03-10-2014, 09:38 AM | #1 |
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काका हाथरसी
‘’राजा दशरथ के मन में इक दिन, आया एक विचार. मेरे भी सुत क्यों नहीं, हो जाते दो-चार? हो जाते दो-चार, गए गुरू के पास. मैं तो बुढवा हो रहा, नहीं है सुत की आस. यह सुनकर वशिष्ट ने उनके, कंधे पर रखे हाथ. करो हवन तुम अग्नि का, हम हैं तुम्हरे साथ.’’.... इसके आगे हास्यास्पद रूप में बहुत कुछ लिखा है, किन्तु ‘पेंच-समुदाय’ की जागरूता को देखते हुए यहाँ पर फ़िलहाल.. अभी तो लिखना सम्भव नहीं होगा! पाठकगण कृपया क्षमा करें. Last edited by Rajat Vynar; 03-10-2014 at 09:40 AM. |
20-10-2014, 03:14 PM | #2 |
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Re: काका हाथरसी
आपने अपने इस सूत्र में बहुत रोचक अंदाज़ में उपनाम या छद्मनाम की महिमा का बखान किया है, रजत जी, लेकिन अंग्रेजी के बड़े बड़े लेखकों का ज़िक्र करते करते आ यह भूल गए कि 'काका हाथरसी' जिस शख्स का छद्मनाम है उसका वास्तविक नाम क्या है? तो हम बताये देते हैं काका हाथरसी का असली नाम: यह था - प्रभुनाथ गर्ग.
अब कुछ शब्द आपकी काका से प्रेरित कविता के बारे में. कविता कमाल की है कंटेंट में भी और अभिव्यक्ति में भी. इसी शैली की अन्य कवितायें भी यहाँ शेयर करेंगे तो आनंद आयेगा.
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20-10-2014, 04:55 PM | #3 | ||
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Re: काका हाथरसी
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20-10-2014, 05:03 PM | #4 |
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Re: काका हाथरसी
वैसे नाम पर अभी बहुत कुछ है, रजनीश जी.. और यह अलग सूत्र में शीघ्र ही प्रस्तुत किया जाएगा.
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20-10-2014, 11:03 PM | #5 | |
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Re: काका हाथरसी
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क्षमा चाहता हूँ रजत जी, आपके लेख में काका हाथरसी का पूरा नाम पढ़ने के बाद मैं भूल गया कि मैं इसे पढ़ चुका हूँ.
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21-10-2014, 12:25 PM | #6 |
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Re: काका हाथरसी
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23-10-2014, 04:59 PM | #7 |
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Re: काका हाथरसी
दो दशक पहले लिखी हुईं काका हाथरसी शैली की कई कविताएँ मेरे पास हैं किन्तु न तो अभी इस समय उपलब्ध हैं और न ही ठीक से याद हैं. मुझे ठीक से याद नहीं, शायद मैं कक्षा ७ या ८ में पढ़ता था, तब लिखी थीं.
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23-10-2014, 11:23 PM | #8 |
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Re: काका हाथरसी
श्री रजत जी, मेरे पास न जाने कहां से काका का एक पुस्तक 'पिल्ला' आ गया । उन दिनो मै ६-७ वी कक्षा मे था, फिर भी यह हास्य कविताएं पढने में बहुत ही मज़ा आया था, और मैने बार बार पढ़ा था। आज भी मैने वह पुस्तक संभाल कर रखा हुआ है। यह है दो तस्वीरें ।
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23-10-2014, 11:32 PM | #9 |
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Re: काका हाथरसी
काका के कारतूस (?) लाजवाब हैं. दीप जी की बहुत बढ़िया प्रस्तुति. धन्यवाद.
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