20-10-2014, 12:06 PM | #1 |
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तेरे गिरने मैं तेरी हार नही क्यूंकि तू आदम
क्या गुज़री होगी उस बुढ़ी माँ के दिल पर जब उसकी बहु ने कहा -: "माँ जी, आप अपना खाना बना लेना, मुझे और इन्हें आज एक पार्टी में जाना है.!!" बुढ़ी माँ ने कहा -: "बेटी मुझे गैस चुल्हा चलाना नहीं आता.!" तो बेटे ने कहा -: "माँ, पास वाले मंदिर में आज भंडारा है, तुम वहाँ चली जाओ खाना बनाने की कोई नौबत ही नहीं आयेगी.!" माँ चुपचाप अपनी चप्पल पहन कर मंदिर की ओर हो चली गयी यह पुरा वाक्या 10 साल का बेटा रोहन सुन रहा था | पार्टी में जाते वक्त रास्ते में रोहन ने अपने पापा से कहा -: "पापा, मैं जब बहुत बड़ा आदमी बन जाऊंगा ना तब मैं भी अपना घर किसी मंदिर के पास ही बनाऊंगा.!" माँ ने उत्सुकतावश पुछा -: "क्यों बेटा?" . . . रोहन ने जो जवाब दिया उसे सुनकर उस बेटे और बहु का सिर शर्म से नीचे झूक गया. रोहन ने कहा -: "क्योंकि माँ, जब मुझे भी किसी दिन ऐसी ही किसी पार्टी में जाना होगा तब तुम भी तो किसी मंदिर में भंडारे में खाना खाने जाओगी ना और मैं नहीं चाहता कि तुम्हें कहीं दूर मंदिर में जाना पड़े.!" .. .. पत्थर तब तक सलामत है जब तक वो पर्वत से जुड़ा है. पत्ता तब तक सलामत है जब तक वो पेड़ से जुड़ा है. इंसान तब तक सलामत है जब तक वो परिवार से जुड़ा है क्योंकि परिवार से अलग होकर आज़ादी तो मिल जाती है लेकिन संस्कार चले जाते हैं...
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20-10-2014, 12:14 PM | #2 |
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Re: तेरे गिरने मैं तेरी हार नही क्यूंकि तू आदम
एक था भगवान,
एक था शैतान..... दोनों में जब झगड़ा हुआ तो, बहुत हुआ नुकसान.... दोनों ने मिलकर, निकाला समस्या का समाधान.... एक खिलौना बनाया, और उसका नाम रखा इंसान.... शैतान ने अपनी ताकते दी, क्रोध,धंमड और जलन..... भगवान ने अपने अंश दिये, प्यार,दया और सम्मान... भगवान से मुस्कराकर बोला शैतान, न तेरा नुकसान,न मेरा नुकसान...... तू जीते या मैं जीतू, हारेगा इंसान ..... . और इसलिए कहते है... कोई टूटे तो उसे सजाना सीखो, कोई रुठे तो उसे मनाना सीखो ... रिश्ते तो मिलते है मुकद्दर से, बस उन्हे खूबसूरती से निभाना सीखों। जन्म लिया है तो सिर्फ साँसे मत लीजिये, जीने का शौक भी रखिये.. शमशान ऐसे लोगो की राख से... भरा पड़ा है जो समझते थे,,, दुनिया उनके बिना चल नहीं सकती. हाथ में टच फ़ोन, बस स्टेटस के लिये अच्छा है… सबके टच में रहो, जींदगी के लिये ज्यादा अच्छा है… ज़िन्दगी में ना ज़ाने कौनसी बात "आख़री" होगी, ना ज़ाने कौनसी रात "आख़री" होगी । मिलते, जुलते, बातें करते रहो यार एक दूसरे से, ना जाने कौनसी "मुलाक़ात" आख़री होगी..
