16-10-2012, 08:57 PM | #11 |
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Re: नपुंसकामृतार्णव
शिष्य उवाच !
हाथ जोड़ कर शिष्य कहने लगे ! हे गुरो, इस संसार की अवस्था देख कर अत्यंत आश्चर्य होता है ! प्रायः मैं जिधर भी देखता हूं, सब मनुष्यों की प्रवृत्ति धर्मादिकों में नहीं है, बल्कि धर्म से, दया से, सत्य से और योग-तप आदि से निवृति ही दिखाई देती है ! खासकर ब्रह्मचर्य तो नष्टप्राय सा प्रतीत होता है ! मन में शान्ति भाव और इन्द्रियों को दमन तो पहले ही दूर हो गया था, परन्तु अब तो विवेक भी मानो भारत को ही छोड़ भागा ! हे नाथ, इस समय जिधर देखा जाए, प्राय सबकी प्रवृत्ति संसार की विषय-वासना से भरी हुई है और ऐसा विचित्र समय आया है कि लोग अनुचित मैथुन की इच्छा को ही शरीर धारण करने का मुख्य कर्तव्य समझने लगे हैं ! हे गुरो ! यद्यपि इन कुकर्मियों को परस्त्रीगमन से अनेक दु:सह दुखों का सामना करना पड़ता है और वेश्यागमन आदि से आत्सक, सोजाक आदि दारुण रोगों की कड़ी जेल की सेवा सदा के लिए करनी पड़ती है तथा अयोनिज मैथुन से नपुंसकता को प्राप्त होकर अनेक दु:सह रोगों की जंजीर में जकड़े जाते हैं, बल्कि इनके विचारों, दृष्टि, बल, बुद्धि शरीर इन विषयों की भेंट हो लेती है, परन्तु आश्चर्य है कि अपने कुकर्म का फल देख कर भी न तो ये आप ही इन महा पापों से आगे को बचने के लिए घृणा करते हैं और न इनको देख कर अन्य मनुष्य ही बुरा समझते हैं ! सो हे आयुर्वेद के ज्ञाता ! मुझ पर कृपा कर के कहिए कि इस अनर्थ का कारण क्या है !!9-13!!
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु |
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