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Old 20-01-2015, 06:49 PM   #1
Rajat Vynar
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Talking बद अच्छा, बदनाम बुरा

क पुरानी कहावत है- ‘बद अच्छा, बदनाम बुरा।’ अर्थात् यदि बदनामी न हो तो बुरा व्यक्ति भी भला। इसका एक गूढ़ अर्थ और है- सुन्दरता चेहरे के स्थान पर आचरण से पहचानी जाती है। यही कारण है- हमारा देश मूर्खाें के मामले में बहुत बदनाम है। इस बारे में कुछ लोग कहते हैं- ‘एक मूर्ख ढूँढो, हज़ारों मिल जाते हैं।’ लगभग डेढ़ दशक पूर्व हमने प्रण किया कि अपने देश पर लगे बदनामी के इस काले धब्बे को जड़ से मिटाकर रहेंगे और यह साबित करेंगे कि विदेशों में भी मूर्ख बसते हैं। इस महान कार्य के लिए यह आवश्यक था कि हम मूर्खाें की तलाश में विदेश-यात्रा करें और विदेशी मूर्खाें को चिह्नित कर अपने देश की जनता के सामने लाएँ। जनहित और देशहित का कार्य होने के कारण हमने पार्टी हाईकमान की हैसियत से पार्टी अध्यक्ष को तलब किया और यह आदेश पारित किया कि जल्द से जल्द विदेश-यात्रा के लिए पाँच करोड़ रुपया एकत्रित किया जाए। विदेशी मूर्खाें की तलाश में कई मुल्कों की यात्रा करनी पड़ेगी। काफी खर्चा बैठेगा, मगर इस यात्रा से हमारे देश पर लगा कलंक हमेशा के लिए मिट जाएगा। इस कार्य से पार्टी का भी बड़ा नाम होगा। पार्टी हाईकमान की गरिमा को बरकरार रखते हुए पार्टी अध्यक्ष ने बिना हुज्जत किए कहा- ‘‘आपकी बात तो ठीक लगती है, मगर विदेशी मूर्खाें की तलाश के लिए विदेश-यात्रा के नाम पर एक धेला भी चन्दा न मिलेगा।’’
हमने अक़्ल के घोड़े दौड़ाते हुए कहा- ‘‘ठीक है। विदेशी मूर्खों की तलाश के लिए चन्दा न माँगिए। जनता से कहिए- पार्टी हाईकमान लोकतन्त्र की जड़ें और मज़बूत करने का गुर सीखने के लिए कई मुल्कों की यात्रा पर जाने वाले हैं। चन्दा मिल जाएगा।’’
पार्टी अध्यक्ष ने हमारी राय पर तन-मन से अमल करके धन एकत्रित करना शुरू किया और पाँच महीने बाद पाँच करोड़ की जगह पाँच सौ रुपया नगद हमारे हाथ पर टिका दिया।
हमने बौखलाकर कहा- ‘‘अगर विदेश के लिए कन्सेशन रेट पर पैसेन्जर ट्रेन भी चलती होती तो भी पाँच सौ रुपया का टिकट लेकर अफगानिस्तान के आगे नहीं जाया जा सकता! शर्म नहीं आती आपको- विदेश-यात्रा के नाम पर पाँच सौ रुपया देते?’’
पार्टी अध्यक्ष ने बिना शर्माए कहा- ‘‘हमारी पार्टी का ‘वसूली-दम’ बस इतना ही है।’’
हमने शक़ की नज़रों से पार्टी अध्यक्ष को घूरते हुए कहा- ‘‘दूसरी पार्टी वाले तो करोड़ों में खेलते हैं?’’
