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Old 15-08-2012, 01:07 AM   #11
Dark Saint Alaick
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Default Re: 15 अगस्त यानी स्वतंत्रता दिवस

स्वतंत्रता दिवस पर सीबीआई के 24 कर्मियों को पदक

नई दिल्ली। स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर सीबीआई के 24 अधिकारियों एवं कार्मिकों को राष्ट्रपति द्वारा विशिष्ट सेवा के लिए राष्ट्रपति पुलिस पदक और सराहनीय सेवा के लिए पुलिस पदक प्रदान किए गए हैं। विशिष्ट सेवा के लिए छह अधिकारियों को राष्ट्रपति पुलिस पदक प्रदान किए गए हैं, जबकि 18 अन्य अधिकारियों/कार्मिकों को सराहनीय सेवा के लिए पुलिस पदक प्रदान किए गए हैं।
विशिष्ट सेवा के लिए राष्ट्रपति पुलिस पदक पाने वाले हैं :
केशव कुमार संयुक्त निदेशक, एन. एस खरायत सहायक निदेशक : इंटरपोल, जावेद सिराज पुलिस अधीक्षक, रविंद्र सिंह जग्गी अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक, जीत सिंह निरीक्षक, राजेंद्र कुमार गौंड़ निरीक्षक।
सराहनीय सेवा के लिए पुलिस पदक पाने वाले हैं:
अरूण बौथरा पुलिस उप महानिरीक्षक, आर. हितेंद्र पुलिस उप महानिरीक्षक, हिरेन सी. नाथ पुलिस उप महानिरीक्षक, संजय कुमार सिंह पुलिस उप महानिरीक्षक, एस. जयकुमार अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक, संतोष कुमार पुलिस उपाधीक्षक, दीपतेंदु भट्टाचार्य पुलिस उपाधीक्षक, राजेश चहल निरीक्षक पुलिस उपाधीक्षक, जगदीश प्रसाद निरीक्षक, शैलेंद्र प्रताप सिंह निरीक्षक, रविकांत जैन निरीक्षक, बी. बी. तिवारी निरीक्षक, राजीव चंदौला निरीक्षक, एल. एन. मूर्ति उपनिरीक्षक, सी. वी. पुजारी उपनिरीक्षक, एस. पी. बी. खारकोंगोर सह उपनिरीक्षक, कुसुम पाल सिंह प्रधान सिपाही, एम. चंद्रशेखर प्रधान सिपाही।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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Old 15-08-2012, 01:15 AM   #12
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Default Re: 15 अगस्त यानी स्वतंत्रता दिवस

