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Old 17-10-2014, 08:32 PM   #11
rajnish manga
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Default Re: दोस्ती की ज़रूरत!

रफ़ीक जी, सबसे पहले आप मेरा धन्यवाद स्वीकार करें इस सुन्दर कहानी के लिए और उसके बाद दिये गए सिकंदर व नेपोलियन के प्रसंगों के लिए. कहानी में वर्णित दोनों दोस्तों वीर और धीर की मित्रता की मिसाल ढूंढे नहीं मिलेगी. धन्य है वह समाज जिसमे ऐसे मित्र पाये जाते हैं जिन्हें दोस्ती के लिये अपनी जान देने में भी गुरेज़ नहीं होता. बहुत बहुत धन्यवाद.
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Old 17-10-2014, 11:40 PM   #12
Pavitra
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Default Re: दोस्ती की ज़रूरत!

दोस्ती एक ऐसा रिश्ता है जिसमें दो लोग एक दूसरे के समकक्ष होते हैं , कोई किसी से बड़ा नहीं , कोई किसी से छोटा नहीं। कहने को कोई कर्त्तव्य नहीं होता दोस्ती में पर फिर भी पूरे समर्पण के साथ ये रिश्ता ऐसे निभाया जाता है जैसे हमारा कर्त्तव्य ही हो दोस्त के प्रति। एक दूसरे पर इतना अधिकार होता है।
दोस्ती में कोई ज़बरदस्ती नहीं होती , कि दोस्ती निभानी ही है चाहे दिल मिलें या नहीं और शायद यही वजह है कि दिल के सबसे करीब होता है ये रिश्ता।
इतना निस्स्वार्थ प्रेम होता है दोस्ती में , जहाँ हम अपने दोस्त से उम्मीद नहीं करते बल्कि उसकी उम्मीदें पूरी करने के लिए प्रयास करते हैं।
सिर्फ वास्तविक ज़िन्दगी में ही नहीं वर्चुअल लाइफ में भी कभी कभी हम ऐसे लोगों से मिलते हैं जो कब हमारे लिए इतने प्रिय हो जाते हैं कि हमें पता ही नहीं चलता। जिनसे हम न कभी मिले होते हैं , और कभी ज़रूरत भी नहीं होती मिलने की , जिन्हे हमने कभी देखा नहीं होता , और देखने की इच्छा भी नहीं होती , जिनकी आवाज़ भी नहीं सुनी होती पर फिर भी पता होता है कि हमारे लिए वो सदैव मौजूद रहेंगे। हर कोई खुशनसीब नहीं होता कि उसे अच्छे दोस्त मिलें , पर जिसे अच्छे दोस्त मिलते हैं वो सच में खुशनसीब ही होता है।

मैं मानती हूँ कि जैसे प्यार किया नहीं जाता हो जाता है , ठीक उसी तरह दोस्ती भी की नहीं जाती वो भी स्वाभाविक रूप से ही होती है। कभी कभी हम सालों किसी के साथ काम करते हैं , बात करते हैं पर वो हमारे दिल के उतना करीब नहीं पहुँच पता , और कभी कभी कोई शख्स जिसे हम चंद लम्हों पहले मिले होते हैं हमारा सबसे करीबी बन जाता है।

किस्मत वाले होते हैं वो लोग जिन्हे अच्छे दोस्त नसीब होते हैं।
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Old 17-10-2014, 11:42 PM   #13
Pavitra
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Default Re: दोस्ती की ज़रूरत!

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Originally Posted by rafik View Post
एक बहुत बड़ा सरोवर था। उसके तट पर मोर रहता था, और वहीं पास एक मोरनी भी रहती थी। एक दिन मोर ने मोरनी से प्रस्ताव रखा कि "हम तुम विवाह कर लें, तो कैसा अच्छा रहे?"

मोरनी ने पूछा, "तुम्हारे मित्र कितने है?"

