06-06-2012, 06:26 PM | #1 |
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मेरी लघुकथाएं ::
दोस्तों, कविता लिखना तो मेरे बस की बात है नहीं, सोच रहा हूँ, की लघु कथाओं में हाथ साफ़ किया जाए. तो दोस्तों पेश है कुछ मेरी लिखी हुई लघुकथाएं.
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06-06-2012, 06:38 PM | #2 |
Administrator
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Re: मेरी लघुकथाएं ::
प्रोमोशन शिल्पा :: पता है तुझे, रचना को फिर से इस साल प्रोमोशन मिल गया, इससे पिछले साल भी तो उसे प्रोमोशन मिला था. कंपनी का नियम तो कहता है प्रोमोशन २ साल में १ ही बार मिल सकता है. ऐसा कैसे हो गया? मैं आज ही बॉस से इसके बारे में पूछूंगी. रेशमा :: तू बिलकुल बेवकूफ है, तुझे दीखता नहीं, साली दिन भर बॉस के केबिन में गुटुर गु गुटुर गु करती रहती है. प्रोमोशन तो मिलेगा ही. शिल्पा :: अच्छा वो अशोक मिल्स वाली फाइल तुने कम्प्लीट कर ली क्या, बॉस २ हफ्ते से उसके बारे में पूछ रहे हैं. और कितना टाइम लेगी इसे करने में? रेशमा :: अरे वो तो मुझे समझ में नहीं आ रहा है, रचना को आने दे उसे पता है क्या क्या करना है. उससे बात करके बताऊंगी की और कितना टाइम लगेगा इसमें.
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06-06-2012, 08:46 PM | #3 |
Super Moderator
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Re: मेरी लघुकथाएं ::
श्रेष्ठ प्रतीकात्मक कथा है, अभिषेकजी ! मानवीय स्वभाव का आपने अत्यंत सूक्ष्म चित्रण किया है ! आप में एक श्रेष्ठ कवि के लक्षण मौजूद हैं अर्थात आप निस्संकोच काव्य - सृजन कर सकते हैं !
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु |
06-06-2012, 09:09 PM | #4 | |
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Re: मेरी लघुकथाएं ::
Quote:
अलैक जी, आपके इन शब्दों से मैं बहुत ही उत्साहित हो गया हूँ. समझ में नहीं आ रहा है, क्या बोलू..बस कोशिश रहेगी और प्रयास करने की और कुछ नया नया पेश करने की. आपका इतने जबरदस्त उत्साहवर्धन के लिए बहुत बहुत आभार.
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06-06-2012, 09:38 PM | #5 |
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Re: मेरी लघुकथाएं ::
समझदार २०० रुपैये किसलिए, पासपोर्ट बनाने की पूरी फीस तो मैंने पहले ही पासपोर्ट ऑफिस में जमा करा दी है, आपको तो केवल मेरा एड्रेस वेरीफिकेशन करना है, इसके तो कोई पैसे नहीं लगते, राजेश गुस्से और आश्चर्य के मिश्रित स्वर में बोला. सिपाही ने उत्तर दिया, पासपोर्ट के लिए आखिरी ५ साल के एड्रेस को प्रामाणित करना जरुरी है, पिछले ३ साल से तुम अपने कॉलेज के हॉस्टल में रह रहे हो, उससे पहले के २ साल जहाँ थे वहां के निकटतम थाने से प्रमाण पत्र ले कर आओ तब ही हम तुम्हारा एड्रेस वेरीफाई करेंगे. राजेश बोला "लेकिन इसके लिए तो मुझे अपने गाँव जाना होगा और इसमें २ दिन और लग जायेंगे मुझे पासपोर्ट जल्द से जल्द चाहिए" "भाई, हम तो सरकारी नौकर है, नियम कायदे से चलते हैं, तुम सोच लो क्या करना है", सिपाही ने अपनी मजबूरी प्रकट की. कोई और तरीका नहीं है क्या सर, अब आप ही मदद कर सकते हैं, राजेश के स्वर में नरमी आ गयी थी. अरे बरखुरदार, इतना पढ़ लिख गए, फिर भी बात समझ में नहीं आ रही है. सिपाही मुस्कुराया. आखिरकार राजेश को बात समझ में आई और उसने तुरंत ही २०० रुपैये सिपाही के टोपी में ड़ाल दिए. सिपाही ने एड्रेस वेरीफाई कर दिया और बोला १ हफ्ते में पासपोर्ट उसके हॉस्टल के पते पर पहुच जाएगा. राजेश ने चैन की सांस ली, तभी उसका ध्यान उस मेज़ पर रखे हुए अखबार पर गया, मुख्य पेज पर एक चित्र था, जिसमे एक ८ साल का बच्चा अन्ना हजारे को मौसमी का जूस पिला रहा था, उसी दिन अन्ना ने अपना अनशन तोड़ा था, बच्चे के कमीज़ पर लिखा हुआ था मैं भी अन्ना तू भी अन्ना.