हिंदुस्तानी कहलाना चाहते हैं पाकिस्तान को अलविदा कह आए सिंधी हिंदू

जब कल 15 अगस्त को भारत अपने 66 वें स्वतंत्रता दिवस के जश्न में डूबा होगा, तब मध्य प्रदेश के प्रमुख शहर इंदौर में दिलीप कुमार अपने परिवार के साथ जिंदगी को नये सिरे से शुरू करने की जद्दोजहद में उलझे होंगे। दिलीप 22 सिंधी हिंदुओं के उस जत्थे में शामिल हैं, जो पाकिस्तान में कथित रूप से धार्मिक अल्पसंख्यकों पर जुल्मो-सितम और उनमें पसरे असुरक्षा के गहरे भाव के चलते अपनी सरजमीं को अलविदा कह आए हैं और अब इंदौर में बसकर भारत की नागरिकता हासिल करना चाहते हैं। शहर में पाकिस्तान से विस्थापित सिंधी हिंदुओं की बड़ी आबादी का बसेरा है। सिंध प्रांत के जैकबाबाद में जनरल स्टोर चला चुके इस 35 वर्षीय शख्स ने अपने परिवार के साथ धार्मिक वीजा के आधार पर पाकिस्तान छोड़ा था। दिल्ली के रास्ते आज ही इंदौर पहुंचे दिलीप से जब पूछा गया कि उन्होंने अपनी जन्मभूमि पाकिस्तान को अलविदा कहने का मन क्यो बना लिया, तो वह मानो फट पड़ते हैं। उन्होंने कहा, ‘हमें वहां (पाकिस्तान में) धमकियां मिलती हैं और रात में हमारे घरो में लूटपाट की जाती है। वहां (पाकिस्तान में) हमारी सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम नहीं है।’ दिलीप ने बताया, ‘मैं पाकिस्तान में अपनी सारी मिल्कियत बेचकर भारत आया हूं, ताकि परिवार के साथ चैन से जिंदगी गुजार सकूं।’
दिलीप ने कहा कि वह अब भारत को ही अपना स्थायी घर बनाना चाहते हैं, क्योेंकि ‘उनमें अब पाकिस्तान में रहने की हिम्मत नहीं बची है।’ उन्होंने कहा, ‘हमारी भारत सरकार से मांग है कि हमें इस देश की नागरिकता दी जाये।’ बहरहाल, मध्यप्रदेश में सिंधी समुदाय के वरिष्ठ नेता शंकर लालवानी एक अनुमान के हवाले से बताते हैं कि फिलहाल इस भाजपा शासित सूबे में पाकिस्तान के करीब 10,000 हिंदू शरणार्थी हैं, जिनकी नागरिकता पर अब तक कोई फैसला नहीं हो सका है और वे ‘लॉन्ग टर्म वीजा’ (एलटीवी) या ‘रेजिडेंशियल परमिट’ (आरपी) के आधार पर प्रवास कर रहे हैं। इनमें से 4,938 सिंधी हिंदू अकेले इंदौर में हैं। उन्होंने कहा, ‘पाकिस्तान सरकार ने कोई 10 महीने पहले से सिंधी हिंदुओं को भारत का नियमित वीजा देना लगभग बंद कर दिया है, लेकिन वहां के खराब हालात के मद्देनजर सिंधी हिंदुओं को धार्मिक वीजा के आधार पर अपनी मातृभूमि छोड़ने पर मजबूर होना पड़ रहा है।’ लालवानी ने बताया कि पिछले कुछ वक्त से सिंधी हिंदुओं के जत्थे लगातार इंदौर आ रहे हैं। अगले हफ्ते तक वहां से इस समुदाय के करीब 200 लोगों के एक और जत्थे के मध्यप्रदेश की इस आर्थिक राजधानी के लिये रवाना होने की संभावना है। उन्होंने कहा कि धार्मिक वीजा पर भारत आने वाले ज्यादातर सिंधी हिंदू पाकिस्तान लौटना नहीं चाहते, क्योकि वे वहां खुद को सुरक्षित महसूस नहीं कर रहे हैं।
लालवानी ने कहा, ‘भारत सरकार को चाहिए कि वह देश में वैध प्रवास कर रहे सिंधी हिंदुओं को स्थायी नागरिकता देने के लिये लचीलापन दिखाते हुए विशेष प्रकोष्ठ बनाये।’ वर्तमान कायदों के मुताबिक कोई व्यक्ति देश में कम से कम सात साल तक लगातार वैध प्रवास करने के बाद ही नागरिकता की अर्जी दे सकता है। सिंधी हिंदुओं के वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘केंद्र सरकार को पाकिस्तान के अल्पसंख्यक तबके से ताल्लुक रखने वाले सिंधी हिंदु को विशेष दर्जा देना चाहिये। अगर भारत में शरण लेने के दौरान उनका चाल-चलन हर तरह से ठीक रहता है, तो उन्हें दो साल के वैध प्रवास के बाद ही इस मुल्क की नागरिकता मिल जानी चाहिये।’ पाकिस्तान छोड़ने के बाद लम्बे वक्त से भारत में प्रवास कर रहे सिंधी हिंदू स्थायी नागरिकता के अभाव में अपनी पहचान की अनिश्चितता के साथ रोजमर्रा की व्यावहारिक परेशानियों का सामना भी कर रहे हैं। इंदौर में रह रहे सिंधी हिंदू दौरवमल बताते हैं, ‘मैंने तकरीबन 10 साल पहले भारत की नागरिकता के लिये आवेदन किया था। मुझे अब तक देश की नागरिकता नहीं मिली है और मैं लॉन्ग टर्म वीजा :एलटीवी: के आधार पर रह रहा हूं। लेकिन एलटीवी हमारी समस्याओं का स्थायी समाधान नहीं है।’ उन्होंने बताया कि हिंदुस्तान की स्थायी नागरिकता के अभाव मेंं उन्हें रेल टिकट का आरक्षण कराने और बैंक में खाता खुलवाने जैसे छोटे-मोटे कामों तक में दिक्कत पेश आती है, क्योंकि उनके पास भारत सरकार का पहचान पत्र नहीं है।
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Default Re: 15 अगस्त यानी स्वतंत्रता दिवस

