16-10-2012, 09:11 PM | #31 |
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Re: नपुंसकामृतार्णव
जिसका बछड़ा बड़ा हो, उस गाय के दूध में चावल की खीर बना लें ! इस खीर में घी, शहद और मिश्री मिला कर खाने से बूढा भी सम्भोग की इच्छा करने लगता है ! यदि युवा ऎसी इच्छा करें, तो आश्चर्य की कोई बात ही नहीं है !
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु |
16-10-2012, 09:11 PM | #32 |
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Re: नपुंसकामृतार्णव
सितादिवृष्य योग
मिश्री चार सौ तोला, गाय का शुद्ध घी 64 तोला, बिदारी कंद 64 तोला, पिप्पली का चूर्ण 128 तोला, उत्तम शहद 128 तोला लेकर सभी को मिला लें और चिकनी मिट्टी से बने बर्तन में रखें ! अपनी पाचन शक्ति के अनुसार प्रतिदिन सुबह खाएं ! यह योग परम वृष्य (वीर्य को शुद्ध करने और बढ़ाने वाला) तथा शरीर के सभी रसों और धातुओं को पुष्ट (बलवान) करने वाला है !
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16-10-2012, 09:12 PM | #33 |
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Re: नपुंसकामृतार्णव
योग्य दूध
ऎसी पालतू गाय जिसने पहली बार बच्चा पैदा किया हो, उसे उड़द के पत्ते नित्य खिलाएं ! इस गाय का दूध पीने से बल और वीर्य में आशातीत बढोतरी होती है !
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16-10-2012, 09:12 PM | #34 |
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Re: नपुंसकामृतार्णव
भीमसेनी रसाला
गाढा, मीठा, मलाईदार दही 2 सेर, सफ़ेद बूरा 1 सेर, गाय का घी एक छटांक तथा काली मिर्च, इलायची, दालचीनी, नागकेसर सभी 6-6 मासे लेकर, इनको बारीक कूट कर दही में मिला लें और फिर रंगहीन (सफ़ेद) कपड़े में छान लें ! अब इसको भीमसेनी कपूर की धूनी देकर मिट्टी के कोरे बर्तन में रख लें ! यह भीमसेन का बनाया हुआ रसाला स्वयं भगवान् मधुसूदन (कृष्ण) सेवन कर चुके हैं ! आचार्यों का कहना है कि इसका सेवन अतुलित शक्ति और वीर्य को प्रदान करने वाला है !
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16-10-2012, 09:13 PM | #35 |
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Re: नपुंसकामृतार्णव
अश्वगंधादि घृत
एक सेर असगंध और एक सेर गाय के घी को 8 सेर दूध में मिला कर धीमी आंच पर पकाएं ! जब पक कर सिर्फ घी रह जाए, तो इसमें सौंठ, काली मिर्च, पीपल, चतुर्जात, वायविडंग, जावित्री, बला, अतिबला, गोखरू, विधारा - इन सभी का चूर्ण चार-चार तोला; लौह भस्म, बंग भस्म, अभ्रक भस्म - प्रत्येक चार तोला, शहद और मिश्री 32-32 तोला मिलाकर घी को उतार लें और चिकने बर्तन (मर्तबान आदि) में भर कर रख दें ! अपनी पाचन शक्ति का ध्यान रखते हुए इसका प्रतिदिन सुबह-शाम सेवन करने वाला मनुष्य वात से सम्बंधित सभी रोग, जोड़ों में वायु से उत्पन्न होने वाला दर्द, कमर, गर्दन एवं कन्धों का दर्द, गर्भ संबंधी समस्त रोग, प्रसव के उपरान्त के सभी रोग, वीर्य के सभी विकारों को इस प्रकार जीत लेता है, जैसे सिंह मतवाले हाथी को भगा देता है ! यह परम बाजीकरण होने से पुरुषों को सभी प्रकार के सुख देने वाला है !
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17-10-2012, 09:38 AM | #36 |
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Re: नपुंसकामृतार्णव
माषादिघृत
कौंच के बीज 4 सेर, उड़द 4 सेर, जीवक, ऋषभक, मेदा, महामेदा, काकोली, क्षीरकाकोली, ऋद्धि, बृद्धि, शतावर, मुलहठी, असगंध - प्रत्येक 16 तोले लेकर आठ गुने पानी में पकाएं ! जब पाक कर चौथाई रह जाए, तब उतार कर छान लें ! अब इसमें 1 सेर घी, 10 सेर दूध, 10 सेर विदारीकन्द का रस डाल कर फिर पकाएं ! जब पक कर सिर्फ घी रह जाए, तो इसमें मिश्री, वंशलोचन, शहद (प्रत्येक 16 तोले), पीपल का चूर्ण 8 तोले मिला कर चिकने बर्तन (मर्तबान आदि) में रख दें ! अपनी पाचन शक्ति के अनुसार खाने के बाद मूंग, चावल अथवा घी इच्छा के अनुसार खाएं ! प्रतिदिन यह प्रयोग करने से वीर्य कभी क्षय नहीं होता और शिश्न में अपूर्व ताकत आ जाती है !
