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Old 14-05-2012, 10:00 AM   #8121
Dark Saint Alaick
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सियासी हैसियत बढ़ाने की कोशिश में 'बरेली मरकज'

नई दिल्ली। देश की सियासत में दारूल उलूम देवबंद की आवाज असरदार मानी जाती है और अब बरेलवी मुसलमानों की सबसे बड़ी शिक्षण संस्था बरेली मरकज भी कुछ इसी तरह की हैसियत बनाने की कोशिश में है। इसी कोशिश के तहत बरेली मरकज के एक शिष्टमंडल ने बीते शुक्रवार को समाजवादी पार्टी (सपा) के प्रमुख मुलायम सिंह यादव और जामा मस्जिद के शाही इमाम अहमद बुखारी से मुलाकात की। इस शिष्टमंडल में शामिल एक मौलाना ने कहा कि हमारा मकसद सियासत में दखल देना नहीं है, लेकिन हम चाहते हैं कि मुसलमानों के सबसे बड़े तबके की आवाज सुनी जाए। हमने मुलायम सिंह से यही कहा कि आपको उत्तर प्रदेश में जिताने में इस तबके का बड़ा हाथ रहा और आपको इसे समझना चाहिए। उन्होंने हमारी बातों को गौर से सुना और उन पर अमल करने का भरोसा दिया। भारत में सुन्नी मुसलमान मुख्य रूप से दो धड़ों देवबंदी और बरेलवी के रूप में रहते हैं। इनमें बरेलवी मुसलमानों की तादाद ज्यादा है, लेकिन सियासत में उनका दखल बहुत कम रहा है। इस शिष्टमंडल में बरेली मरकज के प्रमुख आला हजरत सुभान रजा खां सुभानी मियां के सचिव आबिद खान और मरकज के दारूल इफ्ता के प्रमुख मुफ्ती कफील अहमद शामिल थे। सूत्रों का कहना है कि मुलायम और बुखारी से मुलाकात करने वाला बरेली मकरज का यह शिष्टमंडल अजमेर भी गया है, जहां वह दरगाह के कर्ता-धर्ताओं से मुलाकात कर उन्हें सियासी मुद्दों पर अपने साथ लेने का प्रयास करेगा। बुखारी के साथ बरेली मरकज के शिष्टमंडल की मुलाकात खासी अहम है, क्योंकि शाही इमाम का झुकाव देवबंद की ओर माना जाता रहा है। बुखारी से बरेली मरकज की नजदीकी आजम खान के साथ उनके विवाद के वक्त बढ़ी। बरेली मरकज पर वर्चस्व रखने वाले परिवार से जुड़े मौलाना बदर रजा खां ने बुखारी के खिलाफ यह कहते हुए फतवा जारी किया था कि उनके पीछे नमाज जायज नहीं है, क्योंकि वह दाढ़ी कटवाते हैं। इस फतवे के तत्काल बाद बरेली मरकज ने इससे खुद को अलग कर लिया और बुखारी को मुसलमानों का एक बड़ा चेहरा बताया। इसके बाद से ही सुभानी मियां और बुखारी के बीच नजदीकी परवान चढ़ी। सुभानी मियां के करीबी आगामी 20 मई को फिर से बुखारी से मुलाकात करने वाले हैं। बरेली मरकज के वरिष्ठ पदाधिकारी और सुभानी मियां के सचिव आबिद खान ने कहा कि अभी हमारी बुखारी या किसी अन्य से सियासी मसलों पर खुलकर बातचीत नहीं हुई है। हां, अगली बार हम मुसलमानों से जुड़े कई मुद्दों पर बातचीत करेंगे। वैसे बरेली मरकज अब तक कांग्रेस के करीबी माना जाता रहा है और विधानसभा चुनावों के वक्त बरेली में राहुल गांधी ने सुभानी मियां से मुलाकात भी की थी, परंतु सूत्रों की मानें तो बरेली मरकज ने चुनावों में मुलायम का समर्थन किया और अब भी उनसे नजदीकी बनाए हुए है। इस बारे में आबिद खान कहते हैं कि मुलायम की जीत में हमारा किरदार जरूर रहा है। इसे खुद सपा के लोग भी मानते हैं, परंतु हम चाहते हैं कि हमारे तबके की आवाज सुनी जाए और उनके मसलों को हल किया जाए।
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Old 14-05-2012, 10:01 AM   #8122
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उत्तराखंड में भाजपा : कारवां गुजर गया, गुबार देखते रहे
