10-10-2013, 07:52 PM | #1 |
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भारतीय सिनेमा के सितारे
मुम्बई के चर्चगेट इलाके में गेलार्ड नामक एक रेस्तरां में पचास-साठ के दशक में संघर्ष कर रहे फिल्मी कलाकारों का अड्डा हुआ करता था। वहाँ रूप के. शोरी नामक फिल्म डायरेक्टर अक्सर आया-जाया करते थे। उनकी निगाह विनोद मेहरा पर ऐसी जमी कि उन्होंने अपनी फिल्म में सीधे नायक की भूमिका सौंप दी। इसके पहले विनोद बाल कलाकार के रूप में कैमरा फेस कर चुके थे। फिल्म रागिनी में किशोर कुमार के बचपन का रोल उन्होंने निभाया था। आई.एस. जौहर की फिल्म बेवकूफ (1960) और विजय भट्ट की फिल्म अंगुलिमाल (1960) में छोटे-मोटे रोल में भी विनोद दिखाई दिए थे। मौसमी ने बदला मौसम 13 फरवरी 1945 को जन्मे विनोद के फिल्म करियर के मौसम को खुशनुमा बनाने में अभिनेत्री मौसमी चटर्जी का जबरदस्त हाथ है। शिक्त सामंत की फिल्म अनुराग (1972) में मौसमी-विनोद पहली बार साथ आए। मौसमी ने एक दृष्टिहीन युवती का रोल संजीदगी के साथ किया था। विनोद एक आदर्शवादी नायक थे और अपने पिता की इच्छा के विरुद्ध वह मौसमी से शादी करना चाहते थे। इसके बाद फिल्म उस पार (बसु चटर्जी), दो झूठ (जीतू ठाकुर) तथा स्वर्ग नरक (दसारी नारायण राव) में मौसमी के नायक बने। विनोद को स्वतंत्र रूप से नायक बनने और हीरोइन से रोमांस लड़ाने अथवा पेड़ों के इर्दगिर्द गाना गाने के अवसर ए ग्रेड के बजाय बी ग्रेड फिल्मों में ज्यादा मिले क्योंकि बड़े निर्देशकों की फिल्मों में उन्हें ज्यादातर दूसरी लीड का नायक माना गया। उस वक्त मल्टीस्टारर फिल्मों का दौर था। विनोद खन्ना, राजेश खन्ना, संजीव कुमार, धर्मेन्द्र, जीतेन्द्र या अमिताभ के रहते हुए विनोद मेहरा को फिल्म में ज्यादा अवसर नहीं मिलते थे। हमेशा हाशिए में रहे विनोद मेहरा के करियर की यह ट्रेजेडी मानी जाएगी कि उन्हें बड़े बैनर्स से ज्यादा ऑफर नहीं आए। बी.आर. चोपड़ा की फिल्म द बर्निंग ट्रेन में वे सवार थे। लेकिन इस फिल्म में ट्रेन के मुसाफिरों की भीड़ के समान कलाकार थे। इसके बावजूद बर्निंग ट्रेन बॉक्स ऑफिस पर भी बुरी तरह जल गई थी।कोई सफल सितारा अपने इंटरव्यू में बर्निंग ट्रेन का जिक्र तक नहीं करना चाहता।लिहाजा इस फिल्म में विनोद मेहरा का होना नहीं जैसा था। उन्हें दक्षिण भारतीय फिल्म डायरेक्टर्स ने भी मौके दिए जो उन दिनों हिन्दी फिल्में लगातार निर्देशित कर रहे थे। ऐसे फिल्मकारों में कृष्णन्* पंजू (शानदार), आर.कृष्णमूर्ति (अमरदीप), एस. रामानाथन्* (दो फूल तथा सबसे बड़ा रुपैया) तथा दसारी नारायण राव (स्वर्ग नरक) के नाम उल्लेखनीय हैं। दक्षिण भारतीय फिल्मकारों की पसंद बनने से अभिनेता का सबसे बड़ा नुकसान यह होता है कि उसके पैर तले से बॉलीवुड की जमीन खिसक जाती है। अस्सी के दशक में विनोद मेहरा को वैरायटी की फिल्में और वैरायटी भरे रोल मिले, लेकिन इन फिल्मों में जो मुख्य नायक-नायिका थे, वे सारी लोकप्रियता बटोर कर ले गए। मोहन सहगल निर्देशित फिल्म कर्तव्य की सफलता धर्मेन्द्र और रेखा के खाते में लिखी गई। बेमिसाल (ऋषिकेश मुखर्जी) और खुद्दार (रवि टंडन) की कामयाबी का लाभ अमिताभ को मिला। लाल पत्थर में राजकुमार-हेमा मालिनी का स्क्रीन प्रजेंस विनोद पर भारी पड़ा। शोले के गब्बरसिंह उर्फ अमजद