मोर ने कहा, "उसका कोई मित्र नहीं है।"

तो मोरनी ने विवाह से इनकार कर दिया।

मोर सोचने लगा सुखपूर्वक रहने के लिए मित्र बनाना भी आवश्यक है।

उसने एक शेर से, एक कछुए से, और शेर के लिए शिकार का पता लगाने वाली टिटहरी से, दोस्ती कर लीं।

जब उसने यह समाचार मोरनी को सुनाया, तो वह तुरंत विवाह के लिए तैयार हो गई।

दोनों ने पेड़ पर घोंसला बनाया और उसमें अंडे दिए, और भी कितने ही पक्षी उस पेड़ पर रहते थे।

एक दिन जंगल में कुछ शिकारी आए। दिन भर कहीं शिकार न मिला तो वे उसी पेड़ की छाया में ठहर गए और सोचने लगे, पेड़ पर चढ़कर अंडे और बच्चों से भूख बुझाई जाए।

मोर दंपत्ति को भारी चिंता हुई, मोर मित्रों के पास सहायता के लिए दौड़ा।

बस फिर क्या था, टिटहरी ने जोर- जोर से चिल्लाना शुरू किया। शेर समझ गया, कोई शिकार है। वह उसी पेड़ के नीचे जा पहुँचा जहाँ शिकारी बैठे थे। इतने में कछुआ भी पानी से निकलकर बाहर आ गया।

शेर से डरकर भागते हुए शिकारियों ने कछुए को ले चलने की बात सोची। जैसे ही हाथ बढ़ाया कछुआ पानी में खिसक गया। शिकारियों के पैर दलदल में फँस गए। इतने में शेर आ पहुँचा और उन्हें ठिकाने लगा दिया।

मोरनी ने कहा, "मैंने विवाह से पूर्व मित्रों की संख्या पूछी थी, सो बात काम की निकली न, यदि मित्र न होते, तो आज हम सबकी खैर न थी।`

