05-01-2011, 08:28 PM | #161 |
Special Member
Join Date: Nov 2010
Location: ♕★ ★ ★ ★ ★♕
Posts: 2,316
Rep Power: 27 |
Re: विभिन्न ब्रतकथा,आरती,चालीसा
|
16-01-2011, 04:51 AM | #162 |
Exclusive Member
Join Date: Oct 2010
Location: Bihar
Posts: 6,259
Rep Power: 34 |
भजन संग्रह
मन वाणी में वो शक्ति कहाँ
सुख-वरण प्रभु, नारायण, हे, दु:ख-हरण प्रभु, नारायण, हे,
तिरलोकपति, दाता, सुखधाम, स्वीकारो मेरे परनाम, प्रभु, स्वीकारो मेरे परनाम... मन वाणी में वो शक्ति कहाँ, जो महिमा तुम्हरी गान करें, अगम अगोचर अविकारी, निर्लेप हो, हर शक्ति से परे, हम और तो कुछ भी जाने ना, केवल गाते हैं पावन नाम , स्वीकारो मेरे परनाम, प्रभु, स्वीकारो मेरे परनाम... आदि मध्य और अन्त तुम्ही, और तुम ही आत्म अधारे हो, भगतों के तुम प्राण, प्रभु, इस जीवन के रखवारे हो, तुम में जीवें, जनमें तुम में, और अन्त करें तुम में विश्राम, स्वीकारो मेरे परनाम, प्रभु, स्वीकारो मेरे परनाम... चरन कमल का ध्यान धरूँ, और प्राण करें सुमिरन तेरा, दीनाश्रय, दीनानाथ, प्रभु, भव बंधन काटो हरि मेरा, शरणागत के (घन)श्याम हरि, हे नाथ, मुझे तुम लेना थाम, स्वीकारो मेरे परनाम, प्रभु, स्वीकारो मेरे परनाम... |
16-01-2011, 04:53 AM | #163 |
Exclusive Member
Join Date: Oct 2010
Location: Bihar
Posts: 6,259
Rep Power: 34 |
Re: भजन संग्रह
भये प्रगट कृपाला
भये प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी .
हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी .. लोचन अभिरामा तनु घनस्यामा निज आयुध भुज चारी . भूषन वनमाला नयन बिसाला सोभासिन्धु खरारी .. कह दुइ कर जोरी अस्तुति तोरी केहि बिधि करौं अनंता . माया गुन ग्यानातीत अमाना वेद पुरान भनंता .. करुना सुख सागर सब गुन आगर जेहि गावहिं श्रुति संता . सो मम हित लागी जन अनुरागी भयौ प्रकट श्रीकंता .. ब्रह्मांड निकाया निर्मित माया रोम रोम प्रति बेद कहै . मम उर सो बासी यह उपहासी सुनत धीर मति थिर न रहै .. उपजा जब ग्याना प्रभु मुसुकाना चरित बहुत बिधि कीन्ह चहै . कहि कथा सुहाई मातु बुझाई जेहि प्रकार सुत प्रेम लहै .. माता पुनि बोली सो मति डोली तजहु तात यह रूपा . कीजे सिसुलीला अति प्रियसीला यह सुख परम अनूपा .. सुनि बचन सुजाना रोदन ठाना होइ बालक सुरभूपा . यह चरित जे गावहि हरिपद पावहि ते न परहिं भवकूपा .. बिप्र धेनु सुर संत हित लीन्ह मनुज अवतार . निज इच्छा निर्मित तनु माया गुन गो पार .. |
16-01-2011, 04:56 AM | #164 |
Exclusive Member
Join Date: Oct 2010
Location: Bihar
Posts: 6,259
Rep Power: 34 |
Re: भजन संग्रह
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में .. जो सुख पाऊँ राम भजन में सो सुख नाहिं अमीरी में मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में .. भला बुरा सब का सुन लीजै कर गुजरान गरीबी में मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में .. आखिर यह तन छार मिलेगा कहाँ फिरत मग़रूरी में मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में .. प्रेम नगर में रहनी हमारी साहिब मिले सबूरी में मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में .. कहत कबीर सुनो भयी साधो साहिब मिले सबूरी में मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में .. |
16-01-2011, 04:57 AM | #165 |
Exclusive Member
Join Date: Oct 2010
Location: Bihar
Posts: 6,259
Rep Power: 34 |
Re: भजन संग्रह
राम से बड़ा राम का नाम