खान को जब अपार लोकप्रियता मिली, तो उन्होंने चोर पुलिस फिल्म बनाकर हाथ साफ किए। इसमें विनोद को उन्होंने मौका दिया मगर वह कोई काम नहीं आ सका। रेखा से रोमांस और शादी! विनोद मेहरा और रेखा की नजदीकियाँ और रोमांस की चर्चाएँ बॉलीवुड में कई दिनों तक सुर्खियों में रही। कहा जाता है कि दोनों ने शादी भी की थी। विनोद और रेखा ही जानते हैं कि असलियत क्या है? वैसे विनोद मेहरा ने तीन शादियाँ की। मीना ब्रोका उनकी पहली पत्नी थी। शादी-शुदा विनोद का दिल बिंदिया गोस्वामी पर आ गया जिनके साथ विनोद उन दिनों कई फिल्मों में काम कर रहे थे। विनोद और बिंदिया की शादी भी लंबे समय तक टिक नहीं पाई और बिंदिया से वे अलग हो गए। इसके बाद किरण से उन्होंने विवाह रचाया। किरण और विनोद की एक बेटी सोनिया और एक बेटा रोहन है। सोनिया मेहरा पिछले दिनों कुछ फिल्मो में भी नजर आईं। गुरुदेव भी नहीं हो पाई पूरी बॉलीवुड में अपनी प्रतिभा को प्रतिष्ठा नहीं मिलने से विनोद अक्सर उदास रहा करते थे। जब अभिनेता के रूप में उनके पास ज्यादा कुछ करने को नहीं रहा तो वे निर्देशन के मैदान में उतरे। उन्होंने ऋषिकपूर-अनिल कपूर और श्रीदेवी को लेकर फिल्म 'गुरुदेव' शुरू की जो उस वक्त के कामयाब सितारे थे, लेकिन गुरुदेव को बनने में लंबा वक्त लगा। कहा जाता है कि इन सितारों ने डेट्स देने में विनोद को बेहद सताया और विनोद तनाव में रहने लगे। फिल्म के रिलीज होने के पूर्व ही वे चल बसे। 30 अक्टोबर 1990 को तमाम बातों पर विनोद की मौत ने फुलस्टाप लगा दिया। अचानक दिल का दौरा आ जाने से वे असमय मात्र 45 वर्ष की उम्र में ही बिदा हो गए। उनकी मौत के बाद प्रतीक्षा (1993, लॉरेंस डिसूजा), सरफिरा (1992), इंसानियत (1994, टोनी जुनेजा) जैसी कुछ फिल्में रिलीज हुईं, लेकिन पंछी पिंजरा छोड़ चुका था। दरअसल देखा जाए तो विनोद मेहरा हिंदी सिनेमा में अपना कोई विशेष मकाम नहीं बना पाए। एक अभिनेता के रूप में वे हवाओं पे लिख दो हवाओं के नाम जैसे रहे। प्रमुख फिल्में लाल पत्थर (1972), अनुराग (1972), सबसे बड़ा रुपैया (1976), नागिन (1976), अनुरोध (1977), साजन बिना सुहागन (1978), घर (1978), दादा (1979), कर्तव्य (1979), अमर दीप (1979), जानी दुश्र्मन (1979), बिन फेरे हम तेरे (1979), द बर्निंग ट्रेन (1980), टक्कर (1980), ज्योति बने ज्वाला (1980), प्यारा दुश्र्मन (1980), ज्वालामुखी (1980), साजन की सहेली (1981), बेमिसाल (1982), स्वीकार किया मैंने (1983) लॉकेट (1986, प्यार की जीत (1987)
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10-10-2013, 07:55 PM | #2 |
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Re: भारतीय सिनेमा के सितारे
'जा-जा-जा मेरे बचपन कहीं जा के छुप नादां'- गीत गाते हुए सायरा बानो फिल्म जंगली के साथ पहली बार परदे पर आई थी। उसका शबाब प्याले से छलकती शराब जैसा चंचल था। श्वेत-श्याम फिल्मों के जमाने में जंगली पहली रोमांटिक रंगीन फिल्म थी। इसमें शम्मी कपूर ने पहली बार 'याहू' की हुंकार भरी थी, जो देश की गली-गली में गूँजी थी। कश्मीर की मनमोहक घाटियाँ। बर्फ से लकदक पेड़ और मैदान। उस पर चहलकदमी करते, तराने गाते, छेडछाड़ करते दो जवाँ दिलों ने दर्शकों की धड़कनें बढ़ा दी थीं। फिल्म जंगली सुपरहिट रही। शंकर-जयकिशन के