14-04-2013, 08:20 PM | #11 |
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Re: "सूबेदार बग्गा सिंह" - कमलेश बख्शी
अब देखूँगा, मेरा पोता कैसा है। पेन्शन के पैसे जमा पड़े हैं। उसका खर्च ही क्या है। कई बार सोचा, पैसा भेज दूँ। फिर सोचा, लापता ही चला जाऊँ तो अच्छा। मरने के बाद भेजने को कह दूँगा फिर लगा, क्यों भूली-बिसरी यादों को ताज़ा कर सतवंत को दुख पहुँचाऊँ। मैं जीवित रहा, अब मेरा फिर भोग होगा! लोग अफ़सोस करने आएँगे, सतवंत फिर टूटेगी, ऐसा कुछ नहीं करूँगा, जो बचेगा, अस्पताल के नाम ही छोड़ दूँगा यह मौका अच्छा है। करनैल से कहूँगा, दो दिन मेरे साथ रहो। सब दे दूँगा। दूसरे दिन उसने करनैल से कह दिया, बेटा, मेरा तो कोई नहीं, तुमसे बहुत प्यार हो गया। बेटा, बहू, पोता, पोती का थोड़ा-सा सुख मुझे उठा लेने दो। मेरे पास रहो सभी। ठीक है चाचा, आपके पास ही रहेंगे। आपको चाचा न कह बापू कहना चाहिए, मैं तो बापू ही कहूँगा। कहो बेटा... आनेवाले ही हैं बच्चे, सीधे आपके पास आएँगे। आपने नहीं बताया, किस युद्ध में अपंग हो गए। याद ही नहीं, यह देह बची तो यहाँ का मोर्चा सँभाल लिया। उसका परिवार आएगा। उसकी व्हील चेअर को पंख लग गए। चोपड़ा के पास जा ख़रीद का ज़िक्र किया। उसने सुझाया, यह काम मुझे मालूम है, तुझे करनैल से बहुत प्यार हो गया है।
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर । परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।। विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम । पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।। कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/ यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754 |
14-04-2013, 08:21 PM | #12 |
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Re: "सूबेदार बग्गा सिंह" - कमलेश बख्शी
बहू, पोता-पोती का स्वागत करने में मन डर रहा था। चोपड़ा, मेरी शक्ल देख बच्चे डरेंगे तो नहीं?
फौजी के बच्चे है, क्यों डरेंगे? बच्चों से घुलमिल खूब बातें कीं दो दिन में इतना सुख बटोर लेना चाहता था। तृप्त हो जाए। खाना, मिठाइयाँ, फ्रूट कोई कमी नहीं रहने दी जाने का समय आया तो अटैची सामने रख दी। घर का कोई नहीं छूटा था, जिसके कपड़े न हों यह पाजामा क़मीज़ साँझी का खेतीबाड़ी वाला घर है, साँझी तो होगा न ठीक हो के जा रहे हैं, वह भी कपड़े पा खुश होगा। हमारा पुराना साँझी है, मेरे बापू का हाणी बताता रहता है, हम साथ खेलते थे, सुक्खा..., उसके मुँह से निकलने ही लगा था, ,,सुक्खा है अभी। ओंठ भींच लिए थे। सोने की चेन बहू को एक चेन पोती को दी। यह सूट सूबेदारनी सतवंत कौर को, जिसने ऐसा पूत जना। उससे कह देना, पंजाब की बुढ़ियों की तरह सूट पेटी में न रख देना लेन-देन के काम आएगा कह। मेरी तरफ़ से कह देना, सही सलामत बेटा लाग से वापस आया है। सिलवा कर ज़रूर पहने। विदा होते समय पूछ ही लिया, तुम अपने बच्चों को क्या बनाओगे? डाक्टर, इंजीनियर... अच्छा! निराश से हुए... फौज में तुम्हारे दूसरे भाई के बच्चे जाएँगे, नहीं बापू, मेरे दोनों बच्चे फौज में जाएँगे, फौज में डाक्टर, इंजीनियर भी होते हैं न..., हाँ...आं... दादा जी, बाय बहू ने पैर छुए थे, उसके लिजलिजे गालों में दो कतरे थम गए थे गिरने से पहले।
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