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20-10-2014, 07:38 PM | #3 | |
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Re: तेरे गिरने मैं तेरी हार नही क्यूंकि तू आदम
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बहुत बहुत बहुत सुन्दर कविता है bhai |
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21-10-2014, 10:16 AM | #4 |
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Re: तेरे गिरने मैं तेरी हार नही क्यूंकि तू आदम
पुरानी पेंट रफू करा कर पहनते जाते है, ब्रांडेड
नई शर्ट देने पे आँखे दिखाते हैं.. टूटे चश्मे से ही अख़बार पढने का लुत्फ़ उठाते है, टोपाज केब्लेड से दाढ़ी बनाते हैं, पिताजी आज भी पैसे बचाते है …. कपड़े का पुराना थैला लिये दूर की मंडी तक जाते हैं, बहुत मोल-भाव करके फल-सब्जी लाते हैं, आटा नही खरीदते, गेहूँ पिसवाते हैं.. पिताजी आज भी पैसे बचाते हैं… स्टेशन से घर पैदल ही आते हैं, रिक्शा लेने से कतराते हैं, सेहत का हवाला देते जाते हैं, बढती महंगाई पे चिंता जताते हैं, पिताजी आज भी पैसे बचाते हैं... पूरी गर्मी पंखे में बिताते हैं, सर्दियां आने पर रजाई में दुबक जाते हैं, एसी/हीटर को सेहत का दुश्मन बताते हैं, लाइट खुली छूटने पे नाराज हो जाते हैं, पिताजी आज भी पैसे बचाते हैं... माँ के हाथ के खाने में रमते जाते हैं, बाहर खाने में आनाकानी मचाते हैं, साफ़-सफाई का हवाला देते जाते हैं, मिर्च, मसाले और तेल से घबराते हैं, पिताजी आज भी पैसे बचाते हैं… गुजरे कल के किस्से सुनाते हैं, कैसे ये सब जोड़ा गर्व से बताते हैं, पुराने दिनों की याद दिलाते हैं, बचत की अहमियत समझाते हैं, हमारी हर मांग आज भी, फ़ौरन पूरी करते जाते हैं, पिताजी हमारे लिए ही पैसे बचाते है ... ;-(
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29-10-2014, 10:47 AM | #5 |
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Re: तेरे गिरने मैं तेरी हार नही क्यूंकि तू आदम
बालिका गौंझा बड़ी चंचल थी। वह
अक्सर दूसरे लोगों की नकल उतारकर अपनी सहेलियों को हंसाया करती थी। एक दिन गौंझा अपने भाई-बहनों के साथ बैठी थी। सब आपस में हंसी-मजाक कर रहे थे। गौंझा ने बात-बात पर डांटने वाली अपनी एक अध्यापिका की नकल उतार कर दिखाई तो सबका हंसते-हंसते बुरा हाल हो गया। हंसी के फव्वारे छूट ही रहे थे कि अचानक बच्चों के कमरे की लाइट बुझ गई। बच्चों ने देखा कि सड़क पर और पूरे पड़ोस में रोशनी थी, केवल उन्हीं के कमरे में लाइट नहीं थी। वे वहां से भागकर अपनी मां के कमरे में गए तो देखा कि वहां पर भी लाइट जल रही थी। बच्चों ने पूछा, 'मां, हमारे कमरे की लाइट कैसे चली गई? सब जगह तो लाइट आ रही है।' यह सुनकर मां बोली, 'तुम्हारे कमरे की लाइट मैंने बंद की है।' इस पर बच्चे हैरानी से मां से बोले, 'मां, तुमने हमारे कमरे की लाइट क्यों बंद की?' मां बोली, 'दूसरों की आलोचना और नकल उतारने के लिए बिजली का खर्चा मुझसे सहन नहीं होगा। ऐसी बेकार की बातों के लिए बिजली जलाना उसका दुरुपयोग करना है।' यह सुनकर बच्चों ने अपना मुंह नीचे झुका लिया। बच्चों को अपनी गलती का अहसास होते देखकर मां उनसे बोली, किसी के व्यक्तिगत जीवन के बारे मे बातें करना और आलोचना करना सभ्य लोगों का काम नहीं है।' बच्चों ने मां की यह बात गांठ बांध ली। बालिका गौंझा पर इसका इतना प्रभाव पड़ा कि उसने अपना संपूर्ण जीवन ही मानव सेवा के नाम कर दिया। बालिका गौंझा को ही आज पूरा विश्व मदर टेरेसा के नाम से जानता है।
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