पार्टी अध्यक्ष ने समझाया- ‘‘राजनीति के मैदान में अभी हमारी पार्टी नई है। लगता है- अभी हम राजनीति की बारीकियाँ और चन्दा वसूली का गुर पूरी तरह नहीं सीख पाए। धीरे-धीरे सीख जाएँगे तो हमें भी करोड़ों रुपया चन्दा मिलने लगेगा।’’
हमने अपनी हाईकमानी झाड़ते हुए पार्टी अध्यक्ष को आदेश दिया- ‘‘धीरे-धीरे सीखेंगे तो इसमें बहुत समय लग जाएगा। पता कीजिए- शहर में कोई ऐसा कोचिंग सेन्टर है जिसमें राजनीति के दाँव-पेंच और चन्दा वसूली का गुर सिखाया जाता हो।’’
पार्टी अध्यक्ष ने कहा- ‘‘तीन बार आई॰ए॰एस॰ का एक्ज़़ाम दे चुका हूँ। मेरी नज़र में तो शहर में ऐसा कोई कोचिंग सेन्टर नहीं।’’
हमने तुरन्त अक्ल के घोड़े दौड़ाते हुए कहा- ‘‘तो ऐसा कीजिए- इलेक्शन कमीशन को तुरन्त पत्र लिखिए और पूछिए- उनके पास राजनीति का दाँव-पेंच सिखाने वाली और चन्दा वसूली का गुर सिखाने वाली कोई गाइड है?’’
पार्टी अध्यक्ष ने कहा- ‘‘पार्टी का रजिस्ट्रेशन कराने के लिए मैं दिल्ली गया था। ऐसी कोई गाइड होती तो चुनाव आयोग में ज़रूर दिखती।’’
हमने एक बार फिर अक्ल के घोड़े दौड़ाते हुए कहा- ‘‘ऐसा कीजिए- आप सभी पार्टियों के हाईकमान को पत्र लिखकर पूछिए- चन्दा वसूली का क्या गुर है? राजनीति की बारीकियाँ और उसके दाँव-पेंच क्या हैं?’
पार्टी अध्यक्ष ने कहा- ‘‘कोई जवाब नहीं देगा। डाक-टिकट का खर्च वेस्ट होगा।’’
हमने कुपित होकर पूछा- ‘‘क्यों नहीं जवाब देगा? क्या आपको पता नहीं- चोर-चोर मौसेरे भाई। हम सभी एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं। सभी दौड़कर मदद करेंगे।’’
पार्टी अध्यक्ष ने कहा- ‘‘नेता लोगों की आदत दौड़कर मदद करने की नहीं, दौड़कर एक-दूसरे की टाँग पकड़कर घसीटने की होती है। इसलिए पत्र लिखने से कोई लाभ न होगा।’’
हमने राजनीति का अन्तिम हथियार फेंकते हुए कहा- ‘‘ठीक है। चुनाव सिर पर हैं। सुनने में आया है- चुनाव के समय पार्टी का टिकट बेचकर करोड़ों रुपए वारे-न्यारे किए जाते हैं। आप पार्टी का टिकट कम दाम पर बेचने का प्रबन्ध कीजिए। आप देखिएगा- गिरी हालत में पाँच करोड़ रुपया इकट्ठा हो जाएगा।’’
पार्टी अध्यक्ष ने दाँत निकालते हुए कहा- ‘‘कोशिश कर चुका हूँ। अपनी पार्टी का टिकट तो कोई मुफ़्त में भी लेने को तैयार नहीं है!’’
विदेशी मूर्खों की तलाश में विदेश-यात्रा की बात भूलकर हमने कुपित होकर पूछा- ‘‘लेंगे कैसे नहीं मुफ़्त में? यह बताइए- पार्टी का टिकट कितना बड़ा होता है?’’
पार्टी अध्यक्ष ने सोचते हुए जवाब दिया- ‘‘कभी देखा नहीं। चुनाव का मामला है तो जाहिर सी बात है- सिनेमा, सर्कस और जादू के टिकट से तो बड़ा होता होगा। मैं तो समझता हूँ- कैलेण्डर जितना बड़ा होता होगा।’’
हमने समस्या का समाधान करते हुए अचूक परामर्श दिया- ‘‘ऐसा कीजिए- पार्टी का टिकट पाॅकेट साइज़ में छपवाइए और उसके पीछे नए साल का मिनी कैलेण्डर छपवा दीजिए। आप देखिएगा- मुफ़्त में पार्टी का टिकट लेने के लिए लम्बी लाइन लग जाएगी। हर आदमी पार्टी का टिकट लेकर एक साल तक जेब में रखकर घूमेगा।’’
पार्टी अध्यक्ष ने समझाया- ‘‘पार्टी का टिकट जेब में रखकर घूमने के लिए नहीं, चुनाव लड़ने के लिए होता है।’’
हमने जवाब दिया- ‘‘तो हम किसी को रोक कहाँ रहे हैं चुनाव लड़ने से? चुनाव लड़ने के शौक़ीन लोग जाकर पार्टी की ओर से अपना नामांकन-पत्र दाखिल कर सकते हैं।’’
पार्टी अध्यक्ष ने समझाया- ‘‘एक चुनाव क्षेत्र से पार्टी का एक ही उम्मीदवार खड़ा हो सकता है। पार्टी के टिकट के पीछे नए साल का कैलेण्डर छपवाकर मुफ़्त में बाँटेंगे तो हज़ारों-लाखों लोगों के पास हमारी पार्टी का टिकट होगा। बहुत बड़ा घपला पैदा हो जाएगा।’’
घपले को दूर करने का प्रयास करते हुए हमने परामर्श दिया- ‘‘ठीक है। ऐसा करते हैं- जिसे-जिसे चुनाव लड़ना हो वो अपना टिकट पार्टी कार्यालय में जमा करा दें। जिसके नाम से लाॅटरी निकलेगी, वो चुनाव में खड़ा होगा। घपला खत्म!’’