राम से बड़ा राम का नाम अंत में निकला ये परिणाम, ये परिणाम राम से बड़ा राम का नाम .... सिमरिये नाम रूप बिनु देखे कौड़ी लगे ना दाम नाम के बांधे खिंचे आयेंगे आखिर एक दिन राम राम से बड़ा राम का नाम .... जिस सागर को बिना सेतु के लांघ सके ना राम कूद गये हनुमान उसी को लेकर राम का नाम राम से बड़ा राम का नाम .... वो दिलवाले डूब जायेंगे और वो दिलवाले क्या पायेंगे जिनमें नहीं है नाम वो पत्थर भी तैरेंगे जिन पर लिखा हुआ श्री राम. राम से बड़ा राम का नाम .... |
16-01-2011, 04:59 AM | #166 |
Exclusive Member
Join Date: Oct 2010
Location: Bihar
Posts: 6,259
Rep Power: 34 |
Re: भजन संग्रह
दर्शन दो घनश्याम नाथ
दर्शन दो घनश्याम नाथ मोरी अँखियाँ प्यासी रे.. मन मंदिर में ज्योत जला दो घट घट वासी रे... मंदिर मंदिर मूरत तेरी फिर भी न दीखे सूरत तेरी . युग बीते ना आई मिलन की पूरनमासी रे .. दर्शन दो घनश्याम नाथ मोरि अँखियाँ प्यासी रे .. द्वार दया का जब तू खोले पंचम सुर में गूंगा बोले . अंधा देखे लंगड़ा चल कर पँहुचे काशी रे .. दर्शन दो घनश्याम नाथ मोरि अँखियाँ प्यासी रे .. पानी पी कर प्यास बुझाऊँ नैनन को कैसे समजाऊँ . आँख मिचौली छोड़ो अब तो घट घट वासी रे .. दर्शन दो घनश्याम नाथ मोरि अँखियाँ प्यासी रे .. |
16-01-2011, 05:00 AM | #167 |
Exclusive Member
Join Date: Oct 2010
Location: Bihar
Posts: 6,259
Rep Power: 34 |
Re: भजन संग्रह
मन तरपत हरि दर्शन को आज
हरि ॐ, हरि ॐ, हरि ॐ, हरि ॐ मन तरपत हरि दर्शन को आज, मोरे तुम बिन बिगरे सगरे काज बिनति करत हू, रखियो लाज ...... मन तरपत हरि दर्शन को आज तुमरे द्वार का मैँ हू जोगी, हमरी ओर नजर कब होगी सुनो मोरे ब्याकुल मन का बाज....... मन तरपत हरि दर्शन को आज बिन गुरु ग्यान कहा से पाऊ, दिजो दान हरि गुन गाऊ सब गुनी जन पे तुमरा राज..... मन तरपत हरि दर्शन को आज मुरली मनोहर आस ना तोडो, दुःख भंजन मोरा साथ ना छोडो मोहे दर्शन भीक्षा दे दो आज दे दो आज मुरली मनोहर मोहन गिरधर हरि ॐ हरि ॐ |
16-01-2011, 05:01 AM | #168 |
Exclusive Member
Join Date: Oct 2010
Location: Bihar
Posts: 6,259
Rep Power: 34 |
Re: भजन संग्रह
नाम जपन क्यों छोड़ दिया
नाम जपन क्यों छोड़ दिया क्रोध न छोड़ा झूठ न छोड़ा सत्य बचन क्यों छोड दिया झूठे जग में दिल ललचा कर असल वतन क्यों छोड दिया कौड़ी को तो खूब सम्भाला लाल रतन क्यों छोड दिया जिन सुमिरन से अति सुख पावे तिन सुमिरन क्यों छोड़ दिया खालस इक भगवान भरोसे तन मन धन क्यों ना छोड़ दिया नाम जपन क्यों छोड़ दिया ॥ |
16-01-2011, 05:03 AM | #169 |
Exclusive Member
Join Date: Oct 2010
Location: Bihar
Posts: 6,259
Rep Power: 34 |
Re: भजन संग्रह
सखिन्ह मध्य सिय सोहति कैसे...
संग सखीं सुदंर चतुर गावहिं मंगलचार। गवनी बाल मराल गति सुषमा अंग अपार॥२६३॥ सखिन्ह मध्य सिय सोहति कैसे। छबिगन मध्य महाछबि जैसें॥ कर सरोज जयमाल सुहाई। बिस्व बिजय सोभा जेहिं छाई॥१॥ तन सकोचु मन परम उछाहू। गूढ़ प्रेमु लखि परइ न काहू॥ जाइ समीप राम छबि देखी। रहि जनु कुँअरि चित्र अवरेखी॥२॥ चतुर सखीं लखि कहा बुझाई। पहिरावहु जयमाल सुहाई॥ सुनत जुगल कर माल उठाई। प्रेम बिबस पहिराइ न जाई॥३॥ सोहत जनु जुग जलज सनाला। ससिहि सभीत देत जयमाला॥ गावहिं छबि अवलोकि सहेली। सियँ जयमाल राम उर मेली॥४॥ |
16-01-2011, 05:07 AM | #170 |
Exclusive Member
Join Date: Oct 2010
Location: Bihar
Posts: 6,259
Rep Power: 34 |
Re: भजन संग्रह
पायो जी मैंने, राम रतन धन पायो ..
पायो जी मैंने, राम रतन धन पायो .. वस्तु अमोलिक, दी मेरे सतगुरु, किरपा करि अपनायो जनम जनम की पूंजी पाई, जग में सभी खोवायो खरचै न खूटै, जाको चोर न लूटै, दिन दिन बढ़त सवायो सत की नाव, खेवटिया सतगुरु, भवसागर तर आयो मीरा के प्रभु गिरिधर नागर, हरष हरष जस गायो... |
Bookmarks |
Tags |
aarti, chalisa, gayatri chalisa, hindu, hindu religion, hinduism, laxmi chalisa, religion, saraswati chalisa, sunny chalisa, vratha katha |
|
|