My Hindi Forum

Go Back   My Hindi Forum > New India > Religious Forum
Home Rules Facebook Register FAQ Community

Reply
 
Thread Tools Display Modes
Old 08-11-2012, 06:50 PM   #1
ravi sharma
Special Member
 
ravi sharma's Avatar
 
Join Date: Jan 2011
Location: सागर (M.P)
Posts: 3,627
Rep Power: 33
ravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant future
Send a message via MSN to ravi sharma Send a message via Yahoo to ravi sharma
Default श्री योगवाशिष्ठ (3)

श्री योगवाशिष्ठ (3)
__________________
बेहतर सोच ही सफलता की बुनियाद होती है। सही सोच ही इंसान के काम व व्यवहार को भी नियत करती है।
ravi sharma is offline   Reply With Quote
Old 08-11-2012, 06:53 PM   #2
ravi sharma
Special Member
 
ravi sharma's Avatar
 
Join Date: Jan 2011
Location: सागर (M.P)
Posts: 3,627
Rep Power: 33
ravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant future
Send a message via MSN to ravi sharma Send a message via Yahoo to ravi sharma
Default Re: श्री योगवाशिष्ठ (3)

श्रीपरमात्मने नमः
श्रीयोगवाशिष्ठ तृतीय उत्पत्ति प्रकरण प्रारम्भ

बोधहेतुवर्णन
__________________
बेहतर सोच ही सफलता की बुनियाद होती है। सही सोच ही इंसान के काम व व्यवहार को भी नियत करती है।
ravi sharma is offline   Reply With Quote
Old 08-11-2012, 06:54 PM   #3
ravi sharma
Special Member
 
ravi sharma's Avatar
 
Join Date: Jan 2011
Location: सागर (M.P)
Posts: 3,627
Rep Power: 33
ravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant future
Send a message via MSN to ravi sharma Send a message via Yahoo to ravi sharma
Default Re: श्री योगवाशिष्ठ (3)

वशिष्ठजी बोले, हे रामजी! ब्रह्म और ब्रह्मवेत्ता में त्व इदं सः इत्यादिक सर्व शब्द आत्मसत्ता के आश्रय स्फुरते हैं । जैसे स्वप्न में सब अनुभव सत्ता में शब्द होते हैं वैसे ही यह भी जानो और जो उसमें यह विकल्प होते हैं कि जगत् क्या हुआ है और किसका है इत्यादिक चोगचञ्चु हैं । हे रामजी! यह सब जगत् ब्रह्मरूप है यहाँ स्वप्न का दृष्टान्त विचार लेना चाहिए । इसके पहिले मुमुक्षु प्रकरण मैंने तुमसे कहा है अब क्रम से उत्पत्तिप्रकरण कहता हूँ सो सुनिये-जो ज्ञान वस्तुस्वभाव है । हे रामजी! जो पदार्थ उपजता है वही बढ़ता, घटता, मोक्ष और नीच, ऊँच होता है और जो उपजता न हो, उसका बढ़ना, घटना, बन्धु, मोक्ष और नीच, ऊँच होना भी नहीं होता । हे रामजी! स्थावर-जंगम जो कुछ जगत् दीखता है सो सब आकाशरूप है । दृष्टा का जो दृश्य के साथ संयोग है इसी का नाम बन्धन है और उसी संयोग के निवृत होने का नाम मोक्ष है ।
__________________
बेहतर सोच ही सफलता की बुनियाद होती है। सही सोच ही इंसान के काम व व्यवहार को भी नियत करती है।
ravi sharma is offline   Reply With Quote
Old 08-11-2012, 06:55 PM   #4
ravi sharma
Special Member
 
ravi sharma's Avatar
 
Join Date: Jan 2011
Location: सागर (M.P)
Posts: 3,627
Rep Power: 33
ravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant future
Send a message via MSN to ravi sharma Send a message via Yahoo to ravi sharma
Default Re: श्री योगवाशिष्ठ (3)

उसकी निवृत्ति का उपाय मैं कहता हूँ । देहरूपी जगत् चिन्मात्ररूप है और कुछ उपजा नहीं, जो उपजा भासता है सो ऐसा है जैसे सुषुप्ति में स्वप्न । जैसे स्वप्न में सुषुप्ति होती है वैसे ही जगत् का प्रलय होता है और जो प्रलय में शेष रहता है उसकी संज्ञा व्यवहार के निमित्त कहते हैं । नित्य, सत्य, ब्रह्म, आत्मा, सच्चिदानन्द इत्यादिक जिसके नाम रखे हैं वह सबका अपना आप है । चेतनता से उसका नाम जीव हुआ है और शब्द अर्थों को ग्रहण करने लगा है । हे रामजी! चैतन्य में जो स्पन्दता हुई है सो संकल्प विकल्परूपी मन होकर स्थित हुआ है । उसके संसरने से देश, काल, नदियाँ; पर्वत, स्थावर और जंगमरूप जगत् हुआ है ।
__________________
बेहतर सोच ही सफलता की बुनियाद होती है। सही सोच ही इंसान के काम व व्यवहार को भी नियत करती है।
ravi sharma is offline   Reply With Quote
Old 08-11-2012, 06:56 PM   #5
ravi sharma
Special Member
 
ravi sharma's Avatar
 
Join Date: Jan 2011
Location: सागर (M.P)
Posts: 3,627
Rep Power: 33
ravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant future
Send a message via MSN to ravi sharma Send a message via Yahoo to ravi sharma
Default Re: श्री योगवाशिष्ठ (3)