टिकट वितरण में लेन-देन का आरोप लगा प्रदेश उपाध्यक्ष ने पद छोड़ा


देहरादून। पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में चंद दिन पहले तक सत्तासीन भारतीय जनता पार्टी के कई दिग्गज नेताओं को चुनाव से ठीक पहले किए गए नेतृत्व परिवर्तन का दिली मलाल है और यही वजह है कि राज्य में आज तक नेता प्रतिपक्ष का सर्वसम्मति से चुनाव नहीं हो पा रहा। राज्य में हाल में हुए विधानसभा चुनाव में सत्ता से हाथ धो बैठी भाजपा ने चुनाव से मात्र पांच महीने पूर्व नेतृत्व परिवर्तन करते हुए रमेश पोखरियाल निशंक के स्थान पर भुवन चंद्र खंडूरी को मुख्यमंत्री बना दिया था, लेकिन उस परिवर्तन का आज भी कई नेताओं को दिल से मलाल है। उन नेताओं का मानना है कि यदि नेतृत्व परिवर्तन नहीं होता, तो पार्टी और अधिक बेहतर प्रदर्शन करती तथा फिर से सरकार बनाती। पार्टी की गत दिनों हुई कार्यसमिति की बैठक में कई नेताओं ने इस सिलसिले में अपनी बात बड़ी ही बेबाकी से रखी। उन नेताओं का मानना था कि यदि राज्य में निशंक के खिलाफ किसी प्रकार की विरोधी हवा होती, तो निशंक निश्चित रूप से चुनाव हार जाते, क्योंकि पार्टी ने निशंक की पारंपरिक सीट बदलकर उन्हें जहां से टिकट दिया था, वह स्थान राजधानी देहरादून से मात्र 20 किलोमीटर की दूरी पर है। मुख्यमंत्री के रूप में निशंक ने राजधानी से ही अपनी सारी कार्यप्रणाली को अंजाम दिया था और तो और कांग्रेस ने निशंक के खिलाफ अपने कद्दावर नेता को खड़ा किया था। नेताओं का यह भी कहना था कि निशंक को हटाने तथा खंडूरी को लाने से राज्य के कई हिस्सों में ठीक संदेश नहीं गया, जिसके चलते पार्टी आज विपक्ष में है। इसी गलत संदेश के चलते खंडूरी को भी अपनी सीट गंवानी पड़ी, जबकि उनके सामने कोई गंभीर चुनौती भी नहीं थी। राज्य में युवा कल्याण परिषद के पूर्व उपाध्यक्ष सुभाष बर्थवाल ने कहा कि किसी भी दल में ऐन वक्त पर नेतृत्व परिवर्तन करने से संदेश तो विपरीत ही जाता है। और तो और निशंक को हटाते समय कोई कारण भी नहीं बताया गया था। इससे पार्टी को जनता के बीच जवाब देते नहीं बना। उन्होंने कहा कि पार्टी नेतृत्व ने मात्र इतना ही कहा था कि नई रणनीति के तहत नेतृत्व परिवर्तन किया गया, जो मतदाताओं के गले नहीं उतरा। इसका सीधा असर खंडूरी के विधानसभा क्षेत्र में देखा गया, जहां ‘सब कुछ’ के बावजूद ‘खंडूरी है जरूरी’ के नारे को मतदाताओं ने सिरे से नकार दिया था। पार्टी के एक अन्य नेता ने नाम नहीं बताने की शर्त पर कहा कि चुनावी आंकडे बताते हैं कि खंडूरी ने चुनाव के दौरान जिन 40 स्थानों पर दौरा किया था, उसमें से पार्टी 31 स्थानों पर हार गई। चमोली, रूद्रप्रयाग, श्रीनगर, पिथौरागढ़ सहित अन्य इलाकों के आंकड़े सामने हैं। और तो और खंडूरी के लोकसभाई क्षेत्र में जो 14 विधानसभा क्षेत्र आते हैं, उनमें भी पार्टी को 11 पर हार का मुंह देखना पड़ा। पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष पद से 20 दिन पहले ही इस्तीफा दे चुके डॉ. अंतरिक्ष सैनी ने पार्टी में घोर अंतर्कलह का आरोप लगाते हुए दावा किया कि गत विधानसभा चुनाव में पैसे लेकर लोगों को टिकट दिया गया। टिकट बंटवारे में न केवल पैसे का लेन-देन हुआ, बल्कि जीतने वाले कार्यकर्ताओं को व्यक्ति विशेष के प्रिय अथवा अप्रिय होने का भी खमियाजा भुगतना पड़ा। हालांकि उन्होंने व्यक्ति विशेष का नाम नहीं