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17-10-2012, 05:17 PM | #38 |
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Re: नपुंसकामृतार्णव
bahut hi laabhdaayak jaankaari hai is sutra mein.. iske liye sutradhaar ko thanks..
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अब माई हिंदी फोरम, फेसबुक पर भी है. https://www.facebook.com/hindiforum |
18-10-2012, 01:26 AM | #39 |
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Re: नपुंसकामृतार्णव
महासुगंधि तैलम
कपूर, अगर, दालचीनी, पत्रज, नलिका, लाख, कचूर, धावे के फूल, सतवन, एलवालुक, सुगंधद्रव्य, सरल, छड़, जटामासी, सुगंधबाला, इलायची, केशर, गोरोचन, दोनों प्रकार के मरुवा, श्रीवास, जायफल, कंकोल, सुपारी, सफ़ेद चिरमिटी, कस्तूरी, मुरा, प्रियंगु, लौंग, कूठ, नेत्रवाला, खस, रेणुका, चन्दन, थुनेर, गठोना, नख, जावित्री, काकड़ा सिंघी, पद्माख, स्पृक्का (सुगंध द्रव्य), पालक, मजीठ और लोध प्रत्येक को 4 तोला लेकर इनका काढ़ा बना लें, आठवां भाग बाकी रह जाने पर इस काढ़े को छान कर इसमें 4 सेर तिल का शुद्ध तेल मिला कर फिर मंद आंच पर पकाएं ! जब पानी जल कर केवल तेल बाक़ी रह जाए, तो उतार कर छान लें ! इस तेल की मालिश करने से बूढ़ा व्यक्ति भी जवान की तरह स्त्रियों का प्रिय, कान्तिमान, शुक्रवान, अनेक पुत्रों वाला हो जाता है तथा किसी भी प्रकार का नपुंसक भी सहवास में सक्षम हो जाता है ! इस तेल के प्रतिदिन सेवन से बांझ अथवा वृद्धा स्त्री भी गर्भ धारण में सक्षम हो जाती है ! इसके अलावा अश्वनी कुमार का बनाया यह महासुगंधि तेल मालिश करने से शरीर की खुजली, ज्यादा पसीना आना, शरीर से दुर्गन्ध आना, कोढ़, खाज आदि समस्त चर्म रोगों को भी नष्ट कर देता है !
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19-10-2012, 12:24 PM | #40 |
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Re: नपुंसकामृतार्णव
चन्दनादि तैलम
सफ़ेद चन्दन, लाल चन्दन, पतंग, हरिचन्दन, अगर, काला अगर, देवदार (देवदारु), सरल, पद्माख, सुपारी, कपूर, कस्तूरी, लता कस्तूरी, शिला रस, केशर, गौ का घी, जायफल, जावित्री, लवंग, छोटी इलायची, बड़ी इलायची, कंकोल, तज, कमल, नागकेशर, सुगंधबाला, खस, जटामासी, दालचीनी, मुरा, कचूर, छड़, शिलाजीत, भद्र मोथा, रेणुका, प्रियंगु पुष्प, श्रीवास, गुग्गल, लाख, नख, राल, धावे के फूल, गठौना, मंजीठ, तगर, मोम - इन सभी को चार-चार माशे लेकर कल्क बना लें ! शुद्ध धुली तिल्ली का तेल लेकर उसमें यह कल्क डाल कर तेल-पाक विधि से तेल बना कर बोतल में भर कर रख लें ! इसकी मालिश से अस्सी बर्ष का बूढ़ा व्यक्ति भी अत्यंत वीर्यवान होकर स्त्रियों को प्यारा हो जाता है ! नपुंसक भी तरुण के समान सम्भोग के योग्य हो जाता है ! जिसके संतान न होती हो, उस पुरुष को संतान प्राप्ति होती है और बांझ स्त्री भी संतान - उत्पत्ति में सक्षम हो जाती है ! इसका सेवन करने वाले की आयु पूर्ण सौ वर्ष हो जाती है ! इसके अलावा यह चन्दनादि तेल रक्त-पित्त, क्षय (टीबी), ज्वर (बुखार), दाह (जलन), पसीना ज्यादा आना, शारीरिक दुर्गन्ध, कोढ़, खाज आदि चरम रोगों में भी राम-बाण है !
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