13-12-2012, 06:56 PM | #1 |
अति विशिष्ट कवि
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ख़लते , जब खाली पैमाने हो जाते हैं .
ख़ुश्बू पा भौंरे मस्ताने हो जाते हैं ; नये फूल के कई दीवाने हो जाते हैं .
प्यार के क़ारोबार भले ही छुप - छुप चलते ; दूर तलक लेकिन अफ़साने हो जाते हैं . आख़िर कितनी बार पढ़े - दोहराये कोई ; जल्दी ही अखबार पुराने हो जाते हैं . रहें छलकते , मन को तब तक अच्छे लगते ; ख़लते , जब खाली पैमाने हो जाते हैं . लेन - देन में समता तक ही बंधे हुए सब ; वरना रिश्तेदार बेगाने हो जाते हैं . जीवन में ऐसे भी अवसर आ जाते हैं ; आँखों में हर ओर वीराने हो जाते हैं . अज़ब बेबसी , वो दिल में ही बसते , फिर भी ; उनको देखे हुए ज़माने हो जाते हैं . दिल के ज़ख्म सलीके से ग़र सीख लें रिसना ; ग़ज़लों के अनमोल ख़ज़ाने हो जाते हैं . पाल - पोस कर बड़ा किया , उनसे ही झुकते ; जिनके बच्चे अधिक सयाने हो जाते हैं . जैसा हम पुरखों - संग बोते , वही काटते ; एक लगाओ , सौ - सौ दाने हो जाते हैं . जब - जब जो किस्मत में होता , होकर रहता ; अज़ब - गज़ब हर बार बहाने हो जाते हैं . कभी - कभी तो वक्त लगाता ऐसी ठोकर ; अच्छे - अच्छे मर्द जनाने हो जाते हैं . रचयिता ~~ डॉ . राकेश श्रीवास्तव विनय खण्ड - 2 , गोमती नगर , लखनऊ .
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