बताया, लेकिन उनका इशारा पार्टी नेतृत्व परिवर्तन की ओर ही था। उन्होंने आरोप लगाया कि गडकरी सर्वे के नाम पर राष्ट्रीय नेतृत्व को गुमराह करके व्यक्ति विशेष के प्रिय लोगों को टिकट दिए गए, जिसके चलते पार्टी को कई जगहों पर भारी नुकसान उठाना पड़ा। देहरादून जिले के विकासनगर विधानसभा क्षेत्र के बुजुर्ग निवासी गंगा सिंह चौहान ने बताया कि चंद महीने पहले जब विकासनगर में उप चुनाव हो रहा था, तो सर्वेक्षणों के अनुसार भाजपा को तीसरे स्थान पर बताया जा रहा था, लेकिन निशंक के मुख्यमंत्रित्व के दौरान भाजपा को इस सीट पर जबर्दस्त कामयाबी मिली और अब जब नेतृत्व परिवर्तन के बाद आम चुनाव हुए तो भाजपा फिर हार गई। मीडिया के लोग इसका चाहे जो भी अर्थ निकालें, लेकिन स्थिति स्पष्ट है। इस सिलसिले में पूर्व मुख्यमंत्री निशंक ने बताया कि वह किसी पर आरोप नहीं लगा रहे हैं, लेकिन चुनाव परिणाम के आंकड़े खुद ही सच्चाई बयां कर रहे हैं। नेतृत्व परिवर्तन का आज तक कोई कारण नहीं बताया गया, जिससे भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं में आज भी विस्मय है। जनसंघ के जमाने से पार्टी का जो गढ़ था, वहां भी इस बार पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ा।
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संसद की पहली बैठक के साठ साल पूरे होने पर विशेष सत्र
संसद में कार्यवाही बार-बार बाधित होने पर उठी चिन्ता



नई दिल्ली। संसद की पहली बैठक की 60वीं वर्षगांठ के मौके पर लोकसभा और राज्यसभा में सदस्यों ने कार्यवाही में बार-बार बाधा पहुंचाए जाने पर चिन्ता व्यक्त करते हुए आत्मनिरीक्षण करने की आवश्यकता जताई। पार्टी राजनीति से ऊपर उठकर सदस्यों ने कहा कि संसद के आधिपत्य का संरक्षण किया जाना चाहिए। संभवत: लोकपाल को लेकर सांसदों के खिलाफ समाज के लोगों के अभियान का उल्लेख करते हुए सदस्यों ने कहा कि कानून संसद बनाती है न कि भीड़। विभिन्न राजनीतिक दलों के सदस्यों ने इस बात पर गर्व महसूस किया कि भारत में लोकतंत्र कायम है और गरीबी, आतंकवाद तथा पड़ोसी देशों में लोकतंत्र को लेकर अनिश्चितता के बावजूद भारत दुनिया के लिए बड़ी मिसाल है। लोकसभा की पहली बैठक के साठ वर्ष पूरा होने के अवसर पर बुलाई गई उच्च सदन की विशेष बैठक में चर्चा की शुरुआत करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि पिछले साल साठ साल में सदन के कामकाज के इतिहास ने यह साबित किया है कि संविधान निर्माताओं ने जो विश्वास व्यक्त किया है उसे काफी हद तक पूरा किया गया है। उन्होंने ध्यान दिलाया, इसका यह मतलब नहीं है कि कार्यवाही को बार-बार बाधित करने और कई बार सार्थक चर्चा करने के बारे में खेदजनक अनिच्छा पर हमें गंभीरता से विचार नहीं करना चाहिए। मनमोहन ने उम्मीद जताई कि सदन के 60 वर्ष पूरे होने के महत्वपूर्ण अवसर सदस्य एक नया अध्याय लिखेंगे और उच्च सदन से की जाने वाली अपेक्षा के अनुरूप गरिमा एवं सम्मान की भावना को बहाल करेंगे। प्रधानमंत्री ने राज्यसभा के पहले सभापति एस राधाकृष्णन का स्मरण करते हुए कहा, संसद केवल विधायी ही नहीं बल्कि विचार विमर्श करने वाली संस्था भी है। यह हमारे कामकाज पर निर्भर करेगा कि हम इस दो सदन वाली प्रणाली को कितना जायज ठहरा सकते हैं। यह प्रणाली हमारे संविधान का एक अखंड अंग है।
