16-10-2011, 08:38 PM | #31441 |
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Re: दोस्तों की "चौपाल".
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( वैचारिक मतभेद संभव है ) ''म्रत्युशैया पर आप यही कहेंगे की वास्तव में जीवन जीने के कोई एक नियम नहीं है'' |
16-10-2011, 08:41 PM | #31442 |
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Re: दोस्तों की "चौपाल".
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16-10-2011, 08:42 PM | #31443 |
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Re: दोस्तों की "चौपाल".
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16-10-2011, 09:22 PM | #31444 |
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Re: दोस्तों की "चौपाल".
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फोरम के नियम
ऑफलाइन में हिंदी लिखने के लिए मुझे डाउनलोड करें ! आजकल लोग रिश्तों को भूलते जा रहे हैं....! love is life |
16-10-2011, 09:28 PM | #31445 |
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Re: दोस्तों की "चौपाल".
नायक जी नमस्ते ...हमें आपके आगमन की प्रतीक्षा रहेगी ......!
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16-10-2011, 09:58 PM | #31446 |
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Re: दोस्तों की "चौपाल".
नमस्कार मित्रो
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जो सत्य विषय हैं वे तो सबमें एक से हैं झगड़ा झूठे विषयों में होता है। -------------------------------------------------------------------------- जिनके घर शीशो के होते हे वो दूसरों के घर पर पत्थर फेकने से पहले क्यू नहीं सोचते की उनके घर पर भी कोई फेक सकता हे -------------------------------------------- Gaurav Soni
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16-10-2011, 10:04 PM | #31447 |
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Re: दोस्तों की "चौपाल".
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अब माई हिंदी फोरम, फेसबुक पर भी है. https://www.facebook.com/hindiforum |
16-10-2011, 10:05 PM | #31448 |
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Re: दोस्तों की "चौपाल".
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जो सत्य विषय हैं वे तो सबमें एक से हैं झगड़ा झूठे विषयों में होता है। -------------------------------------------------------------------------- जिनके घर शीशो के होते हे वो दूसरों के घर पर पत्थर फेकने से पहले क्यू नहीं सोचते की उनके घर पर भी कोई फेक सकता हे -------------------------------------------- Gaurav Soni
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16-10-2011, 10:24 PM | #31449 |
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Re: दोस्तों की "चौपाल".
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अब माई हिंदी फोरम, फेसबुक पर भी है. https://www.facebook.com/hindiforum |
16-10-2011, 10:31 PM | #31450 | |
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Re: दोस्तों की "चौपाल".
Quote:
मैंने देखा है कि हम अपनी परम्परायों को सिर्फ इसलिए चेलेंज करना चाहते हैं क्योंकि हम कुछ पढ़ लिख गए हैं...तर्क कर सकते हैं...पर हमारे ये त्यौहार भावनाओं से जुड़े हुए हैं....और इनके अंदर क़ानून या अन्य दृष्टिकोण को डाल कर अपने त्योहारों की महत्ता को कम नहीं करना चाहिए.... ये तो पति के लिए व्रत की बात है और सिर्फ परम्परा और विश्वास के आधार पर बनी है..... भारत की जनता तो अपने भगवान और अल्लाह के लिए भी व्रत रखती है...तो क्या उसे भी गलत कहा जाएगा....?? विश्वास के आगे तर्क बेकार होते हैं...सिर्फ भावना ही सर्वोपरि है......परिवारों में बहन और भाई को संपत्ति में बराबर का कानूनी हक देकर हम पहले ही बहनों को अपने भाइयों से अलग कर चुके हैं...अब पति पत्नी के पवित्र रिश्ते को....??? न भाई मैं इस बहस में ना पड़ कर अपनी परम्परा और विश्वास और भावनाओं से जुड़ा रहना पसंद करता हूँ..
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