दिल दिया है जां भी देंगे ऐ वतन तेरे लिए

भारतीय सिनेमा जगत में देश भक्ति से परिपूर्ण फिल्मों और गीतों की एक अहम भूमिका रही है और इनके माध्यम से फिल्मकार लोगो में देशभक्ति के जज्बे को आज भी बुलंद करते हैं। निर्देशक ज्ञान मुखर्जी की वर्ष 1940 में प्रदर्शित फिल्म बंधन संभवत: पहली फिल्म थी, जिसमें देश प्रेम की भावना को रूपहले परदे पर दिखाया गया था । यूं तो फिल्म बंधन मे कवि प्रदीप के लिखे सभी गीत लोकप्रिय हुए लेकिन चल चल रे नौजवान के बोल वाले गीत ने आजादी के दीवानो में एक नया जोश भरने का काम किया। अपने इस गीत से प्रदीप ने गुलामी के खिलाफ आवाज बुलंद करने के हथियार के रूप में इस्तेमाल किया और अंग्रेजो के विरूद्ध भारतीयों के संघर्ष को एक नई दिशा दी।
वर्ष 1943 में देश प्रेम की भावना से ओत प्रोत फिल्म किस्मत प्रदर्शित हुई। फिल्म में प्रदीप के लिखे गीत आज हिमालय की चोटी से फिर हमने ललकारा है, दूर हटो ए दुनियां वालो हिंदुस्तान हमारा है ने जहां एक ओर स्वतंत्रता सेनानियों को झकझोरा वहीं अंग्रेजों की तिरछी नजर के भी वह शिकार हुए। कवि प्रदीप का यह गीत एक तरह से अंग्रेज सरकार पर सीधा प्रहार था। कवि प्रदीप के क्रांतिकारी विचार को देखकर अंग्रेज सरकार द्वारा गिरफ्तारी का वारंट भी निकाला गया। गिरफ्तारी से बचने के लिये कवि प्रदीप को कुछ दिनों के लिए भूमिगत रहना पड़ा।
कवि प्रदीप का लिखा यह गीत इस कदर लोकप्रिय हुआ कि सिनेमा हॉल में दर्शक इसे बार बार सुनने की ख्वाहिश करने लगे और फिल्म की समाप्ति पर दर्शको की मांग पर इस गीत को सिनेमा हॉल मे दुबारा सुनाया जाने लगा। इसके साथ ही फिल्म किस्मत ने बॉक्स आॅफिस के सारे रिकार्ड तोड़ दिए और इस फिल्म ने कलकत्ता (अब कोलकाता) के एक सिनेमा हॉल मे लगातार लगभग चार वर्ष तक चलने का रिकार्ड बनाया।
यूं तो भारतीय सिनेमा जगत में वीरो को श्रद्धांजलि देने के लिए अब तक न जाने कितने गीतों की रचना हुई है, लेकिन ऐ मेरे वतन के लोगो जरा आंखों में भर लो पानी जो शहीद हुए हैं उनकी जरा याद करो कुर्बानी जैसे देश प्रेम की अदभुत भावना से ओत प्रोत रामचंद्र द्विवेदी उर्फ कवि प्रदीप के इस गीत की बात ही कुछ और है।
वर्ष 1962 में जब भारत और चीन का युद्व अपने चरम पर था तब कवि प्रदीप, परम वीर मेजर शैतान सिंह की बहादुरी और बलिदान से काफी प्रभावित हुए और देश के वीरों को श्रद्धाजंलि देने के लिए उन्होंने गीत की रचना की ।
सी. रामचंद्र के संगीत निर्देशन मे एक कार्यक्रम के दौरान स्वर सम्राज्ञी लता मंगेश्कर से देश भक्ति की भावना से परिपूर्ण इस गीत को सुन कर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरूकी आंखो मे आंसू छलक आए थे। ऐ मेरे वतन के लोगो आज भी भारत के महान देशभक्ति गीत के रूप मे याद किया जाता है।
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Default Re: 15 अगस्त यानी स्वतंत्रता दिवस