लोकसभा में सदन के नेता प्रणव मुखर्जी ने ऐसी व्यवस्था बनाने की जरूरत बताई जिससे संसद की कार्यवाही बाधित नहीं हो और चर्चा के माध्यम से मुद्दों का समाधान निकाला जाए। प्रणव ने कहा कि सदन में कई मुद्दों पर उत्तेजना बढ़ जाती है जिसके कारण कार्यवाही बाधित होती है। इसमें हमारे दल के लोग भी होते हैं और दूसरे दलों के लोग होते हैं। लेकिन अगर कामकाज बाधित होता है तब हम अपनी बात नहीं रख पाते। हमें ऐसी व्यवस्था बनाने की जरूरत है जिससे सदन का कामकाज बाधित नहीं हो। उन्होंने कहा कि किसी भी संसदीय व्यवस्था में 60 वर्ष अधिक नहीं होते हैं लेकिन चिंतन के लिए यह महत्वपूर्ण समय होता है। प्रणव ने कहा कि जब आजादी के बाद भारत में 1,400 रियासतों का विलय किया गया तब न कोई यातना शिविर बना और न कोई गिलोटिन हुआ। यह सब सहिष्णुता से हो गया। उन्होंने कहा कि इसी तरह जब हम अंग्रेजों की औपनिवेशिक दासता से मुक्त हुए, तब घृणा का भाव नहीं था बल्कि मित्रता के वातावरण में हुआ। इसी का उदाहरण है कि लार्ड माउंटबेटन आजाद भारत के पहले गर्वनर जनरल बने। लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार ने कहा, जनप्रतिनिधियों के लिए उनके अपने दलों द्वारा दिए गए निर्देशोें का पालन करना अनिवार्य होता है और मतदाताओं की अपेक्षाओं पर खरा उतरना राजनीतिक जीवन की सफलता की कसौटी है। पर यह याद रखना चाहिए कि हमें राष्ट्रीय संसद के लिए चुना गया है और इतिहास में हमारा मूल्यांकन इसी आधार पर होगा। वैचारिक भिन्नता के बावजूद राष्ट्रहित हमारे लिए सर्वोपरि होना चाहिए। उन्होंने कहा कि पहली लोकसभा में 21 महिला सांसद थी, अब 15वीं लोकसभा में 60 महिला सांसद है जो देश के सरोकारों को तत्परता से व्यक्त करती हैं। उन्होंने महिलाओं की संख्या और बढ़ने की कामना की।
सपा नेता मुलायम सिंह यादव ने जहां कहा कि लोकतांत्रिक व्यवस्था को सफल बनाने में देश की गरीब जनता के प्रयास सराहनीय हैं और हमें एकजुट होकर गरीबों, बेसहारा लोगों को आगे लाने का संकल्प लेना चाहिए वहीं जदयू के शरद यादव ने कहा कि लोकतंत्र संसद तक तो पहुंच गया है लेकिन गरीबों तक नहीं पहुंचा है। राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली ने कहा कि 60 वर्ष किसी राष्ट्र के जीवन में समुद्र की एक बूंद की तरह होते हैं लेकिन हमारे संविधान निर्माताओं ने जो दिशा तय की, हम उस दौरान उस ओर मजबूती से बढ़े हैं। उन्होंने कहा कि हमने देश की एकता और अखंडता को बरकरार रखने का मुख्य मकसद को हासिल किया है। उन्होंने कहा कि पिछले 60 साल के दौरान कई देशों में लोकतंत्र ढह गया और वहां राजतंत्र या तानाशाही आ गई। लेकिन हमारे देश में लोकतंत्र मजबूत होता गया। हालांकि इस बीच हमने संभवत: सबसे अधिक युद्धों का सामना किया, प्राकृतिक आपदाएं झेलीं और सीमा पार के आतंकवाद का सामना किया। निचले सदन में भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने संसद की कार्यवाही सुचारू रूप से चलाने के लिए सदन के नेता प्रणव मुखर्जी के सुझाव का समर्थन करते हुए कहा कि एक दूसरे के प्रति सहिष्णुता और आदर का भाव हो तो सदन की कार्यवाही बाधित नहीं हो सकती और चर्चा के माध्यम से ही सभी समस्याओं का समाधान निकाला जा सकता है। उन्होंने कहा कि भारत स्वतंत्र हो गया, भारत परमाणु शक्ति बन गया और आने वाले वर्षो में विश्वशक्ति भी बन जाएगा लेकिन इन 60 वर्षों की बड़ी विशेषता रही है कि भारत एक लोकतंत्र के रूप में सफल रहा।
संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कहा कि संसद की अखंडता और स्वतंत्रता को अक्षुण्ण रखा जाना चाहिए और इससे किसी कीमत पर समझौता नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि सदस्यों को संविधान के संस्थापकों के आदर्श अपनाने चाहिए। संसद की पहली बैठक की 60वीं वर्षगांठ इसकी उपलब्धियों को दर्शाने का एक मौका है। भारतीय लोकतंत्र के निर्माण में जनता के योगदान को अहम बताते हुए उन्होंने कहा कि हमारा लोकतंत्र जनता की ताकत दर्शाता है जहां आम आदमी इस लोकतंत्र की आत्मा है। सोनिया ने वर्ष 2001 में संसद पर हुए हमले को याद करते हुए आतंकवादियों से लड़ने वाले और शहीद हुए सुरक्षाकर्मियों को श्रद्धांजलि दी। राज्यसभा में बसपा प्रमुख मायावती ने मजबूत संसदीय प्रणाली के लिए संविधान निर्माता भीमराव अंबेडकर के योगदान का स्मरण करते हुए कहा कि शुरुआती 30 वर्षों में संसद की हर गतिविधि और कार्यवाही में देश हित को आगे और राजनीतिक हितों को पीछे रखा जाता था। लेकिन पिछले कुछ सालों में राजनीतिक एवं व्यक्तिगत हित सामने आ गए हैं। निचले सदन में राजद के लालू प्रसाद ने कहा, दिल्ली से कोलकाता तक क्षेत्रीय पार्टियों की धूम है। उन्होंने कहा कि आगामी राष्ट्रपति और लोकसभा चुनावों में क्षेत्रीय पार्टियों की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। मुखर्जी को वरिष्ठ नेता बताते हुए लालू ने कहा कि वह उनका सम्मान करते हैं और उन्हें हम सभी को डांटने का पूरा अधिकार है। हम चाहते हैं कि आप दीर्घायु हों और हमें यूं ही डांटते रहें। इस पर सदन में बैठे सदस्य और खुद मुखर्जी अपने आपको हंसने से नहीं रोक पाए।
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अन्ना मूवमेंट पर बोले सांसद
भीड़ नहीं, संसद सर्वोच्च



नई दिल्ली। अन्ना हजारे के नेतृत्व में समाज के लोगों द्वारा चलाए जा रहे अभियान की रविवार को राजद प्रमुख लालू प्रसाद ने कड़ी निन्दा करते हुए कहा कि संविधान और संसद को निशाना बनाने की किसी भी साजिश को नाकाम किया जाना चाहिए। लोकसभा में संसद की पहली बैठक की 60वीं वर्षगांठ पर लालू ने कहा कि लोकपाल के नाम पर देश और संसद को ध्वस्त करने की साजिश चल रही है। लोग सांसदों के घेराव की बात कर रहे हैं। सांसदों को चोर और डकैत कहा जा रहा है। उन्होंने कहा कि कानून बनाने वाली संस्था संसद है लेकिन हमारे सिर पर किसी को बैठाने की कोशिश हो रही है। संसद का महत्व कम करने और इसे बदनाम करने की गहरी साजिश रची जा रही है। उधर राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष अरूण जेटली ने भी इस मुददे पर परोक्ष टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि जब हमारी जवाबदेही के नियम सुधरेंगे तो संसद और संसदीय कामकाज को लेकर निराशावाद खत्म हो जाएगा। निराशावाद से गुस्सा पनपता है और गुस्से में भीड़ सड़क पर आ सकती है। लेकिन संसद जवाबदेह है न कि भीड़। संसदीय संस्थाओं का कोई विकल्प नहीं हो सकता। हजारे और समाज का नाम लिए बिना लालू ने कहा कि इस मौके पर सदस्यों को संकल्प लेना चाहिए कि संसद को ध्वस्त नहीं होने देंगे, जो दुनिया में सबसे बड़ी लोकतांत्रिक संस्था है। उनकी बात का समर्थन करते हुए एमआईएम के असदुददीन ओवैसी ने कहा कि सतही तत्वों को संसद का प्रभुत्व कम करने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए।