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06-06-2012, 09:59 PM | #6 |
Administrator
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Re: मेरी लघुकथाएं ::
जरुरत रेखा ने नवीन को नाश्ते देते हुआ बोला, "सुनो, माँ जी को गाँव से यहाँ बुलवा लो, मेरा मेटरनिटी लीव भी खत्म होने वाला है" नवीन आश्चर्य से बोला, तुम इतनी जल्दी भूल गयी, पिछली बार तुमने उन्हें कितना बुरा भला कहा था, वो अब नहीं आने वाली. रेखा तमतमाते हुए बोली ठीक है फिर तो सोनू के लिए एक आया का बंदोबस्त कर दो जो की सुबह ८ बजे से शाम ७ बजे तक उसके साथ रहे, तुम्हारी जानकारी के लिए यह भी बता दूं की आजकल कोई भी आया ५००० महीने से कम में नहीं मिलती. अरे इसके आधे खर्च में तो माँ जी यहाँ रह लेंगी और नाते-रिश्तेदारों को भी कहने का मौका नहीं मिलेगा की बेटा अपनी बूढी माँ को गाँव में अकेले छोड़े हुए हैं. अब तुम्हे अक्ल नहीं है तो मैं क्या करू.
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06-06-2012, 11:30 PM | #7 |
Exclusive Member
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Re: मेरी लघुकथाएं ::
बहुत बढ़िया अभिषेक जी लगे रहे
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दोस्ती करना तो ऐसे करना जैसे इबादत करना वर्ना बेकार हैँ रिश्तोँ का तिजारत करना |
07-06-2012, 08:45 PM | #8 |
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Re: मेरी लघुकथाएं ::
ज़िन्दगी बेटे ने बाप को तैश में बोला, मुझे कोई ऐसी वैसी नौकरी नहीं करनी, मुझे अपना बिसनेस करना है, नौकरी करके आज तक कोई पैसे वाला हो पाया है क्या? बाप ने समझाते हुए कहाँ, बेटा बिसनेस करने में बहुत झंझट है, यह नौकरी अच्छी है, पगार भी अच्छी मिलेगी और देख मैं भी रिटाएर करने वाला हूँ, अब घर तो तुझे ही चलाना है. बेटा ने जवाब दिया, देखिये पिताजी, मैं इस छोटे से शहर में रह कर गरीबी में नहीं जीने वाला, मुझे तो बड़े शहर में बिसनेस करना है, और मैं आपकी तरह तमाम नाते रिश्ते निभा कर अपनी ज़िन्दगी नहीं ख़राब कर सकता, मैंने कल सुबह की टिकट भी कटवा लिया है अब आप अपने फैसले मुझपर नहीं थोपे, मैं अब अपना फैसला ले सकता हूँ.
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08-06-2012, 04:41 AM | #9 | |
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Re: मेरी लघुकथाएं ::
Quote:
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08-06-2012, 10:35 PM | #10 |
Special Member
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Re: मेरी लघुकथाएं ::
jaroorat
insaan se jo na karwa le kam hai jise aam halat men dekhna bhi gawwanra nahi karte, waqt padne par use apne bhaai se bhi jyada batate hain.....
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घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
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