, उनमें से एक नाम अभिनेता-फिल्मकार सोहराब मोदी का भी है. सच तो यह है कि सोहराब मोदी का नाम फिल्म इंडस्ट्री में आज भी बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है. अपने लगभग पांच दशकीय फिल्मी जीवन में कुल 38 फिल्मों का निर्माण, 27 फिल्मों का निर्देशन और 31 फिल्मों में अभिनय करने वाले सोहराब मोदी को भारतीय सिनेमा के 75 वर्ष के हीरक इतिहास का साक्षी एवं फिल्मों की शुरुआती दौर का सशक्त चश्मदीद गवाह माना जा सकता है.
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19-07-2014, 02:00 PM | #68 |
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Re: बॉलीवुड शख्सियत
सोहराब मोदी के पिता रामपुर (उ.प्र.) के नवाब के सुपरिटेंडेट थे. बड़े भाई रुस्तम नाटकों में अभिनय और निर्देशन किया करते थे. उनकी एक नाटक कम्पनी भी थीं. घर में ही अभिनय का माहौल मिलने के कारण सोहराब मोदी भी नाटकों में अभिनय करने की इच्छा को दबा नहीं पाए. नाटकों में वे अभिनय और निर्देशन करने लगे. जल्द ही फिल्मों की तरफ उनका ध्यान गया. प्रथम सवाक फिल्म आलमआरा (1931) से प्रेरित होकर वे फिल्म निर्माण के क्षेत्र में आ गए. अपनी फिल्म निर्माण संस्था मिनर्वा मूवीटोन की स्थापना की.
^^ इसी के बैनर तले सोहराब मोदी ने सर्वप्रथम ‘हेमलेट’ फिल्म का निर्माण एवं निर्देशन किया. 1935 में प्रदर्शित यह फिल्म सोहराब मोदी के जीवन्त अभिनय एवं दक्ष निर्देशन के कारण काफी लोकप्रिय हुई थीं. फिल्म की आशातीत सफलता ने सोहराब मोदी जैसे रचनाकार-सर्जक को नए जोश, ऊर्जा एवं उमंग से भर दिया. फलत: उसके बाद से फिल्म निर्माण, निर्देशन एवं अभिनय का जो क्रम शुरु हुआ, तो जीवन भर तक बदस्तूर जारी रहा.
सोहराब मोदी के दो फोटोग्राफ़्स तथा 1935 की फिल्म 'हेमलेट' का एक दृष्य ^
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19-07-2014, 02:32 PM | #69 |
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Re: बॉलीवुड शख्सियत
सोहराब मोदी की खासियत रही कि उनके द्वारा हरेक तरह की सामाजिक, धार्मिक, सुधारवादी और ऐतिहासिक फिल्मों का निर्माण किया गया और प्राय: हरेक तरह के चरित्र को उन्होंने बेहद संजीदगी से जीया. ‘हैमलेट’ के बाद मिनर्वा मूवीटोन के बैनर तले दूसरी फिल्मथी- ‘सैयाद-ए-हवस’. उसके बाद ‘खून ही खून’ फिल्म उन्होंने बनाई. उस फिल्म में उनकी नायिका थीं - नसीम बानो. उस समय की टाप अभिनेत्री थीं. इन दोनों ही फिल्मों में उन्होंने जीवन की विद्रूपताओं, विषमताओं,विसंगतियों एवं विडंबनाओं को अत्यंत सूक्ष्मता एवं संवेदनशीलता के साथ परदे पर चित्रित किया. दोनों ही फिल्में अपने समय में खासी सफल एवं चर्चित भी रहीं थीं.