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मतदाताओं की आकांक्षाओं पर खरा उतरना राजनीतिज्ञों के लिए जरूरी : मीरा

नई दिल्ली। लोकसभा की पहली बैठक की 60वीं वर्षगांठ पर अध्यक्ष मीरा कुमार ने कहा कि राजनीतिकों के लिए मतदाताओं की आकांक्षाओं पर खरा उतरना अत्यंत जरूरी है, क्योंकि इतिहास इसी के आधार पर उनका मूल्यांकन करेगा। लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि जनप्रतिनिधियों के लिए उनके अपने दलों द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन करना अनिवार्य होता है और मतदाताओं की अपेक्षाओं पर खरा उतरना राजनीतिक जीवन की सफलता की कसौटी है, पर यह याद रखना चाहिए कि हमें राष्ट्रीय संसद के लिए चुना गया है और इतिहास में हमारा मूल्यांकन इसी आधार पर होगा। वैचारिक भिन्नता के बावजूद राष्ट्रहित हमारे लिए सर्वोपरि होना चाहिए। उन्होंने कहा कि पहली लोकसभा में 21 महिला सांसद थीं, अब 15वीं लोकसभा में 60 महिला सांसद हैं, जो देश के सरोकारों को तत्परता से व्यक्त करती हैं। उन्होंने महिलाओं की संख्या और बढ़ने की कामना की। मीरा ने कहा कि हमारी विविधता जो कभी हमारी कमजोरी समझी जाती थी, आज हमारे लिए अक्षय शक्ति पुंज है। हम सब का दायित्व है कि संसद में जनता के विश्वास को और सुदृढ़ करें और बदलती आश्वयक्ताओं और आकांक्षाओं के अनुरूप कार्य करें। 60 वर्ष किसी भी राष्ट्र के लिए लम्बी अवधि नहीं मानी जाती है, लेकिन यह आत्मावलोकन की घड़ी है और आने वाली चुनौतियों का आकलन करने का समय है। मीरा ने कहा कि लोकतंत्र और जाति व्यवस्था साथ साथ नहीं चल सकते हैं। लोकतंत्र समता पर और जाति व्यवस्था ऊंच-नीच पर आधारित है। दोनों में से एक को समाप्त होना होगा। आज जब हम पूरी शक्ति से लोकतंत्र का जयघोष कर रहे हैं, तो उतनी ही ताकत से जाति व्यवस्था को समाप्त करना होगा। 13 मई 1952 को लोकसभा की पहली बैठक के साथ हमारा लोकतंत्र नवोन्मेष की नई उष्मा के साथ राष्ट्रीय क्षितिज पर अवतरित हुआ, जो अब तक किसी गिनती में नहीं थे, वे देश को चलाने के बराबर के हिस्सेदार बन गए। अमीर गरीब, शक्ति सम्पन्न अथवा नितान्त निस्सहाय सभी को एक वोट का अधिकार मिल गया। दिन रात कड़ी मेहनत कर रोजी रोटी कमाने और इसके साथ चुनावी प्रक्रिया में बड़ी उमंग से बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने वाले अनजान भारतीयों की आस्था का प्रतीक हमारे लोकतंत्र का अस्तित्व, उसकी सफलता की कुंजी है। लोकसभा अध्यक्ष ने पूर्व लोकसभा अध्यक्षों और अन्य पूर्व सदस्यों का भी आभार व्यक्त किया।
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संसद के 60 साल पूरे होने पर 102 वर्षीय स्वतंत्रता सेनानी ने खुशी जताई

जौनपुर। संसद के साठ वर्ष पूरा होने पर खुशी व्यक्त करते हुए उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के वयोवृद्ध स्वतंत्रता सेनानी पण्डित श्रीनिधि दुबे ने कहा है कि वह बहुत भाग्यशाली रहे कि उनके जिले के मछलीशहर और इलाहाबाद के फूलपुर से जीते पण्डित जवाहर लाल नेहरू देश के प्रथम प्रधानमंत्री बने थे। जौनपुर जिले के बांसापुर गांव निवासी श्रीनिधि दुबे (102) ने कहा कि नेहरू जी इलाहाबाद जिले के फूलपुर संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे थे। उस समय जौनपुर जिले की मछलीशहर तहसील क्षेत्र का काफी हिस्सा फूलपुर लोकसभा क्षेत्र में था। पण्डित नेहरू जब चुनाव प्रचार में आते थे तो वह उनका भाषण सुनने जाते थे। जब वह चुनाव जीतकर दिल्ली गए और देश के प्रधानमंत्री बने तो उन्हें गर्व का अनुभव हुआ कि मछलीशहर से चुनाव जीतने वाले नेहरू जी देश के पहले प्रधानमंत्री बने हैं। उन्होंने कहा कि 13 मई 1952 को जब संसद गठित हुई तो लोग कह रहे थे कि देखिए भारत में लोकतंत्र कितने दिन तक चलता है मगर उन्हें खुशी इस बात की है कि विकासशील देश भारत की संसद ने आज साठ साल पूरे कर लिए।