मीठे गीतों की वजह से और शम्मी कपूर के विद्रोही तेवरों की वजह से। सायरा बानो की बम्बइया सिनेमा में धूम मच गई। माँ-बेटी : दोनों ब्यूटी-क्वीन सायरा बानो के बारे में विस्तार से जाने के पहले तीस के दशक की ग्लेमरस नायिका नसीम बानो को जानना ज्यादा जरूरी है। उस दौर में फिल्मों में आने वाली लड़कियाँ प्रायः निचले तबकों से हुआ करती थी। ऊँचे-रईस खानदान की नसीम ने जब फिल्मों में आने की जिद की, तो परिवार का विरोध झेलना पड़ा। लेकिन सोहराब मोदी जैसे निर्माता-निर्देशक ने नसीम को फिल्म हेमलेट में ओफिलिया के रोल का ऑफर दिया, तो सबका गुस्सा काफूर हो गया। नसीम की किस्मत जागी फिल्म पुकार से। जहाँगीर के न्याय पर आधारित इस फिल्म में नसीम ने नूरजहाँ का किरदार चन्द्रमोहन के साथ निभाया था। अपनी ही आवाज गाना भी गाया था- 'जिंदगी का साज भी क्या साज है, बज रहा है और बेआवाज है।' नसीम तीस के दशक की तमाम तारिकाओं में सबसे अधिक हसीन और शोख थी। इसीलिए उन्हें ब्यूटी-क्वीन के नाम से प्रचारित किया जाता था। जब सायरा बानो को फिल्मों में लांच किया गया, तो माँ का ताज उनके सिर पर रखा गया। नसीम बानो की उल्लेखनीय फिल्मों में चल-चल रे नौजवान, उजाला, बेगम और चाँदनी रात प्रमुख हैं। लंदन से आया चाँद का टुकड़ा! नसीम बानो ने अहसान मियाँ नामक एक अमीरजादे से निकाह किया था। उन्होंने नसीम की खातिर कुछ फिल्मों का निर्माण किया था। सायरा का जन्म 23 अगस्त 1941 को मसूरी में हुआ। सायरा की नानी शमशाद बेगम दिल्ली की मशहूर गायिका थी। भारत-पाक विभाजन के बाद अहसान मियाँ पाकिस्तान जा बसे। नसीम बेटी सायरा और बेटे सुल्तान को लेकर लंदन जा बसी। सायरा की शिक्षा-दीक्षा लंदन में हुई है। छुट्टियाँ मनाने सायरा जब भारत आती, तो दिलीप कुमार की फिल्मों की शूटिंग देखने घंटों स्टुडियो में बैठी रहती थी। सायरा बानो ने एक साक्षात्कार में यह माना है कि जब वह बारह साल की थी, तब से अल्लाह से इबादत में माँगती थी कि उसे अम्मी जैसी हीरोइन बनाना और श्रीमती दिलीप कुमार बनकर उसे बेहद खुशी होगी। सायरा ने 1959 में बॉलीवुड में प्रवेश किया। नसीम के पुराने दोस्त रहे फिल्मालय के शशधर तथा सुबोध मुखर्जी ने फिल्म जंगली में शम्मी कपूर के साथ सायरा को लांच किया था। रोमांस राजेन्द्र कुमार से सन्* 1960 के दशक में सायरा की कई सुपरहिट फिल्में बॉक्स ऑफिस पर धूम मचाने लगी थी। उन दिनों राजेन्द्र कुमार को जुबिली कुमार के नाम से पुकारा जाने लगा था। राजेन्द्र के अभिनय में दिलीप साहब की पूरी परछाई समाई हुई थी। सायरा का दिल राजेन्द्र पर फिदा हो गया, जबकि वे तीन बच्चों वाले शादीशुदा व्यक्ति थे। माँ नसीम को जब यह भनक लगी, तो उन्हें अपनी बेटी की नादानी पर बेहद गुस्सा आया। उन्हीं दिनों उन्होंने दिलीप कुमार के पाली हिल वाले बंगले के पास जमीन खरीदकर घर बनवा लिया था। सायरा का दिलीप के घर आना-जाना और बहनों से मेल-मिलाप जारी था। नसीम ने पड़ोसी दिलीप साब की मदद ली और उनसे कहा कि सायरा को वे समझाइश दें ताकि राजेन्द्र कुमार से पीछा छूटे। बेमन से दिलीप कुमार ने यह काम किया क्योंकि वे सायरा के बारे में ज्यादा जानते भी नहीं थे और शादी का तो दूर-दूर तक इरादा नहीं था। जब दिलीप साहब ने सायरा को समझाया कि राजेन्द्र के साथ शादी का मतलब है पूरी