पार्टी अध्यक्ष ने कहा- ‘‘मुझे तो नहीं लगता- कोई पार्टी का टिकट लेकर चुनाव लड़ने के लिए आगे आएगा। मुफ़्त में मिला नए साल का कैलेण्डर भला कौन वापस करना चाहेगा?’’
पार्टी हाईकमान के रूप में हम अत्यधिक चिन्तित और विचलित होकर कैलेण्डर की काट ढूँढ़ने में लग गए। तभी पार्टी अध्यक्ष ने याद दिलाते हुए कहा- ‘‘पार्टी का टिकट
मुफ़्त में बाँटने से तो आपके विदेश-यात्रा का मसला हल नहीं होने वाला।’’
हमने हथियार डालते हुए आदेश पारित किया- ‘‘ठीक है। रहने दीजिए। अग्रिम सूचना तक विदेशी मूर्खाें की तलाश में विदेश-यात्रा का प्रोग्राम कैन्सिल किया जाता है।’’
विदेश-यात्रा का कार्यक्रम रद्द करके हमने एक बार फिर अक़्ल का घोड़ा दौड़ाना शुरू किया कि ‘हल्दी लगे न फिटकरी, रंग होय चोखा’ की तर्ज पर किस प्रकार विदेशी मूर्खाें की खोज की जाए? (अभी और है.)
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Last edited by Rajat Vynar; 20-01-2015 at 06:52 PM.
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Old 20-01-2015, 09:48 PM   #2
rajnish manga
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Default Re: बद अच्छा, बदनाम बुरा

बहुत बढ़िया व्यंग्य रचना है. धन्यवाद रजत वाईनार जी.
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Old 20-01-2015, 10:21 PM   #3
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Default Re: बद अच्छा, बदनाम बुरा

रजत जी....आपको भी पता है की यह व्यंग रचना भी आपकी बाकी रचना मानिन्द बेमिसाल है। ईन्हें तो छपना ही चाहीए।
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Old 20-01-2015, 10:27 PM   #4
Pavitra
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Default Re: बद अच्छा, बदनाम बुरा

रजत जी बहुत दिनों से प्रश्न था मन में आज पूछ ही लेती हूँ - आप किसी अखबार के लिये व्यंग्य का कौलम लिखते हैं क्या ? आपके व्यंग्य बाण मुझे एक प्रसिद्ध् अखबार के कौलम की याद दिलाते हैं ।
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Old 21-01-2015, 12:31 PM   #5
Rajat Vynar
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Talking Re: बद अच्छा, बदनाम बुरा

काफी सोचने के बाद यह विचार आया कि अन्तर्जाल के माध्यम से किसी विदेशी गपशप संगोष्ठी मंच पर पहुँचा जाए। वहाँ पर लगभग सभी देशों के लोगों से मुलाकात हो जाएगी। मंच में से किसी विदेशी मूर्ख को ढूँढ़कर निकाला जाएगा जिससे यह साबित हो सके कि विदेशों में भी मूर्ख बसते हैं। विदेशी गपशप संगोष्ठी मंच का मामला था। विदेशी गपशप संगोष्ठी मंच पर हमारा पाला बड़े-बड़े अंग्रेज़ों से पड़ने वाला था जो पैदा होते ही