08-01-2012, 10:18 PM | #751 |
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Re: हमारी शेर "ओ" शायरी
सब्र कहता है कि रफ्ता-रफ्ता मिट जाएगा दाग,
दिल कहता है की बुझने की ये चिंगारी नही। (यास चंगेजी)
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ये दिल तो किसी और ही देश का परिंदा है दोस्तों ...सीने में रहता है , मगर बस में नहीं ...
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08-01-2012, 10:20 PM | #752 |
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Re: हमारी शेर "ओ" शायरी
दो -चार लफ्ज़ कह के मैं खामोश हो गया,
वो मुस्कुरा के बोले , बहुत बोलते हो तुम। ( बर्क़)
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ये दिल तो किसी और ही देश का परिंदा है दोस्तों ...सीने में रहता है , मगर बस में नहीं ...
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17-01-2012, 10:26 PM | #753 |
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Re: हमारी शेर "ओ" शायरी
हम पे भी वो वक्त आया था
किसी को आंखों में बसाया था उसी ने लूट लिया मेरा जहां जिसे इस दिल की धड़कन बनाया था। |
20-01-2012, 11:05 AM | #754 |
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Re: हमारी शेर "ओ" शायरी
करोगे याद गुजरे जमाने को,
तरसोगे हमारे साथ एक पल बिताने को, फिर आवाज़ दोगे हमे वापिस बुलाने को, और हम कहेंगे दरवाजा नहीं है कबर से बाहर आने को!
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मांगो तो अपने रब से मांगो; जो दे तो रहमत और न दे तो किस्मत; लेकिन दुनिया से हरगिज़ मत माँगना; क्योंकि दे तो एहसान और न दे तो शर्मिंदगी। |
28-01-2012, 03:19 PM | #755 |
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Re: हमारी शेर "ओ" शायरी
काम करो ऐसा, कि पहचान बन जाये;
हर कदम ऐसा चलो, कि निशान बन जाये! यहाँ ज़िन्दगी तो सभी काट लेते हैं; ज़िन्दगी जियो ऐसी, कि मिसाल बन जाये!
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28-01-2012, 09:09 PM | #756 |
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Re: हमारी शेर "ओ" शायरी
तुम्हारे लिए मेरी हर सांस गम उठाएगी,
तुम्हारे लिए ये जिंदगी भी बर्बाद हो जायेगी, आजमाना हो तो बोलो खुद को खाक कर के दिखा दूं, तुम्हारे नाम की आवाज़ तो मेरे खाक से भी आएगी |
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Disclaimer......! "फोरम पर मेरे द्वारा दी गयी सभी प्रविष्टियों में मेरे निजी विचार नहीं हैं.....! ये सब कॉपी पेस्ट का कमाल है..." click me
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28-01-2012, 09:10 PM | #757 |
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Re: हमारी शेर "ओ" शायरी
समझ जाता हूँ लेकिन देर से मै दाँव पेच उसके वो बाज़ी जीत जाते हैं मेरे चालाक होने तक |
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08-03-2012, 09:47 AM | #758 |
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Re: हमारी शेर "ओ" शायरी
मन को है तुझे देखने की प्यास
तूझ बिन बेचैन है मेरी हर एक सांस उस एक क्षण के लिए छोड॰ सकता हूं ये जहाँ जिस पल मे हो तेरी नजदीकी का एहसास
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22-03-2012, 05:03 PM | #759 |
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Re: हमारी शेर "ओ" शायरी
तेरा हर लफ्ज़ मेरी रूह को छूकर निकलता है.
तू पत्थर को भी छू ले तो बाँसुरी का स्वर निकलता है. कमाई उम्र भर कि और क्या है, बस यही तो है में जिस दिल में भी देखूं वो ही मेरा घर निकलता है. ... मैं मंदिर नहीं जाता मैं मस्जिद भी नही जाता मगर जिस दर पर झुक जाऊं वो तेरा दर निकलता है ज़माना कोशिशें तो लाख करता है डराने की तुझे जब याद करता हूँ तो सारा दर निकलता है. यहीं रहती हो तुम खुशबू हवाओं की बताती है यहाँ जिस ज़र्रे से मिलिए वही शायर निकलता है. ................रचनाकार: अशोक अंजुम
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घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
29-03-2012, 10:51 PM | #760 |
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Re: हमारी शेर "ओ" शायरी
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