मित्रता सभी रिश्तों में अनोखा और आदर्श रिश्ता होता है। और मित्र किसी भी व्यक्ति की अनमोल पूँजी होते हैं। इसलिए अपने दोस्तों को मत भूलो और ज्यादा से ज्यादा दोस्त बनाओ।
Quote:
Originally Posted by rafik View Post
किस राज्य में वीर नाम का एक युवक रहता था। एक बार वीर को दूसरे राज्य में किसी काम से जाना पड़ा और दुर्भाग्य से वीर वहाँ एक झूठे अपराध में फँस गया। गवाहों की ग़ैर मौजूदगी के कारण राजा ने उसे फाँसी का हुक़्म सुना दिया और मुनादी करवा दी गई-
"हर ख़ास-ओ-आम को सूचित किया जाता है कि अपराधी वीर को ठीक एक महीने बाद...याने पूर्णमासी के दिन... हमारे राज्य की प्रथा के अनुसार... प्रजा के सामने... सार्वजनिक रूप से फाँसी पर लटकाया जाएगाऽऽऽ ।"
जेल में बंद वीर बहुत परेशान था। उसे परेशान देखकर पहरेदार ने कहा-
"फाँसी की सज़ा से तुम परेशान हो गए हो। अब मरना तो है ही... आराम से खाओ-पीओ और मस्त रहो"
"मुझे अपने मरने की चिन्ता नहीं है। मेरी परेशानी कुछ और है... क्या मुझे जेल से कुछ दिन की छुट्टी मिल सकती है ?"
"जेल से छुट्टी ? ये कोई नौकरी है क्या, जो छुट्टी मिल जाएगी?... लेकिन बात क्या है, कहाँ जाना है तुम्हें छुट्टी लेकर ?"
"मेरी माँ अन्धी है और घर पर अकेली है। मुझे उसके शेष जीवन का पूरा प्रबंध करने के लिए जाना है जिससे मेरे मरने के बाद उसे कोई कष्ट न हो। उसका सारा प्रबंध करके मैं एक महीने के भीतर ही लौट आऊँगा।... क्या कोई तरीक़ा... क्या कोई क़ानून ऐसा नहीं है कि मुझे कुछ दिनों की छुट्टी मिल जाय ?"
"देखो भाई ! तुम पढ़े-लिखे और सज्जन आदमी मालूम होते हो... तुम्हारी समस्या को मैं राज्य के मंत्री तक पहुँचवा दूँगा... बस इतना ही मैं तुम्हारे लिए कर सकता हूँ।"
अगले दिन पहरेदार ने बताया-
"सिर्फ़ एक तरीक़ा है कि तुम छुट्टी जा सको...?"
"वो क्या ?"
"अगर तुम्हारी जगह कोई और यहाँ जेल में बन्द हो जाय... जिससे कि अगर तुम नहीं लौटे तो तुम्हारी जगह उसे फाँसी दे दी जाय...सिर्फ़ यही तरीक़ा है... लेकिन कभी ऐसा हुआ नहीं है क्योंकि कोई भी किसी की फाँसी की ज़मानत थोड़े ही देता है।"
"आप मेरे गाँव से मेरे दोस्त धीर को बुलवा दीजिए... मेहरबानी करके जल्दी उसे बुलवा दें"
"पागल हो क्या ! कोई दोस्त-वोस्त नहीं होता ऐसे मौक़े के लिए..."
"आप उसे ख़बर तो करवाइए..."
वीर और धीर की दोस्ती सारे इलाक़े में मशहूर थी। लोग उनकी दोस्ती की क़समें खाया करते थे। जैसे ही धीर को ख़बर मिली वो भागा-भागा आया और वीर को जेल से छुट्टी मिल गई।
धीरे-धीरे दिन गुज़रने लगे, वीर नहीं लौटा और न ही उसकी कोई ख़बर आई। धीर के चेहरे पर कोई चिन्ता के भाव नहीं थे बल्कि वह तो रोज़ाना ख़ूब कसरत करता और जमकर खाना खाता। पहरेदार उससे कहते कि वीर अब वापस नहीं आएगा तो धीर हँसकर टाल जाता। इस तरह फाँसी में केवल एक दिन शेष रह गया, तब सभी ने धीर को समझाया कि उसे मूर्ख बनाया गया है।
"आप लोग नहीं जानते वीर को... यदि वह जीवित है तो निश्चित लौटेगा... चाहे सूर्य पूरब के बजाय पच्छिम से उगे... लेकिन वीर अवश्य लौटेगा। एक बात और है, जिसका पता आप लोगों को नहीं है। मैंने उसे यह कहकर भेजा है कि वह कभी वापस न लौटे और मुझे ही फाँसी लगने दे... मगर मैं जानता हूँ उसे, वो नालायक़ ज़रूर लौटेगा, मेरी बात मानेगा ही नहीं !"