अंग्रेज़ी बोलते आए थे। पता नहीं- डिक्शनरी का कौन सा कठिन और दुर्लभ शब्द बोल दें और हमारी समझ में न आए। इस दिक्कत को दूर करने के लिए दो-तीन विदेशी शब्दकोशों को पार्टी के नाम से उधार लेकर अंग्रेज़ी शब्दों पर विशेष शोधकार्य शुरू हुआ। जब सभी शब्दकोशों को अच्छी तरह से पढ़कर रट लिया गया तो हमने भयमुक्त होकर एक ख्यातिप्राप्त विदेशी गपशप संगोष्ठी मंच में अपना यूज़रनेम पंजीकृत किया और सीधे सामान्य गपशप मंच पर पहुँचकर प्रत्येक यूज़रनेम को सूँघना शुरू किया। अब पता नहीं किस यूज़रनेम के पीछे विदेशी मूर्ख छिपा बैठा हो? ‘सिर मुँडाते ओले पड़े’ की कहावत उस समय चरितार्थ हो गई जब हमारे ऊपर Lol, Pmpl और Rotfl जैसे शब्दों का आक्रमण हुआ और हमारा सम्पूर्ण ज्ञान धरा का धरा रह गया। Lol, Pmpl और Rotfl जैसे भयानक शब्दों के सामने विदेशी शब्दकोष भी धूल चाटते नज़र आए। दरअसल हुआ यह कि विदेशी मूर्खोें को शीघ्रतापूर्वक चिह्नित करने के लिए हमने एक नायाब तरीका ढूँढ़ा। हमें यह बात अच्छी तरह से पता थी कि एक गधा दूसरे गधे को पहिचान लेता है। एक उल्लू दूसरे उल्लू को पहिचान लेता है। इस सिद्धान्त के अनुरूप एक मूर्ख दूसरे मूर्ख को तुरन्त पहिचान लेगा। अतः हमने अपने पहले सूत्र में लिखा- ‘‘I am an idiot. Any idiot here?’’ जवाब में हमारे ऊपर Lol, Pmpl और Rotfl जैसे भयानक शब्दों का आक्रमण हुआ तो हमने घबड़ाकर तुरन्त लाॅगआऊट कर दिया। बहुत सोच-विचार करने के बाद हम इस नतीजे पर पहुँचे कि अंग्रेज़ लोेग हमें अंग्रेज़ी भाषा में कोई नई गाली दे रहे हैं जो हमें नहीं आती। अंग्रेज़ों की इतनी हिम्मत? मंच में नवागत सदस्य से गाली-गलौज करने की क्या ज़रूरत? हमने निर्णय लिया कि ‘मियाँ की जूती, मियाँ के सिर’ की तर्ज पर हम अंग्रेज़ों को उन्हीं के शब्दों में गाली देकर अपने दिल की भड़ास निकालेंगे। हमने त्वरित कार्यवाही करते हुए अंग्रेज़ों के हर सूत्र में Lol, Pmpl और Rotfl लिखकर अंग्रेज़ों को गाली देना शुरू कर दिया। गाली-गलौज का यह सिलसिला बहुत लम्बा चलता, किन्तु लीवरपूल- यूनाइटेड किंगडम से एक अंग्रेज़ युवती ने हमें व्यक्तिगत संदेश भेजकर इस सिलसिले पर फुलस्टाॅप लगा दिया। अंग्रेज़ युवती ने अपने संदेश में कहा- ‘‘तुम मुझे पूरे इडियट लगते हो x तुम बात-बेबात पर इतना क्यों हँसते हो?’’
-‘‘मैं हँस कहाँ रहा हूँ? मैं तो गाली दे रहा हूँ।’’
-‘‘कैसे? Lol
x’’
-‘‘देखो, तुम भी मुझे Lol कहकर गाली दे रही हो। लड़की जानकर छोड़े दे रहा हूँ।’’
-‘‘Lol गाली नहीं होती x Lol का मतलब Laughing Out Loud होता है x Rotfl’’
-‘‘क्या?’’ हमारा मुँह खुला का खुला रह गया, ‘‘और ये Rotlf क्या होता है?’’
-‘‘Rolling on the floor laughing x’’
-‘‘और ये Pmpl?’’
