16-05-2013, 07:45 AM | #11 |
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Re: भारतीय सिनेमा 100 साल : 100 डायलॉग
ईमानदार नायक की प्रेमिका का नाम विद्या है और उसे बेइमानी के रास्ते पर ले जाने वाली नादिरा का नाम माया है. सेठ सोनाचंद- राज अब तुम्हें विद्या की ज़रूरत नहीं माया की ज़रूरत है
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मैं क़तरा होकर भी तूफां से जंग लेता हूं ! मेरा बचना समंदर की जिम्मेदारी है !! दुआ करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मत ! यह एक चिराग कई आंधियों पर भारी है !! |
16-05-2013, 07:46 AM | #12 |
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Re: भारतीय सिनेमा 100 साल : 100 डायलॉग
11. जागते रहो (1956)
गाँव का सीधा-साधा आदमी प्यासा भटक रहा है और आधी रात को एक इमारत में पानी पीने जाता है. चोर समझ कर उसका पीछा किया जाता है. पूरी फ़िल्म में नायक खामोश है. अंत में वो पानी की टंकी पर चढ़कर एक संवाद बोलता है. राज- मैं गाँव का सीधा आदमी काम की तलाश में आपके शहर आया और आपने मुझे क्या सिखाया कि दूसरों की छाती पर पैर रखकर चल सको तो चलो.
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16-05-2013, 07:46 AM | #13 |
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Re: भारतीय सिनेमा 100 साल : 100 डायलॉग
12. देवदास (1956)
नदी किनारे देवदास और पारो मिल रहे हैं. पारो ग़रीब है लेकिन उसका आत्मसम्मान बड़ा है दिलीप कुमार (देवदास)- इतना अंहकार...जानती हो चांद के चेहरे पर भी दाग है. मैं तुम्हारे माथे पर दाग बना देता हूँ ( वो मारता है)
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16-05-2013, 07:51 AM | #14 |
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Re: भारतीय सिनेमा 100 साल : 100 डायलॉग
13. देवदास (1956)
दिलीप कुमार- कौन कम्बख़्त बर्दाश्त करने के लिए पीता है. मैं तो पीता हूँ कि बस सांस ले सकूं
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16-05-2013, 07:53 AM | #15 |
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Re: भारतीय सिनेमा 100 साल : 100 डायलॉग
14. देवदास (1956)
चुन्नीबाबू (मोतीलाल)- थोड़ा सा ख़ुश रहने के लिए अपने आपको धोखा देना पड़ता है
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16-05-2013, 07:54 AM | #16 |
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Re: भारतीय सिनेमा 100 साल : 100 डायलॉग
15. नया दौर (1957)
एक कस्बे के तांगेवाले नई बस से पहले पहुंचने के लिए सड़क बनाते हैं. अमीर लोग उन्हें रोकना चाहते हैं. दिलीप कुमार- यह अमीर और ग़रीब का झगड़ा नहीं है बाबू. ये तो मशीन और हाथ का झगड़ा है.
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16-05-2013, 07:55 AM | #17 |
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Re: भारतीय सिनेमा 100 साल : 100 डायलॉग
16. दो बीघा ज़मीन (1953)
महाजन किसान की ज़मीन ख़रीदना चाहता है बलराज साहनी- ज़मीन तो किसान की माँ है हुज़ूर. भला कोई अपनी माँ को बेचता है
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16-05-2013, 07:56 AM | #18 |
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Re: भारतीय सिनेमा 100 साल : 100 डायलॉग
17. अनाड़ी (1959)
अमीर आदमी (मोतीलाल) का पर्स नीचे गिर जाता है और इससे बेख़बर वो वहाँ से चला जाता है. बेरोज़गार नायक (राजकपूर) पर्स उठाता है लेकिन कुछ गुंडे उससे पर्स छीनना चाहते हैं. वह पिट जाता है पर पर्स नहीं देता. वो होटल में जाकर मोतीलाल का पर्स लौटाता है जहाँ अमीर लोग खा पी रहे हैं. राज कपूर- ये लोग कौन हैं? मोतीलाल- ये वो लोग हैं जिन्हें तुम्हारी तरह पैसों से भरे पर्स मिले और इन्होंने लौटाए नहीं
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16-05-2013, 07:58 AM | #19 |
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Re: भारतीय सिनेमा 100 साल : 100 डायलॉग
18. मुग़ले आज़म (1960)
शिल्पकार ने मधुबाला को सफ़ेद पेंट लगाकर खड़ा किया है. बादशाह अक़बर बेटे सलीम के साथ आए हैं और तीर मारकर बुत का पर्दा हटाना है. तीर बुत को लग भी सकता है. सलीम तीर चलाता है, पर्दा हटता है. बुत की ख़ूबसूरती से सब हैरान हैं कि अनारकली जिल्लेइलाही को सलाम कहती है. अकबर- तुम्हें तीर लग सकता था, क्यों तुम्हें ख़ौफ नहीं हुआ. अनारकली- जिल्लेइलाही मैं अफ़साने को हक़ीकत में बदलते देखना चाहती थी इसलिए पलक भी नहीं झपकाई.
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16-05-2013, 08:00 AM | #20 |
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Re: भारतीय सिनेमा 100 साल : 100 डायलॉग
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19. मुग़ले आज़म (1960) "अकबर(पृथ्वीराज कपूर)- एक बांदी हिंदुस्तान की मल्लिका नहीं बन सकती, हिंदुस्तान तुम्हारा दिल नहीं है. सलीम (दिलीप कुमार) - मेरा दिल भी हिन्दुस्तान नहीं है जिस पर आपके हुक्म चले." मुग़ल-ए-आज़म (1960)
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