18-03-2013, 09:25 AM | #1 |
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क्यों समन्दर में गहरे उतरता नहीं !
क्यों तज़ुर्बात जीवन में करता नहीं . काफ़िले अपने पीछे बनाता वही ; रूढ़ियाँ तोड़ने से जो डरता नहीं . साहिलों पर झिझकने से हासिल न कुछ ; क्यों समन्दर में गहरे उतरता नहीं . हाथ में ख़ुद लकीरों को गढ़ना पड़े ; बैठे - ठाले मुक़द्दर निखरता नहीं . चाँदनी भी सुकूँ उसको देती नहीं ; धूप में शौक़ से जो विचरता नहीं . मंज़िलें उसको बाहों में लें भी तो क्यों ; हैसियत उनके लायक जो करता नहीं . कोई तब तक छतों पर पहुँचता नहीं ; जब तलक सीढ़ियों से गुज़रता नहीं . अहमियत सबकी नज़रों में ख़ुद की रचो ; वरना कोई तवज़्ज़ो करता नहीं . ख़ुद की सीरत पे भी ध्यान देना पड़े ; सिर्फ सूरत से कोई संवरता नहीं . ज़िन्दगी को नियामत समझ कर जियो ; हर जनम कोई मानव का धरता नहीं . नेकियाँ करनी पड़तीं कदम दर कदम ; सिर्फ तीरथ से ही कोई तरता नहीं . रचयिता ~ डॉ. राकेश श्रीवास्तव विनय खण्ड -2 , गोमती नगर,लखनऊ . शब्दार्थ > तज़ुर्बात = अनुभव , रूढ़ियाँ = गैर लचीली परम्परायें , साहिलों = तटों , हासिल = उपलब्धि , तवज़्ज़ो = ध्यान देना / परवाह ,सीरत = आन्तरिक सौन्दर्य ,नियामत = ईश्वरीय उपहार .
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18-03-2013, 11:00 AM | #2 |
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Re: क्यों समन्दर में गहरे उतरता नहीं !
बहुत खूब ... प्रेरणास्पद सृजन कविवर। आभार।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु |
18-03-2013, 10:22 PM | #3 |
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Re: क्यों समन्दर में गहरे उतरता नहीं !
कटाक्ष और यथार्थ को अनुगुंजित करती हुयी पंक्तियाँ ......... धन्यवाद कविवर।
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर । परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।। विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम । पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।। कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/ यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754 |
18-03-2013, 11:40 PM | #4 | |
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Re: क्यों समन्दर में गहरे उतरता नहीं !
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बहुत सुन्दर डॉ. राकेश श्रीवास्तव जी, बहुत सरल शब्दों में आपने जीवन की कटु सच्चाइयों की ओर अपने पाठकों का ध्यान खींचने में सफलता पायी है. इसी बीच आपने बिना कुछ किये सुर्ख रू होने की कामना करने वालों को भी नहीं बख्शा. इस सहज अभिव्यक्ति के लिए हमारा धन्यवाद और बधाई स्वीकार करें. |
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19-03-2013, 02:17 AM | #5 |
Administrator
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Re: क्यों समन्दर में गहरे उतरता नहीं !
डॉक्टर साहब, काफी दिनों बात आपकी एक नयी रचना पढने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
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19-03-2013, 10:08 PM | #6 |
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Re: क्यों समन्दर में गहरे उतरता नहीं !
साहिलों पर झिझकने से हासिल न कुछ ;
क्यों समन्दर में गहरे उतरता नहीं . nice thinking good effort weldnone dr sahab bahut khobb kahi hai / ek dum dange ki chot se |
23-03-2013, 12:23 AM | #7 |
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Re: क्यों समन्दर में गहरे उतरता नहीं !
सर्वश्री अभिशेस जी , जय भारद्वाज जी , कल्याण दास जी , रजनीश माँगा जी , सोम वीर जी एवं डार्क सेंत जी ; रचना पसंद करने तथा अपने अपने तरीके से प्रतिक्रिया देने हेतु आप सभी का हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ . उन अज्ञात पाठकों का भी बहुत शुक्रिया जिन्होंने सूत्र विशेष पर अपने चिन्ह नहीं छोड़े .
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10-04-2013, 12:41 AM | #8 | |
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Re: क्यों समन्दर में गहरे उतरता नहीं !
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07-06-2013, 10:21 PM | #9 |
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Re: क्यों समन्दर में गहरे उतरता नहीं !
आपका बहुत शुक्रिया जनाब Hatim Jawed जी .
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