जिंदगी सौतन बनकर रहना और तकलीफें सहना। तब पलटकर सायरा ने दिलीप साहब से सवाल किया कि क्या वे उससे शादी करेंगे? सवाल से अचकचाए दिलीप उस समय तो कोई जवाब नहीं दे पाए। मगर 11 अक्टोबर 1966 को उन्होंने अपनी 44 साल की उम्र में पच्चीस साल की सायरा से बाकायदा शादी रचा ली। दूल्हे दिलीप कुमार की घोड़ी की लगाम पृथ्वीराज कपूर ने थामी थी और दाएँ-बाएँ राज कपूर तथा देव आनंद नाच रहे थे। दिलीप - सायरा IFM शादी से पहले का ड्रामा दिलीप कुमार ने कोई चट मंगनी पट ब्याह की स्टाइल नहीं अपनाई थी। नसीम और सुबोध मुखर्जी को इसके लिए काफी फिल्डिंग करना पड़ी। दिलीब साब चेन्नाई में एक फिल्म की शूटिंग के समय बीमार हो गए। फौरन सायरा ने फ्लाइट पक्रडी और चेन्नाई जाकर नर्स की तरह दिलीप साहब की सेवा में जुट गई। महाबलेश्वर में भी दोनों की मुलाकातें हुईं। आखिर उनका झुकाव सायरा की ओर होने लगा क्योंकि वे कामिनी कौशल तथा मधुबाला से निराश हो चुके थे। अपने कुँवारेपन की आजादी को आखिर वे छोड़ देना चाहते थे। आँधी-तूफान और अस्मां दिलीप कुमार के भीड़-भाड़ वाले घर में सायरा का ज्यादा दिनों तक मन नहीं लगा। वे उसी मोहल्ले में माँ के साथ रहने लगी। सायरा ने फिल्मों में काम जारी रखा। दिलीप साहब के अलावा भी वे दूसरे नायकों की नायिका बनती रहीं। फिल्म विक्टोरिया 203 के समय वे गर्भवती थीं। शूटिंग लगातार करते रहने से उन्होंने मृत शिशु को जन्म दिया। इस दुर्घटना पर दिलीप कुमार फूट-फूटकर रोए थे। कुछ समय बाद दिलीप-सायरा के बीच अस्मां नामक एक खूबसूरत महिला आकर खड़ी हो गई। कहा जाता है कि यह सब एक साजिश के तहत रचा गया प्लान था। 30 मई 1980 को उसने बंगलौर में दिलीप कुमार से शादी की। समय रहते दिलीप साहब ने उससे छुटकारा पा लिया, लेकिन तीन साल तक वे झूठ बोलते रहे कि उनकी कोई दूसरी शादी नहीं हुई है। ऐसा माना जाता है कि दिलीप साहब के दिल में पिता कहलाने की एक ललक थी, जिसे वे शायद अस्मां के जरिये पूरी करना चाहते थे। दिलीप-सायरा : आदर्श दम्पति इन दिनों दिलीप कुमार और सायरा दोनों बुढ़ापे की दहलीज पार कर चुके हैं। अल्जाइमर की बीमारी के चलते सायरा ही उनकी एकमात्र याददाश्त और सहारा है। हर कहीं दोनों एक साथ आते-जाते हैं और एक-दूसरे का सहारा बने हुए हैं। कुछ पार्टियों और फिल्मी प्रीमियर के मौके पर वे नजर भी आते हैं। सायरा बानो ने अपने खाली समय को सामाजिक सेवा में भी लगाया है। मुंबई के दंगों के बाद घायल लोगों के घाव पर मरहम लगाने अथवा उनके फिर से नई जिंदगी शुरुआत करने के काम में वे मदद करती हैं। वेल्फेयर आर्गेनाइजेशन फॉर रिलीफ एंड केयर सर्विसेस के तहत बगैर किसी धर्म, जाति, सम्प्रदाय के भेदभाव के सायरा यह काम खुले दिल-दिमाग से कर रही हैं। एक ग्लेमरस तारिका का इससे बड़ा सामाजिक सरोकार और क्या हो सकता है?
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10-10-2013, 09:13 PM | #3 |
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Re: भारतीय सिनेमा के सितारे
हमारे चहेते फ़िल्मी सितारों के बारे में बहुत अच्छे सूत्र की शुरुआत की गयी है. विवरण बड़े मनोरंजक अंदाज़ में प्रस्तुत किया गया है.
Last edited by rajnish manga; 10-10-2013 at 09:16 PM. |
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