वर्ष 1952 में प्रदर्शित फिल्म आनंद मठ का अभिनेत्री गीताबाली पर लता मंगेशकर की आवाज में फिल्माया गीत वंदे मातरम् आज भी दर्शकों और श्रोताओं को अभिभूत कर देता है। इसी तरह जागृति में हेमंत कुमार के संगीत निर्देशन में मोहम्मद रफी की आवाज में रचा बसा यह गीत हम लाए हैं तूफान से कश्ती निकाल के श्रोताओं में देशभक्ति की भावना को जागृत किए रहता है।
आवाज की दुनिया के बेताज बादशाह मोहम्मद रफी ने कई फिल्मों में देशभक्ति से परिपूर्ण गीत गाए हैं। इन गीतों में कुछ हैं-ये देश है वीर जवानों का, वतन पे जो फिदा होगा अमर वो नौजवान होगा, अपनी आजादी को हम हरगिज मिटा सकते नहीं, उस मुल्क की सरहद को कोई छू नहीं सकता जिस मुल्क की सरहद की निगाहबान हैं आंखें, आज गा लो मुस्कुरा लो महफिलें सजा लो, हिंदुस्तान की कसम न झुकेंगे सर वतन के नौजवान की कसम, मेरे देशप्रेमियो आपस में प्रेम करो देशप्रेमियो आदि।
कवि प्रदीप की तरह ही प्रेम धवन भी ऐसे गीतकार रहे हैं, जिनके ऐ मेरे प्यारे वतन, मेरा रंग दे बसंती चोला, ऐ वतन ऐ वतन तुझको मेरी कसम जैसे देशप्रेम की भावना से ओत प्रोत गीत आज भी लोगों के दिलो दिमाग में देश भक्ति के जज्बे को बुलंद करते हैं।
फिल्म काबुली वाला में पार्श्वगायक मन्ना डे की आवाज में प्रेम धवन का रचित यह गीत ए मेरे प्यारे वतन ऐ मेरे बिछड़े चमन आज भी श्रोताओं की आंखों को नम कर देता है। इन सबके साथ वर्ष 1961 में प्रेम धवन की एक और सुपरहिट फिल्म हम हिंदुस्तानी प्रदर्शित हुई जिसका गीत छोड़ो कल की बाते कल की बात पुरानी सुपरहिट हुआ।
वर्ष 1965 में निर्माता -निर्देशक मनोज कुमार के कहने पर प्रेम धवन ने फिल्म शहीद के लिये संगीत निर्देशन किया। यूं तो फिल्म शहीद के सभी गीत सुपरहिट हुए, लेकिन ऐ वतन ऐ वतन और मेरा रंग दे बंसती चोला आज भी श्रोताओं के बीच शिद्धत के साथ सुने जाते हैं।
प्रेम धवन ने सैनिकों के मनोरंजन के लिए लद्दाख और नाथुला में सुनील दत्त और नरगिस के साथ दौरा किया और अपने गीत-संगीत से सैनिकों का मनोरंजन किया। भारत-चीन युद्ध पर बनी चेतन आंनद की वर्ष 1965 में प्रदर्शित फिल्म हकीकत भी देश भक्ति से परिपूर्ण फिल्म थी। मोहम्मद रफी की आवाज में कैफी आजमी का लिखा यह गीत कर चले हम फिदा जानो तन साथियो अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो आज भी श्रोताओं में देशभक्ति के जज्बे को बुलंद करता है।
इसी तरह गीतकारो ने कई फिल्मों में देशभक्ति से परिपूर्ण गीत की रचना की है। इनमें जहां डाल डाल पर सोने की चिड़िया करती है बसेरा वो भारत देश है मेरा, ऐ वतन ऐ वतन तुझको मेरी कसम, नन्हा मुन्ना राही हूं देश का सिपाही हूं, है प्रीत जहां की रीत सदा मैं गीत वहां के गाता हूं, मेरे देश की धरती सोना उगले, हर करम अपना करेगे ऐ वतन तेरे लिए, दिल दिया है जां भी देगे ऐ वतन तेरे लिए, भारत हमको जान से भी प्यारा है, ये दुनिया एक दुल्हन के माथे की बिंदिया ये मेरा इंडिया, सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, फिर भी दिल है हिंदुस्तानी, जिंदगी मौत ना बन जाये संभालो यारो, मां तुझे सलाम, थोड़ी सी धूल मेरी धरती की मेरी वतन की आदि।
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