जब सबने यह सुना कि ख़ुद धीर ने ही वीर से लौटने के लिए मना कर दिया है तो राजा को सूचना दे दी गई।
पूर्णमासी आ गई और फाँसी का दिन भी...। अपार भीड़ एकत्र हो गई, इस विचित्र फाँसी को देखने के लिए। जिसमें किसी के बदले में कोई और फाँसी पर चढ़ रहा था। स्वयं राजा भी वहाँ उपस्थित था। फाँसी लगने ही वाली थी कि वहाँ वीर पहुँच गया।
"रोकिए फाँसी ! फाँसी तो मुझको दी जानी है... मैं आ गया हूँ अब... मुझे दीजिए फाँसी" - वीर बोला,
"नहीं ये समय पर नहीं लौट पाया है, इसलिए फाँसी तो अब मुझे लगेगी... मुझे !" धीर चिल्लाया,
इस तरह दोनों झगड़ने लगे। जनता के साथ-साथ राजा को भी बहुत आश्चर्य हो रहा था कि ये दोनों दोस्त फाँसी पर चढ़ने के लिए लड़-झगड़ रहे हैं ?
"लेकिन तुम इतनी देर से क्यों लौटे ?" राजा ने पूछा।
"महाराज ! मैंने तो अपनी माँ के लिए सारा इन्तज़ाम एक सप्ताह में ही कर दिया था और उसे समझा भी दिया था कि अब उसका ध्यान धीर ही रखेगा। जब मैं वापस लौट रहा था तो लुटेरों से मेरी मुठभेड़ हो गई। मैं 15 दिन घायल और बेसुध पड़ा रहा। जैसे ही मुझे होश आया, मैं भागा-भागा यहाँ आया हूँ।"
राजा ने कहा "अब तो तुम दोनों को ही सज़ा दी जाएगी... लेकिन वो फाँसी नहीं बल्कि हमारे राजदरबार में नौकरी करने की सज़ा होगी... तुम दोनों बेमिसाल दोस्त हो और ईमानदार भी... आज से तुम दोनों हमारे राजदरबार की शोभा बढ़ाओगे"
ये तो थी मित्रता की एक पुरानी कहानी, मित्रता और शत्रुता का आपसी रिश्ता बहुत गहरा है। मित्रता, बराबर वालों में होती है और इस 'बराबर' का संबंध पैसे की बराबरी से नहीं है, यह बराबरी किसी और ही धरातल पर होती है। इसी कारण हमारे 'स्तर' की पहचान हमारे दोस्तों से होती है। यही बात शत्रुता पर भी लागू होती है। हमारे शत्रु जिस स्तर के हैं, हमारा भी स्तर वही होता है।
यूनान के सम्राट सिकन्दर से किसी ने कहा-
"आपके बारे में सुना है कि आप बहुत तेज़ दौड़ सकते हैं। किसी दौड़ में आप हिस्सा क्यों नहीं लेते ?"
"जब सम्राटों की दौड़ होगी तो सिकंदर भी दौड़ेगा।" सिकंदर का उत्तर था।
इसी तरह 'नेपोलियन बोनापार्ट' से एक पहलवान ने कहा-
"आपकी बहादुरी मशहूर है, मुझसे कुश्ती लड़कर मुझे हरा कर दिखाइए !"
"तुमसे मेरा अंगरक्षक लड़ेगा... जो तुमसे दोगुना ताक़तवर है। उसके सामने तुम एक मिनिट भी नहीं टिक पाओगे। मुझे अपनी बहादुरी के लिए 'तुम्हारे' प्रमाणपत्र की नहीं बल्कि यूरोप की जनता के विश्वास की ज़रूरत है।"
मित्रता का कोई 'प्रकार' नहीं होता कि इस प्रकार की मित्रता या उस प्रकार की, जबकि शत्रुता के बहुत सारे 'प्रकार' हैं। जैसे- राजनीतिक शत्रुता, व्यापारिक शत्रुता, ईर्ष्या-जन्य शत्रुता आदि कई तरह की शत्रुता हो सकती हैं। शत्रुता के बारे में यह भी कहा जा सकता है कि शत्रुता कम हो गई या बढ़ गई। मित्रता कम या अधिक नहीं होती, या तो होती है या नहीं होती। जब हम यह कहते हैं "उससे हमारी उतनी दोस्ती अब नहीं रही..." तो हम सही नहीं कह रहे होते। वास्तव में दोस्ती समाप्त हो चुकी होती है। इसी तरह 'गहरी मित्रता' जैसी कोई स्थिति नहीं होती। दोस्ती और दुश्मनी में एक फ़र्क़ यह भी होता कि दोस्ती 'हो' जाती है और दुश्मनी 'की' जाती है।
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Old 18-10-2014, 04:49 PM   #14
rajnish manga
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Default Re: दोस्ती की ज़रूरत!