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पिछले सालों में संसद की बैठकों की कम हुई है संख्या

नई दिल्ली। भारतीय संसद आज अपने 60 वर्ष पूरे होने का उत्सव मना रही है लेकिन इसकी बैठकों और कानून बनाने से जुड़े आंकड़े बताते हैं कि शुरूआती सालों के मुकाबले सदन की बैठकों में कमी आई है। पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार 1950 के दशक में लोकसभा की बैठक औसतन 127 दिन चली थी वहीं राज्यसभा की कार्यवाही 93 दिन संचालित हुई थी लेकिन 2011 में इसमें बड़ी गिरावट दर्ज की गई और दोनों सदनों की कार्यवाही केवल 73 दिन चली। हालांकि 2001 में पीठासीन अधिकारियों, मुख्यमंत्रियों, संसदीय कार्य मंत्रियों और पार्टियों के नेताओं तथा सचेतकों के अखिल भारतीय अधिवेशन में मांग उठी थी कि संसद की बैठक साल में कम से कम 110 दिन होनी चाहिए। आज स्वतंत्र भारत में संसद की पहली बैठक के 60 वर्ष पूरे होने के मौके पर भी सदस्यों ने बार- बार सदन की कार्यवाही बाधित होने पर चिंता जताते हुए आत्मावलोकन की जरूरत बताई। गौरतलब है कि रविवार को राज्यसभा में चर्चा के दौरान माकपा के सीताराम येचुरी ने संसद का सत्र कम से 100 दिन चलाने की जरूरत पर बल दिया और कहा कि इसके लिए संविधान में संशोधन किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि दो दशक से इसकी बैठकों की संख्या में कमी आ रही है। उन्होंने कहा कि 14वीं लोकसभा में सबसे कम 332 बैठकें हुई यानी हर साल औसतन 66 बैठकें हुई। अध्ययन कहता है कि यह बात भी काबिलेगौर है कि 1993 में विभाग से सम्बंधित संसदीय स्थाई समितियों का गठन किया गया और तब से संसद अनेक विधेयकों को इन समितियों को भेजती है और यह काम संसद की बैठकों से परे होता है। अध्ययन में बताया गया है कि प्रथम लोकसभा ने हर साल औसतन 72 विधेयक पारित किए थे लेकिन 15वीं लोकसभा में एक साल में 40 विधेयक ही पारित हो सके। एक साल में सर्वाधिक विधेयक आपातकाल के दौरान 1976 में पारित हुए, जिनकी संख्या 118 थी। वहीं सबसे कम विधेयक 2004 में पारित हुए जब संसद ने केवल 18 विधेयकों को मंजूरी दी। अध्ययन के अनुसार आज तक संसद में केवल 14 गैरसरकारी विधेयक पारित हो सके और इनमें से छह अकेले 1956 में पारित हुए। संसद में लोकसभा में 264 और राज्यसभा में 160 गैर सरकारी विधेयक पेश किए जा चुके हैं। इनमें से लोकसभा में केवल 14 और राज्यसभा में 11 पर चर्चा हुई है। अध्ययन इस ओर भी इशारा करता है कि आजकल लोकसभा में शुरूआती सालों की तुलना में स्नातकोत्तर की पढाई पूरी कर चुके अपेक्षाकृत ज्यादा सदस्य हैं वहीं दसवीं से कम पढ़ाई करने वाले सांसदों की संख्या कम है। अध्ययन कहता है कि 1952 में माध्यमिक शिक्षा पढ़ाई नहीं करने वाले सांसदों की संख्या 23 प्रतिशत थी जो 2009 में घटकर तीन प्रतिशत रह गई। वर्ष 1952 में स्नातक सदस्यों की संख्या 58 प्रतिशत थी और यह बढ़कर 2009 में 79 फीसदी हो गई। इनमें परास्नातक की पढ़ाई करने वाले