जैसे सुषुप्ति से स्वप्न हो वैसे जगत् हुआ है । उसको कोई अविद्या कोई जगत् कोई माया कोई संकल्प और कोई दृश्य कहते हैं; वास्तव में सब ब्रह्मस्वरूप है-इतर कुछ नहीं । जैसे स्वर्ण से भूषण बनता है तो भूषण स्वर्णरूप है; स्वर्ण से इतर भूषण कुछ वस्तु नहीं है वैसे ही जगत् और ब्रह्म में कुछ भेद नहीं है । भेद तो तब हो जब जगत् उपजा हो;जो उपजा ही नहीं तो भेद कैसे भासे और जो भेद भासता है सो मृगतृष्णा के जलवत् है- अर्थात् जैसे मृगतृष्णा की नदी के तरंग भासते हैं पर वहाँ सूर्य की किरणें ही जल के समान भासती हैं, जल का नाम भी नहीं, वैसे ही आत्मा में जगत् भासता है । चैतन्य के अणु-अणु प्रति सृष्टि आभासरूप है कुछ उपजी नहीं ।
__________________
बेहतर सोच ही सफलता की बुनियाद होती है। सही सोच ही इंसान के काम व व्यवहार को भी नियत करती है।
ravi sharma is offline   Reply With Quote
Old 08-11-2012, 06:56 PM   #6
ravi sharma
Special Member
 
ravi sharma's Avatar
 
Join Date: Jan 2011
Location: सागर (M.P)
Posts: 3,627
Rep Power: 33
ravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant future
Send a message via MSN to ravi sharma Send a message via Yahoo to ravi sharma
Default Re: श्री योगवाशिष्ठ (3)

अद्वैतसत्ता सर्वदा अपने आप में स्थित है, फिर उसमें जन्म, मरण और बन्ध, मोक्ष कैसे हो? जितनी कल्पना बन्ध-मोक्ष आदि भासती है सो वास्तविक कुछ नहीं है आत्मा के अज्ञान से भासती है । हे रामजी! जगत् उपजा नहीं, अपनी कल्पना ही जगत्*रूप होकर भासती है और प्रमाद से सत् हो रही है निवृत्त होना कठिन है । अनियत और नियत शब्द जो कहे हैं सो भावनामात्र हैं, ऐसे वचनों से तो जगत् दूर नहीं होता । हे रामजी! अर्थयुक्त वचनों के बिना दृश्यभ्रम नहीं निवृत्त होता ।
__________________
बेहतर सोच ही सफलता की बुनियाद होती है। सही सोच ही इंसान के काम व व्यवहार को भी नियत करती है।
ravi sharma is offline   Reply With Quote
Old 08-11-2012, 06:56 PM   #7
ravi sharma
Special Member
 
ravi sharma's Avatar
 
Join Date: Jan 2011
Location: सागर (M.P)
Posts: 3,627
Rep Power: 33
ravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant future
Send a message via MSN to ravi sharma Send a message via Yahoo to ravi sharma
Default Re: श्री योगवाशिष्ठ (3)

जो तर्क करके और तप, तीर्थ, दान, स्नान, ध्यानादिक करके जगत् के भ्रम को निवृत्त करना चाहे वह मूर्ख है, इस प्रकार से तो और भी दृढ़ होता है । क्योंकि जहाँ जावेगा वहाँ देश, काल और क्रिया सहित नित्य पाञ्चभौतिक सृष्टि ही दृष्टि आवेगी और कुछ दृष्टि न आवेगी, इससे इसका नाश न होगा और जो जगत् से उपराम होकर समाधि लगाके बैठेगा तब भी चिरकाल में उतरेगा और फिर भी जगत् का शब्द और अर्थ भास आवेगा । जो फिर भी अनर्थरूप संसार भासा तो समाधि का क्या सुख हुआ? क्योंकि जब तक समाधि में रहेगा तभी तक वह सुख रहेगा ।
__________________
बेहतर सोच ही सफलता की बुनियाद होती है। सही सोच ही इंसान के काम व व्यवहार को भी नियत करती है।
ravi sharma is offline   Reply With Quote
Old 08-11-2012, 06:57 PM   #8
ravi sharma
Special Member
 
ravi sharma's Avatar
 
Join Date: Jan 2011
Location: सागर (M.P)
Posts: 3,627
Rep Power: 33
ravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant future
Send a message via MSN to ravi sharma Send a message via Yahoo to ravi sharma
Default Re: श्री योगवाशिष्ठ (3)