वैसे तो सोहराब मोदी ने प्राय: हर तरह की फिल्मों का निर्माण किया, पर ऐतिहासिक फिल्में बनाने में उनकी टक्कर का कोई दूसरा फिल्मकार नहीं हुआ. उनकी खूबी थीं कि वे जब किसी ऐतिहासिक विषय पर फिल्म बनाते थे तो उसके निर्माण से पहले काफी शोध किया करते थे और संतुष्ट होने पर ही उस पर फिल्म बनाने का काम शुरु करते थे. यहीं कारण था कि उनके द्वारा निर्मित ऐतिहासिक विषयों पर आधारित फिल्मों की पटकथा, संवाद, पात्र चयन सभी कुछ अपने आप में अद्भुत हुआ करते थे. ऐतिहासिक तथ्यों एवं संदर्भों को मूल रुप से पेश करने में उन्हें महारत हासिल थीं. अपनी लगभग सभी फिल्मों में नायक की भूमिका सोहराब मोदी ही निभाया करते थे. उनका व्यक्तित्व भी इन भूमिकाओं के लिए बिल्कुल फिट बैठता था. उनकी गंभीर एवं सधी आवाज ऐतिहासिक चरित्रों में जान डाल देती थीं. उनका इस कोटि की सर्वाधिक चर्चित एवं लोकप्रिय फिल्मों में ‘पुकार’ (1939) एवं ‘सिकंदर’ (1941) का नाम लिया जा सकता है. पुराने लोगों को ‘पुकार’ का संग्राम सिंह और ‘सिकंदर’ का पोरस का चरित्र आज भी याद आता है. दोनों ही फिल्मों में बेहतरीन अभिनय के कारण उन्हें देश-विदेश में लोकप्रियता मिली थीं. अपनी आरंभिक दोनों ऐतिहासिक फिल्मों की जर्बदस्त सफलता से उत्साहित होकर सोहराब मोदी ने अन्य कई बेहतरीन ऐतिहासिक फिल्मों का निर्माण किया. जिसमें ‘पृथ्वीवल्लभ’, ‘एक दिन का सुल्तान’, ‘शीशमहल’, ‘झांसी की रानी’, ‘नौशेरवान-ए-आदिल’ आदि को विशेष रुप से रेखांकित किया जा सकता है.
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19-07-2014, 02:37 PM | #70 |
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Re: बॉलीवुड शख्सियत
सामाजिक फिल्मों निर्माण के क्षेत्र में भी सोहराब मोदी का योगदान स्तुत्य है क्योंकि सामाजिक विषयों पर फिल्म निर्माण के जरिए भी उन्होंने समाज में व्याप्त अनेक तरह की विसंगतियों एवं समस्याओं से समाज को रू-ब-रू करवाया. उनकी इस कोटि की फिल्मों में शराबखोरी की समस्या पर बनीं फिल्म ‘मीठा जहर’, तलाक की समस्या पर बनीं फिल्म ‘डाइवोर्स’, आम आदमी की दैनिक समस्याओं पर बनीं फिल्म ‘मँझधार’, कैदियो की समस्याओं पर बनीं फिल्म ‘जेलर’ आदि काफी सफल रहीं थीं. उनकी अन्य सामाजिक फिल्मों में भरोसा, दौलत, खान बहादुर, फिर मिलेंगे, मेरा घर मेरे बच्चे, समय बड़ा बलवान आदि विशेष रुप से उल्लेखनीय है.
फिल्म निर्माण, निर्देशन एवं अभिनय के दौरान सोहराब मोदी ने अनेक पुरस्कार देश-विदेश में जीते. इनमें दादा साहेब फालके पुरस्कार (1979) के अलावा मिर्जा गालिब (1954) फिल्म के लिए राष्ट्रपति का स्वर्ण-रजत पुरस्कार प्रमुख है. सोहराब मोदी को याद करना मतलब कि ठाठ बाट से फिल्मी जीवन जीने वालों को याद करना है. परदे पर चित्रित अपनी खूबसूरत अदाकारी एवं बेहतरीन सृजनात्मकता के कारण सोहराब मोदी सदियों तक भारतीय फिल्माकाश पर विराजमान रहेंगे, इसमें कोई संदेह नहीं. 1940 में सोहराब मोदी ने भरोसा [bharosa 1940]मूवी बनाईथी जो अपने वक़्त से आगे की फिल्म थी. इसमें वैध संतानऔर अवैध संतान में लव अफेयरहो जाता है. पत्निओं की अदला बदलीहो तो यह भी हो सकता है. इस फिल्म में अवैध संबंधों के दुखद परिणाम को दिखाया गया था.
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