और डॉक्टरेट डिग्री रखने वाले सदस्य भी शामिल हैं। हालांकि संसद में सदस्यों की औसतन उम्र बढ़ रही है और 40 से कम उम्र के सांसदों की संख्या कम हुई है वहीं लोकसभा में 70 से अधिक उम्र के सांसद अधिक हैं। पहली लोकसभा में एक भी सांसद 70 वर्ष से अधिक का नहीं था लेकिन यह संख्या मौजूदा लोकसभा में सात है। एक सकारात्मक पहलू यह भी है कि लोकसभा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ा है और 1952 में यह पांच प्रतिशत था जो बढ़कर 15वीं लोकसभा में 11 फीसदी हो गया।
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Old 14-05-2012, 10:17 AM   #8128
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कामकाज चलाने के लिए व्यवस्था बने

पिछले छह दशक के दौरान संसद में जो गंभीर चर्चाएं, विचार-विमर्श हुए और कानून पारित किए गए। उससे हमारी लोकतांत्रिक प्रक्रिया मजबूत हुई है। इसने हमारे गणतंत्र को भी मजबूत किया है। संसद एक ऐसा अनूठा मंच है, जिसमें समाज के हर वर्ग की भावनाएं सामने रखी जाती हैं। संसद केवल विधायी संस्था नहीं है, बल्कि यहां गंभीर विचार-विमर्श भी होते हैं। उच्च सदन का लंबा इतिहास रहा है। इस दौरान सदन में कई ऐतिहासिक विधेयक पारित किए गए, जिनमें पूर्व रजवाड़ों का प्रिवीपर्स समाप्त करना, बैंकों का राष्ट्रीयकरण, शिक्षा का अधिकार, न्यूनतम रोजगार गारंटी जैसे विधेयक शामिल हैं। विश्व में हमारा कद इसलिए बढ़ता जा रहा है, क्योंकि हमारी लोकतंत्र में गहरी आस्था है।

-मनमोहन सिंह, प्रधानमंत्री
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जनता की ताकत दर्शाता है हमारा लोकतंत्र

संसद की अखंडता और स्वतंत्रता को अक्षुण्ण रखा जाना चाहिए और इससे किसी कीमत पर समझौता नहीं किया जा सकता। सदस्यों को संविधान के संस्थापकों के आदर्श अपनाने चाहिए। संसद की पहली बैठक की 60वीं वर्षगांठ इसकी उपलब्धियों को दर्शाने का एक मौका है। हमारा लोकतंत्र जनता की ताकत दर्शाता है, जहां ‘आम आदमी’ इस लोकतंत्र की आत्मा है। हम गर्व से कह सकते हैं कि दुनिया में सबसे बड़ा मतदाता समूह यहां लोकतंत्र में चुनाव की प्रक्रिया में भाग लेता है। गांधीजी ने हमें प्यार और दया का पाठ सिखाया, वहीं नेहरूजी ने महान संसदीय लोकतांत्रिक परंपरा में योगदान दिया तथा सभी के लिए स्वराज की कल्पना की।

-सोनिया गांधी, संप्रग अध्यक्ष
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Old 14-05-2012, 10:19 AM   #8130
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बनानी ही होगी कोई व्यवस्था

शुरू से ही संसद ने किसी भी कठिन परिस्थिति में ‘शॉक एबजार्वर ’ (झटके सोखने) का काम किया है और अधिकांश समय में संकट को समाप्त करने में सहायक भी रही है। संसदीय लोकतंत्र में संघर्ष की स्थिति आती है, लेकिन इन वर्षो में हमने ऐसी प्रणाली तैयार की है, जहां से समाधान का रास्ता निकलता है। सदन में कई मुद्दों पर उत्तेजना बढ़ जाती है, जिसके कारण कार्यवाही बाधित होती है। इसमें हमारे दल के लोग भी होते हैं और दूसरे दलों के लोग होते हैं, लेकिन अगर कामकाज बाधित होता है, तब हम अपनी बात नहीं रख पाते। हमें ऐसी व्यवस्था बनाने की जरूरत है, जिससे सदन का कामकाज बाधित नहीं हो और चर्चा के माध्यम से मुद्दों का समाधान निकाला जाए।

-प्रणव मुखर्जी, वित्त मंत्री
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