निदान इन उपायों से जगत् निवृत्त नहीं होता । जैसे कमल के डोड़े में बीज होता है और जब तक उस बीज का नाश नहीं होता तब तक फिर उत्पन्न होता रहता है और जैसे वृक्ष के पात तोड़िये तो भी बीज का नाश नहीं होता । वैसेही तप, दानादिकों से जगत् निवृत्त नहीं होता और तभी तक अज्ञानरूपी बीज भी नष्ट नहीं होता । जब अज्ञानरूपी बीज नष्ट होगा तब जगत्*रूपी वृक्ष का अभाव हो जावेगा । और उपाय करना मानो पत्तों को तोड़ना है । इन उपायों से अक्षय पद और अक्षय समाधि नहीं प्राप्त होती । हे रामजी! ऐसी समाधि तो किसी को नहीं प्राप्त होती कि शिला के समान हो जावे । मैं सब स्थान देख रहा हूँ कदाचित् ऐसे भी समाधि हो तो भी संसारसत्ता निवृत्त न होगी, क्योंकि अज्ञानरूपी बीज निवृत्त नहीं हुआ ।
__________________
बेहतर सोच ही सफलता की बुनियाद होती है। सही सोच ही इंसान के काम व व्यवहार को भी नियत करती है।
ravi sharma is offline   Reply With Quote
Old 08-11-2012, 06:57 PM   #9
ravi sharma
Special Member
 
ravi sharma's Avatar
 
Join Date: Jan 2011
Location: सागर (M.P)
Posts: 3,627
Rep Power: 33
ravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant future
Send a message via MSN to ravi sharma Send a message via Yahoo to ravi sharma
Default Re: श्री योगवाशिष्ठ (3)

समाधि ऐसी है जैसे जाग्रत् से सुषुप्ति होती है, क्योंकि अज्ञानरूपी वासना के कारण सुषुप्ति से फिर जाग्रत आती है वैसे ही अज्ञानरूपी वासना से समाधि से भी जाग जाता है क्योंकि उसको वासना खैंच ले आती है । हे रामजी! तप, समाधि आदिकों से संसारभ्रम निवृत्त नहीं होता । जैसे कांजी से क्षुधा किसी की निवृत्त नहीं होती वैसे ही तप और समाधि से चित्त की वृत्ति एकाग्र होती है परन्तु संसार निवृत्त नहीं होता । जब तक चित्त समाधि में लगा रहता है तब तक सुख होता है और जब उत्थान होता है तब फिर नाना प्रकार के शब्दों और अर्थों से युक्त संसार भासता है । हे रामजी! अज्ञान से जगत भासता है और विचार से निवृत्त होता है ।
__________________
बेहतर सोच ही सफलता की बुनियाद होती है। सही सोच ही इंसान के काम व व्यवहार को भी नियत करती है।
ravi sharma is offline   Reply With Quote
Old 08-11-2012, 06:57 PM   #10
ravi sharma
Special Member
 
ravi sharma's Avatar
 
Join Date: Jan 2011
Location: सागर (M.P)
Posts: 3,627
Rep Power: 33
ravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant future
Send a message via MSN to ravi sharma Send a message via Yahoo to ravi sharma
Default Re: श्री योगवाशिष्ठ (3)

जैसे बालक को अपनी अज्ञानता से परछाहीं में वैताल की कल्पना होती है और ज्ञानसे निवृत्त होती है वैसे ही यह जगत् अविचार से भासता है और विचार से निवृत्त होता है । हे रामजी! वास्तव में जगत् उपजा नहीं- असत्*रूप है । जो स्वरूप से उपजा होता तो निवृत्त न होता पर यह तो विचार से निवृत्त होता है इससे जाना जाता है कि कुछ नहीं बना । जो वस्तु सत्य होती है उसकी निवृत्ति नहीं होती और जो असत् है सो स्थिर नहीं रहती । हे रामजी! सत्*स्वरूप आत्मा का अभाव कदाचित् नहीं होता और असत्*रूप जगत् स्थिर नहीं होता ।
__________________
बेहतर सोच ही सफलता की बुनियाद होती है। सही सोच ही इंसान के काम व व्यवहार को भी नियत करती है।
ravi sharma is offline   Reply With Quote
Reply

Bookmarks


Posting Rules
You may not post new threads
You may not post replies
You may not post attachments
You may not edit your posts

BB code is On
Smilies are On
[IMG] code is On
HTML code is Off



All times are GMT +5. The time now is 10:43 PM.


Powered by: vBulletin
Copyright ©2000 - 2024, Jelsoft Enterprises Ltd.
MyHindiForum.com is not responsible for the views and opinion of the posters. The posters and only posters shall be liable for any copyright infringement.