दोस्ती और दोस्तों के विषय में आपने इतने अच्छे विचार रखे हैं, पवित्रा जी, कि दिल से स्वतः 'वाह ... वाह' निकल गया. धन्यवाद.

वो जिसे दुनिया में सच्चा दोस्त मिल जाये
उसे फिर और बोलो किस बशर की आरज़ू होगी
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Last edited by rajnish manga; 18-10-2014 at 04:52 PM.
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Old 18-10-2014, 09:40 PM   #15
Dr.Shree Vijay
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Thumbs up Re: दोस्ती की ज़रूरत!


भूल शायद बहुत बड़ी कर ली,
दिल ने दुनिया से दोस्ती कर ली.
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- बशीर बद्र

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Old 18-10-2014, 09:41 PM   #16
Dr.Shree Vijay
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Default Re: दोस्ती की ज़रूरत!


ऐ चाँद मेरे दोस्त को एक तोहफा देना ,
तारो की महफ़िल संग रौशनी करना ,
छुपा लेना अँधेरे को ,
हर रात के बाद एक खुबसूरत सवेरा देना.........


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Old 18-10-2014, 10:41 PM   #17
Dr.Shree Vijay
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Default Re: दोस्ती की ज़रूरत!

" जानवरों के बीच की अनोखी दोस्ती "



दैनिक भास्कर के सौजन्य से :.........


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Old 20-10-2014, 10:37 AM   #18
rafik
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Default Re: दोस्ती की ज़रूरत!

सच्ची कहानी-ः
दो दोस्त थे उनमें भाईयो की तरह प्रेम था। दोनो खाली समय में साथ रहा करते थे।
औफिस टाईम में भी दोनो एक दुसरे के फेसबुक वाल पे मस्ती किया करते थे।
एक दिन दोनो में गलतफहमी पैदा हो गई। विवाद बढ़ गया।
दोनो ने आपस में बात करना बंद कर दिया,दोनो की दोस्ती समाप्त हो गई।एक ने दुसरे को फेसबुक पे ब्लॉक कर दिया।कूछ दिन बीत गये।दोनो दोस्त एक दुसरे को याद करने लगे।
पर संकोच से कूछ ना कहे।एक महीने बाद जब एक दोस्त से रहा ना गया दुसरे को फोन
किया। पर फोन औफ था। वो परेशान सा दुसरे दोस्त के घर गया। पता चला की दोस्त को गंभीर बिमारी है। कूछ दिन की साँसे बाकी है। दोनो गले मिलकर रोने लगे।
बिमार दोस्त ने कहा,तू मुझे हमेशा फेसबुक वाल पे कूछ कूछ लिखकर छेड़ा करना।
मेरी रूह को शान्ति मिल जायेगी। उस दोस्त ने वादा कर दिया,घर आकर दोस्त ने अनब्लॉक कर दुबारा फ्रेण्ड रिक्वेस्ट भेजा। पर अफसोस बिमार दोस्त हॉस्पीटल में था।
और फेसबुक पे नहीं था। रिक्वेस्ट एक्सेप्ट नहीं हो पाया। अगले दिन बिमार दोस्त सुबह सुबह दुनिया छोड़ गया। आज वो मित्र जब भी अपने मृत दोस्त की फेसबुक आई डी देखता है,
उसके वाल पे लिखने के लिये तड़प जाता है। पर काफी देर हो चूकी थी रोने के सिवाय कूछ नहीं कर सकता था।
नोट-ःचन्द दिन की जिंदगी हँसखेल कर गुजारे,
नाराजगी को जीवन में स्थान ना दे।
नहीं तो जिंदगी अफसोस के मौके भी छिन लेता है।
__________________


Disclaimer......!
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Old 20-10-2014, 05:10 PM   #19
Rajat Vynar
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Talking Re: दोस्ती की ज़रूरत!

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यूनान के सम्राट सिकन्दर से किसी ने कहा-
"आपके बारे में सुना है कि आप बहुत तेज़ दौड़ सकते हैं। किसी दौड़ में आप हिस्सा क्यों नहीं लेते ?"
"जब सम्राटों की दौड़ होगी तो सिकंदर भी दौड़ेगा।" सिकंदर का उत्तर था।
इसी तरह 'नेपोलियन बोनापार्ट' से एक पहलवान ने कहा-
"आपकी बहादुरी मशहूर है, मुझसे कुश्ती लड़कर मुझे हरा कर दिखाइए !"
"तुमसे मेरा अंगरक्षक लड़ेगा... जो तुमसे दोगुना ताक़तवर है। उसके सामने तुम एक मिनिट भी नहीं टिक पाओगे। मुझे अपनी बहादुरी के लिए 'तुम्हारे' प्रमाणपत्र की नहीं बल्कि यूरोप की जनता के विश्वास की ज़रूरत है।"
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Old 20-10-2014, 05:17 PM   #20
Rajat Vynar
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Talking Re: दोस्ती की ज़रूरत!

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दोस्ती और दुश्मनी में एक फ़र्क़ यह भी होता कि दोस्ती 'हो' जाती है और दुश्मनी 'की' जाती है।
कोई भी चिराग-बत्ती लेकर नहीं ढूँढता कि दुश्मनी किससे 'की' जाये? इस समय मेरे दुश्मन ही नहीं हैं. टाइम पास नहीं हो रहा है! इसलिए दुश्मनी भी 'हो' जाती है, 'की' नहीं जाती!
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