-‘‘Pissing my pants laughing x x’’
-‘‘ये तुम फुलस्टाॅप की जगह x क्यों इस्तेमाल करती हो? क्या फुलस्टाॅप वाला बटन वर्क नहीं कर रहा है?’’
-‘‘Lol x नया मोबाइल है x आज ही लिया है
x एक्स का मतलब किस होता है x इसका मतलब यह हुआ- मैं तुमसे प्यार से बातें कर रही हूँ :-p’’
मैंने घबड़ाकर पूछा- ‘‘ये :-p क्या है?’’
-‘‘यह आइकाॅन है x इसका मतलब हुआ- मैं तुम्हें ज़ुबान दिखा रही हूँ x’’
-‘‘मगर तुम मुझे जु़बान क्यों दिखा रही हो?’’
-‘‘मैंने तुमने कहा- मैं तुमसे प्यार करती हूँ x तुम इसे सच न समझ बैठो, इसलिए जु़बान दिखाया x प्यार से बात करना हमारे देश का शिष्टाचार है x तुम एशिया से हो?’’
एशिया का नाम सुनकर हमारा मुँह एक बार फिर खुला का खुला रह गया, क्योंकि हमने अपने प्रोफ़ाइल में इण्डिया या एशिया का उल्लेख नहीं किया था। मैंने घबड़ाकर पूछा- ‘‘तुम्हें कैसे पता?’’
-‘‘तुम्हारी अंग्रेज़ी से x एशिया वाले ही इस तरह की अंग्रेज़ी लिखते हैं x हम लोग पूरे शब्द नहीं लिखते x Have की जगह av और anyone की जगह ne1 लिखते हैं x यह चाट की भाषा है x’’
-‘‘ओह!’’ हमारा मुँह आश्चर्य से खुला का खुला रह गया। अंग्रेज़ युवती मुझे अंग्रेज़ी भाषा की बहुत बड़ी वैज्ञानिक लगने लगी। हमें बड़ी शर्म आई। विदेशी मूर्खाें की खोज में हम खुद अंग्रेज़ों के मंच पर महामूर्ख बनकर अपने देश की लुटिया डुबोने में लगे थे! अंग्रेज़ों के मंच पर अपनी एशियन पहिचान छिपाने के लिए आवश्यक था- उनकी गपशप-भाषा को सीखकर आत्मसात् कर लिया जाए और इसके लिए आवश्यक था- अंग्रेज़ों के ‘शिष्टाचार नियम’ का पालन किया जाए। हमने तुरन्त फुलस्टाॅप को अलविदा कह दिया और उसकी जगह बिना भूले x :-p लगाने लगे। हर वाक्य के अन्त में x :-p लगा देखकर अंग्रेज़ युवती ने भड़ककर पूछा- ‘‘ये तुम हर वाक्य के बाद x :-p क्यों लगाते हो?’’ मैंने कहा- ‘‘इसका मतलब ये हुआ- तुम मेरे किस को सही मत समझना।’’ अंग्रेज़ युवती ने शान्त होते हुए कहा- ‘‘ठीक है- नहीं समझूँगी, मगर हर जगह :-p मत लगाया करो। बड़ी झल्लाहट होती है!’’ हमारे द्वारा अंग्रेज़ों के ‘शिष्टाचार के नियमों’ का विधिवत् पालन करने के कारण अंग्रेज़ युवती बहुत प्रसन्न हुई और उसने मुझे कठिन परिश्रम करके अपनी गपशप की भाषा ही नहीं, अंग्रेज़ों की बुरी-बुरी गालियाँ भी बिना शर्माए सिखा दी। (अभी और है.)
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Last edited by Rajat Vynar; 22-01-2015 at 10:26 AM.
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Rajat Vynar
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Talking Re: बद अच्छा, बदनाम बुरा

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Originally Posted by Pavitra View Post
रजत जी बहुत दिनों से प्रश्न था मन में आज पूछ ही लेती हूँ - आप किसी अखबार के लिये व्यंग्य का कौलम लिखते हैं क्या ? आपके व्यंग्य बाण मुझे एक प्रसिद्ध् अखबार के कौलम की याद दिलाते हैं ।
जब कोई बात आधिकारिक रूप से पहले से पता हो तो उसी बात को अनाधिकारिक रूप से पूछने की क्या आवश्यकता? ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार आपने मेरे सूत्र मार्कागीरी में मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं दिया।
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